माँ असमर्थ है – गीता वाधवानी

 लगभग 60 वर्षीय एक आदमी ने गुरुद्वारे के लंगर में बैठी औरतों को फुल्का देते हुए कहा, ” सतनाम वाहेगुरु बीबीजी ( यानी दीदी जी )। रोटी लेते हुए वहां बैठी सपना की आंखों में आंसू आ गए और भरे गले से बोली सतनाम वाहेगुरु जी। 

     लंगर छकने के बाद जब सपना वहां से उठकर बाहर गई तो वह आदमी भी उसके पीछे चल पड़ा और सपना को रोक कर बोला, ” सुनो बहन, क्या मैं जान सकता हूं कि आपकी आंखों में आंसू क्यों है? मुझे अपने   बड़े भाई की तरह समझिए और अगर आपको ठीक लगे तो अपना दुख बताइए।” 

 सपना-” सतनाम भाई जी, मेरी आंखों में इसीलिए आंसू आ गए क्योंकि मैं कल से गुरुद्वारा नहीं आऊंगी।” सपना के साथ उसकी पड़ोसन सिमरन भी थी। 

 आदमी ने पूछा -” क्यों भला, क्या आप कहीं जा रही हैं? ” 

 सपना-” नहीं, बड़े विश्वास से किसी के कहने पर गुरुद्वारे आने लगी थी, पर गुरु बाबा ने मेरी पुकार नहीं सुनी, अब विश्वास टूट गया है मेरा। अब मैं किसी भी मंदिर या गुरुद्वारे में कभी नहीं जाऊंगी। ” 

 उसे व्यक्ति ने गौर किया कि सपना गरीब घर से लग रही थी, उसके कपड़े बहुत ही साधारण थे। 

 उन्होंने कहा-” ऐसा नहीं कहते, ईश्वर सब की मदद करते हैं, सब की पुकार सुनते हैं, ऐसी निराशा वाली बातें मत कीजिए, अपनी परेशानी मुझे बताइए। ” 

    सपना ने कुछ नहीं कहा और रोते-रोते वहां से चली गई। अगले दिन सिमरन अकेली आई थी। उसे व्यक्ति ने उसे पहचानते हुए कहा-” कल जो बहन रो रही थी, आप उनके साथ आए थे, क्या आपको कुछ पता है उनकी परेशानी के बारे में, कृपा करके मुझे बताइए। ” 

       सिमरन-” भाई जी, वह मेरे कहने से ही गुरुद्वारा आई थी और वह भी पूरे विश्वास के साथ, पर अब वह निराश हो चुकी है। ” 

 व्यक्ति ने पूछा-” आखिर क्या बात है? ” 

 सिमरन ने बताया-” भाई जी, उसका नाम सपना है। बहुत साल पहले उसके पति के अपने ट्रक चलते थे। वह ट्रक में समान लदवा कर भिजवाते थे। एक बार वह सामान भिजवाने के समय खुद भी ट्रक में बैठकर चले गए, उसे समय सपना प्रेग्नेंट थी और उसका नौवां महीना चल रहा था। उसने अपने पति को जाने से रोका था और कहा था कि किसी भी समय डिलीवरी के लिए जाना पड़ सकता है। पर भाई साहब ने कहा कि मेरा जाना जरूरी है। वापसी के समय उनका भयानक एक्सीडेंट हुआ और उनकी मृत्यु हो गई। उनकी मौत के 15 दिन बाद सपना के बेटे नकुल का जन्म हुआ। 

      तब उसकी सास ने उसकी बहुत देखभाल की। पोते होने की खुशी तो थी पर मन में बेटे के जाने का दुख समाया था, इसीलिए थोड़े समय बाद वह भी गुजर गई। तब सपना ने अकेले सब कुछ संभाला।और सिलाई करके नवजात बच्चों के लिए छोटी-छोटी कार्टून वाली रजाईयां और जूते मोजे बनाने लगी। लोगों को काम बहुत पसंद आने लगा। कुछ समय बाद उसने सदर बाजार में एक छोटी सी दुकान किराए पर ली और दूसरी औरतों को भी काम पर रखा, साथ ही बच्चों के बिछौने, दूध की बोतल के कवर और भी कई काम की चीज बनाने लगी। 

     काम अच्छा चल रहा था। तभी सपना कुछ दिनों से अपने शरीर में दर्द महसूस करने लगी थी। उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था। उसे समय नकुल लगभग 3 साल का था। डॉक्टर को दिखाने पर उन्होंने बहुत सारे परीक्षण करवाए,तो ब्रेस्ट कैंसर का पता लगा। 

    सपना बहुत घबरा गई थी उसने सोचा कि अगर मैं मर गई तो मेरे बच्चे को कौन देखेगा इसीलिए उसने तुरंत ब्रेस्ट रिमूव करवा ली और धीरे-धीरे उसकी तबीयत ठीक हो गई। उसने नकुल को कभी किसी तरह की कोई कमी महसूस नहीं होने दी। 

       नकुल दसवीं में आ गया था। इधर सपना की तबीयत फिर से खराब रहने लगी थी, इस वजह से उसका ध्यान काम से हट गया था। काम में धीरे-धीरे बेईमानी होने लगी और बहुत नुकसान हो गया और इधर सपना को दोबारा कैंसर होने के कारण बहुत खर्चा हो गया। कैंसर से लड़ते-लड़ते उसके शरीर की ताकत भी खत्म हो गई थी। जमा पूंजी से घर खर्च और नकुल की पढ़ाई चल रही थी। इलाज के बाद कैंसर ठीक हो गया था। 

    नकुल अपना कॉलेज कंप्लीट कर चुका था। वह अपनी मम्मी से कहता था कि मम्मी आप बिल्कुल चिंता मत करो, मैं नौकरी  भी करूंगा और आगे भी पढ़ूंगा। सब ठीक हो जाएगा। और फिर एक दिन जब वह अपने इंटरव्यू के लिए तैयार होकर निकल रहा था तो अचानक चक्कर खाकर गिर पड़ा। 

 अस्पताल ले जाने पर डॉक्टर ने इसका चेकअप किया और उसके सारे लक्षण देखकर बताया कि यह सारे लक्षण पैनिक डिसऑर्डर के हैं। उन्होंने कहा कि यहां भारत में इसके बहुत अच्छे अच्छे डॉक्टर हैं लेकिन अगर आप डॉक्टर सुखदेव को दिखा सके तो बहुत अच्छा रहेगा,वह एक्सपर्ट है, लेकिन वह अमेरिका में है। आप देर मत कीजिएगा, बात सीरियस लग रही है, डॉ सुखदेव कभी-कभी भारत आते रहते हैं हम आपको जरूर बताएंगे।  

 अब भाई जी जवान बेटा बीमार है। मां असमर्थ है। ना उसके पास पैसा है, न शरीर में ताकत है ना अमेरिका जाने का खर्चा और ना पासपोर्ट वीजा। इसी चिंता में रोती रहती है। तभी मैंने उसे हिम्मत देने के लिए रोज गुरुद्वारा आने को कहा और विश्वास दिलाया कि गुरु बाबा उसकी मुश्किल जरूर हल करेंगे। पूरे 2 महीने से वह मेरे साथ गुरुद्वारा आ रही थी। मैं उससे अब क्या कहूं मुझे खुद नहीं पता। सब कुछ बात कर सिमरन चुप हो गई। ” 

 तब उस आदमी ने कहा-” उनसे कहिएगा कि उनकी प्रार्थना गुरु बाबा ने सुन ली है और कल वह अपने बेटे को लेकर सिटी हॉस्पिटल लेकर आ जाएं, साथ में आप भी आइएगा। ” 

 अगले दिन सपना नकुल को लेकर सिमरन के साथ अस्पताल पहुंच गई, और वहां उसे पता लगा कि डॉक्टर सुखदेव यही आए हुए हैं। डॉक्टर के रूम में पहुंचने पर सिमरन और सपना यह देखकर हैरान रह गए कि वह गुरुद्वारे वाला ही व्यक्ति था। 

 और स्वयं डॉक्टर सुखदेव ईश्वर के इस चमत्कार पर हैरान थे, कि कैसे ईश्वर ने, उनके मन में गुरु के प्रति सेवा भाव जगाया और उन्हें अमेरिका छोड़कर सदा के लिए भारत आने का विचार उत्पन्न किया और फिर भारत आने के बाद उन्होंने इसी गुरुद्वारे में सेवा करने का फैसला किया। ताकि यह औरत मुझसे मिल सके। वाह बादशाह वाह! वाह  तेरी बादशाही। नमस्कार है तुझको मैं तेरे चरणों में शीश नवाता हूं। 

 अगले दिन नकुल के सारे परीक्षण किए गए और डॉक्टर सुखदेव ने उसका अच्छे से अच्छा इलाज किया और सपना से कोई फीस नहीं ली। सारी दवाइयां भी उन्होंने खुद भिजवाई। जब तक नकुल पूरी तरह ठीक नहीं हुआ, वह उनके घर भी आते रहे। सपना ने फीस के लिए पूछा  सपना ने फीस के लिए पूछा,तब उन्होंने कहा-” पैसा तो जीवन में बहुत कमा लिया, अब तो मानव सेवा और गुरु सेवा करनी है, और नकुल जब पूरी तरह तंदुरुस्त हो जाएगा तो इसके साथ बैठकर आपके हाथ के बने टेस्टी टेस्टी राजमा चावल जरूर खाऊंगा और फिर सब मिलकर गुरुद्वारे चलेंगे, उसे परमपिता परमेश्वर का धन्यवाद देंगे और सेवा भी करेंगे। क्यों नकुल,चलेगा ना? ” 

 नकुल-” हां हां जरूर चलूंगा, सेवा भी करूंगा और लंगर में बैठकर दाल और खीर भी खाऊंगा। सभी मुस्कुरा रहे थे और सोच रहे थे कि ईश्वर की लीला  अपरंपार है। ” 

 अप्रकाशित स्वरचित गीता वाधवानी दिल्ली 

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