बुढ़ापे का असली सहारा ना बेटा ना बेटी बल्कि बहू होती है – हेमलता गुप्ता

गुड़िया बेटा.. देख कुछ समय के लिए अगर आना हो जाए तो आ जाना, तेरी मां कल स्टंट डलवाने जा रही है क्या पता अस्पताल से वापस भी आऊं या ना आऊं! क्या मम्मी… आजकल स्टैंड डलवाना कोई बड़ी बात नहीं है और पहले से ही अगर अपने दिनचर्या और खानपान पर ध्यान देती तो यह नौबत ही नहीं आती,

कितनी समय से आपको सांस फूलने की बीमारी है पर आप कभी सीरियसली लेती ही नहीं थी खैर.. मम्मी मैं अभी आकर क्या करूंगी अब तो वैसे भी आप अस्पताल जा रही हो, हां जब आ जाओगी तब मिलने आ जाऊंगी, आपको तो पता है मेरे वहां आने से यहां कितनी समस्याएं हो जाती हैं दोनों छोटे बच्चे…

ना तो इन्हें छोड़ कर आ सकती नाही लेकर आ सकती हूं और आपको तो पता है मेरी सास भी कितनी खड़ूस है, मजाल एक काम कर ले, मेरी तो खुद की जिंदगी नरक हुई पड़ी है, खैर ऐसा कुछ भी नहीं होगा आप खुशी-खुशी अस्पताल जाओ बस 2 दिन में छुट्टी मिल जाएगी और वैसे भैया भाभी है ना वहां, 

भाभी तो आपकी कितनी सेवा करती है, आपका बहुत अच्छे से ध्यान रखेंगी! अरे   बेटा.. बहू बहू होती है बेटी बेटी होती है, जो दर्द बेटी को मां के लिए आता है क्या वह बहु को आएगा, बहु तो बस यही सोच रही होगी की बुढ़िया अस्पताल जाए और वापस ही ना आए! क्या मम्मी.. भाभी इतना तो करती है आपको तो पता नहीं

क्या सेवा का शौक चढ़ा हुआ है, चलो ठीक है मैं अभी तो नहीं पर चार-पांच दिन बाद आ जाऊंगी ऐसा कहकर सुमित्रा की बेटी ने फोन रख दिया! अगले दिन सुमित्रा जी को अस्पताल ले जाया गया उनको काफी समय से  कोलेस्ट्रॉल और बीपी की परेशानी थी पर फिर भी वह अपनी खान-पान और घूमने की दिनचर्या सही नहीं रख पाती थी,

उन्हें तो हमेशा तला  और मसालेदार खाने की आदत थी न हीं वह सुबह शाम घूमने को जाती ना बहू की घर के कामों में कोई मदद करती! खैर अस्पताल में सकुशल उनका स्टंट डल गया और 2 दिन में वह घर भी वापस आ गई! डॉक्टर ने उन्हें बहुत सारे परहेज बताए !

अस्पताल से आने के 1 दिन बाद तो बेटे ने छुट्टी ले ली थी ताकि वह अपनी पत्नी गुंजन को मां की दवाइयां और खानपान के बारे में  समझा सके और फिर अगले दिन यह कहकर ऑफिस चला गया कि उसके ऑफिस में भी बहुत काम है 4-5 दिन वैसे ही बहुत खराब हो गए! गुंजन सारे दिन घर का काम अपने दोनों छोटे बच्चों का काम और सासू मां को नहलाना खाना खिलाना उनको दवाइयां देना उनके बहुत सारे और भी काम करना,

बेचारी शाम तक बेहोश जैसी हो जाती पर खुशी खुशी  सारे काम करती!  उसने शुरू से ही सुमित्रा जी को अपनी मां की तरह समझा था किंतु सुमित्रा जी कभी उसे अपनी बेटी ना बना पाई! दो-तीन दिन बाद गुड़िया दोनों बच्चों के साथ आ गई, गुड़िया के आने से आराम तो कम बल्कि गुंजन का काम और बढ़ गया,

उसके दोनों छोटे बच्चों को भी कभी दूध कभी नाश्ता कभी क्या और गुड़िया खुद अपनी मम्मी के पास बैठी रहती! थोड़ा बहुत कभी कबार मम्मी को अनार छिलके दे दिया या थोड़े बहुत फल सब्जी काट के दे देती इससे ज्यादा कुछ ना करती, गुंजन रात दिन लगी रहती,

सुमित्रा जी लगातार आठ दिनों से देख रही थी गुंजन बिना चेहरे पर शिकन  कैसे अपनी सास की सेवा कर रही है! बेटा तो बस सुबह  शाम को ऑफिस आते जाते  पूछता… मां कैसी हो, ठीक हो? और गुंजन से कहता गुंजन मां का सही से ध्यान रख रही हो ना और बस अपने कमरे में जाकर लैपटॉप लेकर बैठ जाता!

सुबह 5:00 बजे से लेकर रात के 11:00 तक लगी रहती, कामवाली  थोड़ा बहुत काम करवा जाती, इसके अलावा बीमार व्यक्ति की सेवा करना कितना कठिन काम है, धीरे-धीरे गुंजन की सेवा देखकर सुमित्रा जी का मन पिघल रहा था वह कई बार सोचती मेरे बेटा बेटी को मेरे पास बैठने तक का समय नहीं है,

और यह बेचारी दिनभर मेरी सेवा भी करती है घर के सारे काम भी करती है और फिर भी हमेशा हस्ती मुस्कुराती सी ही रहती है, क्या करें बेटा बेटी की भी अपनी मजबूरियां हैं पर मैंने भी इस बेचारी को कभी प्यार नहीं किया, आज मुझे इसकी अच्छाइयां अंदर ही अंदर अपने आप पर शर्म महसूस करवा रही है,  किसी ने सच ही कहा है “बुढ़ापे का असली सहारा ना बेटा ना बेटी बल्कि बहु होती है”!

      हेमलता गुप्ता स्वरचित

    वाक्य प्रतियोगिता “बुढ़ापे का असली सहारा ना बेटा ना बेटी बल्कि बहू होती है”    #बुढ़ापे का असली सहारा ना बेटा ना बेटी बल्कि बहू होती है”

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