किशनपुर गांव में एक बहुत ईमानदार और संस्कारी अध्यापक रहता था और उसी गांव के एक सरकारी स्कूल में बच्चों को शिक्षा देता था!——- स्कूल के बाद अपनी खेती-बाड़ी पर भी ध्यान देता था
और अपनी खेती बाड़ी में खूब मेहनत भी करता था उसकी पत्नी माया देवी भी गोपाल के साथ खेती-बाड़ी में मेहनत करवाती थीं। गोपाल के दो बेटे थे दोनों पढ़ लिखकर शहर में नौकरी करने लगे और दोनों के ही एक-एक बेटा भी हो गया देखते देखते गोपाल की नौकरी भी पूरी हो गई थी और उसका रिटायरमेंट हो गया।
गोपाल के दोनों बच्चे राम और श्याम थे राम की पत्नी सारिका और बेटा साहिल था और—- श्याम की पत्नी राधिका और बेटा मोहित था वह अपने बच्चों सहित जब भी गांव में आते तो बोलते थे—– अब आप लोग मां बाबूजी हमारे साथ रहो और यह खेत भी बेंच दो अपन शहर में मकान बनायेंगे लेकिन—–
गोपाल को यह बात बिल्कुल पसंद नहीं आती वह बोलता मुझे गांव की खुली हवा अच्छा वातावरण और खेती करना यही पसंद है और गांव के सभी परिचित लोग सब मिलजुल के रहते हैं और आसपास रिश्तेदार भी रहते हैं बच्चे उनकी बात सुनकर चुप हो जाते और फिर अपनी नौकरी में वापस चले जाते माया देवी भी शुरू से गांव में रही थीं और उनकी बहुत सारी सहेलियां भी थीं इसलिए उन का मन भी गांव में ही लगता था।
गोपाल के रिटायरमेंट के चार-पांच साल बाद उम्र के साथ उसके हाथ-पैर कमजोर हो चुके थे। वह खेती-बाड़ी का काम पहले की तरह नहीं कर पाता था। गाँव के लोग उसे देखकर कहते —
“अब गोपाल असमर्थ हो गया है, इससे कुछ काम नहीं होगा।”
इन बातों से गोपाल को दुख तो होता, लेकिन उसने हार नहीं मानी। वह सोचता —
“शरीर भले असमर्थ हो जाए, पर मन और बुद्धि तो अभी भी सक्षम हैं।”
गाँव के बच्चे हर दिन खेलने तो आते, पर पढ़ाई में कोई रुचि नहीं दिखाते। गोपाल ने निश्चय किया कि वह अपनी समझ और अनुभव से इन बच्चों को कुछ सिखाएगा।
धीरे-धीरे वह—- पेड़ के नीचे बैठकर बच्चों को कहानियों के ज़रिए जीवन के मूल्य सिखाने लगा —
सत्य बोलने का महत्व, मेहनत और धैर्य से कैसे काम करना चाहिए, बड़ों का आदर करना चाहिए, सबको मिलजुल कर एकता से रहना चाहिए! एकता में बहुत बल होता है जो हर मुसीबत को आसानी से निकाल देती है!
कुछ ही महीनों में गाँव के—- बच्चों का व्यवहार बदलने लगा। वे पढ़ाई में भी अच्छे हो गए और माता-पिता का आदर करने लगे। बच्चों में अच्छे—– संस्कार आने लगे किशनपुर गांव की शहर में भी बहुत चर्चा होने लगी शहर के स्कूल वाले— बोलने लगे कि गांव के स्कूल में गोपाल नाम का रिटायर्ड अध्यापक सब बच्चों को—– शिक्षाप्रद कहानियां सुनाकर अच्छे संस्कार सिखा रहा है! यह खबर जब एजुकेशन मिनिस्टर को पता चली तो उन्होंने किशनपुर गांव का सर्वे किया।
एजुकेशन मिनिस्टर मनमोहन जी ने देखा कि बच्चे कितने संस्कारी और बुद्धिमान हैं। उन्होंने गाँववालों से पूछा —
“इन बच्चों में इतना बदलाव कैसे आया?”
गाँववाले बोले —
“यह सब हमारे गोपाल काका की देन है।” हम सब गांव वाले तो उनको “असमर्थ” कहते थे!
एजुकेशन मिनिस्टर बोले —
“तो फिर गोपाल असमर्थ कहाँ हुआ? वह तो पूरे गाँव को समर्थ बना रहा है।”
गाँववालों को एहसास हुआ कि असमर्थता शरीर की नहीं, सोच की होती है। एजुकेशन मिनिस्टर मनमोहन जी और सारे गांव वालों ने फूलमाला पहनाकर——- गोपाल को सम्मानित किया और गोपाल जी के साथ-साथ उनकी पत्नी माया देवी को भी माला पहनकर सम्मानित किया जिन्होंने अपने पति का पूरा साथ दिया था। मनमोहन जी ने गोपाल से कहा काका —
“आपने हमें दिखाया कि उम्र या कमजोरी इंसान को असमर्थ नहीं बनाती, हार मान लेना असमर्थ बनाता है।”
मनमोहन जी ने यह भी कहा कि अगर हिम्मत और लगन हो तो परिस्थितियाँ चाहे जैसी भी हों, इंसान “असमर्थ से समर्थ” बन सकता है। उसके बाद मनमोहन जी ने एक बड़ा निर्णय लिया—– कि इस गांव में जो गवर्नमेंट स्कूल है उसको और विकसित करेंगे ताकि बच्चों को आगे भी पढ़ाई का साधन मिले— और साथ ही गोपाल जी को इस स्कूल का कर्ताधर्ता बनाएंगे जो रिटायर्ड होने के बाद भी बच्चों को कहानी के द्वारा संस्कार सीखा रहे हैं एजुकेशन मिनिस्टर ने कहा और—– जब भी गोपाल जी को टाइम मिलेगा वह अपने हिसाब से बच्चों को हफ्ते में एक बार शिक्षा प्रद और प्रेरणादायक कहानी के द्वारा—— अच्छे संस्कार सिखाएंगे और आगे बड़ने के लिए प्रोत्साहित भी करेंगे इस तरह की अच्छी शिक्षा देने के लिए गोपाल जी को हर महीने आर्थिक लाभ भी दिया जाएगा यह सुनकर सारे गांव वाले और जितने बच्चे गोपाल जी से शिक्षा लेते थे सभी ने खूब तालियां बजाईं।
गोपाल जी के दोनों बेटे बहु और दोनों पोते भी मां बाबूजी के पास गांव आए हुए थे—– उन्होंने सोचा था कि अबकी से मां बाबूजी को शहर ले चलेंगे अब उनसे कुछ बनता नहीं है वह “असमर्थ” हो गए हैं लेकिन गांव में आकर तो उन्होंने देखा कि बाबूजी का तो इतना आदर सत्कार हो रहा है वह “असमर्थ” कहां हैं बल्कि हमें और हमारे बच्चों को—- आगे बड़ाने की शिक्षा दे रहे हैं। शरीर से कोई “असमर्थ” भले ही हो जाए पर बुद्धि और दिमाग अगर हो तो कोई भी इंसान—- अपनी समर्थता से आगे बढ़ सकता है! यह देखकर———- दोनों बेटे बहू और दोनों पोतों ने गोपाल जी और माया देवी के पैर छुए और कहा कि अब हम आपसे यही शिक्षा ले रहे हैं कि—– हर बार बच्चों की छुट्टी आपके पास ही बिताया करेंगे ताकि हमारे बच्चे भी आपसे कहानी के द्वारा संस्कार सीख पाएंगे तभी तो कहा जाता है कि—– दादी दादा की कहानी संस्कार सिखाती हैं! और बच्चों को—– आगे बड़ने की, अच्छे संबंधों की, परिवार में मेलजोल रखने की, एकता बड़ाने की सीख भी देती हैं। और अगर———- अच्छी शिक्षा मिले तो इंसान “असमर्थ से समर्थ” बन जाता है बुद्धि विद्या और उत्साह होना चाहिए!
सुनीता माथुर
अप्रकाशित रचना
पुणेमहाराष्ट्र