बेटा शादी अगर दो आत्माओं का मिलन है, तो 2 परिवारों का भी मिलन है। तुम दोनों हमारे बच्चे हो, अगर हमारी जिम्मेदारी तुम्हारी है तो तुम्हारी जिम्मेदारियां हमारी क्यों ना हुई?” कहकर सासु मां ने मुस्कुराकर प्रिया को आशीर्वाद दिया।
सासु मां के पैर छूते हुए प्रिया का रोम रोम उनको धन्यवाद कर रहा था। सासु मां और ससुर जी दोनों प्रिया के ही घर में थे।
“अच्छा प्रिया, राघव को और मम्मी पापा को मैं साथ लेकर जा रहा हूं। कोई जरूरत हो तो फोन कर देना।”
जी! कह कर प्रिया अंदर आ गई।” पापा अभी बिस्तर पर ही थे।
“मम्मी आपने इतनी बड़ी बात भी मुझसे छुपा ली? बताया क्यों नहीं?” प्रिया ने अपनी मम्मी से पूछा।
बेटा मैंने फोन तो करा था।”
पाठक गण आइए आपको इन दोनों के विषय में बताऊं। प्रिया और विनय दोनों अपने अपने घर के इकलौते बच्चे थे। दोनों एक ही स्कूल में और बाद में एक ही कॉलेज में पढ़े थे। यहां तक कि कैंपस सलेक्शन भी दोनों का एक ही कंपनी में हुआ था| दोनों के घर भी ज्यादा दूर नहीं थे। विनय ने जब प्रिया को शादी के लिए प्रपोज किया तो प्रिया को एक ही डर था, मेरे बाद मेरे माता पिता का ख्याल कौन रखेगा? दोनों बहुत अकेले हो जाएंगे। लेकिन विनय के समझाने पर कि हम दोनों का घर साथ ही तो है, हम दोनों के माता-पिता को एक की बजाय दो दो बच्चे मिल जाएंगे। एक दूसरे पर विश्वास करते हुए दोनों विवाह के बंधन में बंध गए थे|
इस बात में कोई दो राय नहीं हैं कि जहां विनय के माता-पिता को एक बेटी मिली थी, तो वहीं प्रिया के माता-पिता को भी एक बेटा मिल गया था।
जीवन बहुत खुशी खुशी व्यतीत हो रहा था। राघव के होने पर दोनों परिवारों में खुशियों की लहर दौड़ गई थी। लेकिन अभी कुछ समय पहले ही अपने प्रोजेक्ट के सिलसिले में दोनों को लगभग 2 साल के लिए हैदराबाद जाना पड़ा। राघव का भी वहीं स्कूल में एडमिशन करवा दिया था। राघव के स्कूल की सर्दियों की छुट्टियां होने के कारण प्रिया अकेली राघव के साथ कुछ दिन की छुट्टियां लेकर दिसंबर जनवरी में अपने शहर आई थी और फिर मार्च में राघव के इम्तिहान और ऑफिस की क्लोजिंग खत्म होने के बाद 2 अप्रैल को उसने फिर से विनय के साथ एक सप्ताह की छुट्टी लेकर वापसी की बुकिंग करवाई हुई थी।
लेकिन लगभग 20 या 22 मार्च को रिया के पापा अचानक से सीढ़ियों से गिर गए और उन्हें काफी चोट आई। किसी तरह से पड़ोसियों के सहारे से उन्हें अस्पताल पहुंचाया गया। वहां पर प्रिया के पापा के पैर में प्लास्टर और हाथ में भी ऑपरेशन करना पड़ा था। अस्पताल से प्रिया की मम्मी ने घबराहट में प्रिया को भी फोन लगाया था। फोन विनय ने उठाया था। उस समय शायद प्रिया कहीं बाहर गई हुई थी। विनय ने प्रिया की मम्मी को परेशान ना होने के लिए कहा और उसके थोड़ी ही देर बाद विनय के माता पिता अस्पताल में आ गए थे।
2 दिन तक जब तक की प्रिया के पापा को छुट्टी नहीं मिली थी, विनय के पापा अस्पताल में रहे थे और मम्मी, प्रिया की मम्मी के साथ। दोनों ने यथासंभव प्रिया के मम्मी और पापा की बहुत मदद की थी| विनय भी लगातार पापा का हाल पूछता जा रहा था। उसने प्रिया की मम्मी से क्षमा प्रार्थना भी की थी अभी तक उसने प्रिया को कुछ भी नहीं बताया है। राघव के फाइनल इम्तिहान चल रहे थे और प्रिया भी क्लोजिंग में बहुत ज्यादा व्यस्त थी। प्रिया की प्रमोशन भी इसी क्लोजिंग के काम में उसकी परफॉर्मेंस पर निर्भर करती थी। हालांकि विनय ने प्रिया की मम्मी से पूछा था कि अगर आप चाहती हो तो मैं प्रिया को बता दूं और उसकी अभी की ही टिकट करवा करके उसे आपके पास भेज देता हूं। लेकिन प्रिया की मम्मी को लग रहा था अगर उनकी बेटी आने में असमर्थ है तो अभी उसके आने की कोई जरूरत लग भी नहीं रही थी। उन्होंने विनय को कहा कि प्रिया अपना काम छोड़कर ना आए और परेशान ना हो यह उन दोनों के माता-पिता की ही इच्छा थी।
आज जब प्रिया और विनय घर आए तो प्रिया को अपने पापा के बारे में पता चला तो प्रिया की मां ने कहा
लेकिन बेटी अगर तुम पहले आ भी जाती तो भी तुम इतना नहीं कर सकती थी जितना कि विनय के माता-पिता ने हमारे साथ दिया है।सच में तुम्हारी शादी के बाद हमें एक अच्छा बेटा ही नहीं मिला बल्कि तुम्हारे सास ससुर जैसे बहुत अच्छे दोस्त भी मिले हैं। ऐसा लगता है मानो हमारा परिवार अब पूर्ण हो गया हो। ना उसमें बेटे की कमी है और ना ही बेटी की।”
इतने में ही प्रिया के मोबाइल की बेल बजी। फोन उठाया तो विनय दूसरी तरफ से बोल रहे थे।
“सॉरी प्रिया, कुछ बातें मैंने तुमसे छिपाई तो सही, पर मानो यार, मैंने बेपरवाही नहीं की।”
प्रिया चुप थी और मन ही मन विनय को धन्यवाद भी कर रही थी।
तभी मम्मी ने कहा “आ जाओ प्रिया हम सब मिलकर खाना खाते हैं।”
पापा भी प्रिया से मिलकर बहुत खुश थे। प्रिया ने थैंक्यू कहा और फोन बंद करके पापा के पास जाकर बैठ गई।
पाठकगण, विवाह के बाद केवल एक बहू ही नहीं मिलती बल्कि अगर संबंध अच्छे हों तो एक पूरा परिवार तुम्हारे साथ खड़ा हो सकता है|माना यह कल्पना है पर सच मैं भी ऐसा क्यों ना हो?
मधु वशिष्ठ फरीदाबाद हरियाणा
असमर्थ शब्द पर प्रतियोगिता के अंतर्गत लिखी हुई कहानी