“ माँ आज बद्दुआ नहीं दोगी…अब शिकायत नहीं करोगी… ?” जयदेव ने जैसे ही कहा उनकी माँ कलावती ज़ोर ज़ोर से रोते रोते कहने लगी “ चली गई रे इस घर को छोड़कर हमेशा के लिए…अब कौन मोहे सवेरे की चाय देवेगा…. उसे बुला ले रे वापस जय…मत जाने दे।”
“ अब वो कभी नहीं आएगी….. आज मेरा दिल कर रहा है माँ तुमसे तुम्हारी ही शिकायत करूँ… बताओ ना कहाँ से शुरू करूँ….. कितनी बद्दुआ दी ना माँ तुमने उसे आखिर उसे जाना ही था कब तक बद्दुआएँ लेकर वो रहती ?” अपना सिर पीट कर जयदेव फफक पड़ा
“ ऐ बहू मुझे माफ कर दे रे… लौट आ वापस… कुछ ना कहूँगी तोसे…. माफ कर दे रे बहू आ जा…!” कह कह कर अपनी छाती पीटती कलावती जार जार हो कहने लगी
जयदेव माँ को ग़ुस्से से देख रहा था ….पर माँ है उसकी हालत पर दया भी आ रहा था पर उसके स्वभाव की वजह से आज वो इस जगह पहुँच गया था… जहाँ से वो चाह कर भी अपनी पत्नी को नहीं ला सकता था….बद्दुआएँ और ताने सुनने की क्षमता मीना में जितनी थी उतनी किसी में ना रही होगी….
मायके की देहरी छोड़ जब जयदेव के साथ ब्याह कर इस घर आई थी तब कलावती जी हट्टी कट्टी महिला थी घर पर बस हर तरफ़ इनकी ही आवाज़ गूंजती रहती थी….
मीना बचपन से ही मित भाषी रही….कलावती जी जो कहती वो करती…. उनकी एक ही आदत बहुत बुरी थी बहू कह कर कभी ना बुलाती….जाने क्यों उनके मुँह पर हमेशा गाली ही रहती और जो बुलाना होता वो ऐ इधर सुन करती….
जयदेव को ये सब देख कर अच्छा नहीं लगता था वो माँ से कहता भी ये कैसे बोलती है माँ…. शोभा नहीं देता पर मजाल वो किसी की सुन ले….
हर दिन शिकायतें लेकर बैठ जाती …. कभी खाना अच्छा नहीं बनाया तो कभी मुझे समय पर चाय नहीं दिया….. जयदेव ये सुन कर मीना को डाँट दिया करता बेचारी मीना सब सुन कर चुप्पी लगाए रखती …. माँ बाप ने सीखा कर भेजा था बिटिया अब जो है सो वही तेरा घर है….काम करते करते चूर चूर हो जाती पर मुँह से एक शब्द ना निकलता…..
समय गुजरता गया कलावती जी के ताने और शिकायतें भी बढ़ने लगी …. किसी किसी की क़िस्मत भी भगवान ना जाने क्यों ऐसी लिख कर भेजता है जो सहता है उसे ही ज़्यादा तकलीफ़ भी देता है…..
पाँच साल गुजर गए मीना की कोख ना भरी… अब तो कलावती जी हर आने-जाने वालों से मीना की बुराई करती रहती और जयदेव से तो यहाँ तक कहती रहती कि ,“दूजा ब्याह कर ले…ये मनहूस बांझ हम अपने घर ना रखने वाले।”
जयदेव बस माँ की इसी बात को कभी ना सुना….. जानता था मीना ही है जो इतनी बद्दुआओं और शिकायतों के बाद भी कलावती जी के ना मुँह लगाती ना जयदेव से कभी कोई शिकायत करती…. नहीं तो अड़ोस पड़ोस में एक से एक बहू है जो सास ससुर को ना इज़्ज़त देती ना सम्मान बस उनके घर से झगड़े की आवाज़ ही सुनाई देती थी ।
पता नहीं भगवान को मीना पर दया आई या जयदेव का पत्नी के प्रति प्रेम रहा होगा जो उसने उसे छोड़कर दूजा ब्याह ना किया….. संजोग से एक दिन मीना को खूब उल्टियाँ हुई और जी मिचलाने से वो परेशान हो गई थी…. जयदेव पास के क़स्बे में डॉक्टर के पास लेकर गया तो पता चला कि वो माँ बनने वाली है…..
कलावती जी तब भी मीना को ना सुनाने से बाज आ रही थी ना उनकी शिकायतें कम हो रही थी….. मीना अब खुद का और बच्चे का ध्यान रख रही थी …. साथ ही साथ काम भी करती जाती….
कुछ महीनों बाद डॉक्टर अल्ट्रासाउंड के लिए बुलाई थी…. बच्चे को अपने अंदर महसूस तो कर ही रही थी आज उसकी धड़कन भी सुन ली…. उसकी तस्वीरें देख मीना ख़ुशी से फूली ना समा रही थी…..
उसने जयदेव का हाथ पकड़कर कहा,“ हम पर मेहरबानी करने के लिए शुक्रिया….अम्मा तो आपका दूजा ब्याह कराने को तैयार बैठी थी बस आप ही नहीं कर रहे थे…. क्या होता मेरा जो आप दूजा ब्याह कर लेते…. और ये हमारा बच्चा ये कहा से आता…. ।”
“ बस मीना माँ को मैं समझा कर थक गया वो स्वभाव की ही ऐसी है…. बाबूजी भी बेचारे अम्मा के ताने सुनने के आदी हो गए थे जब गए तब भी कभी अम्मा झूठे मुँह भी प्यार ना जताई…. ऐसा नहीं कि वो प्यार नहीं करती थी पर बोल कभी मीठे ना बोल पाई…. उसकी इस आदत से मैं भी परेशान हो जाता हूँ पर तू जितना सुन लेती हैं सह लेती है दूजी वैसी ज़िन्दगी में ना मिलती अम्मा को… बस तेरे इस एहसान तले दबा हूँ…. माँ है मेरी करूँ भी तो क्या करूँ ।”
“ ना जी दिल में कुछ ना रखो…. अब तो सात साल हो गए इस घर में अम्मा की कर्कश आवाज़ सुनाई ना दे तो घर सूना लगता…. जाने दो वो ना बदलेंगी कभी।” मीना ने कहा
आठ महीने पूरे हो गए थे…. मीना का शरीर भी भारी हो रखा था पाँवों में सूजन भी रहती थी…. काम भी धीरे-धीरे कर पाती थी……
एक दिन सुबह सुबह कलावती जी चाय के लिए मीना को आवाज़ दे रही थी….. मीना उस वक़्त गुसलखाने में थी आवाज़ सुन जल्दी जल्दी करने लगी …. इधर अम्मा की आवाज़ और तीव्र ग़ुस्से में हो रही थी…. वो बैठे बैठे बड़बड़ाने लगी… जाने कहाँ मर गई आवाज़ ना सुनाई दे रही …
मीना झटपट निकलने लगी की गुसलखाने की एक सीढ़ी से पैर ऐसा फिसला की वो पेट के बल गिर पड़ी सिर चौखट पर जोर से जा लगा…. दर्द से एक कराह निकली और मीना …..
जयदेव दौड़ कर मीना की ओर भागा पर वो तो अब निर्जीव हो चुकी थी….. पल भर में मीना कलावती जी के डर से हड़बड़ी में आने के चक्कर में चली ही गई…..
जयदेव पहली बार में ही समझ गया मीना माँ के डर से ही गिर पड़ी होगी….. वो माँ को बोला,“ माँ इसकी हालत देख रही थी ना तुम फिर भी इतना ग़ुस्सा कर रही थी लो चली गई छोड़ कर करती रहना शिकायत…..अब देती रहो बद्दुआ।”कह जोर ज़ोर से जयदेव रोने लगा
कलावती जी को तो जैसे काठ मार गया था…..
अभी अभी दाह संस्कार कर लौटा था और माँ को देख जयदेव चुप ना रह पाया था….. अपनी पत्नी बच्चे दोनों को खो चुका था…… माँ से ग़ुस्सा कर के भी क्या करता वो लौट कर तो नहीं आते…..
जयदेव अब बस काम पर ध्यान देने लगा…. जीने का चाह खोने लगा था….. कलावती जी अब चुप हो गई थी….. घर में सन्नाटा पसरा रहता था….. अब इस घर में ना मीना थी ना कलावती जी को किसी से कोई शिकायत ।
दोस्तों बहुत घरों में कुछ महिलाएँ ऐसी होती है जिनके आगे सब चुप रहते हैं….. क्योंकि ऐसी औरतें रो धोकर अपने पति / बेटों को ऐसे भावनात्मक धमकी देती है कि वो लाचार हो जाते…. कुछ तो इनसे उलझकर अपने आपको बचा लेती है कुछ मीना जैसी बेचारी या फिर कहूँ सीधी होती है जो ससुराल वालों को ही सबकुछ समझने की भावना से ओतप्रोत रहती और डर का नतीजा क्या हो सकता आपने देख लिया…..
बेटी को हिम्मती बनाना ज़रूरी है…. गलत को गलत कहना बोलना आना ज़रूरी है…. ससुराल में वो एक बहू के साथ साथ परिवार का ही सदस्य है उसके साथ अभद्र भाषा या व्यवहार करना गलत है…..काश कुछ परिवार जो ऐसे है वो सुधर जाए… रचना लिखने का मेरा मक़सद यही है ।
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धन्यवाद
रश्मि प्रकाश
#बद्दुआ