असमर्थ – सीमा गुप्ता

सुबह के सूरज की पहली किरण छतों पर उतरी थी। पूरे मोहल्ले के घर-घर में आज हलचल थी! सरगी का आनंद लेकर महिलाएं घरों से बाहर निकल आई थी और एक-दूसरे को अपनी-अपनी मेहंदी दिखा कर उल्लासित हो रही थीं। सच में करवाचौथ का त्योहार महिलाओं को असीम ऊर्जा से भर देता है।

जैसे ही मिसेज शर्मा अपनी सखियों के साथ पूजा का समय निर्धारित कर अपने घर में दाखिल हुई कि तभी दरवाज़े पर सुमन आ गई। हल्की सलवार-कुर्ती, माथे पर पसीना, लेकिन चेहरे पर वही सौम्य मुस्कान।

मिसेज शर्मा की नजर अनायास ही उसके हाथों पर ठहर गई। उन्होंने हँसते हुए कहा, “अरे सुमन! आज तूने मेहंदी नहीं लगाई? करवाचौथ पर तो सभी लगाते हैं, चाहे शुभ का एक गोला ही बनाएं।”

सुमन ने निर्विकार भाव से उत्तर दिया, “हाँ, मालकिन! सभी लगाते हैं पर मेरा मन नहीं किया।”

मिसेज शर्मा को थोड़ा अटपटा लगा तो पूछ बैठी, “ऐसा क्यों, सुमन? तूने व्रत नहीं रखा क्या?”

सुमन ने हाथ में पकड़ी झाड़ू नीचे रखी और बोली, “बरत तो रखे हैं, मालकिन, पर उपबास नहीं रखे।”

मिसेज शर्मा ने आश्चर्यमिश्रित जिज्ञासा से पूछा, “मतलब क्या है तेरा, सुमन?”

सुमन ने हल्की गंभीरता से उत्तर दिया, “मालकिन, पति- पत्नी का मतलब होवे – आपस में इज्जत-बिस्वास, सुख-दुख में एक दूसरे का साथ देंवें, बालकों को दोनों मिलके पालें। घर-बार के काम-काज मिलके पूरे करें! मैं ठीक कह रही ना, मालकिन? यही मतलब होवे न?

मिसेज शर्मा का स्वाभाविक उत्तर आया, “हाँ, सुमन! तू बिल्कुल ठीक कह रही है। यही मतलब होता है।

सुमन की आवाज में अब थोड़ा दर्द उभर आया, “पर मेरा आदमी ये सब न जाने। गाली-गलौज के बिना कभी बात न करे। सारा दिन दारू पीके पड़ा रहे। और कवे है कि तू मेरी जोरू है, तो मेरी गुलामी करना, मेरे लिए बरत रखना तेरा फरज है। बरत रख लियो, समझी! पर बरत के नाम पे चोंचले करने की जरूरत ना है। मेरे पास काम न है, खोली का किराया तू ही भरेगी।” 

मिसेज शर्मा उसकी परिस्थिति जानकार दुखी हुई। उसके पति के बारे में जानकर उन्होंने भी रोष प्रकट किया, “ये क्या बात हुई, भला? ऐसे आदमी शादी क्यों कर लेते हैं? ऐसे कैसे चलेगा? मैं तेरी मदद करूंगी। अपने पति से भी कहूँगी कि तेरे आदमी को समझाएं। सब मिलकर कोशिश करेंगे तो उसमें फर्क़ पड़ेगा! उसको सुधरना ही होगा!”

सुमन दृढ़ता से बोली, “मालकिन, मैं यही कहूँ थी कि आज मैं उसको सुधारने का बरत लिए हूं। बिस्वास है..करवाचौथ मैया मेरी पुकार जरूर सुनैगी। भूखी-प्यासी रह के इतने घरों का काम न बनै। काम के बिना बालकों को क्या खवाऊंगी! तभी मेनै ऐसे आदमी के लिए उपबास न रखे। अब मेरा बरत तब पूरा होगा जब वो सुधर जेगा। उसको सिखाऊंगी कि ब्याह का मतलब ये ना है कि एक जन दूसरे की गुलामी करै। इसका मतलब है- साझेदारी।” 

मिसेज शर्मा उसकी बातों से बहुत प्रभावित हुई!  सामान्य गृहकार्य करने वाली यह स्त्री कितनी असाधारण सोच रखती थी! मिसेज शर्मा कुछ समय तक अपलक उसे देखती रहीं। फिर बोलीं, “सुमन, कितनी समझदार है तू! कितनी सुलझी हुई सोच है तेरी! तेरे सहयोग के लिए मुझसे जो बन पड़ेगा, मैं करूंगी।” 

सुमन झुककर फर्श धोने लगी थी, लेकिन मिसेज शर्मा की बात सुनते ही बोली, “मालकिन, आप हौसला दे रही, अभी मेरे वास्ते यही काफी है। पर आप मेरे पति को अभी कुछ ना कहियो, नहीं तो सोचेगा कि मैं बाहर जाके सारी जगह उसकी बुराई करती फिरूं! पहले मैं खुद कोशिस कर लूं। ऐसा न है कि मैं कुछ कर न सकूं। वो तो मैं पत्नी-धरम निबाह रही थी, जैसा मेरे मां-बाप नै कहा था। पर मेरा आदमी मेरी शराफत का फैदा उठा रहा। वो सब कहैं ना.. ‘समरथ को नहिं दोष गुसाईं’…पर गलती मेरी है, मैं सोचूँ थी कि मैं शांत रहूं तो ये समझ जेगा। पर हुवा उल्टा!” 

“मालकिन, वो क्या कहैं समरथ के उल्टे को ….असमरथ …..

उसनै मेरे को वही समझ लिया। धमकी देता रवै मेरे को ..कि..मैं तो पियूंगा भी अर तेरे को गाली भी दूंगा..पति हूं तेरा…तू मेरा क्या कर लेगी.. तेरे बस का कुछ ना है।”  

“संघर्षशीला सुमन….असमर्थ कैसे? व्यवहारिक बुद्धिमता की धनी सुमन…असमर्थ कैसे? शारीरिक रूप से भी इतनी परिश्रमी सुमन…असमर्थ कैसे? आत्मविश्वासी सुमन…असमर्थ कैसे?” 

सुमन की सारी वस्तुस्थिति जानकर विचारों के सागर में गोते लगा रही थी मिसेज शर्मा!

उन्हें इस स्थिति में देखकर सुमन ने कहा, “मालकिन, आपनै मेरी बात का बुरा तो नहीं लगा। छोटा मुंह, बड़ी बात हो गई ना!” 

मिसेज शर्मा की आंखों में सुमन के प्रति प्रेम और प्रशंसा के भाव उमड़ आए, “सुमन, कितनी अच्छी शिक्षक है रे तू! तू छोटी कैसे? इतने सरल शब्दों में तूने मुझे भी कई पाठ सिखा दिए। तू तो स्वयं सक्षम है,पूरी तरह समर्थ है। तू सब ठीक कह रही है। जब हम संस्कारों के अधीन व्यवहार करते हैं, तो संस्कारहीन लोग हमें असमर्थ समझ लेते हैं। तब व्यवहारिक कुशलता से निर्णय लेने पड़ते हैं, जो तुझमें भरपूर है। चौथ मैया के आशीर्वाद से तेरा व्रत, तेरा संकल्प जरूर सफल होगा। जा! मेरी शुभकामनाएं तेरे साथ हैं।”

सुमन तो चली गई, पर उसके शब्दों की दृढ़ता मिसेज शर्मा के मन में देर तक गूँजती रही।

सुमन की शादी को सात-आठ साल हो चुके। पहले दो साल तक कुछ ठीक रहा। रामलाल, उसका पति, एक दिहाड़ी मजदूर था। लेकिन उसे शराब की आदत थी।

सुमन शुरू में चुप रही, सोचती रही — “हर घर में कुछ न कुछ झगड़े होवें।” पर धीरे-धीरे झगड़े बढ़े। गालियाँ रोज़ की बात हो गईं। और रामलाल ने मजदूरी भी छोड़ दी। फिर भी सुमन ने हार नहीं मानी। दो बच्चों के भविष्य के लिए वह पाँच घरों में काम करने लगी। सुबह साढ़े पाँच बजे उठती, रोटियाँ बनाती, बच्चों को तैयार करती और फिर काम पर निकल जाती।

उसकी मेहनत पर ही घर चलता था, पर उसके पति रामलाल के पास उसके लिए सिर्फ ताने थे।

कभी-कभी वह सोचती —

“क्या यही ब्याह का मतलब होवे?

क्या सब सिर्फ औरतों की जिम्मेदारी होवे?”

यही सोच धीरे-धीरे उसके भीतर एक नया आकार लेने लगी जो आज उसके द्वारा लिए गए संकल्प के रूप में सामने आई। 

करवाचौथ की शाम को सुमन ने भी अपने छोटे से कमरे में दीया जलाया। पर उसकी थाली में ना मिठाई थी, ना पकवान और ना ही पूजा का पूरा सामान। 

उसने हाथ जोड़कर कहा, “चौथ मैया, आज मैं अपने भाग्य को बदलने का व्रत ले रही। मेरे बच्चे डर के साए में नहीं, सांति अर इज्जत के माहौल में बड़े होवें। मेरा आदमी ब्याह का मतलब समझे, अपनी जिम्मेदारियां समझे। मैंया रानी, मुझे माफ कर दयो, मैने उपबास नहीं रखे क्योंकि मैं अपने बच्चों वास्ते मजबूत रहना चाहूं। किरपा करियो मैया!”

रात को रामलाल नशे में धुत्त झटके से दरवाज़ा खोल, गालियाँ बकता हुआ घर में घुसा।

जब सुमन ने उसे रोज जैसा साधारण दाल-भात परोसा और न ही वह उसे साज-श्रृंगार में नजर आई, रामलाल ने कड़क कर पूछा, “आज तूने बरत नहीं रखे? सब औरतें भूखी बैठी अपने पतियों की खातिर और तू…..?

सुमन ने चौथ मैया का ध्यान कर शांत स्वर में कहा, “बरत रखे हैं तेरे सुधार वास्ते। मैं चाहूं हूँ तू जाने कि तेरी बीवी तेरी गुलाम नहीं, तेरी साथी है…..।” और अपने मन की बाकी सब बातें भी उसने रामलाल से कह दी।

रामलाल आगबबूला हो गया। सुमन की बातों को नकारते हुए उसने सुमन को बच्चों सहित घर से निकालने की धमकी दी।

सुमन ने बिना डरे कहा, “जितनी जल्दी तू समझ जेगा, अच्छा होगा। सोच ले दो-चार दिन, तेरे को क्या चइये? बता दियो अपना फैसला! तेरे को यही ठीक लगे तो मैंने कोई दिक्कत न है। चली जूंगी बच्चों के लेके! जैसे इस खोली का किराया दे रही, वैसे ही दूसरी का दे दूंगी। फिर तेरा मेरा कोई वास्ता नहीं।”

रामलाल को काटो तो खून नहीं। वह पूरी रात करवटें बदलता रहा! कम शब्दों में बहुत गहराई की बातें कह दी थी सुमन ने, जो उसे झकझोर रही थी। सुमन को चैन की नींद सोता देख तो उसके रोंगटे खड़े हो गए! करवाचौथ पर अपने पति के लिए ये कैसा व्रत रखा, सुमन ने? इस तथ्य ने रामलाल को एहसास करा दिया कि उसकी स्वयं की करनी ने सुमन के मन में उसकी इज्ज़त को शून्य कर दिया है! 

सुमन का संकल्प उसे भीतर तक डरा गया। उसे अहसास हुआ कि कल सुबह से ही अगर उसने स्वयं में बदलाव नहीं दर्शाया, तो सच में सुमन बच्चों सहित उसे छोड़ कर चली जाएगी। तब वह क्या करेगा? वह तो पूरी तरह से सुमन पर निर्भर है! कहाँ से खोली का किराया देगा? कहाँ से रोटी खाएगा? अपने बीवी-बच्चों को तो खोएगा ही! 

पहली बार उसे अपनी असमर्थता का अहसास हुआ। समर्थ, सशक्त सुमन को अपनी बोली के शब्दों में वह असमर्थ बताया करता था! सरल, साधारण सुमन ने उसे सच का आईना दिखा दिया था।  

अगली सुबह सूरज की किरणों के साथ सुमन की ज़िंदगी में भी हल्की सी रोशनी आई। 

रामलाल सुबह उठा, पानी भरने चला गया।

वापस आया तो बोला, “मैं कोशिस करूँगा, सुमन। सुधार एक दिन में न होवे। धीर-धीरे होवेगा। थोड़ा टैम लगेगा।”

सुमन ने बस हल्के से मुस्कराकर कहा, “मेरे वास्ते यही काफी है। मैं तेरे साथ हूं।”

उस दिन चौथ मैया का बार-बार धन्यवाद करती सुमन जब काम पर पहुँची, मिसेज शर्मा ने पूछा, “सुमन, आज तू बहुत हल्की-फुल्की लग रही है, कुछ अच्छा हुआ ना?”

सुमन ने मुस्कुराकर कहा, “हाँ मालकिन, पहली बार मेरे आदमी में कुछ बदलाव दिखे। सालों बाद आज मन को सांति मिली है। लगे है मैया ने मेरी सुन ली।”

मिसेज शर्मा की आँखें भर आईं। उन्होंने कहा, “सुमन, तूने जो व्रत रखा है, वो सबसे बड़ा व्रत है- आत्मसम्मान का, आत्म विश्वास का, बदलाव की आशा का। करवा चौथ मैया तुझे ढेरों आशीर्वाद दें।”

अपनी मालकिन को दुआएं देते हुए सुमन ने खुशी-खुशी झाड़ू उठा ली। अब वह सिर्फ फर्श नहीं साफ कर रही थी, बल्कि अपने जीवन की धूल भी झाड़ रही थी, और उस धूल के नीचे छिपी आत्मसम्मान की रोशनी को बाहर ला रही थी। 

– सीमा गुप्ता ( मौलिक व स्वरचित)

— साप्ताहिक विषय: #असमर्थ

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