बुची की माँ कहा हो ? चलो जल्दी से नई बहू आ गईं है सभी तुम्हारा इंतजार कर रहे है। चलो चलकर अपनी पोता बहू को परीछ कर उतारो।ना बेटा ना मै नई बहुरिया के सामने नहीं जाउंगी। मै आज तुम्हारी एक भी बात नहीं सुनूंगा और ना ही मानूंगा। मै अब बच्चा नहीं रहा, आज मेरी भी बहू आ गईं है। अब मै भी बेटा बहू का मालिक बन गया हूँ।तुम्हे चलना ही होगा बहू को आशीर्वाद देकर गृहप्रवेश करवावोगी तब ही वह दोनों अंदर आएंगे।दादी के आशीर्वाद से नए जीवन की शुरुआत करेंगे तो उनके जीवन मे सब शुभ ही शुभ होगा।माँ बेटे एक दूसरे को अपनी अपनी मान्यता के द्वारा अपनी बात समझाने की कोशिश कर रहे थे।माँ की सोच थी कि वह विधवा है इसलिए उसे नई बहू के सामने नहीं जाना चाहिए और बेटा कह रहा था कि जिसका घर बेटा -बहू, पोता -पोती, बेटी-दामाद से भरा हो वह अभागन कैसे हो सकती है?इसलिए वह अपनी माँ को बहू को सबसे पहले आशीर्वाद देने के लिए बाहर ले जाने के लिए आया था। इन दोनों माँ बेटे के बातचीत मे जब काफ़ी देर होने लगी तो उनकी बहू अंदर आई और आकर बोली माँ जल्दी से चलिए बच्चे कितनी देर तक बाहर ख़डे रहेगे? बेटा बहू के बहुत जोर देने पर दादी बाहर आई और आकर दोनों को आशीर्वाद दिया फिर उन्हें लेकर पूजा घर मे गईं सभी देवताओं को प्रणाम करवाने के बाद उन्हे उनके दादा दादी के तस्वीर के पास लेकर गईं और कहा बच्चो इनका आशीर्वाद ले लो। अपने पति और सौतन की तस्वीर देखकर पुरानी यादो मे खो गईं।पिता के आर्थिक रूप से कमजोर होने के कारण उनकी शादी एक विधुर से हुई थी जिसका एक दो वर्ष का बेटा भी था। शादी तो मजबूरी मे उन्होंने कर लिया था पर सौतन का बेटा उन्हें एक आँख भी नहीं भाता था।बेटा जब भी माँ कहता तो वे गुस्सा हो जाती और कहती कि “मै तेरी माँ नहीं हूँ।”बच्चे को समझ नहीं आता था कि वह उन्हें क्या कहे? बच्चे का सारा काम उसकी दादी और बुआ ही करती थी। शादी के एकवर्ष बाद ही उन्हें एक बेटी हुई।सभी उसे प्यार से बुची कहते थे। बस बच्चे नें माँ को बुची की माँ कहना शुरू कर दिया जो आज तक जारी है। इसपर माँ को कोई आपत्ति नहीं थी। समय अपनी गति से बीतता रहा बच्चे की बुआ की शादी हो गईं, उसकी दादी की मृत्यु हो गईं पर माँ को वह फूटी आँख नहीं सुहाया। इसलिए बच्चे को हॉस्टल भेज दिया गया पर बच्चे को अपनी माँ से कोई शिकायत नहीं थी।उसने बहन को भी सदा अपनी बहन की तरह प्यार किया। उसने अपनी पत्नी को पहले दिन ही समझा दिया था कि यदि उसने यह सोच रखा है कि सौतेली सास या सौतेली ननद है तो वह इस बात को अपने मन से निकाल दे क्योंकि वह इस बात को बर्दास्त नहीं करेगा।पिता की असमय मृत्यु होने के बाद उसने अपनी बहन का बहुत ही अच्छे से विवाह किया। माँ के मना करने के कारण और पत्नी के समझाने पर की देखो तुमने यदि जबरदस्ती माँ से बुची का कन्यादान करवाया और बुची के जीवन मे कुछ गलत हुआ तो सभी तुम्हे ही दोष देंगे।इसलिए उसने बहन का कन्यादान किया पर आज जब अपनी बहू को परिछने की बात आई तो उसने किसी की भी एक ना सुनी और अपनी माँ से ही यह शुभ काम करवाया।माँ नें कभी भी बेटे को प्यार नहीं दिया पर जब जब उन्हें बेटे की जरूरत पड़ी बेटे नें उनका साथ दिया और सम्मान किया। यह सब सोचते सोचते उनकी आँखो से ऑसु निकलने लगे।उन्हें रोते देखकर बेटे नें कहा बुची की माँ रो क्यों रही हो? उन्होंने रोते रोते कहा मेरी गलती की सजा मुझे कब तक देते रहेगा अब तो माँ कह दे। मै सिर्फ बुची की ही नहीं तुम्हारी भी माँ हूँ। हाँ माँ यह सही है।मै कितना भी बड़ा हो गया हूँ तो क्या यह बात तुम्हारी मै जरूर मानूंगा माँ। दोनों माँ बेटे के आँखो से आँसू बह रहे थे और सभी आज पचास वर्ष बाद माँ बेटे के हुए मिलन को देख रहे थे।
मुहावरा —-एक आँख ना भाना
लतिका पल्लवी