“क्या इसी दिन के लिए तुम्हें इतना पढ़ाया लिखाया था,कि तुम अपने पिता को समझाओ क्या गलत है?क्या सही?मैं मर जाऊँ तो मेरा मुँह भी मत देखना।”
पिता के मुँह से ऐसे कठोर वचन सुनकर नेहा बहुत रोई।उसकी गलती सिर्फ इतनी थी,कि वो अपने पापा को ये समझा रही थी..माँ को परेशान ना किया करें उनकी तबियत ठीक नहीं रहती।बेटी थी इसलिए माँ के दर्द को समझती थी वरना भाई को तो सिर्फ नौकरी और अपने काम से मतलब रहता था।
माँ की तबियत कितनी भी खराब क्यों ना हो वो भाई के लिए सुबह उठती और ऑफिस के लिए खाना बनाकर देती थी।भाई कभी नहीं कहता था,कि मम्मी तुम्हारी तबियत ठीक नहीं आज खाना रहने दो मैं बाहर से खा लूँगा।पहले माँ ने अपने पति का किया और अब बेटे की सेवा कर रही थी।
नेहा मायके आई हुई थी उसका बेटा छोटा था।वो चाहकर भी माँ की ज्यादा मदद नहीं कर पाती थी।कहने को काम वाली आती थी,फिर भी उसकी माँ दिन भर काम में लगी रहती थी
क्योंकि पति की फरमाइशों का तांता लगा रहता था..दिन में कितनी बार वो चाय पीते थे..कभी उन्हें मिर्च वाले पकौड़े खाने होते तो कभी कुछ और..!! और कुछ नहीं तो अपने दोस्तों को घर बुला लाते और उनके लिए माँ से चाय नाश्ता बनाने को कहते।माँ बेचारी कभी ना नहीं करती थी।
नेहा ने बस अपने पापा को यही समझाया था,कि माँ की भी अब उम्र ढल रही है उनको भी आराम की जरूरत है इसलिए उन्हें ज्यादा परेशान ना किया करो।इतनी सी बात पर वो बिगड़ गए
और ऐसे कड़वे बोल बोल दिए।नेहा वैसे तो अपने मम्मी पापा दोनों से बहुत प्यार करती थी पर माँ से उसका ज्यादा लगाव था क्योंकि एक तो वो बहुत भोली थी और दूसरा चाहे वो कितनी भी दुखी क्यों ना हो कभी किसी से कोई गिला शिकवा नहीं करती थी।
माँ की चिंता साथ लेकर नेहा अपने घर वापिस आ गई।अभी उसको अपने घर आए कुछ ही दिन हुए थे,कि अचानक एक दिन माँ का फोन आया-“नेहा बेटा,तेरे पापा बाथरूम में गिर गए थे उनके कुल्हे की हड्डी में चोट आई है।डॉक्टर ने उन्हें बेड रेस्ट बोला है।”वो फोन पर बहुत रो रही थी।
नेहा भी ये खबर सुनकर बहुत दुखी हो गई आखिर वो उसके पापा थे।उनसे भी वो बहुत प्यार करती थी बस दोनों के बीच माँ को लेकर वैचारिक मतभेद रहता था।नेहा ने अपने को संभाला और माँ को सांत्वना देते हुए कहा-“मम्मी आप चिंता मत करो,पापा जल्दी ठीक हो जाएंगे।बस आप अपना ध्यान रखना।”
नेहा अपने को बहुत लाचार महसूस कर रही थी।एक तो बच्चा छोटा था दूसरा पति की भी तबियत कुछ दिनों से ठीक नही चल रही थी।वो चाहकर भी पापा से मिलने नहीं जा सकती थी।
नेहा रोज फोन से अपने पापा का हाल पूछ लिया करती थी।एक दिन वो अपनी मम्मी से बोली-“पापा तो मुझे याद भी नहीं करते होंगे क्योंकि मैं तो हरदम उनसे झगड़ा करती रहती थी।”
“अरे पगली,तुझे तो वो सबसे ज्यादा याद करते हैं।”माँ की ये बात सुनकर नेहा की आँखों में आँसूं आ गए,वो पापा से मिलने को बेचैन हो उठी…उसके पति नवित से उसकी ये हालत देखी नहीं गई।उसने अपना वा नेहा के जाने का दस पन्द्रह दिन के बाद का जो टिकिट मिला वो बुक करा दिया।
जैसे जैसे मायके जाने के दिन करीब आ रहे थे वैसे वैसे नेहा की पिता से मिलने की तड़प बड़ती जा रही थी।वो मन ही मन सोच रही थी..पापा से अब कभी कोई शिकायत नहीं करेगी..उन्हें बहुत प्यार करेगी..!! पर कहते हैं ना..तेरे मन कुछ और है,दाता के मन कुछ और..शाम का समय था नेहा पति के साथ बैठकर चाय पी रही थी,कि फोन की घंटी बजी…नवित ने फोन उठाया…”हेलो, क्या..? कब हुआ?”
पति के चेहरे के भाव देखकर नेहा घबराकर बोली…”क्या हुआ सब ठीक तो है?”
“नेहा,पापा नहीं रहे..!”
“क्या हुआ पापा को..?किसका फोन था?”नेहा तो खबर सुनकर मानों बावरी सी हो गईं।
“पापा का हार्ट फेल हो गया।तुम्हारे चाचा के लड़के का फोन था।शायद मम्मी जी और रोहन (नेहा का छोटा भाई)अभी फोन करने की हालत में नहीं हैं।”
उस समय आजकल की तरह मोबाइल नहीं थे।बस लैंडलाइन से ही बात हो पाती थी।
नेहा रोती जा रही थी..मैं अपने पापा से मिल भी नहीं पाई।पापा मुझसे नाराज थे,इसलिए बिना मिले चले गए..!!!
“कोई माता पिता अपने बच्चों से नाराज नहीं होता।ये तो सब बस ईश्वर की मर्जी है।” नेहा के आँसूं पोंछते हुए नवित बोला।
नेहा और नवित ने रात की गाड़ी से निकलने का फैसला किया,
ताकि पापा के अंतिम दर्शन कर सकें।नवित ने घर पर फोन करके बोल भी दिया,कि वो लोग कल दोपहर एक बजे तक पहुँच जाएंगे उनका इंतजार करना।
नेहा और नवित ने जल्दी-जल्दी सब तैयारी की और बेमन से थोड़ा बहुत कुछ खाकर स्टेशन जाने के लिए निकल पड़े।उन्होंने सोचा,जो भी पहली गाड़ी मिलेगी उससे ही चले जाएंगे।
स्टेशन पहुँचकर पता चला,कि आज सारी गाड़ियाँ कैंसिल हो गईं हैं क्योंकि उस रुट पर कोई बड़ी ट्रेन दुर्घटना हो गई थी।
नेहा रोने लगी..अब तो मैं अपने पापा के अंतिम दर्शन भी नहीं कर पाऊँगी।
नवित बैठा बैठा नेहा को आस बँधा रहा था।तभी अनाउंसमेंट हुआ,कि कोई सुपरफास्ट ट्रेन आ रही है..नेहा का मुरझाया चेहरा आशा की चमक से खिल उठा।निर्धारित समय पर ट्रेन आ गई।अंदर जाकर उन्होंने टी टी को अपनी समस्या बताई,तो उसने कुछ पेनल्टी के साथ उन्हें बैठने के लिए दो सीट दे दी।
जिस गति से ट्रेन चल रही थी,नेहा और नवित को लगा कि वो समय पर पहुँच जाएँगे।पर ये क्या आधी रात के बाद सुपर फास्ट ट्रेन की गति पैसेंजर ट्रेन जैसी हो गई।लेट होते होते ट्रेन एक बजे उस स्टेशन पर पहुँची जहाँ से उनके शहर के लिए और चार घंटे लगते थे।यानि घर पहुँचते पहुँचते पाँच बज जाते।
सूर्यास्त के बाद अंतिम संस्कार नहीं होता और सारे रिश्तेदार भी सुबह से उनका इंतजार कर रहे होंगे।ये सोचकर नेहा नवित ने स्टेशन पर उतरकर एसटीडी बूथ से घर पर फोन कर दिया,कि वो उनका इन्तजार ना करें उन्हें पहुँचने में देरी हो जाएगी।
नेहा की अंतिम आस भी टूट गई।
पूरे रास्ते वो रोती रही।शाम पाँच बजे ट्रेन स्टेशन पहुँची।नेहा रोते बिलखते जैसे तैसे घर पहुँची।उसने देखा,अभी भी घर के बाहर फूल बिखरे हुए पड़े थे।मानों वो कह रहे थे,कि तेरे पापा ने तेरा बहुत इंतजार किया।
नेहा माँ से लिपटकर रो रही थी-“मम्मी पापा ने कहा था ना..मैं मर जाऊँ तो मेरा मुँह मत देखना..सच में मैं बहुत बुरी हूँ,तभी पापा मुझसे मिले बिना चले गए। काश!उस दिन मैंने पापा को समझाया ना होता
तो वो मुझे ऐसी बद्दुआ ना देते।” नेहा की बात सुनकर वहाँ बैठे सभी लोग भावुक हो गए।सबने नेहा को संभाला और समझाया,कि गुस्से में माता पिता चाहे जो बच्चों से कहें पर वो कभी अपने बच्चों से नाराज नहीं होते।उनके लिए उनके सभी बच्चे प्यारे होते हैं।
नेहा को आज भी जब अपने पिता की कही वो बात याद आती है तो कुछ पलों के लिए वो विचलित हो उठती है।उसने मन में यही निश्चय किया,कि वो कभी भी अपने बच्चों से ऐसे कठोर बोल नहीं बोलेगी..जिनकी पीड़ा उन्हें सारी जिंदगी सताती रहे।
कमलेश आहूजा