आयकर आयुक्त रोमी दफ्तर में अपने काम में व्यस्त थी,उसी समय चपरासी ने आकर कहा -“मैडम! मोहित नाम का कोई व्यक्ति आपसे मिलना चाहता है!”
मोहित नाम सुनकर एक बार तो वह असमंजस में आ गई, फिर उसने चपरासी से कहा -“उसे अंदर भेज दो।”
जैसे ही मोहित ने उसे देखा,वह भी घबड़ा उठा।उसे उम्मीद नहीं थी कि रोमी उसे इतने उच्च पद पर स्थापित मिलेगी।एक बार तो उसका मन हुआ कि वापस ही लौट जाऍं, परन्तु रोमी ने उसे आवाज देते हुए कहा -“मिस्टर रोहित !एक ठुकराई हुई असमर्थ औरत से क्या काम है?”
सकुचाते हुए मोहित ने अपनी आयकर सम्बन्धित समस्याऍं बताई।उसी समय रोमी ने अपने मातहत अधिकारी को बुलाकर कहा -“मिस्टर रोहित की समस्या का निपटारा जल्द-से-जल्द करवा दीजिए।जिससे इन्हें बार-बार आयकर दफ्तर का चक्कर न लगाना पड़े।”
रोहित कुछ देर रोमी से बातें करना चाहता था, परन्तु रोमी की बेरुखी देखकर झट से बाहर निकल गया।
रोमी अपने कार्यक्षेत्र में जानी मानी हस्ती बन चुकी है।उसे ईमानदारी से काम करने के लिए कई बार पुरस्कृत किया गया है। वर्त्तमान समय में उसका जीवन खुशियों से भरा हुआ है।एक समय जीवन में आऍं झंझावातों से वह खुद को असमर्थ समझने लगी थी, परन्तु हिम्मत और हौसलों के साथ उसने खुद को सॅंभाला और ज़िन्दगी की दिशा को सही मोड़ पर पहुॅंचाया।
शाम में घर पहुॅंचने पर उसके मन में उथल-पुथल मच चुकी थी।जिस अतीत पर उसने वर्षों पूर्व मिट्टी डाल दी थी, रोहित के रूप में आज वही अतीत सजीव होकर उसकी ऑंखों के सामने घूमने लगा। यादों के झरोखे पर फिर से अतीत ने दस्तक दे दिया है,न चाहते हुए भी मन उसकी ओर ही खिंचता जा रहा है।
कल छुट्टी का दिन है।बेटा आरव बिजनेस के सिलसिले में बाहर गया हुआ। बिटिया नीना अपनी ससुराल में खुश हैं।कुछ समय पहले पति रमण का भी देहांत हो चुका है। व्यस्तता भरी जिन्दगी में कभी अतीत में झाॅंकने की इच्छा नहीं हुई, परन्तु आज दफ्तर में आकर रोहित ने उसके शांत मन के झील में यादों का इतना बड़ा पत्थर फेंक दिया है कि गुजरा हुआ अतीत उसकी ऑंखों के समक्ष आ खड़ा हो गया।
रोमी ने अपनी सहायिका से कहा -“मालती! मैं अपने कमरे में आराम करने जा रही हूॅं।शाम छः बजे मुझे चाय के लिए जगाना।”
मालती”अच्छा”कहकर अपने काम में लग जाती है।
बिस्तर पर लेटे-लेटेअचानक ही ऑंखों से निकलती अविरल धारा ने अतीत के पन्नों को खोलकर रोमी के समक्ष रख दिया। इंजीनियरिंग पढ़ाई के बाद रोमी दिल्ली में नौकरी करने लगती है। दफ्तर में ही मोहित से उसकी जान-पहचान होती है।अकेले रहने के कारण रोमी को बहुत सारी समस्याओं का सामना करना पड़ता था,जिसके कारण उसके चेहरे पर परेशानियों की झलक दिखाई देने लगती थी। मोहित उसकी परेशानियों को झट से भाॅंपते हुए कहता -“रोमी!चाहो तो अपनी परेशानियों में मुझे भी शामिल कर सकती हो?”
सचमुच मोहित उसकी समस्याओं को चुटकी बजाते ही हल कर देता। धीरे-धीरे दोनों एक-दूसरे के आकर्षक में बॅंधने लगें और एक -दूसरे से अपना सुख-दुख साॅंझा करने लगें।
मोहित कभी-कभी रोमी के घर भी आने लगा था।इस बात से नाराज़ होकर उसके मकान -मालिक ने उसे तुरंत घर खाली करने को कह दिया।अब रोमी काफी परेशान हो उठी। दिल्ली जैसे शहर में तुरंत घर मिलना आसान नहीं था। मोहित ने उसकी समस्या का हल ढ़ूॅंढ़ते हुए कहा -“रोमी!मेरा फ्लैट दो कमरे का है,तुम चाहो तो तत्काल एक कमरे में शिफ्ट हो सकती हो।”
रोमी के लिए बहुत ही असमंजस की स्थिति थी। उसने कहा -“मोहित!अगर मेरे माता-पिता को पता चलेगा कि मैं एक लड़के के साथ रह रहीं हूॅं,तो वे बर्दाश्त नहीं कर पाएंगे!”
मोहित -“रोमी!पहली बात तो उन्हें जल्दी इस बात का पता नहीं चलेगा।दूसरी बात जब तुम्हें ढ़ंग का घर मिले तो शिफ्ट हो जाना।”
आखिरकार रोमी मोहित के फ्लैट में शिफ्ट हो गई। कुछ समय तक तो दोनों ने दूरियाॅं बनाऍं रखीं, दोनों अलग-अलग कमरों में सोते थे,परन्तु साथ-साथ रहते हुए जवानी की आग में झुलसने से भला कैसे बच सकते थे! भावनाओं में बहकर दोनों के बीच जिस्म की दूरियाॅं मिट चुकी थी।अब दोनों लिव-इन रिलेशनशिप में रहने लगें।रोमी के माता-पिता उस पर शादी करने का दवाब बनाने लगें।रोमी ने मोहित की बात छिपाते हुए माता-पिता से कहा -“अभी मेरा प्रमोशन होनेवाला है,उसके बाद शादी करुॅंगी।”
बेटी की बात सुनकर उसके माता-पिता उसके लिए चुपचाप लड़का देखने लगें।
कुछ दिन बाद संयोगवश दफ्तर में रोमी का प्रमोशन हो गया, परन्तु मोहित का नहीं।अब मोहित को रोमी की हरेक बातों में इगो की बू नजर आने लगी।बेवजह वह रोमी पर शक करने लगा।रोमी ने एक दिन उससे कहा -“मोहित!अब हमें शादी कर अपने रिश्ते को नया नाम देना चाहिए!”
मोहित ने टालते हुए कहा -“अभी मैं शादी के लिए मानसिक रूप से तैयार नहीं हूॅं।”
रोमी-” हम चार साल से साथ रह रहें हैं।अब और मैं अपने माता-पिता से बहाने नहीं बना सकती!”
मोहित ने कुछ नहीं कहा। चुपचाप बाहर निकल गया।प्रमोशन के बाद से दोनों के दफ्तर अलग हो गए थे,इस कारण मोहित काम का बहाना बनाकर देर रात को घर लौटता। धीरे-धीरे उसका व्यवहार बदल गया था। मोहित ने उससे कहा कि अगले सप्ताह वह घर जा रहा है।रोमी ने कहा -“अच्छी बात है!घर जा रहे हो तो हमारी शादी की बात करके आना।!
मोहित -“ठीक है!”
अगले दिन रोमी बाजार गई, अचानक से उसकी मुलाकात अपनी दोस्त निया से हुई,जो मोहित के दफ्तर में काम करती थी।निया ने उसे गले लगाते हुए कहा -“इतने दिनों तक साथ रहने के बाद तुमने कितनी आसानी से मोहित को छोड़ दिया?”
रोमी -“क्या मतलब?छोड़ दिया। मैं कुछ समझी नहीं!”
निया -“मोहित अगले सप्ताह शादी करने घर जा रहा है! दफ्तर में उसने शादी की पार्टी दी है।”
निया की बातें सुनकर रोमी की तो ‘काटों तो खून नहीं’ वाली स्थिति हो गई।उसने किसी तरह खुद को सॅंभाला और घर आकर मोहित का इंतजार करने लगी।
देर रात मोहित घर आया।रोमी ने गुस्से में पूछा -” मोहित!तुमने मेरे साथ इतना बड़ा धोखा किया है? मैंने तन -मन और धन से तुम्हें अपना माना और और तुमने मेरे साथ इतना बड़ा विश्वासघात किया है! शादी की बात टालकर तुम घर शादी करने जा रहे हो?”
मोहित ने निर्लज्जता से कहा -“रोमी!तुम मेरी बीबी नहीं हो,पहले अपनी आवाज नीची करो। हमारे परिवार की समाज में बहुत इज्जत है।वे ऐसी लड़की को बहू बनाना हर्गिज स्वीकार नहीं करेंगे,जो पहले से लिव इन में रहती हो। मैं तुम्हें अपने बंधनों से आजाद करता हूॅं।तुम भी माता-पिता की पसंद से शादी कर लेना।”
मोहित की बातों का उसे अपने कानों पर विश्वास ही नहीं हुआ।उसे ऐसा महसूस हुआ मानो उस समय दुनियाॅं की सबसे असमर्थ नारी वही हो, परन्तु तत्क्षण ही उसने गुर्राते हुए कहा -“मोहित!मुझे असमर्थ अबला नारी समझने की भूल मत करना। मैं तुम्हारे दिऍं धोखे से टूटूॅंगी नहीं और न ही ज़िन्दगी के किसी मोड़ पर तुमसे मिलने की कामना करूॅंगी।ऐसे कापुरुष को जीवनसाथी न बनाकर मैं खुद को खुशनसीब ही समझूॅंगी।आज के बाद तुम भी मेरी तरफ से आजाद हो।”
मोहित गुस्से में घर से बाहर निकल चुका था।
रोमी अब एक पल भी यहाॅं नहीं रुकना चाहती थी।अगले दिन रोमी सोकर उठी तो उसे ऐसा महसूस हुआ कि वह सुबह बहुत अजीब है।उसके मन की भाॅंति सुबह भी आवाज रहित थी।सबकुछ खामोश।भयानक सन्नाटा।अभी तक पंछियों की चहचहाहट छोड़कर अन्य किसी की आवाज नहीं थी।जब मनुष्य दुखी होता है,तो अपनों का सानिध्य सबसे अधिक चाहता है,पर ऐसे दुखद समय में अपनों का सानिध्य न मिले तो दिल बुरी तरह टूट जाता है।अकेलापन,बेबसी बुरी तरह मन को कचोटने लगता है।ऐसे कठिन समय में रोमी ने अपने परिवार के पास जाने का निर्णय किया।
अगले दफ्तर जाकर रोमी ने अपनी नौकरी से इस्तीफा दे दिया और अपने माता-पिता के पास चली गई।ऊपर से रोमी खुद को मजबूत दिखाने की कोशिश कर रही थी, परन्तु मोहित का विश्वासघात उसे अंदर-ही-अंदर खाऍं जा रहा था।उसे उदास देखकर उसके माता-पिता ने कारण जानने की कोशिश की, परन्तु उसने बस इतना ही कहा -” माॅं!अभी मैं नौकरी करने में असमर्थ हूॅं, बाद में कुछ करने का सोचूॅंगी।”
उसकी बड़ी-बड़ी ऑंखों में अनिश्चितता के बादल लहराने लगें।बेवफाई की लकीरें ऑंसुओं की लड़ियाॅं बनकर उसकी ऑंखों में तैरतीं रहतीं।उसे आगे का कोई मार्ग नहीं दिख रहा था।उसकी उदासी को भाॅंपकर उसकी माॅं ने जब उसे गले लगाया,तो मन पर जमी हुई बर्फ़ स्वत: ही पिघल उठी।उसके माता-पिता ने उसे जिन्दगी में आगे बढ़ने के लिए प्रेरित किया।
वक्त बड़े -से-बड़े घाव को भर देता है। माता-पिता का प्रोत्साहन पाकर नवजीवन का उत्साह उसके मन में हिलोरें लेने लगा।कुछ समय बाद रोमी ने अपनी मेहनत के बल पर I.A.S की परीक्षा पास कर ली और उसे आयकर विभाग मिला , जहाॅं उसने ईमानदारी से काम किया।अपने कलीग रमण से उसने शादी कर घर बसा ली और उसके दो प्यारे-प्यारे बच्चे हुए ।रमण भी प्यार में धोखा खा चुका था,इस कारण दोनों टूटे दिल एक-दूसरे की भावनाओं को अच्छी तरह समझते थे। दो बच्चे आ जाने से उनकी ज़िंदगी खुशियों से भर गईं।
कुछ वर्ष पूर्व हृदयगति रुकने से रमण की मौत हो गई।रमण के प्यार और विश्वास के कारण उसने जिंदगी में कभी खुद को असमर्थ महसूस नहीं किया।उसे हमेशा महसूस होता है कि एक मजबूत संबल के रूप में रमण सदैव उसके साथ है।
उसी समय आकर मालती ने उसे चाय के लिए जगाया।अकचकाकर वह उठ बैठी।कड़वी यादों का धूल झाड़कर वर्त्तमान में आ गई।रमण की प्यारी यादों की लहर उसके हृदय में समंदर का एहसास करा रही थी।वह मुस्कुरा उठी।
समाप्त।
लेखिका -डाॅ संजु झा (स्वरचित)