मैं असमर्थ नहीं हूं – मंजू ओमर 

अनीता आठ महीने के मासूम अथर्व को लेकर अंधेरी रात में घर से निकल गई।बाहर निकली तो हल्की बरसात हो रही थी।वो अथर्व को सीने से चिपकाए आंचल से ढककर तेज तेज कदमों से चली जा रही थी। तभी बरसात तेज हो गई और वो एक बिल्डिंग की गेट की ओट में खड़ी हो गई।उसे डर लग रहा था कि अभी घर से ज्यादा दूर नहीं गई है कहीं भुवन उसे ढूंढता हुआ वहां न आ जाए।

            तभी एक गाड़ी दूर से आती हुई दिखी और उसी गेट पर आकर रूक गई जहां अनीता खड़ी थी। गाड़ी की जब तेज लाइट अनीता के चेहरे पर पड़ी तो वो घबरा गई। गाड़ी रूकी और उसमें से करीब पचास साल के आसपास का एक व्यक्ति उतर कर आया और आश्चर्य से अनीता को देखने लगा।कौन है आप,जी जी मैं अनीता हूं ।इतनी बरसात में रात में इस छोटे से बच्चे को लेकर आप यहां क्या कर रही है।मैं अभी बरसात रूकेगी तो चली जाऊंगी। कहां जाना है आपको आइए मैं आपको छोड़ देता हूं। अनीता घबरा गई कहा जाए क्या करें क्या बताएं उन्हें।जी मैं अभी,,,,,,, कोई बात है क्या आप परेशान दिख रही है। कोई परेशानी है तो बताए मुझे हो सकता है मैं आपकी कोई मदद कर सकूं।

            जी मुझे आज रात के लिए आसरा चाहिए,सुबह होते ही मैं चली जाऊंगी।जी अच्छा चलिए अंदर चलिए । अनीता अंदर आकर भी घबरा रही थी।कहीं मैं ग़लत जगह तो नहीं आ गई।कहीं यै आदमी मेरे साथ कुछ ग़लत तो नहीं करेगा। उसकी घबराहट देखकर वो व्यक्ति बोला आप घबराए नहीं आप बिल्कुल सुरक्षित रहेगी यहां।और अंदर जाकर एक तौलिया और एक लेडिज गाउन लेकर बाहर आया और अनीता को देते हुए बोले आप अपने कपड़े बदल ले उधर अंदर कमरे में चली जाए । हां इस बच्चे के लिए मेरे पास कपड़े नहीं है तो उसके कपड़े आप स्त्री से सुखा लें अंदर स्त्री रखी है और बच्चे को कंबल में लपेट दें तब तक।मैं चाय बना कर लाता हूं , नहीं नहीं चाय की कोई जरूरत नहीं है । फिर भी वो व्यक्ति उठा और दो कप चाय बना लाया।

              वैसे मेरा नाम अविनाश है ।आप चाय कमरे में बैठकर पीना पसंद करेंगी या बाहर आएगी । अनीता थोड़ी झिझकी रही थी । उसके डर को अविनाश भाप गया था , ठीक है आप कमरे में ही चाय पी लिजिए आप थोड़ा डर रही है मुझसे। नहीं,,,,,,,,तो अनीता बोली और चाय पीकर जल्दी से कमरा अंदर से बंद कर लिया। अनीता कुछ देर पहले का सीन याद करके सिहर उठी कहीं ये भी तो ,,,,,,,,।

            अनीता एक बिन मां बाप की औलाद थीं। चाचा चाची ने उसे पाल-पोस कर बड़ा किया था।उसे पढ़ने का बहुत शौक था । पढ़-लिखकर कुछ काम करना चाहती थी , पैसे कमाना चाहती थी । जिससे वो अपनी इच्छाएं और जरूरतें पूरी कर सके । उसने तो बचपन से ही हर चीज के लिए अपने को तरसते ही देखा है। कुछ न कर पाने में असमर्थ। सामर्थ्य उसमें जरा भी न था कि एक रत्ती भी कुछ अपने लिए कर सके। कैसे करें अनाथ थी वो । मां-बाप बचपन में ही एक एक्सीडेंट में चल बसे थे। चाचा चाची थे बस उन्हीं के हवाले कर दिया गया। जिससे उसे बचपन से ही ताने उलाहने मिले जब वो इन सब बातों का मतलब भी नहीं समझती थी। मां के प्यार को तरसतीं थी।जब चाचा चाची अपनी बेटी शिल्पी को और बेटा मयंक को गोद में बिठा कर प्यार करते तो अनीता दूर खड़ी उन्हें देखती रहती थी।कि कोई मुझे भी प्यार करे। फिलहाल ऐसे ही नफरतों और अभावों में अनीता बड़ी हो रही थी। चाची के बच्चे स्कूल जाने लगे तो उसका भी मन करने लगा स्कूल जाने को ।एक दिन हिम्मत करके चाचा से बोल पड़ी चाचा हमें भी स्कूल जाना है । चाचा ने पत्नी है कहा तो उन्होंने झट मना कर दिया ।अरे इतने पैसे नहीं हैं। चाचा का दिल थोड़ा पसीज गया बोले अरे यही पास के सरकारी स्कूल में डलवा देते हैं ‌। पढ़ेगी लिखेगी नहीं तो शादी ब्याह कैसे होगा ।कोन करेगा अनपढ़ गंवार से शादी फिर बैठी रहेगी छाती पर ।हा ये बात तो है चाची बोली।

         अनीता सरकारी ही सही पर स्कूल जाने लगी ।खूब मन लगाकर पढ़ाई करती । धीरे धीरे अनीता दस वर्ष की हो गई अब तो चाची ने घर के कामों में अनीता को झोंक दिया। कुछ भी विरोध करने में असमर्थ थी अनीता।न काम करती तो मार पड़ती। अनीता घर के काम करती और रूखी सूखी खाकर पढ़ाई भी करती।

            16 वर्ष की है गई अनीता । यौवन के दहलीज पर कदम रखते ही रूप रंग निखर आया था अनीता का ।अब वो सबकुछ समझने लगी थी उसके माता-पिता नहीं है चाचा चाची के पास है उनका विरोध नहीं कर सकती।सब कुछ जानते हुए भी अनीता बहुत समझदार हो गई थी। फालतू इथर उधर ध्यान न भटकाकर घर के काम करती और पढ़ाई करती।

              इसी तरह अनीता ने हाई स्कूल कर लिया ।अच्छे नंबरों से पास हुई थी । चाची चाचा से बहुत अनुनय-विनय करने के बाद आगे की पढ़ाई के लिए उसे अनुमति मिली थी। चाची चाहती थी कि अब जल्द से जल्द अनीता की शादी कर दी जाए  और जान छूटे । जल्दी शादी करने की एक और वजह भी थी अनीता देखने सुनने में अच्छी थी और चाची की बेटी शिल्पी साधारण नैन नक्श की थी।कहीं उसकी शादी में अनीता की वजह से संकट न पैदा हो।

           चाची ने चाचा के कान भरने शुरू कर दिए कि कोई गरीब सा लड़का हो अकेला हो तो और अच्छा किसी तरह अनीता से जान छूटे। चाचा किसी फैक्ट्री में सुपरवाइजर थे । उसके मैनेजर से चाचा की बहुत बनती थी वो इसलिए कि दोनों को शराब पीने की आदत थी ।और अक्सर दोनों दारू की पार्टी में साथ साथ बैठते थे। ऐसे ही एक दिन दारू की पार्टी में मैनेजर प्रकाश चाचा से बोल बैठा यार मैं शादी करना चाहता हूं। क्या आपकी शादी नहीं हुई है अभी तक,। हुई थी लेकिन तलाक़ हो गया था तीन साल पहले।इस समय मेरी उम्र 46 साल से अभी तो बहुत उम्र है कबतक बैठा रहूंगा इसी तरह। अच्छा कहकर चाचा जी घर आ गए और पत्नी को सारी बात बताई । चाची ने कहा अरे देर क्यों करते हैं तुरंत बात चलाओ और उससे अनीता की शादी कर दो।जान छूटे और मेरे ख्याल से  पैसा भी ज्यादा खर्च नहीं होगा। लेकिन भाग्यवान उसकी उम्र ज्यादा है और अभी अनीता 18 की हुई है।अरे लड़के की उम्र नहीं देखी जाती उसका घर वार देखा जाता है ।घर में कोई और नहीं है आराम से रहेगी कोई दिक्कत नहीं होगी ‌।

             रोज़ रोज़ के पत्नी के दबाव से चाचा भी मान गए।

चाचा ने प्रकाश से बात की कि मेरी भतीजी हैं यदि आप चाहो तो उससे हम आपकी शादी कर सकते हैं। प्रकाश तैयार हो गया। चाचा ने एक दिन प्रकाश को घर पर बुलाया और अनीता से कहा का चाय लेकर आए। अनीता चाय लेकर आई तो प्रकाश अनीता को देखता ही रह गया।रूप यौवन में किसी भी तरह से कम नहीं थी अनीता,ना करने का सवाल ही नहीं उठता था।

              प्रकाश के जाने के बाद चाचा ने कहा अनीता हमलोग तुम्हारी शादी कर रहे हैं जो कल मेरा दोस्त घर आया था उससे। सुनकर अनीता घबरा गई , नहीं चाचा हमें अभी शादी नहीं करनी है मुझे अभी पढ़ना है ,कौन पढ़ाएगा तुझे चाची बोली। मेरे पास इतने पैसे नहीं हैं कोई जायदाद नहीं छोड़ गए हैं तुम्हारे मां बाप।ले देके बस वही एक घर था जिसे बेचकर तुम्हारी शादी करेंगे। तुमसे जान छूटे तो अपनी बेटी के बारे में सोचूं।

              अनीता ने बहुत हाथ पैर मारे बहुत कोशिश की शादी रोकने की लेकिन असमर्थ रही ।और उसकी शादी प्रकाश से हो गई।एक नरक से निकल कर अनीता दूसरी ओर नरक में आ गई। यहां प्रकाश रोज दारू पीकर आता और अनीता से वहशीपन करता। अनीता न चाहते हुए भी सबकुछ झेल रही थी।बेबस और लाचार थी अनीता । शादी के तीन महीने हुए थे कि अनीता प्रेगनेंट हो गई।बस ऐसे ही चलती रही अनीता की जिंदगी। प्रकाश का वहशीपन अभी भी जारी  था।आज अनीता के पेट में बहुत दर्द था तो प्रकाश से रिक्वेस्ट करी की मुझे डाक्टर को दिखा दो । बहुत कहने पर प्रकाश उसे डाक्टर के पास ले गया। डाक्टर ने उसे आराम की सलाह दी और पति को दूर रहने को कहां।उसी शहर में प्रकाश की एक मौसी रहती थी प्रकाश ने उनको देखभाल के लिए बुलाया वो डर गया कि कहीं अनीता मर न जाए।एक तो छोड़ कर चली गई और दूसरी मिली तो कहीं उसे भी कुछ न हो जाए।

               अनीता ने नौ महीने बाद एक बेटे को जन्म दिया । शादी होते ही चाचा चाची ने तो जैसे अनीता से संबंध ही खत्म कर लिए थे।अब अनीता कहां जाएं बस प्रकाश का घर ही रह गया था अनीता के लिए। डिलिवरी के पंद्रह दिन तक मौसी ने देखभाल करनी फिर वो भी अपने घर चली गई ‌।

                प्रकाश का वही रवैया चलता रहा ।अब तो वो घर में कभी कभी दो तीन दोस्तों को भी लाने लगा।सब बैठकर पीते और बीच-बीच में अनीता से कभी पानी तो कभी नमकीन मंगवाते रहते ।सब दोस्तों की गंदी नजर अनीता के जिस्म को अंदर तक भेद जाती।एक दिन प्रकाश का एक दोस्त भुवन बोल बैठा अरे यार तेरी बीबी तो बड़ी गंठीली है अकेले अकेले मलाई खाता रहता है कभी हम लोगों को भी तो मौका दे कहकर भुवन हंसने लगा ।प्रकाश बोला मेरी तेरी क्या है यार मेरी  तो तेरी भी है।

           अब भुवन को मौका मिल गया और आज जब घर पर पीने बैठा तो प्रकाश को खूब दारू पिला दी पैग पर पैग चढ़ाता गया उसको और कुछ ही देर में प्रकाश नशे की हालत में एक तरफ लुढ़क गया ।भुवन ने मौका देखकर चुपके से कमरे में जाकर अनीता को पीछे से दबोच लिया।वो चिल्लाई प्रकाश प्रकाश मगर प्रकाश तो नशे में धुत्त पड़ा था वो‌ कहा सुन रहा था।

                अनीता अपने को भुवन के कब्जे से छुड़ाने में अपने आपको असमर्थ पा रही थी । तभी अनीता में जाने कहां से इतनी हिम्मत आ गई कि भुवन को उसने जोर से धक्का दे‌ दिया और भुवन गिरा तो दरवाजे की कुंडी उसके सिर पर लग गई और वो कुछ देर के लिए चकरा गया ।इधर फुर्ती से अनीता ने अथर्व को गोद में उठाया और घर के बाहर निकल गई।और आज अविनाश के घर आ गई।

            कमरे में बैठी अनीता सोच रही थी अब क्या करूं कहां जाऊं। फिर सुबह-सुबह अनीता अविनाश को बिना बताए ही अथर्व को लेकर घर से निकल गई। अथर्व को छुआ तो उसे बुखार था शायद रात में भीगने से बुखार आ गया था।

            अनीता के पास पैसे नहीं थे , तभी उसे याद आया कि कान में उसके बाली है वो सोने की है उसने उसे उतारा और दुकान खुलने तक इंतजार किया फिर उसे बेचकर पैसे लिए और कुछ दूर पर ही एक अस्पताल था वहां जाकर अथर्व को दवा दिलाई। डाक्टर से पूछा डाक्टर क्या मुझे यहां कोई काम मिल सकता है । डाक्टर बोली आज सफाई वाली छुट्टी पर हैं क्या तुम करना चाहोगी ये काम । हां डाक्टर मैं कर लूंगी। अथर्व को वहीं बेंच पर लिटा कर अनीता ने सफाई कर दी ।रात मैं अस्पताल में ही जमीन पर एक किनारे लेट गई ।उसको ऐसे जमीन पर लेटे हुए और कर्मचारी तो ने देखा तो बड़ा तरस आया । अनीता को अपने साथ ले गए जहां कई काम करने वाले साथ रहते थे वहीं अनीता भी रहने लगी।और वही अस्पताल में काम करने लगी ।एक मुस्कुराहट सी बिखर गई अनीता के चेहरे पर।

              हर समय दूसरों के रहमो करम पर रहने वाली अनीता आज अपने पैसे हाथ में लिए है चाहे वो थोड़े ही सही लेकिन अपने तो है ।अब पक्की नौकरी लग गई थी अस्पताल में अनीता की ।अब मरीजों का स्पंज करना , उनके चादर बदलना और मरीजों की देखभाल करने लगीं जो उसे बताया जाता।सबके साथ रहकर अनीता अपनी पुरानी जिंदगी जैसे भूल ही गई थी। उन्हीं के बीच रहते हुए अथर्व भी बड़ा होने लगा था । अनीता अब खुश भी रहने लगी थी ।एक असमर्थ अनीता आज समर्थ बन गई थी।

मंजू ओमर 

झांसी उत्तर प्रदेश 

13 अक्टूबर 

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