असमर्थ – डोली पाठक

अपनी बनाई हुई पेंटिंग पर नजरें टिकाए हुए उमा जी शून्य में कहीं खोई हुई थीं।

फिजियोथैरेपिस्ट उन्हें कह रहा था,मैम जरा अपने हाथों और पैरों को हरकत किया किजिए…

मेरे चले जाने के बाद आप बिल्कुल भी हाथ पांव नहीं हिलाती हैं…

ऐसे तो आपको सुधरने में बरसों लग जाएंगे..

उमा जी उसकी बातों पर ध्यान दिए बगैर शून्य में देखती रहीं…

फिजियोथैरेपिस्ट फिर से बोला -मैम प्लीज आप मेरी बातों पर ध्यान दीजिए….

 फिजियोथैरेपिस्ट ने जब थोड़ी तेज आवाज में बोला तो उमा जी जैसे नींद से जगीं…

हां बेटा मैं तो पूरी कोशिश करती हूं परंतु मैं चाहकर भी अपने हाथ पांव नहीं हिला पा रही हूं…

मेरी पीड़ा को मेरे और ईश्वर के अलावा कौन समझ सकता है भला??? 

मैं अपनी असमर्थता को देख कर हर दिन तिल-तिल कर मर रही हूं… 

ईश्वर मुझे अपनी शरण में बुला क्यों नहीं लेते…. 

कहते-कहते उमा जी फूट-फूटकर रो पड़ी…. 

उमा जी दो भाईयों की सबसे छोटी बहन.. 

आर्मी आफिसर की बेटी… 

आर्मी स्कूल की शान हुआ करती थीं कभी… 

हर विषय में भाईयों से सर्वश्रेष्ठ और अव्वल… 

असफलता और विपन्नता से कोसों दूर…

उमा जब भी स्कूल से आती पूरे घर में रौनक सी छा जाती… 

माता-पिता की लाडली तो थी हीं भाईयों की भी दुलारी थी… 

पढ़ाई के साथ-साथ उमा को पेंटिंग और सिलाई में भी बड़ी हीं दिलचस्पी थी और ये गुण उसे उसकी मां अरूंधति जी से मिला था…

स्कूल से आकर उमा सारे काम छोड़ कर अपनी पेंटिंग बनाने में लग जाती… 

कभी जम्मू-कश्मीर की वादियां तो कभी लेह-लद्दाख की बर्फ से ढंके मौसम की बड़ी हीं बारीक तस्वीरें बनाया करती थी… 

कभी-कभी तो मां और पापा को बताए बिना उनकी तस्वीर बना दिया करती थी… 

आर्मी की तरफ से आयोजित ढेर सारे कार्यक्रमों में उमा की पेंटिंग की प्रदर्शनी भी लग चुकी थी… 

समय अपनी गति से बढ़ता जा रहा था… 

उमा के दोनों भाईयों का ब्याह हो गया… 

अब उमा के ब्याह की बारी थी… 

उमा के लिए उसके पिता एक ऐसे लड़के की तलाश में थे जो उनके हीं शहर का हो‌ और उमा के हूनर का कद्रदान भी हो क्यों कि उमा की हमेशा से हीं ख्वाहिश थी कि विवाह के बाद भी वो अपनी कला को छोड़ेगी नहीं और हो सकें तो इसको विस्तार देने की भी कोशिश करेगी… 

ईश्वर ने उसकी प्रार्थना सुन ली और छोटे भाई के साथ बिजली विभाग में कार्यरत राजेश ने स्वयं की उमा के साथ ब्याह की इच्छा जता दी… 

राजेश का उसके घर आना-जाना भी था इसलिए सबको उसका स्वभाव भी पता था… 

उमा के लिए राजेश से अच्छा लड़का कोई हो ही नहीं सकता था… 

चट मंगनी और पट ब्याह कर के उमा राजेश के साथ दूसरे शहर आ गई…

और अपने साथ लाई ढ़ेर सारी पेंटिंग्स और चार सिलाई मशीन… 

मुंह दिखाई की रश्म में आई महिलाओं ने तो उसी दिन मजाक बनाना शुरू कर दिया कि,अरे राजेश बेटा देखना बहू कहीं सिलाई करते-करते तुम सबके होंठ हीं ना सिल दें… 

ताकि तुम उसको कुछ कह हीं ना सको… 

चार-चार सिलाई मशीन कौन लाता है अपने साथ… 

राजेश भी भला ये सुनकर कहां चुप बैठने वाला था वो तपाक से बोल पड़ा – टेंशन ना लो आंटी जब आपका आपकी बहू से झगड़ा होगा तब उमा से कहकर तुम्हारे होंठ सिलवा दूंगा ताकि आपके घर में शांति बनी रहे… 

राजेश की बात पर सब ठहाके लगा कर हंस पड़े… 

उमा के ससुराल में उसका बड़ा हीं भव्य स्वागत हुआ… 

इतनी सुंदर सुशिक्षित और हूनर मंद बहू भला कहां किसी को मिलती है… 

चार सालों में उमा ने दो बड़े हीं प्यारे-प्यारे बेटों को जन्म दिया… 

बच्चे जब स्कूल जाने लगे तो उमा हर दिन उन्हें स्कूल छोड़ने जाया करती थी.. 

धीरे-धीरे लोगों को उसके हूनर के बारे में पता चलने लगा और उमा के घर में पेंटिंग और सिलाई सीखने वाली लड़कियों की भीड़ इकट्ठी होने लगी… 

चूंकि उसे पैसों की तो कोई कमी थी नहीं इसलिए वो ये सारी सेवाएं मुफ्त में किया करती थी … 

उमा दो एनजीओ से भी जुड़ गयी थी जहां से उसको आर्थिक सहयोग भी प्राप्त होता था… 

जिंदगी बड़ी हीं खुशी और मस्ती में बीत रही थी… 

जब एक दिन अचानक उमा को पता चला कि, राजेश को ड्युटी के दौरान बिजली का झटका लग गया है… झटका इतना तेज था कि घटनास्थल पर हीं उसके प्राण पखेरू उड़ गए…. 

उमा ने जब ये सुना तो खड़े-खड़े हीं बेहोश हो गई और बिस्तर पर ऐसी गिरी कि कभी उठ हीं नहीं पाई… 

दोनों बेटे भी उसके साथ नहीं थे… 

हास्टल से दौड़े भागे मां के पास आए… 

सदमा इतना गहरा था कि वो कोमा में चली गई… 

कोई छह महीने बाद उमा को होश आया तो उसकी दुनिया बदल चुकी थी… 

डाक्टर ने कहा कि,उसे पैरालिसिस हो गया है… 

अब वो बिस्तर से उठ तो पाएगी परंतु पहले की भांति दौड़ भाग कर अपने कार्य नहीं कर पाएंगी… 

आनन-फानन में बड़े बेटे का ब्याह किया गया ताकि घर में एक बहू आ जाए और देखभाल करें… 

संयोगवश ईश्वर ने शारदा के रूप में उमा को एक बड़ी हीं योग्य बहू मिल गयी… 

पूरे दिन सास की देखभाल करती और उमा जी को खुश रखने का प्रयास करती….

शारदा के अथक प्रयास से उमा जी धीरे-धीरे अपने पैरों पर चलने लगीं… 

अपने अतित को भूलकर एक नया जीवन जीने लगीं… 

पोती के आ जाने से घर में जैसे खुशियां फिर से लौट आई थीं… 

परंतु विधि को कुछ और हीं मंजूर था और बड़े बेटे का ट्रांसफर किसी और शहर में हो गया… 

उमा जी अपने छोटे बेटे और बहू के पास आ गई…. 

जिस बिमारी ने बरसों बाद उनका साथ छोड़ा था वो फिर से बढ़ने लगा और वो दुबारा बिस्तर पर आ गई…. 

एक कर्मठ और मेहनती महिला उमा जी जो अकेली पूरा घर संभालती थीं अपना एनजीओ संभालती थीं वो आज बिस्तर पर पड़ कर स्वयं को हीं नहीं संभाल पा रही थीं… 

छोटी बहू हर बार कहती कि, मांजी आप हिम्मत से काम लीजिए .. 

आप असमर्थ नहीं हैं…

आप अपनी समर्थता को याद कीजिए..

अपने इस असमर्थता को अपनी ताकत बनाइए…

माना आपके पैर नहीं चलते… 

मगर हाथ और दिमाग तो चलता है.. 

आप फिर से लड़कियों को पेंटिंग सिखाईए.. 

आपकी असली ताकत आपका हूनर हीं हैं… 

उमा जी ने तो जैसे जिंदगी से हार मान लिया था… 

वो हर बार जवाब देती – नहीं बहू मेरी जिंदगी मेरा हूनर सबकुछ राजेश के साथ चला गया… 

अब नहीं कर पाऊंगी मैं… 

नहीं है मुझमें वो हिम्मत और साहस… 

मैं नहीं कर पाऊंगी… 

उमा जी ने अपनी असमर्थता को अपनी पहचान बना लिया है और पूरे दिन ड्राइंग रूम में टंगी अपने हाथों की बनाई पेंटिंग पर नजरें गड़ाए किसी अतीत की गहराई में खोई रहती हैं…. 

स्वयं को इतना असमर्थ समझ बैठीं हैं कि भूल गयी हैं वो कि वो कौन हैं क्या हैं और कितनी प्रतिभाओं को स्वयं में समेट रखा है उन्होंने…

वो तो ये भी भूल गयी हैं कि,उन्होंने जाने कितनों को अपनी जिंदगी में समर्थ बनाया है…

डोली पाठक

पटना बिहार 

error: Content is protected !!