आज विनीता और निखिल बहुत खुश थे आखिर हों भी क्यों न…आज वह अपने बेटे विवान के लिए सुरभी को जो देखकर आए थे और वह उन्हें और उनके बेटे को पसंद भी आ गई…विवान और सुरभि की जोड़ी बिल्कुल ऐसी लग रही थी जैसे राम सीता की जोड़ी, रंग रूप, योग्यता सभी कुछ तो एक दूसरे के अनुरूप था…
विनीता जी तो खुशी से फूले नहीं समा रहीं थीं… आज से ठीक 10 दिन बाद रिंग सेरेमनी का कार्यक्रम तय हुआ और 2 माह बाद विवाह का….इस पीढ़ी की यह परिवार में पहली शादी है इसलिए भी कुछ खुशी ज्यादा ही थी….सुरभी को देखकर आते ही खुशी में विनीता और निखिल ने फोन पर अपने माता पिता और भाई बहनों को सूचना दे दी जिससे वह लोग भी रिंग सेरेमनी के प्रोग्राम में आने के लिए तैयारी कर लें।
“पापा, मैं आपको और मम्मी को कल शाम को लेने आ जाऊंगा….और हां इस बार जल्दी वापिस जाने का आपका कोई बहाना नहीं चलेगा….आपको और मां को विवाह तक तो रुकना ही पड़ेगा आखिर आपके पोते का विवाह है…..” निखिल ने अपने पापा से फोन पर कहा।
“लेकिन बेटा, हम इतने दिनों तक वहां कैसे रह सकते हैं….हम लोगों को यहीं अपने घर ही अच्छा लगता है…यहां आस पास सब अपने ही लोग हैं…हमने तो तुमसे भी कहा था कि विवान का विवाह यहीं से कर लो….लेकिन….खैर छोड़ो पहले रिंग सेरेमनी का कार्यक्रम पर ध्यान दो उसके बाद बाद की सोचेंगे और अभी तो उसमें भी 10 दिन हैं तो तुम 3–4 दिन बाद लेने आ जाना हम तभी आ जाएंगे…..”
“नहीं पापा मैं कल ही आ रहा हूं जिससे आपकी शॉपिंग भी हम समय रहते यहीं से करवा देंगे…बस आप दोनों कल तैयार रहना और हां अब कोई बहाना नहीं बनाने लग जाना….”
“ठीक है….”
दूसरे दिन निखिल अपने माता पिता रमेश और ममता को ले आया।
विनीता ने सभी का स्वागत किया और खुशी खुशी अपनी होने वाली बहू के सामान की और बाकी के सामान की लिस्ट ममता को दिखाते हुए बोली “मां जी और कोई जरूरी सामान रह गया हो तो बता दीजिए जिससे उसे भी लिख लूं ताकि कोई सामान छूट न जाए….कल से 2–3 दिन में सभी शॉपिंग करके फ्री हो जाते हैं जिससे प्रोग्राम में थकान महसूस न हो….”
“अरे बहू ये क्या ….बहू के लिए केवल 2 साड़ी लिखी हैं कम से कम 5 तो चढ़ाओ….कम से कम लड़की वालों को भी तो दिखना चाहिए….”
“लेकिन मां ऐसे दिखने से क्या फायदा….पहनेगी तो वो यहीं आकर तो शादी में ही चढ़ा देंगे 11, 21 जितनी चढ़ानी और फिर आजकल साड़ी पहनता ही कौन है ज्यादा…. सूट ही पहनते हैं ज्यादातर तो….”
“चलो ठीक है जैसी तुम लोगों की मर्जी….”कह कर ममता ने वहीं बात खत्म की।
2–3 दिन में सभी शॉपिंग भी हो गई…विनीता और निखिल ने रमेश और ममता को भी उनके मनपसंद की शॉपिंग करा दी।
तय किए दिन विवान और सुरभि की रिंग सेरेमनी का प्रोग्राम बहुत धूमधाम से हुआ….सभी बहुत खुश थे
किन्तु ममता और रमेश का गुस्सा घर आते ही फूट पड़ा
“ये क्या निखिल….सुरभि के माता पिता ने भेंट में केवल 1100–1100 रुपए के लिफाफे पकड़ा दिए जबकि तुम लोग तो कितना कुछ लेकर गए थे सुरभि के सभी छोटे भाई बहनों के लिए कपड़े भी तो क्या यही हम लोगों की इज्जत है….अरे उन लोगों को कम से कम हमारी इज्जत का तो ख्याल करना था….”
“वो मां जी हमने ही मना किया था उन्हें कि किसी के कपड़ों के चक्कर में न पड़ें वो सब शादी वाले दिन दे देना जो भी देना है..इस बार केवल शगुन के लिफाफे दे दें और हां उन्होंने रुपए भी हमसे ही पूछकर रखे थे….”निखिल के कुछ कहने से पहले ही विनीता ने कहा।
“और वैसे भी कहते हैं न कि मान का तो पान ही बहुत होता है तो इसमें उन्होंने बुरा ही क्या किया….कितनी अच्छी दावत थी और पूरा इंतजाम उन्होंने कितना अच्छा किया था….आखिर सभी लोग वही तो देखते हैं और फिर देखिए न सब कितनी प्रशंसा कर रहे थे….अब उसमें भी तो उनका कितना खर्च हुआ होगा….और रही बात हमारे ले जाने की तो हम रिश्ते जोड़ रहे है या व्यापार कर रहे हैं कि हमने कपड़े दिए तो उन्हें भी कपड़े ही देने चाहिए…..”निखिल ने कहा।
“बस….बस… अब ज्यादा उपदेश मत दे और ये बता कि विवाह में लेनदेन की तो बात तय कर ली या उस समय भी….”रमेश ने कहा।
“विवाह के लिए भी हमने कह दिया है कि बस इसी तरह दावत का इंतजाम अच्छा होना चाहिए क्योंकि सभी बाराती यही देखते हैं और रही बात बाकी सामान की तो वो सब तो हमारे यहां है ही केवल शगुन के कपड़े और बर्तन आदि दे देना….ज्यादा फिजूल खर्च करने की आवश्यकता नहीं है….”
“तू बिल्कुल पागल हो गया है….अरे सामान किसके यहां नहीं होता फिर भी लड़की वाले देते ही हैं और यदि सामान नहीं लेना था तो नगद ले लेते….विवान की पढ़ाई लिखाई में कितना पैसा खर्च हुआ है तो कम से कम कुछ तो सोचा होता…..”
“अरे मेरे प्यारे दादू, जो पैसा मेरी पढ़ाई लिखाई में खर्च हुआ तो उसकी जगह मुझे अच्छी खासी तनख्वाह भी9 तो मिल रही है और वैसे भी पढ़ाई में खर्च तो सुरभि के माता पिता का भी तो हुआ है और उसके बदले तो उन्हें कुछ मिल भी नहीं रहा क्योंकि सुरभि तो जॉब भी नहीं करती…..” विवान ने कमरे में आते हुए रमेश की बातें सुनकर कहा।
“हमें तो तुम लोगों की बातें ही कुछ समझ नहीं आ रहीं….” ममता जी बोलीं
“मां जी बस आप लोग इतना समझ लीजिए कि हम नहीं चाहते कि सुरभि के माता पिता को उसके विवाह के लिए कोई कर्ज लेना पड़े और वहीं सब सामान दहेज में देना पड़े जो हमारे घर है क्योंकि अगर वो ऐसा करेंगे तो हम लोग अनजाने में ही सुरभि को अपना पराया करना सिखाएंगे जो कि हम नहीं चाहते….हम तो सिर्फ इतना चाहते हैं कि सुरभि विवान के साथ साथ हमें और हमारे इस घर को दिल से अपना समझे और हमें वही सम्मान दे जो वह अपने माता पिता को देती है और ये तभी संभव है जब हम उसके माता पिता की भावनाओं की कद्र करेंगे और उनकी मजबूरियों को समझेंगे….वो हमारे रिश्तेदार हैं उनका मान सम्मान भी हमारा मान सम्मान है…..और फिर और सामान की जरूरत ही क्या है जब यह घर उसका भी है तो इस घर का सामान भी तो उसका होगा और रही बात किसी और सामान की तो जरूरत पड़ने पर हम खरीद लेंगे लेकिन हमें तो दहेज की जगह उन लोगों से दिल से मान सम्मान चाहिए और सुरभि के दिल में हमारे लिए प्रेम…..”विनीता ने कहा
विनीता की बातें सुन ममता की आंखों में बीते समय को याद कर आंसू आ गए क्योंकि यह विनीता वही बहू थी जिसे कम दहेज लाने के कारण और बाद में त्यौहार आदि पर मायके से थोड़ा कम या मनपसंद का न मिलने से बहुत ताने दिया किया करती थीं तब भी बेचारी आंसू पीकर रह जाती लेकिन आज तक कुछ नहीं कहा जबकि बहुत सालों तक साथ ही रही और दूसरी तरफ उनकी छोटी बहू जिसके दहेज की सब गांव वाले प्रशंसा कर रहे थे कि पूरा घर भर दिया जिसे सुन खुद ममता जी फूले नहीं समाती थीं कुछ ही महीनों में अपने पति के साथ अलग रहने लगी न सास ससुर से कोई मतलब न ससुराल वालों के किसी रिश्तेदार से…..
“मां जी मेरी किसी बात का कोई बुरा लगा हो तो….” ममता की स्थिति देख विनीता ने जैसे ही कुछ कहना चाहा ममता ने उसे रोक दिया
“अरे नहीं बहू…शायद तुम लोग सही कह रहे हो…हम लड़के वाले ही न तो लड़की वालों की भावनाओं को समझते हैं और पहले ही सारा सामान भी दहेज के रूप में लेते है और उम्मीद करते हैं कि वह लड़की हमेशा प्रेमपूर्वक साथ भी रहे और उसके साथ साथ उसके माता पिता भी पूरा मान सम्मान दें…..”
“अरे अब सब इन्हीं बातों में लगे रहोगे कि अब आगे की तैयारी भी करनी है….और हां मां आपको कुछ चाहिए तो मैं हूं न.. आप मुझे बताइए….”निखिल ने बोझिल वातावरण को बदलते हुए कहा।
“और मुझे भी दादी….”विवान ने हंसते हुए कहा।
“हां बेटा अब तो तू भी कमाने लायक हो गया है ये तो भूल ही गए हम….” कहते हुए ममता ने विवान के गाल पर प्यार से चपत लगा दी जिसे देख सब हंस पड़े।
प्रतिभा भारद्वाज ‘प्रभा’