असमर्थ – खुशी

जीवन लाल के चार बेटे और एक बेटी थी ।उनकी पत्नी सावित्री और एक विधवा बहन आशा उन्ही के साथ रहती थी।जीवन लाल की कपड़े की मिल थी।जीवन लाल की बच्चों में जान बसती थी।मदन ,बसंत, रमेश और सुरेश और प्यारी सी बेटी चंदा ये उनका भरा पूरा परिवार था।

बच्चों के मुंह से एक बात निकले तो वो तुरंत पूरी होती।सब कहते जीवन लाल के बच्चे चांदी का चमच मुंह में लेकर पैदा हुए हैं।आशा और सावित्री की भी बहुत बनती थी वो भी बच्चों पर जान छिड़कते थी।मदन और बसंत पढ़ाई में ज्यादा अच्छे ना थे जो उन्होंने जैसे तैसे 10 वीं की और मिल में आ गए। छोटे रमेश और सुरेश पढ़ने में अच्छे थे तो वो शहर चले गए।

रमेश ने वहां डॉक्टरी में दाखिला लिया और सुरेश ने लॉ में।आशा का पढ़ने में कम ही दिमाग था तो जीवन लाल कहता पढ़ कर क्या करेगी इसे तो राज करना है इतना पैसा दूंगा इसकी शादी में की हाथ में नौकर होंगे।और जब सच में चंदा की शादी का समय आया तो जीवन लाल ने उसे सारे ऐश आराम की चीजें दी उसका घर भर दिया।ससुराल भी सम्पन्न और मायके से भी इतना कुछ मिला

कि चंदा की किस्मत चमक गई।जीवन लाल ने एक नौकर और महाराज भी भेजे जो बेटी की सेवा में लगे रहे।बेटी के बाद बहुओं की बारी आई मदन और बसंत की शादी एक ही घर में हुई छाया और माया से उनके पिता ठेकेदार थे।शादी धूमधाम से हुई अब जीवन लाल धीरे धीरे बेटों पर जिम्मेदारी छोड़ने लगे और सावित्री ने बहुओ पर घर छोड़न। शुरू किया।सब से निश्चित हो वो तीनों तीर्थ यात्रा पर चले गए।

4 धाम की यात्रा ,बनारस अयोध्या सब करके वो घर लौटे।घर का निजाम अब बदल गया था।बेटे बोले पिताजी कैसा रहा आपका सफर सब विचार पूस कर वो लोग मिल चले गए।घर में खाना बना था उसने मसाले ज्यादा दे।जीवन लाल ने सावित्री से कहा बहुओं को सिखाओ या मेरा खाना तुम ही बनाना ।

सावित्री ने माया और छाया से कहा बेटा मसाले कम रखो इन्हें इतना मसाले दार भोजन पचता नहीं नहीं तो मै इनका खाना बना लूंगी।उधर शहर में सुरेश और रमेश की पढ़ाई पूरी हो गई और दोनों की नौकरी लग गई दोनो को जीवन लाल ने एक एक घर ले कर दे दिया।

पहले तो वो चाहते थे कि दोनों भाई एक साथ रहे पर दोनों की नौकरी अलग अलग जगह होने के कारण उन्होने घर अलग लिए। रमेश की पढ़ाई में पैसा भी बहुत लगा था अब वो अपना क्लीनिक खोलना चाहता था।उसकी शादी उसी के साथ काम करने वाली नंदिनी से हुई जो डेंटिस्ट थी ।

रमेश ने जीवन लाल से कहा बाबा मुझे पैसे दे दो मुझे क्लीनिक खोलना है।जीवन लाल बोले बेटा तेरा हिस्सा मै तुझे दे चुका शहर में घर खरीदना कितना महंगा है तेरी पढ़ाई उसमें भी बहुत पैसा खर्च हुआ है अब तू और बहु क्लीनिक का खुद देखो ये 50 लाख रुपए एफ डी के है ये तू ले ले।

रमेश ने पैसे ले लिए पर उसे इतना गुस्सा आया कि उसने अपने परिवार से सारे संबन्ध खत्म दिए।उधर सुरेश भी अच्छी लॉ फर्म ज्वाइन कर चुका था और उसने अपनी  कॉलीग आरती को पसंद किया धूमधाम से शादी हुई।पर बेटा दो दिन उस छोटे शहर में नहीं रुका और तुरंत अपनी पत्नी को ले शहर चला गया।

4 बेटे होते हुए भी जीवनलाल और सावित्री को ऐसा लगता वो अकेले है।शाम को घर के आंगन में दोस्तो की महफिल जमती पर बहुओं को चाय पानी देना भारी पड़ जाता उन्हें लगता ये बुड्ढा बुढ़िया और ऊपर से विधवा बुआ सब का बोझ हम उठाते है उन्होंने अपने पतियों को भड़काना शुरू किया कि दोनों बेटों की पढ़ाई में इतना खर्च किया उन्हें घर खरीद दिए तुम्हें क्या

दिया खुद आराम कर रहे हैं तुम कोल्हू के बैल की तरह मेहनत करो और ऐश करे ये बाकि दोनों बेटों के घर क्यों नहीं रहते ये जाकर यही रहते हैं इन्हें कहो तो सही ।मदन और बसंत बोले मां बाबूजी आप कुछ दिन सुरेश और रमेश के पास हो आए उन्हें याद आती होगी कल ही फोन पर बात हुई थी आप तीनों को बुला रहे हैं।जीवनलाल बोले सच बसंत ने कहा हा मैं

इंतजाम किए देता हूं आप लोग जाओ ।उससे पहले ये कुछ मिल के कागज है इन पर दस्तखत कर दीजिए।जीवन लाल बोले कौन से कागज है।मदन बोला बाबूजी कुछ सामान आना है उसके लिए आपकी जरूरत लगेगी आप शहर में होंगे इस लिए ये पावर ऑफ अटॉर्नी है ताकि आपकी गैरहाज़िरी में कोई काम रुके नहीं।

जीवन लाल ने साइन कर दिए बेटों ने चोरी से घर और मिल अपने नाम करवा ली थी।अगले दिन जीवनलाल अपनी पत्नी और बहन के साथ सुरेश के घर पहुंचे।सुरेश उन्हें देख हैरान था आप लोग यहां कैसे? जीवनलाल बोले तुम नहीं तो कहा था मिलना चाहते हो इसीलिए हम आए हैं और दो-चार दिन तुम्हारे साथ रहेंगे? सुरेश उन लोग लेकर अंदर आया उनके अगर किसी पार्टी की तैयारी चल रही थी

जीवनलाल बोले आज कुछ है क्या? तभी आरती  वहां आई बोली यह लोग यहां क्या करें सुरेश उसे अंदर ले गया बोला मुझे भी नहीं पता बड़े भैया ने बोला है कि हमने इन्हें बुलाया है

अब आ गए हैं तो दो-चार दिन रहने दो फिर भेज देंगे। आरती बोली मैं इन एक पल बर्दाश्त नहीं करूंगी और फिर वैसे भी आज हमारे यहां पार्टी है। सुरेश बोला कोई बात नहीं अंदर बैठा देंगे। आरती बिना कुछ बोले ना उसने पर छुए

 अंदर चली गई सुरेश माता-पिता को लेकर गेस्ट रूम  में आ गया। यह आप लोगों का कमरा आप लोग देख रहे हैं आज हमारे यहां बहुत सारे मेहमान आने वाले तो मेरे मुझे बहुत सारे काम है।

  नौकर को हिदायत दे सुरेश वहां से चला गया खाना पीना सब कमरे में आया और शाम को भी उन्हें किसी ने भी बाहर नहीं बुलाया। रात तक किसी ने खाना पीना नहीं पूछा।जीवन लाल शुगर के मरीज थे इसलिए उनकी बहन आशा उनके लिए खाना लेने बाहर चली गई।बाहर आरती खड़ी थी बोली तुम यहां क्या कर रही हो।आशा बोली भैया के लिए खाना लेने आई

थी।अंदर जाओ पता नहीं कहा से मुसीबत आ गई यहां।नौकर को बोली जाओ उन भूखे नंगे लोगों को खाना दो।आशा यह सब सुन अंदर आई और बोली भईया चलो अपने घर चले यहां दिल नहीं लग रहा।जीवन लाल बोले एक दो दिन रुकेंगे फिर रमेश के घर चलेंगे।नौकर खाना दे गया आशा ने खाना नहीं खाया। खाना इतना मिर्च मसाले दार था कि उनसे खाया नहीं

गया। देर रात तक शोर आ रहा था अगले दिन सुबह जीवनलाल जल्दी उठे चाय की तलब थी तो अपनी पत्नी सावित्री से बोले सावित्री चाय बना दो।रसोई बाहर सब तरफ गंदगी थी। सावित्री रसोई से आई गैस साफ की फिर चाय बना कर लाई।सबने चाय पी दोपहर तक कोई नहीं उठा 2 बजे सुरेश बाहर आया नौकर  भी तभी आए घर की सफाई चल रही थी।

जीवनलाल बोले ये क्या तरीका है ना साफ सफाई 2 बजे कौन उठता है।घर में कोई तरीका है नहीं सुबह से सब भूखे बैठे हैं बहु को भी कोई ध्यान नहीं है।आरती बाहर आई बोली ये क्या शोर मचा रखा है एक तो हमारे घर में घुस आए बिना पूछे दफा हो जाओ यहां से जीवनलाल बोले ये सब क्या है? आप लोग जाओ यहां से क्या गवार पन लगा रखा है। सुरेश ने नौकर से कहा इनका सामान बाहर रख दो और इन्हें रमेश के घर छोड़ आओ।

जीवन लाल बोले बेटा तुम इस लायक नहीं की हम तुम्हारे घर रहे ।वो लोग वहां से रमेश के घर आए रमेश के घर किसी ने दरवाजा नहीं खोला वो बाहर गए हुए थे। वहां  से सावित्री बोली चलो बेटी से मिल कर घर चलते है।वहां पहुंचे तो ससुराल वालों ने सम्मान दिया पर इस तरह अक्षांश आने पर बेटी ही बोली आप ऐसे मेरे ससुराल आ गए बिना कुछ लिए खाली हाथ बेटी के मुंह से ऐसी बात सुनकर जीवन लाल गुस्से मे वापिस अपने घर आ गए।घर आकर उन्होंने अपने बेटों को बुलाया कि क्यों झूठ बोल कर उन्होंने वहां भेजा ।

बेटों से पहले तो बहुएं बोल उठी कि क्या हमने ही ठेका ले लिया है आपका कुछ दिन तो हमे भी चैन से रहने दो।बहु क्या कह रही हो ये घर मेरा है आपका था माफ कीजियेगा ये घर आपका था अब मेरा है।मिल और ये घर अब हमारा है आपने हमें तो काम में लगा दिया और उन दोनों को ऐश करने भेज दिया और हमसे मेहनत करवाई और हमारा कमाया पैसा उन पर उड़ा दिया।

जीवन लाल बोले ये क्या कह रहे हो तुम इतना तेरा मेरा भाई है वो भी तुम्हारे ।तुम शायद हमारे बच्चे कहलाने के लायक नहीं हो रखो ये घर रखो ये मिल ।अभी मैं समर्थ हूँ अपने परिवार को संभालने में मुझे असमर्थ समझने की भूल मत करना ।

चलो सावित्री और आशा अभी हमारे पास अपना घर है वहीं चलो और बेटे मैने ऐसे ही इतने साल व्यापार नहीं किया।बाजार में मेरी साख है तुम देखना मै अपना खुद का काम कर अपना परिवार पाल लूंगा। वो लोग अपने दूसरे घर पहुंचे जो 3 गली छोड़ कर था। वहां जा कर कुछ ही दिनों में जीवनलाल ने एक परचून की दुकान कर ली जो अच्छी चल निकली अब बेटों की नजर उस पर भी थी।

वो माफी मांगने का नाटक करने वहां पहुंचे।जीवन लाल ने उन्हें दरवाजे से भगा दिया और बोले बेटा मां बाप चार चार बच्चों को पालने में समर्थ होते है पर बच्चे अपने दो मां बाप को पालने में असमर्थ होते है जाओ यहां से हम खुद का ध्यान रख सकते है हमे तुम्हारी कोई जरूरत नहीं है। हमारा तुमसे कोई रिश्ता नहीं जाओ यहां से।जीवन लाल बोले एसी औलाद से लोग बेऔलाद ही सही होते है।

ना बेटा पूछता है ना बेटी।बेटे अपनी दुनिया में मस्त है और बेटी अपनी उन्हें किसी की कोई फिक्र नहीं होती हैं। अब हम तीनों ही परिवार है और कोई नहीं। सावित्री तुम्हारा पति इतना काबिल है कि तुम्हे संभाल ले। सावित्री और आशा बोली आप है तो हमे क्या चिंता है।आप से बढ़ कर हमारे लिए कोई नहीं है।

मां बाप बच्चों की सभी इच्छाएं पूरी करते हैं पर जब बच्चों को मां बाप को संभालने की बारी आती हैं तो वो रंग बदल लेते है।

स्वरचित कहानी 

आपकी सखी 

खुशी

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