मां, मां कहां हो तुम इधर बाहर धूप में बैठी हूं । लो ये पेपर साइन कर दो पेंशन निकलवानी है।अरे बेटा हर बार मेरी पेंशन निकाल लेता है मुझे एक पैसा नहीं देता।बेटा मेरा भी तो कुछ खर्चा है।तुम्हारा क्या खर्चा है मां।मिल तो रहा है घर में खाने पीने को और रहने को और क्या चाहिए।बेटा अब इन बूढ़ी हडि्डयों में ज्यादा ताकत नहीं है। डाक्टर कहता है कि फल खाओ ,दूध पिओ पर मुझे कुछ मिलता ही नहीं है। अच्छा अब मेरी शिकायत मेरे पति से करेगी बहू संगीता बोली , मिलता तो है सब्जी रोटी और क्या चाहिए।अरे मैं शिकायत नहीं कर रही । लेकिन मैंने तुमसे कितनी बार कहा कि रात को मुझे थोड़ा दूध दे दिया करो ,तो तुम कहती हो दूध खत्म हो गया। हां तो कहां से दूध दूं आपको । बच्चों को दूध शिवम् को दूध दूं जो दिनभर बाहर काम करते हैं कि आपको दू इतनी मंहगाई है कहां से करूं मैं।अरे मेरी सारी पेंशन तो ले लेते हो तुम लोग उसी में से थोड़ा मेरे लिए भी खर्च कर दो।जरा सी पेंशन मिलती है उसमें बस आपका खाना पीना और दवा दारू ही हो पाता है बस। तभी शिवम् बोल पड़ा हां मां कहां हो पाता है इतना सबकुछ। बच्चे बड़े हो रहे हैं इस समय उनको दूध की ज्यादा जरूरत है।आपको क्या करना है आप तो दिनभर घर में आराम से पड़ी रहती हो।
ओमप्रकाश जी की मृत्यु के बाद कमला जी बिल्कुल असहाय हो गई थी बेटे बहू पर पूरी तरह से आश्रित हो गई थी।बेटा शिवम् किसी कंपनी में एकाउंटेंट का काम देखता था। पत्नी और दो बच्चे थे।एक बेटा दस साल का और एक सात साल का था। ओमप्रकाश जी सरकारी स्कूल में टीचर थे।उन्हीं की पेंशन कमला जी को मिलती थी।पति के जाने के बाद कमला जी बहुत बीमार पड़ गई थी ओमप्रकाश जी पत्नी का बहुत ख्याल रखते थे। उनकी अनुपस्थिति कमला जी को बहुत आहत कर रही थी। ओमप्रकाश जी सारी तनख्वाह घर को मैनेज करने में खर्च कर देते थे। ओमप्रकाश जी के जाने के बाद सारा खर्चा शिवम् पर आ गया था एक मांजी को छोड़कर सारा खर्चा खुद शिवम् का ही था उसी के बीबी बच्चे थे।तो करना तो उसी को पड़ेगा न। ओमप्रकाश जी के जाने के बाद सारी मां की पेंशन निकलवा कर शिवम् अपने पास रख लेता था।एक पैसा भी कमला जी को नहीं देता था।हर बात के लिए कमला जी को पैसे मांगने पड़ते थे । यहां तक कि मंदिर भी जाना हो तो बेटा कुछ पैसे दे दो मांगती थी। अच्छा नहीं लगता था लेकिन क्या करें मजबूरी थी।
शिवम और संगीता को मां का रहना खाना पीना दवाई इलाज सब भारी लगने लगा था। हर चीज पर रोक-टोक लगाने लगे थे। आज शाम को संगीता और शिवम् को दोस्त के बहन की शादी में जाना था। संगीता कमला से बोल गई कि हम दो रोटी सुबह की और सब्जी रखदे रहे हैं आप खा लेना। हम लोग शादी के लिए जा रहे हैं। रात में जब कमला रसोई में गई खाना लाने को तो सब्जी निकालने की फ्रिज खोला ।सामने दूध का भगोना देखकर वो अपने को रोक नहीं पाई। कई दिनों से दूध पीने की इच्छा हो रही थी। उन्होंने सब्जी की कटोरी फ्रिज में ही रख और एक कटोरी भर के दूध निकाला थोड़ी उसमें शक्कर डाली और उसी से रोटी खा लिया। वैसे दूध भी कोई बड़ी चीज नहीं है लेकिन जब किसी चीज की इच्छा हो खाने की और वो ना मिले तो उसकी लालसा और बढ़ जाती है।
आज कमला जी का मन तृप्त था दूध रोटी खाकर वह गहरी नींद में सो गई। और जब सुबह उठी तो संगीता चिल्ला रही थी सारा दूध खत्म हो गया । इतने में कमला जी सामने दिख गई तो संगीता चिल्ला पड़ी क्या मां सारा दूध खत्म कर दिया। इतना सारा कहां बहू बस एक कटोरी ही तो लिया था, क्यों लिया था क्यों सब्जी से रोटी नहीं खाई जा रही थी क्या ।अब बच्चों को कहा से दूध दूं । शिवम भी बोलने लगा क्या मां बच्चों जैसी हरकतें करती हो ।अब कमला जी से रहा नहीं गया वह बोल पड़ी तेरे पापा के समय तो कोई दिक्कत नहीं थी सब चीजें भरी पूरी रहती थी घर पर कभी कोई चीज की कमी नहीं रहती थी। अब ऐसा क्या हो गया है। मां अब आपकी सारी जिम्मेदारी मुझ पर आ गई है। तो पेंशन सारी ले तो लेता है उसके बदले में क्या मैं थोड़ा सा दूध भी नहीं ले सकती ।मां-बाप की बद्दुआओं से डरो बेटा, उनकी मन से निकली आहे कभी खाली नहीं जाती भले वह अपने बच्चों को बोलकर बद्दुआ नहीं देती लेकिन उनसे एक-एक आंसू जो बहते पानी है ना वो मन से निकली हुई बद्दुआ ही होती है जिससे औलाद कभी बच नहीं सकती ।
आज बिना खाए पिए कमला जी कमरे में पड़ी रही कोई पूछने भी नहीं आया।कमला जी सोचती रही की अब क्या किया जाए यहां तो बहू बेटों ने जिंदगी हराम कर रखी है ।उन्होंने कुछ सोचा और पेंशन के कागज और पासबुक और जो भी कुछ था उसे लेकर सुबह-सुबह घर से निकल गई। और थाने पहुंच गई सारी आप बीती अपनी बताई और पलिस वालों से बोला मेरा हरिद्वार का टिकट करा दो किसी आश्रम में रह लूंगी, ईश्वर का भजन करूंगी और अपनी पेंशन के कुछ पैसे देकर अपने खाने-पीने की व्यवस्था करलूंगी और अपनी बची हुई जिंदगी को ईश्वर के हवाले कर दूंगी।
सुबह जब घर में मां नहीं दिखी तो संगीता ने शिवम् से कहा तुम्हारी मां कही चली गई दिखाई नहीं दे रही है। पर कहां कहां जा सकती है मां यही कहीं होगी अभी आ जाएंगी लेकिन दिन बीत गया और कमला नहीं आई ।फिर शाम को शिवम ने थाने में जाकर रिपोर्ट लिखवाई तो पता लगा कि कमला यहां आईथी और वो हरिद्वार गई है।शिवम घर आकर संगीता को बताया है तो संगीता बोली जाने दो जान छूटी। तभी संगीता का छोटा बेटा आया और बोला मां ये दादी कहां चली गई, जाने दो बेटा चली गई तो अच्छा है । नहीं मां आप और पापा उनको परेशान करते थे , खाना नहीं देते थे ठीक से ।आप लोग गंदे हो।जब आप लोग बूढ़े हो जाओगे न तो हम भी आप लोगों को ऐसे ही रखेंगे। सुनकर संगीता और शिवम् की आंखें फटी रह गई बच्चो के स्कूल जाने के बाद शिवम् संगीता से बोला संगीता ये ठीक नहीं है।घर में मां के साथ जो कुछ भी हुआ उसका बच्चों पर गलत असर पड़ रहा है।हमें अपनी गलतियों को अभी सुधारना होगा नहीं तो बहुत देर हो जाएगी।
संगीता और शिवम् मां की फोटो लेकर हरिद्वार गए और आश्रम दर आश्रम उनको ढूंढते रहे। आखिर में उनकी खोज पूरी हुई और मां एक आश्रम में मिल गई।शिवम मां के गले से लगकर माफी मांगने लगा। मुझे माफ कर दो मां गलती हो गई। संगीता भी माफी मांगने लगी ।गोलू और छोटू भी दादी से लिपट गए। दादी घर चलो ना । नहीं बेटा अब मैं घर नहीं चलूंगी। मुझे यहां सुकून मिल रहा
है।अब जिंदगी के कितने दिन बचे हैं ,बस जो कुछ समय बचा है उसमें ईश्वर का नाम ले लूं ।हे प्रभु बच्चों को सही समय पर सही रास्ता दिखा दिया उसका बहुत बहुत धन्यवाद मेरे प्रभु।
शिवम बेटा अब मुझे यही रहने दें कुछ दिन ,मन को शांति मिल रही है जब मेरा मन करेगा तो आ जाऊंगी तुम लोगों के पास और नहीं तो तुम लोग आ जाना हमसे मिलने। नहीं दादी घर चलो।जाओ बेटा बच्चों को लेकर मैं अभी कुछ दिन यही रहूंगी।
आज संगीता और शिवम् के मन से बोझ हल्का हो गया मां से माफी मांगकर। दूसरी तरफ ग्लानि से भी मन भर उठता था कि कितना गलत कर रहा था मैं मां के साथ। मां बाप हमारे जन्मदाता है।उनके मन को इतना दुखी न करें कि उनके मन से बद्दुआ निकले हम बच्चों के लिए। जानते हैं कि कोई भी मां-बाप अपने बच्चों को बद्दुआ नहीं देते। लेकिन जो बोलकर नहीं दी जाती अंदर ही अंदर से निकलती है ऐसी बद्दुआओं से बचकर रहें । क्यों कि मां-बाप का न तो आशीर्वाद खाली जाता है और न ही बद्दुआ
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मंजू ओमर
झांसी उत्तर प्रदेश
10अकटूबर