रिश्ते अहंकार से नहीं त्याग और माफी से चलते हैं – मंजू ओमर 

आज बेटे के घर से वापस आते वक्त संध्या के गले से लगाकर सौम्या रो पड़ी, मम्मी मुझे माफ कर दो , मम्मी मैंने आपका बहुत दिल दुखाया है।आप मुझसे बात करो , मुझे अच्छा नहीं लगता आप बात नहीं करती तो। संध्या जी का मन थोड़ा पसीज गया और कह उठी ठीक है पुरानी बाते भूल जाओ और नये सिरे से जिंदगी फिर से शुरू करो इतना कहकर वो गाड़ी में बैठ गई।कह तो दिया बहू को पुरानी बातें भूलने को फिर सोचने लगी क्या मैं उन बातों को भूल पाऊंगी जो सौम्या ने मुझसे कहे थे।और जिन बातों को याद करके आज पांच सालों बाद भी सौम्या के प्रति मन कसैला हो उठता है । कितना अपमान किया था मेरा उसने और उसकी मां ने।

                 आइए पांच साल पहले के समय में चलते हैं । संध्या और रविंद्र का छोटा सा परिवार था।एक बेटा राहुल और बेटी छाया थी घर में ।घर में थोड़ी आर्थिक तंगी थी तो बहुत जद्दोजहद करनी पड़ी जिंदगी की गाड़ी को आगे बढ़ाने में ।ऊपर से रविन्द्र जी को तमाम तरह की बीमारियों ने घेर रखा था। कभी किसी चीज का आपरेशन कराना है तो कभी किसी चीज का ।

             बस किसी तरह बच्चे पढ़-लिख कर लायक हो गए थे बेटा इंजीनियर बन गया था और बेटी भी एम बीए कर रही थी। तभी संध्या जी के जीवन में एक हादसा हो गया।छाया का कालेज जाते समय रोड ऐक्सिडेंट में मौत हो गई। संध्या और रविंद्र जी इस घटना से बहुत टूट गए । फिर उसके दो साल बाद बेटे की शादी करने की सोची। किसी परिचित ने लड़की बताई । लड़की तो अच्छी थी लेकिन राहुल कह रहा था मुझे मेरे हिसाब की लड़की चाहिए ।मैं बाहर नौकरी करता हूं तो लड़की भी पढ़ी लिखी और समझदार हो ।अपना काम खुद से कर सकें ये नहीं कि पूरी तरह मुझ पर ही आश्रित हो। लड़की वाले रहने वाले अपने ही शहर के थे । लड़की दिल्ली में नौकरी करती थी । बहुत अच्छी नौकरी नहीं थी लेकिन अपने रहने खाने का खर्च निकाल लेती थी बस। पहले लड़की को संध्या और रविंद्र ने देखा पसंद आ गई तो बेटे कुछ मिलवाया और कह दिया कि तुम लोग दिल्ली में रहते हो वही मिलकर दो चार बार आपस में देख परख लो।समझ लो एक दूसरे को फिर बताना कि पसंद है कि नहीं।

              कई बार मुलाकात के बाद सौम्या और राहुल ने शादी के लिए हां कर दी ‌शादी की तारीख मार्च में रखा गया।उस समय करोना की वजह से लाक डाउन लग गया। फिर सारे फंक्शन और मेहमानों का आना रद्द करना पड़ गया ‌और एक सादे समारोह में शादी को पूरा किया गया। आफिस से एक हफ्ते की छुट्टी लेकर राहुल और सौम्या घर आए थे।अब वापस जाना मुश्किल हो गया।आफिस से निर्देश मिले कि घर से काम करो लेकिन लैपटॉप नहीं था। फिर बीस पच्चीस दिन के बाद किसी तरह सिफारिश लगवा कर गाड़ी करके दोनों दिल्ली गए ‌नही तो नौकरी जा रही थी। लेकिन वहां जाने के बाद भी सौम्या को नौकरी से फायर कर दिया गया। सौम्या की छोटी सी नौकरी थी ज्यादा कुछ नहीं था। राहुल की नौकरी ज्यादा इंपार्टेंट थी।तब तक सब ठीक-ठाक था कभी कभार फोन पर बात हो जाती थी संध्या की बहू बेटे से।

          फिर अगस्त के महीने में रविन्द्र जी की तबीयत ज्यादा खराब हो गई । सांस लेने में दिक्कत आ रही थी। यहां इलाज कराने से डाक्टरों को समझ नहीं आ रहा था। दिल्ली ले जाने को कहां। दिल्ली ले गए वहां उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया तो पता लगा कि हृदय संबंधी परेशानी है आपरेशन करना पड़ेगा।अब वहां संध्या जी को सौम्या का व्यवहार बड़ा अजीब लगा ।चलों सुबह की चाय वगेरह तो संध्या जी बना लेती थी क्योंकि आजकल की पीढ़ी को देर तक सोने की आदत होती है । लेकिन वो दिन भर कमरे से बाहर ही न निकलती। संध्या इंतजार करती रहती । फिर तो खाना नाश्ता सब सब संध्या जी ही बनाती ‌सौम्या को जब बुलाती खाने को तो कह देती मैं बाद में खा लूंगी। ‌तीन चार दिन तो ऐसे ही निकला संध्या जी कुछ नहीं बोली। फिर एक दिन सौम्या तैयार होकर दस बजे घर से निकल गई बेटे से बोल गई अपने दोस्त के घर जा रही हूं ।

           एक हफ्ते बाद रविन्द्र जी अस्पताल से घर आ गए तो उनकी देखभाल और घर का सारा काम संध्या जी अकेले ही करती रही ।तब भी उन्होंने सौम्या को कुछ नहीं कहा, कहने की क्या जरूरत दिखाई नहीं पड़ रहा है क्या । कहां इसलिए नहीं कि कुछ उल्टा सीधा जवाब न दे दे। इतने दिनों से देखते हुए बेटे ने एक दिन सौम्या को कुछ कह दिया होगा तो उससे झगड़ा करने लगी कि क्या हो गया काम कर लिया तो आखिर अपने घर मैं भी तो करती है न। संध्या ने दोबारा रविन्द्र जी को अस्पताल में दिखाया और वापस घर आ गई। वापस आने के दो दिन बाद संध्या के मोबाइल पर सौम्या ने मैसेज किया कि आप तो बहुत घटिया औरत है , मेरे ही घर में आकर बेटे के कान भर गई, उल्टा सीधा सीखा गई बेटे को । कभी खुश नहीं रहेगी आप।आप पापा जी का इलाज कराने आई थी कि मेरा घर तोडने आई थी। मैंने पापा जी के साथ इतना किया अपना कमरा दे दिया सोने को और मैं जमीन में सोती रही,असल में सौम्या के कमरे से लगा हुआ बाथरूम था जिससे रविन्द्र जी को जाने में आसानी हो इस लिए कमरे में सो गए थे। इतना किया हमने और आप हम दोनों में झगड़ा करवा कर चली गई।

              सुबह-सुबह मैसेज पढ़कर संध्या का दिमाग खराब हो गया कि देखो मैंने तो कुछ भी नहीं कहा सुना न बेटे से न सौम्या से फिर भी मैसेज लिखकर भेज रही है। संध्या ने जब बेटे को सब बताया तो वो बहुत गुस्सा हुआ और सौम्या को कह दिया कि जाओ अपने घर चली जाओ ।और सौम्या अपनी मम्मी के घर आकर बैठ गई। यहां आकर मायके फिर संध्या को मैसेज करने लगी कि लड़के के कान भरकर मेरे घर को आग लगा रही है। अपने ही बेटे का घर बर्बाद कर रही है शरम नहीं आती आपको। संध्या को बहुत बुरा लगता कुछ न कहने पर भी ये हाल है।और पंद्रह दिन रहे तुम्हारे घर एक दिन भी एक कप चाय तक न पिलाईं और बातें कैसी कैसी कर रही है। यहां मायके में बैठीं बैठी अक्सर ही जब मन आ जाता मैसेज कर देती।मैं आपके बेटे के साथ नहीं रहूंगी दूसरी शादी कर ले अपने बेटे की उसके साथ क्या रहना जो सिर्फ अपनी मम्मी की सुनता हो। जबकि संध्या बहुत समझदार और मधुर स्वभाव की थी।वो जानती थी कि ज्यादा बीच में पड़ो तो घर ही टूटेगा बेटे का इस लिए शांत रहो जो होगा देखा जायेगा।इस बीच सन्ध्या और सौम्या की बातचीत नहीं होती थी।

            अभी शादी के सिर्फ छै महीने हुए थे तब ये हाल था । फिर अक्टूबर में दीवाली आई तो सौम्या का फोन आया कि इस दीवाली में क्या मैं घर आ जाऊं, संध्या ने सोचा आज कहा से सूरज निकला है ,। संध्या ने कहा तुम्हारा घर है आना चाहो तो आ जाओ तुम्हारी मर्जी मैंने तो नहीं रोका है। फिर आ गई दीवाली में दो दिन रहकर चली गई। जाने के बाद संध्या ने बेटे से पूछा आज क्या हो गया सौम्या को कैसे आ गई,अरे मम्मी सौम्या की ताई और दादी आई थी वो कह रही थी बेटी की दीवाली तो ससुराल में अच्छी लगती है ,क्यों सौम्या तुम अपने ससुराल नहीं जा रही हो दीवाली पर ।अब क्या जवाब देती बातें बनती बस इस लिए चली आई । फिर राहुल के साथ दिल्ली चली गई।

          दूसरे साल जुलाई में पता लगा कि सौम्या प्रेगनेंट हैं । संध्या खुश हुई कि चलो अब इनकी गृहस्थी थोड़ी जमेगी और रोज के लड़ाई झगडे भी कम होंगे। फिर जांच में पता लगा कि जुड़वा बच्चे हैं ।अब संध्या एहतियात बरतने की सलाह देती तो सौम्या संध्या से कह देती मुझे सब पता है आप रोज रोज सलाह न दिया करें ।

                अब डिलिवरी के समय राहुल ने मम्मी को बुला लिया लेकिन सौम्या को बिल्कुल भी अच्छा नहीं लगा संध्या का आना । सौम्या के व्यवहार को अनदेखा करके संध्या खूब अच्छे से ख्याल रखती रही सौम्या का ।नौ महीने के बाद एक बेटा और एक बेटी को जन्म दिया सौम्या ने।सारी कड़वाहट मन की जाती रही संध्या बच्चों को गोद में उठाकर जैसे निहाल हो गई।

           अस्पताल से छुट्टी के बाद घर लेकर आ गई बहू बच्चों को । जिम्मेदारी बहुत थी संध्या पर कोई भी नौकरानी वहां पर रात रूकने को तैयार न थी ।रात में उठ उठ कर बच्चों को दूध पिलाना पड़ता था देखना पड़ता था। संध्या भी कई बार उठती थी और साथ में राहुल भी उठता था। चूंकि दो दो बच्चों को संभालना पड़ता था तो थोड़ी मुश्किल आ रही थी।आज घर की नौकरानी नहीं आई थी छुट्टी पर थी उसकी तबीयत खराब थी ।काम का बोझ कुछ ज्यादा ही हो गया था संध्या पर ।रात को जब दिनभर के बाद संध्या लेटी तो नींद आ गई।इधर बच्ची रो रही थी तो राहुल ने मम्मी को जगाया संध्या हड़बड़ा कर उठी और बच्चे को संभालने को उठाने लगी तो सौम्या ने संध्या का हाथ झटक दिया रहने दिजिए मम्मी आपसे नहीं हो पाएगा ।आप तो बस पड़ी पड़ी सोती रहिए ,कब से रो रहा है बच्चे को कुछ हो जाए तो आपको क्या फर्क पड़ता है ,आप तो चाहती ही यही है। बच्चे को कुछ हो जाए क्या मैं ये चाहती हूं क्या मेरे बच्चे नहीं हैं क्या। नहीं ये आपके बच्चे नहीं हैं हमारे है सुन रही है आप ।और राहुल मम्मी जी को वापस भेज दो घर मैं अपनी मम्मी को बुला रही हूं ।

               संध्या अपना अपमान सहकर बहुत दुखी हो गई कि बताओ जरा इतने दिनों से करती आ रही हूं तो कुछ नहीं ,जरा सी थकान से आंख लग गई तो इतनी बातें सुना रही है। संध्या ने बेटे से कहा बेटा मेरा रिज़र्वेशन करा दो और इनकी मम्मी को बुला लो । रविन्द्र जी जो सब बैठे सुन रहे थे बोले संध्या चलो यहां से बदतमीज है ये लड़की इसके मुंह न लोगों। लेकिन संध्या को एक दिन  और रूकना पड़ा जबतक सौम्या की मम्मी नहीं आ जाती कैसे छोड़कर चली जाए । दूसरे दिन सौम्या की मम्मी आ गई, सौम्या ने पहले से ही खबर कर दी होगी तभी तो एक दिन में आ गई। आते के साथ ही सौम्या की मम्मी बोली बेटा मैंने तो पहले ही कहा था कि मैं आ जाती हूं लेकिन तुमने तो अपनी सास को बुला लिया संध्या को सुनाते हुए बोली। हमने नहीं बुलाया मम्मी राहुल ने बुलाया। अच्छा अब टेंशन न ले मैं सब संभाल लूंगी।

            संध्या जी आंख में आसूं भरकर दुःखी मन से अपने घर आ गई।और फिर उस दिन से आज तीन साल के बच्चे हो गए बहू से बात नहीं होती।और नहीं संध्या जी और रविंद्र जी कभी बहू बेटों के घर जाते हैं। राहुल कभी कभी बच्चों को लेकर घर आ जाता है दादा दादी से मिलवाने। लेकिन थोड़ी देर बाद बच्चे दादा दादी को भूल जाते हैं ।

         राहुल इस बार मम्मी के बहुत पीछे पड़ गया कि घर आओ ,आओगी नहीं क्या आओगी नहीं तो बच्चे आप लोगों को पहचानेंगे कैसे ।आ जाओ न , लेकिन संध्या डरती थी फिर पहले जैसा कुछ न हो बेटा अब मैं अपना अपमान बर्दाश्त नहीं कर पाऊंगी। आगे यदि सौम्या ने आप लोगो के साथ कुछ बुरा व्यवहार किया तो मैं भी इनके घर‌ वालो को अपने घर नहीं आने दूंगा और अच्छे से तिरस्कार करूंगा उनका तो सही हो जाएंगी। बहुत ज्यादा कहने पर संध्या और‌ रविन्द्र जी हफ्ते भर को गए।

          लेकिन वहां का माहौल बदला हुआ था संध्या और रविन्द्र जी बहू से बात नहीं करते थे लेकिन सौम्या बात करने की कोशिश करती थी। तीन चार दिन बाद पता चला कि मम्मी पापा जा रहै है तो सौम्या कहने लगी मम्मी इतने सालों में तो आई है इतनी जल्दी मत जाइये और रहिए यहां पर कोई परेशानी नहीं होगी आप लोगों को। लेकिन संध्या ने कोई जवाब नहीं दिया और वापस आने का प्रोग्राम बन गया ‌बच्चे भी खूब रोने लगे मत जाओ दादी। थोड़ा दिल पसीज गया लेकिन संध्या ने कहा नहीं बस इतना ही ठीक है। ज्यादा दिन रूक जाओ तो पता नहीं क्या होने लगे।

            तो कार में बैठते समय संध्या के गले से लगकर सौम्या रोने लगी । मम्मी मुझे माफ कर दो आगे से आप लोग आते रहना , मुझसे बात किया करना मम्मी ‌संध्या थोड़ी कंनफूयज थी कि क्या करें ,कह दे कि माफ़ कर दिया या नहीं । लेकिन सौम्या का चेहरा देखते ही संध्या को अपना तिरस्कार याद आ जाता है।

    दोस्तों आप बताओ क्या किया जाए । कुछ रिश्ते ऐसे भी जुड़ जाते हैं जिंदगी में कि न चाहते हुए भी निभाना पड़ता है। जिंदगी में ऐसे ही प्यार सम्मान से रिश्ते आगे बढ़ते हैं न कि तिरस्कार और अपमान से।

मंजू ओमर 

झांसी उत्तर प्रदेश 

6 अक्टूबर 

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