सात बजे से नीरजा आरती का रास्ता देख रही थी अब रात के नौ बजने को आ रहे थे अभी तक उसका कोई पता नहीं था दो बार उसका फोन भी ट्राई कर चुकी थी वह भी बंद आ रहा था। घर में इस समय नीरजा के अतिरिक्त उसकी उम्रदराज सास थीं जिनका अशक्त ता के कारण अधिक तर समय बिस्तर पर ही कटता था ।पति अक्सर टूर पर ही रहते थे दोनों बेटे इंजिनियरिंग की पढ़ाई होस्टल
में रहकर कर रहे थे।अचानक बाहर स्कूटी रूकने की आवाज आई बेल बजी नीरजा ने उठकर दरवाजा खोला देखा तो आरती ही थी देर से आने की सफाई देते हुए अंदर आई हाथ का सामान टेबल पर रखा और सोफे पर बैठते हुए बोली भाभीजी जरा देर हो गई नीरजा जो अब तक चुप थी बोली सात बजे से रास्ता देख रही हूं अब रात के नौ बज गए हैं भाभीजी गरबे की प्रेक्टिस में गई थी इसीलिए देर हो गई ।
गरबा में नीरजा ने प्रश्न किया वैसे ही तुम्हारी भागम-भाग कम है क्या जो यह नया शगूफा पाल लिया। भाभीजी मुझे गरबा करने का बहुत शौक है आज स्कूल से आने के बाद उर्वी को कोचिंग से लेने गई फिर आपके यहां का सामान लाना था लाने को तो ये भी सामान ला देते पर मैने ही कहा कि भाभीजी के यहां का सामान तो मैं ही देने जाऊंगी गरबा की प्रेक्टिस में जाने में देर हो रही थी इसलिए पहले वहां चली गई वहां से छूटकर पहले घर गई
आपका सामान लिया और सीधी यहीं चली आ रही हूं असल में भाभीजी पुलिस लाइन का ग्राउंड घर से दूर है आने जाने में समय लगता है। इतनी दूर क्यों जाती हो जब तुम्हारे घर के पास वाले मंदिर के ग्राउंड में ही गरबे की प्रेक्टिस होती है नीरजा ने पूछा भाभीजी पुलिस लाइन वाले ग रबे में प्रवेश निःशुल्क है यहां फीस लगती है इसलिए वहां जाती हूं। आपका सामान देख लीजिए एक किलो छिल्के वाली मूंग दाल हरे पैकेट वाला
नमक गुलाबी नमक और ये हींग भाभीजी आजमा कर देखिए बहुत ही अच्छा नीरजा ने सामान संभाला बिल देख कर पेमेंट किया फिर आरती से पूछा रात का खाना अब कब बनाओगी सबेरे की रोटी सब्जी रखी थी उर्वी ने कुकर लगा लिया था अब 7th में पढ़ने लगी है इतना तो कर ही लेती है दोनों खाना
खा चुके हैं बस मैं ही बाकी हूं संतोष भैया कुछ नहीं कहते तुम जो इतनी दौड़ भाग करती हो और फिर ये गरबा नीरजा के प्रश्न के उत्तर में आरती बोली नहीं भाभीजी कुछ नहीं कहते बल्कि मेरे शौक का पूरा सम्मान करते हैं और गरबा तो बस दशहरे तक का ही तो है फिर अपनी वही जिन्दगी कहते नीरजा मनही मनआरती के इसी जज्बे की कायल थी अम्माजी के चचेरे भाई
की बहू थी आरती इसी कारण नीरजा को जेठानी मानकर आरती भाभीजी कहती थी । इस शहर में जब नीरजा के पति विपिन का स्थानांतरण हुआ तो पता चलने पर सबसे पहले संतोष भैया ही मिलने आए थे अम्माजी उनकी बुआ जो लगती थीं अम्माजीभी उनसे मिलकर बहुत खुश हुई थीं ।उन्हीं से पता चला कि उनकी किराने की दूकान है। तथा पत्नी स्कूल में शिक्षक है एक बेटी भी है जो कि सेंट्रल स्कूल में प ढ़ती है। उनके यहां किराने का सामान घर पहुंचाने की सुविधा है जानकर नीरजा को बड़ी तसल्ली
हुई क्योंकि विपिन का टूरिंग वाला जाॅब होने तोष भैया का साथ के कारण और अम्माजी के साथ अकेले रहने से कभी भी किसी की सहायता की आवश्यक ता पड़ सकती है ऐसे में संतोष भैया का इस शहर में होना नीरजा को बड़ी दिलासा दे गया। बाद में आरती सेभी नीरजा की मुलाकात हुई
और रिश्तेदारी जल्दी ही घनिष्ठ ता एवं प्रगाढ़ता में बदल गई। नीरजा सब आवश्यक ता का सामान अब आरती से ही मंगवाती थी क्योंकि जरूरत का सब सामान एक फोन काॅल पर उपलब्ध हो जाता था दूसरी बात प्रत्येक वस्तु की गुणवत्ता निर्विवाद होती थी। अम्माजी अक्सर रिश्तेदारों की बातें नीरजा से किया करती थीं उन्होंने ही संतोष भैया के पिता याने अपने चचेरे भाई के बारे में नीरजा को बताया था मदन को टी बी हो गई थी
बीमारी के चलते उसकी मृत्यु हो गई थी भाभी तो अच्छी भली थी पर एक बार ऐसा बुखार आया कि जो बिस्तर पकड़ा कि फिर उठ नहीं पाईं छः महिने के अंतर से दोनों पति पत्नी इस दुनिया को छोड़ गए उनके चार बच्चे थे बड़ी बेटी रमा फिर तीन बेटे रमेश अशोक और संतोष रमा तथा रमेश का ब्याह तो भैया भाभी के सामने हो गया था अशोक कहीं दूसरे शहर में पढ़ने गया था संतोष वहीं कस्बे के स्कूल में पढ़ता था
माता पिता के न रहने के बाद थोड़े दिन तो बड़े भाई भाभी ने रखा फिर घर में लड़ाई झगड़े होने लगे तो वहीं किसी सेठ की दुकान में काम करने लगा और वहीं रहने भी लगा ।अशोक ने भी बाद में अपनी पसंद से शादी कर अपनी गृहस्थी बसा ली इस बात को भी कई बरस बीत गए हैं कुछ साल पहले रमा मिली थीउसी ने बताया था कि कस्बे के सरकारी स्कूल के मास्टर जी की पढ़ी लिखी बेटी से उसने संतोष का ब्याह करवा दिया है
अम्माजी ने जो अपने भाई के परिवार के बारे में पता था धीरे धीरे जब आरती का आना जाना नीरजा के घर ब ढ़ने लगा तो परिचय का दायरा भी विस्तृत होने लगा । आरती संस्कृत में एम.ए.हैऔर एक प्राइवेट स्कूल में संस्कृत की व्याख्याता है सैलरी तो सरकारी स्कूल जितनी नहीं मिलती है पर ठीक ठाक है।
नीरजा को अम्माजी से ही पता लगा था कि संतोष भैया अधिक पढ़े लिखे नहीं हैं फिर ये बेमेल विवाह हुआ कैसै इसका जवाब तो आरती ही दे सकती थी सो नीरजा ने उसी से पूछने का निश्चय किया एक दिन जब आरती सामान देने आई तो नीरजा ने ये सवाल उससे पूछ ही लिया । आरती एक पल तो उसके सीधे सवाल पर सकपकाई फिर धीरे धीरेउत्तर देना प्रारंभ किया। भाभीजी मेरे पिता शिक्षक थे मां सौतेली मेरी तीन छोटी बहने थीं मैं घर में सबसे बड़ी थी पढ़ने में मेरी बहुत रूचि थी पर मांको मेरा पढ़ना लिखना काॅलेज जाना बिल्कुल भी पसंद नहींथा जबकि मैं उन पर बोझ बिल्कुल नहींथी ट्यूशन कर अपना खर्च निकाल लेती थी तब भी मां रात दिन मेरे विवाह के लिए पापा के पीछे पड़ी रहती थी इसी बीच बड़ी दीदी नेएक समाज के कार्यक्रम में मुझे देख लिया और पापा से अपने भाई के लिए मेरा हाथ मांग लिया मां की तो जैसे मुराद पूरी हो गई क्योंकि दीदी ने भावी ससुराल का ऐसा चित्र खींचा कि पापा भी अभिभूत हो गए घर में कोई जिम्मेदारी नहीं है माता पिता हैं नहीं दोनों भाई अपनी अपनी गृहस्थी मेंव्यस्त हैं लड़के की अपनी दुकान है लड़की राज करेगी राज गांव में घर है खेती है इन सब बातों में लड़का कितना पढ़ा है किसी ने ध्यान ही नहीं दिया। मैंने पूछा भी तो मां ने यह कह कर मुंह बंद कर दिया कि लड़के की कमाई देखी जाती है पढ़ाई नहीं और आठ दिन में तो चट मंगनी पट ब्याह की तर्ज पर विवाह भी हो गया।
दहेज मांगा नहीं था तो कुछ विशेष दिया भी नहीं मेरी अपनी मां की एक सोने की चेन थी पापा की देने की बड़ी इच्छा थी पर मम्मी ने वह भी नहीं देने दी। विवाह की गहमा गहमी में दो दिन पता ही नहीं चले तीसरे दिन इनके साथ इस शहर में चार घंटे का बस मेंसफर करके आईक्योंकि इनकी तथाकथित दुकान और घर यहीं पर थे भाभीजी आप सच मानिए घर केनाम पर एक बिल्कुल छोटा सा कमरा था टायलेट भी सार्वजनिक कमरे में सामान के नाम पर एक स्टोव्ह और कुछ बरतन हां कमरे के एक कोने में कुछ पाॅलिथिन के पैकेट और कुछ भा भप्लास्टिक के औ र टीन के डिब्बे रखे थे पूछने पर पता चला कि फुटपाथ पर हाट बाजार में जो किराने की दूकान लगाते हैं उसीका ये सामान है
भाभीजी आप कल्पना कीजिए मुझ पर क्या बीती होगी एक मन हुआ सब छोड़कर चली जाऊं पर जाऊंगी कहां मां तो घर में नहीं घुसने देगी पिता का विवश चेहरा आंखों के सामने घूम गया दोनों भाई ग्रेजुएट हैं ये तो दीदी ने बता दिया था शादी में भी दोनोंभाई परिवार सहित शामिल होने आए थे व्यवहार से पढ़े लिखे स॔भ्रात प्रतीत हो रहे थे पर पति की पढ़ाई पर अभी भी सस्पेन्स था
मुझे कुछ भी समझ नहीं आ रहा था क्या करूं किससे कहूं एक अल्प शिक्षित फुटपाथ पर दुकान लगाने वाले व्यक्ति के साथ उसके जीवन को बांधकर माता पिता ने तो अपने कर्तव्य की इतिश्री कर ली ऐसे कई विचार भाभीजी मेरे मन में आ रहे थे मैने धीरे धीरे वास्तविक ता को समझा दो दिनों में मैने जान लिया था कि ये बहुत संवेदनशील व्यवहारिक और समझदार हैं तथा मेरे प्रति इनका व्यवहार अत्यंत सौहार्द्रपूर्ण है एक पढ़ाई को छोड़कर इनमें और कोई कमी नहीं है कयोंकि भाभीजी मुझेपता चल गया था ये केवल आठवीं तक ही पढ़े हैं।
आरती ने नीरजा को आगे बताया पहले तो वास्तविक ता का पता चलने पर मैं बहुत रोई परहशीघ्र ही संभल गई सबसे पहले इ स शहर मे॔ नौकरी की तलाश की नौकरी मिलने पर घर बदला फिर खुद के घर के लि ए कवायद शुरू की बैंक से लोन लिया दो कमरे का घर खरीदा अपनी सैलरी से घर की किश्त की व्यवस्था की। आरती लगातार बोलती जा रही थी और नीरजा मंत्रमुग्ध सी सुनती जारही थी भाभीजी फिर मैने इनके काम मेंभी मैने सहयोग देना शुरू किया घर घर सामान पहुंचाने की योजना का शुभारंभ किया समान की गुणवत्ता पर ध्यान दिया
धीरे धीरे मेहनत रंग लाई लोग हमें जानने पहचानने लगे आर्थिक व्यवस्था भी सुधरी एक सेकेंड हैंड ऑटो लिया और उसे चलती फिरती दुकान का रूप दिया हाट बाजार में सामान ले जाना आसान हुआ।इसी बीच उर्वी का जन्म हुआ थोड़ी परेशानी हुई पर साल भर में स्थिति सुधर गई हम दोनों ने मिलकर बच्ची नौकरी काम धंधा सब संभाल लिया जिम्मेदारी बढ़ी उसे भी निभाया आज उर्वी सेंट्रल स्कूल में 7th में पढ़ती है बहुत अच्छे नंबर लाती है इनको अपने कम पढ़े लिखे होने का बहुत दुख है पर जीवन की आपाधापी में ऐसे उलझे कि चाह कर भी नहीं पढ़ पाए अब तो हम दोनों का एक ही लक्ष्य है उर्वी के सुरक्षित भविष्य के लिए जो भी हमसे बनेगा सब करेंगे मेरी भाभीजी एक और इच्छा है बस इनकी स्थायी दुकान हो जाए घर की किश्त जल्दी ही पूरी हो जाए गी तो दुकान का सपना भी जरूर पूरा होगा। फिर थोड़ा रूक कर बोली अब पढ़ाई का अंतर मेरे लिए कोई मायने नहीं रखता है पति की संवेदनशीलता उनकी कर्म ठता उनका स्नेहपूर्ण व्यवहार और परिवार के प्रति समर्पण यही मेरा सबसे बड़ा सुख है। अरे इतना समय हो गया अब मैं चलूं कहते हुए आरती उठने लगी नीरजा ने उसे यह कहते हुए फिर से बैठाया हमेशा जल्दी में रहती हो आज तो चाय पीना पड़ेगी कहते हुए चाय नाश्ता लाने किचन की ओर चली।उस दिन तो थोड़ी देर बाद आरती अपने घर चली गई पर नीरजा को बहुत कुछ सोच ने पर मजबूर कर गई। आरती में कुछ तो ऐसा था जो उसे दूसरों से अलग करता था और इसीलिए नीरजा को उसका साथ अच्छा लगता था और मन ही मन वह उसकी कायल थी वह सोच रही थीआज आरती का उदाहरण समाज में उन लोगों के समक्ष एक दृष्टांत बन सकता हैजो पति पत्नी के आपसी रिश्ते में प्रेम स्नेह और विश्वास के स्थान पर बराबरी को महत्व देते हैं। शिक्षा में समानता सामाजिक स्तर में समान ता आर्थिक स्थिति में समानता आदि इनमें से यदि एक स्तर में भी असमानता रही तो संबंध टूटने की कगार पर आ जाते हैं जिसमें शिक्षा की असमानता तो कतई क्षम्य नहीं होती खासकर यदि पत्नी पति से अधिक पढ़ी लिखी हो तो या विवाह के बाद भी पति से अधिक पढ़ जाए तो वह अपनै से कम पढ़े लिखे पति को स्वीकार नहीं कर पाती ऐसे लोगों के लिए आरती के सफल वैवाहिक जीवन का उदाहरण या दृष्टांत एक नजीर है नीरजा के मन में कई विचार आ जा रहे थे । हर एक के जीवन में कई कठिनाई यां आती हैं जो इस जीवन संघर्ष का सामना धैर्य और साहस से करता है उसे ही सफलता मिलती है आरती की तरह।
मधुलता पारे
भोपाल