“सुनो मधु,आज जैसे ही शंभू आए मुझसे मिलने के लिए कहना।पता नहीं कब आता है,मुंह छिपाकर कमरे में चला जाता है।तुम भी तो कमरे में जाकर खाना दे आती हो।
दो दिन नहीं खाएगा ना,तो सब अकल ठिकाने पर लग जाएगी।मुझसे कभी सीधे मुंह बात भी नहीं करता। शर्मा जी के बेटे को देखो।राम है राम।पिता के साथ साए की तरह घूमता है।पता नहीं मेरे ही नसीब खोटे थे,जो ऐसी नालायक औलाद मिली।इन्हें झेलना अब मेरे बस में नहीं।सुनो ,कभी तुमसे कोई बात करता है बहन की शादी के विषय में ?”
मधु तो दुधारी तलवार के बीच करतब करने वाली थी।पति के खिलाफ बोले तो अधर्म,बेटे के खिलाफ मुंह खोला तो उसका मन टूटता। चुपचाप पति की बातें (जहर बुझी),सुनने के बाद इतना ही कहा उन्होंने”,सुनिए जी,बेटे में हमारे हजार बुराई होगी,पर है तो अपनी ही औलाद।
डांट -डपट कर लिया कीजिए,हम कुछ्छ ना बोलेंगे,पर बद्दुआ कभी ना देना अपनी संतान को। मां-बाप के मुंह से अपने बच्चों के लिए निकली बद्दुआ,उनका नुकसान ही करती है।अब जब जन्म दिया है,तो पालना तो पड़ेगा ना।और आप तो ऐसा बता रहें हैं जैसे वह बाहर कोई ग़लत काम कर रहा है।” बात खत्म होने के पहले ही मधु जी की आंखों से गंगा-जमुना बहने लगी।
पति (सोमेश्वर)ने अब हथियार डाल देना ही उचित समझा।इधर बेटी की शादी की तारीख पक्की हो चुकी थी। निकम्मा बेटा घूमता रहे बदहवास, और खिलाएं मां थाली बजाकर।ऐसे ही चलेगा।कुछ नहीं बदलेगा।मन कड़ा कर लिया उन्होंने कि कुछ बोलेंगे ही नहीं।बेटी तो उनकी जिम्मेदारी है।
हर वक्त बेटे को कोसते-कोसते पता नहीं कब बाप-बेटे के बीच शीत युद्ध आरंभ हो गया।
अगले ही दिन मधु ने शंभू से पूछा गंभीर होकर”क्या चाहता है तू?तेरे कारण पापा सबके सामने मेरा अपमान करते रहते हैं।ऐसा कब तक चलेगा।अरे,अब तो बड़ा हो गया है।थोड़ा हांथ बंटाया कर पापा का।शादी की तैयारी में इतना थक गए हैं कि, चिड़चिड़ापन आ गया है बोली में।तू उनके पास जाकर बैठा कर।उन्हें तसल्ली के लिए ही आश्वस्त कर देना
तैयारियों के बारे में।मुझसे अब सहन नहीं होता शंभू।”
मां के गले में बांहें डालकर बोला शंभू” ये जो तुम पापा की डांट का हौआ बनाकर रखी हो ना,वो डांटते थोड़े हैं।उनकी कड़वी बोली के पीछे मेरे लिए चिंता छिपी रहती है।दीदी की शादी अच्छे से हो जाएगी, तुम देखना।”
छोटी -मोटी दुकानों में काम कर के शंभू अपनी तनख्वाह का एक बड़ा भाग बचा कर रख लेता था।हर महीने तनख्वाह मिलती तो थी,पर बहुत कम।जब -जब तनख्वाह लाकर मां को देता ,तो पिता के प्रिय वचन पुनः आरंभ हो जाते।
छह महीने का समय था बड़ी बहन की शादी में।शंभू कोई कसर नहीं छोड़ना चाहता था।सुबह से मन लगाकर काम करता,ग्राहकों से स्नेह से बात करता।मालिक बहुत खुश हुए।अपनी इकलोती बेटी का रिश्ता लेकर सोमेश्वर जी के पास पहुंचे।हांथ जोड़कर सोमेश्वर जी से अपनी बेटी को बहू बनाने की बात जब कहीं,तो वे दंग रह गए।यह निकम्मा -नाकारा इतना कैसे पसंद आ गया सेठ जी को।
ना स्थाई नौकरी और ना ही कोई उच्च शिक्षा की डिग्री।जरूर सेठ जी को कोई गलतफहमी हुई होगी उन लोगों के बारे में।चाय नाश्ते के बाद सोमेश्वर जी ने सेठ से साफ़ -साफ़ कह दिया”आपको इंसान परखने में गलती हुई होगी।मेरा बेटा मालिक की बेटी को ब्याहने लायक नहीं है।
अरे उसे तो किसी की जिम्मेदारी लेना भी नहीं आता।जवान बहन अभी तक अविवाहित हैं,एक बार भी बहन की शादी के लिए कोई उत्सुकता नहीं दिखाई इसने।जब यह लायक बेटा,लायक भाई नहीं बन पाया ,तो आप ही बताइए यह कैसे आपकी बेटी के लिए लायक पति बन पाएगा?आप अपनी बेटी के लिए कोई जिम्मेदार दामाद ढूंढ़ लीजिए। मुझे शर्मिंदा मत करिए।”
सेठ जी ने उठकर सोमेश्वर जी के हांथ पकड़ लिए और बोले” आपको पता नहीं है भाई साहब,आपका बेटा वास्तव में शंभू ही है।जब से मेरी दुकान में काम कर रहा है,मुझे मुनाफा ही हुआ है।इसके रहते कभी गल्ले में एक पैसे की चोरी नहीं हो पाई।घर भेजता हूं किसी काम से तो,नजरें नीची करके सेठानी से बात कर लेता है।मेरी सुंदर बेटी वहीं रहती है,पर इसने कभी आंख उठाकर देखा भी नहीं उसकी तरफ।
स्वाभिमान इतना है कि,घर से लाया हुआ टिफिन ही खाता है,मैं कितना भी जिद क्यों न करूं,कभी मेरे लाए खाने को हांथ नहीं लगाता।और तो और अपनी तनख्वाह से हर महीने मेरे पास ही पैसे रखवाकर आपकी बेटी की शादी का पूरा किराने का सामान खरीद रखा है इसने।दुकान की अच्छी साड़ियां और कपड़े अपनी तनख्वाह से कटवा कर खरीदता रहता है।मेरा आउटिंग में एक मैरिज हाल है। एडवांस देकर मुझसे ही बुक करवा लिया है।
एक बाप को अपनी बेटी के लिए इससे अच्छा और सुलझा हुआ पति कहां मिलेगा।जो मेहनत करने में संकोच ना करें, दूसरों के घरों की लड़कियों को सम्मान देना जानता हो।समय कैसा भी रहे, लोभ तनिक भी ना हो।पैसे मांगकर छोटा होने के बदले , पैसे कमाकर चीज लेना जानता हो।
यही मेरा दामाद बनने के लायक है।आपकी आर्थिक स्थिति से मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता।मैं भी बहुत नीचे से व्यापार शुरू किया था, पर आज बड़ा हो चुका है मेरा व्यवसाय भी।मुझे ऐसे ही भरोसे वाला लड़का चाहिए।आप मना मत करना सोमेश्वर जी।मैं बड़ी आस लेकर आया हूं।”,
सेठ जी के मुंह से अपने निठल्ले बेटे के लिए मधुर वचन सुनकर , सोमेश्वर जी को विश्वास ही नहीं हुआ।तभी शंभू दुकान से आ गया।सेठ जी को देखकर सकपकाया और पूछा” मैंने कुछ गलती कर दी है क्या सेठ जी?मेरी ग़लती के लिए मेरे पिता को बातें मत सुनाइये।मैं आपके हर नुकसान की भरपाई कर दूंगा।चलिए,उठिए अब यहां से।”,
सेठ जी ने शंभू के सर पर हांथ फेरकर कहा” तुम्हारे बाबूजी तो तुम्हारी खूबियां जानते भी नहीं।तुम अपनी अच्छाइयों को उजागर नहीं करते क्या अपने पिता के सामने?”,
शंभू ने खामोशी से पिता की ओर देखा और सेठ जी से कहा”,मैं हर सुबह अपने पिता के मुंह से निकले आशीर्वाद का कवच पहनकर निकलता हूं।कोशिश करता हूं कि उनके सम्मान में कभी दाग ना लगाएं।इसके अलावा और कुछ अधिक मैं नहीं करता।मैं तो अपने पिता की तरह मेहनत भी नहीं कर पाता। इन्होने अकेले की कमाई से हम दोनों भाई-बहन को अच्छी शिक्षा दी।बड़ी बहन तो आगे बढ़ गई,मैं ही शिक्षा का मान नहीं रख पाया।”
सोमेश्वर जी आत्मग्लानि से भर चुके थे। बार-बार छिपकर आंसू पोंछ रहे थे।शंभू के सर पर हांथ फेरकर कहा”,लायक तो तू था,मैं ही तेरे पिता बनने के लायक नहीं था।हमेशा तुझे बद्दुआ ही देता रहा,कभी प्रशंसा नहीं की तेरी।और तू कहता है कि मेरा आशीर्वाद लेकर घर से निकलता है।
तू कैसा लड़का है रे?मुझ जैसे स्वार्थी पिता को तुझ से माफी मांगनी चाहिए।”शंभू पापा से लिपटकर खूब रोया ।पापा भी रो रहें थे।एक जोड़ी आंखें और दोनों के लिए रो रहीं थीं।शंभू ने पापा की पीठ सहलाते हुए कहा” बचपन में दादी ने बताया था,कि मां -बाप की बद्दुआ में भी आशीर्वाद रहता है।आपकी मेरे प्रति नकारात्मक सोच ने ही मुझे सकारात्मक रहने में संबल दिया।आप निश्चिंत हो जाइये,और दीदी की शादी की तैयारी करिए जोरों शोरों से।”
सोमेश्वर जी ने हंसकर कहा” नालायक कहीं का,कर दी ना बेवकूफी वाली बात।मैं अब एक साथ दो शादियों की तैयारी करूंगा।साथ में ही होगी तुम दोनों की शादी।”
सेठ जी हंसते हुए मिठाई खिलाने लगे सोमेश्वर जी को और कहा” आज से हम समधी हुए।आपकी बेटी की शादी में मैं आपके साथ रहूंगा।मेरी बेटी की शादी में आप रहना।मैं व्यापारी हूं,कोई भी हिसाब आधा नहीं छोड़ता।
सभी हंसने लगे।
शुभ्रा बैनर्जी
बद्दुआ