पंडित राम स्वरूप जी और उनकी पत्नी सावित्री देवी उनके दो बच्चे एक बड़ी बेटी और एक बेटा दोनों बच्चे पढ़ लिख गए बेटी की शादी कर दी ससुराल चली गई। बेटा की नौकरी लग गई वह भी दूसरे शहर में रहने लग सप्ताह में शनिवार को आता और सोमवार की सुबह वापस लौट जाता
बेटी मां से फोन पर बात करती थी सावित्री की बोली पंडित जी अब बेटे की शादी कर देनी चाहिए रामस्वरूप जी बोले हां आप ठीक कह रही हो। अपने बेटे राम की शादी कर देते हैं। सावित्री जी हंसने लगी और बोली राम के लिए तो सीता जैसी पत्नी चाहिए ।
कुछ दिनों बाद रामस्वरूप जी ने अपने बेटे राम की शादी सिया के साथ कर दी सिया बहुत समझदार थी।वह सब से बहुत प्रेम से बात करती सब सुख का ध्यान रखती थी समय हर काम करती, लेकिन सावित्री जी हमेशा अपनी बेटी की तुलना सिया से करती और हमेशा यह कहती हमारी बेटी हर चीज में बहुत होशियार है उसे हमने सब कुछ सीखा के भेजा है।
सिया सुबह की चाय से लेकर रात के दूध देने तक अपने सास-ससुर का ध्यान रखती थी ।फिर भी सावित्री जी को सिया के हर काम कमी नजर आती थी ।
यह सब देखकर रामस्वरूप जी से रहा नहीं गया और वह
सावित्री जी से बोले ,तुम हर समय सिया के काम में कमी निकलती रहती है तुम्हें पता है ,जब कभी तुम परेशान होगी। तो उस समय ना तुम्हारी बेटी अपनी ससुराल से आकर तुम्हारी सेवा करेगी ।और ना ही तुम्हारा बेटा अपनी नौकरी छोड़कर तुम्हारी सेवा करेगा। बल्कि तुम्हारी बहु ही तुम्हारी सेवा करेगी ।
सावित्री बोली ,आप तो हर समय सिया की तारीफ करते रहते हो उसकी कमी तो दिखाई नहीं देती। रामस्वरूप जी बोले यह तो समय बताएगा।
एक दिन सावित्री जी छत पर शाम को टहलने जा रही थी। तभी उनका पैर फिसल गया और वह सीढीओ से नीचे गिर गई।
घर में कोई नहीं था सिया भाग कर आई उन्हें उठाया और बिस्तर पर लिटाया फिर उसने रामस्वरूप जी को फोन किया, पापा जी मम्मी के चोट लगी है पापा जी डॉक्टर को लेकर आइए रामस्वरूप जी डॉक्टर लेकर आए ,डॉक्टर ने कहा, कि सावित्री जी के पैर की एड़ी में फैक्चर हो गया है।
इन्हें हॉस्पिटल ले जाना पड़ेगा तब रामस्वरूप जी परेशान हो रहे थे मुझे गाड़ी चलानीं नहीं आती। तभी सिया ने कहा पापा जी आप चिंता ना कीजिए मैं मां को हॉस्पिटल लेकर चलती हूं रामस्वरूप जी बोले क्या तुम्हें गाड़ी चलानी आती है सिया ने कहा था पापा जी मैं शादी से पहले गाड़ी चलानी सीखी थी। सिया ने गाड़ी निकली और अपनी सास को लेकर डॉक्टर के पास गई, प्लास्टर चढ़ाया
और दवाईयां दी,सिया ,सावित्री जी को लेकर घर आ गई। फिर उसने फोन करके राम को बताया, अगले दिन राम और उनकी बहन आए। अपनी बेटी को देखकर सावित्री रोने लगी बोली बेटी मेरी तबीयत बहुत ज्यादा खराब है बहुत दर्द हो रहा है
एक दिन रुकने के बाद बेटी ने कहा, मां आपकी तबीयत खराब है मन मेरा परेशान है जाने का मन नहीं कर रहा। लेकिन बच्चों की पढ़ाई है इसलिए मुझे जाना पड़ेगा बेटी चली गई दो दिन रहने के बाद बेटा ने कहा कि मां मेरी नौकरी है मुझे भी बाहर जाना पड़ेगा अब सावित्री बैठी देख रही थी।
और मन में सोच लगी अब मेरी सेवा कौन करेगा, तभी सिया उनके पास आई बोली मां आप चिंता मत करो” मैं हूं ना” आपके पास आपको किसी बात की चिंता की जरूरत नहीं है अब सिया सावित्री जी के लिए हर चीज उनके हाथ में देती। सावित्री जी नहलाती कपड़े पहनना उनके बालों की चोटी उनका हर काम सिया करती।
खाने की चीज, दवाइयां ,समय- समय पर देती और रात में उनके पास ही सोती थी। जरा सी आहट सुनकर उठ जाती थी यह सब देखकर सावित्री जी को अपने पति की बात याद आई ।
उन्होंने कहा उन्होंने अपने पति को पास बुलाया और कहा, आप बिल्कुल सच कह रहे थे। हम लोग वैसे ही कहते हैं कि हमारा बेटा हमारी बेटी हमारी सेवा करेंगे ।लेकिन सच्चाई तो यह है कि जब समय आता है बेटा बेटी दोनों अपनी मजबूरी और जरूर का बहाना बनाकर चले जाते हैं।
लेकिन एक बहू ही होती है जो अपने सास ससुर के बुढ़ापे का सहारा बनती है वहीं उनकी सेवा करती है इसलिए हमें बहू को बेटी माने या ना माने लेकिन कम से कम उन्हें बहू तो माने चाहिए
इस कहानी से हमें शिक्षा मिलती है कि कभी भी बहू की अपेक्षा नहीं करनी चाहिए बहुत-ही हमारे बुढ़ापे का सच्चा सहारा होती हैं ।
बुढ़ापे का असली सहारा ना बेटा ना बेटी बल्कि बहूं होती है
लेखिका
विनीता सिंह
बीकानेर राजस्थान