दरवाजे की घंटी बजती तो मीता ने दरवाजा खोला, देखा सामने उसकी सासू मां खड़ी थी। मीता बोली अरे मांजी आप हां बेटा,आइये अंदर आइए। कहां से आ रही है आप मीता ने निर्मला जी से पूछा ,मत पूछ बेटा और इतना कहकर रोने लगी। तभी मीता ने उन्हें चुप कराया और चाय नाश्ता लेकर आ गई।
चाय नाश्ता के बाद निर्मला जी को मीता ने कमरे में लिटा दिया।और फिर मीता अपने काम में लग गई।शाम को जब आफिस से नितिन आया तो पता लगा कि मां आई है,वो मां से मिलने के लिए कमरे में गया तो पूछ बैठा अरे मां आप,आप ठीक तो है न।और ये अचानक कैसे बस निर्मला जी रोने लगी।बेटा मुझे माफ कर दें मैंने मीता के साथ बहुत ग़लत किया ।
कोई बात नहीं मां आप परेशान न हों और यहां आराम से रहे।अब मीता के बेहतर देखभाल से निर्मला जी ठीक हो रही थी और बहुत कमजोर सी हो गई थी । यहां खुश भी रहने लगी थी।
निर्मला जी के दो बच्चे थे एक बेटा और एक बेटी। निर्मला जी के पति प्रकाश जी की बहुत पहले ही मृत्यु हो गई थी। उनकी किराने की दुकान चलती थी
। प्रकाश जी की जब मृत्यु हुई तो बच्चे इतने बड़े नहीं थे कि वो दुकान संभाल ले।तो निर्मला जी ने खुद ही दुकान संभाल ली ।उस समय बेटा नितिन 12 वर्ष का और बेटी सिया 10 वर्ष की थी। निर्मला जी स्कूल के बाद नितिन को दुकान में भी लगाती थी जिससे वो भी दुकान का काम धीरे धीरे सीख जाएं। पढ़ाई के साथ साथ नितिन दुकान भी संभालने में माहिर हो गया था।
अब दोनों बच्चे बड़े हो गए थे । निर्मला जी सोच रही थी कि अब बच्चों के शादी व्याह करा जाए। उन्होंने पहले बेटी की शादी करने की सोची इस साल सिया फैशन डिजाइनर का कोर्स पूरा कर लेगी।वो लड़के की तलाश में थी कि तभी एक दिन सिया एक लड़के को लाकर मां से मिलवाती है ,
मां इससे मिलों में गौरव है मेरे साथ ही फैशन डिजाइनर का कोर्स कर रहा है ।हम दोनों एक दूसरे को पसंद करते हैं और शादी करना चाहते हैं।पर बेटा, पर वर कुछ नहीं ।गौरव के जाने के बाद निर्मला जी ने सिया से कहा बेटा लड़का कैसा है, क्या करता है,घर खानदान कैसा है इत्यादि । बहुत से सवाल एक साथ कर डाले।
वो मेरे साथ ही फैशन डिजाइनर कर रहा है और हम दोनों मिलकर एक बुटिक खोलैगे और साथ साथ काम करेंगे अभी तो वो अकेले रहता है उसके मां पिताजी गांव में रहते हैं।
फिर सिया की ज़िद के आगे सिया और गौरव की शादी हो गई। शादी के बाद गौरव सिया को लेकर गांव गया मां पिताजी से मिलवाने।गौरव की भी एक बहन थी जिसकी शादी वहीं गांव में भी हुई थी। कुछ दिन गांव में रहने के बाद गौरव सिया को लेकर वापस आ गया । यहां गौरव एक कमरे के किराए के मकान में रहता था। जहां खाने पीने की भी कुछ व्यस्थता नहीं थी तो सिया गौरव को लेकर यहां मां के घर आ गई यह कहकर कि अपना बुटिक खोलकर अपने लिए रहने की व्यवस्था अलग कर लेंगे।
सिया की शादी के छै महीने बाद ही नितिन की शादी हो गई।एक अच्छी लड़की रिश्तेदारी में मिल गई थी तो नितिन की शादी कर दी गई। मीता नाम था उसका। देखने सुनने में बहुत ही सुन्दर , रंग तो दूध जैसा सफेद था मीता का।और बहुत व्यवहार कुशल थी मीता। ससुराल आकर घर को धीरे धीरे अच्छे से संभालना शुरू कर दिया मीता ने। किराने की दुकान भी अच्छी चलती थी।बचत करके घर चलाती थी मीता।और जो कुछ ज्यादा आमदनी हो जाती दुकान पर तो नितिन वो पैसे मां के पास या उसके नाम से बैंक में जमा करा देता। कुछ एफ डी भी करा देता।
इधर सिया मीता के कामों में रोक-टोक करने लगी ।और गौरव की गंदी नजर भी मीता पर रहने लगीं।घर के किसी काम को हाथ न लगाती थी सिया बस आर्डर करती रहती थी। मां को भी भड़काती रहती सिया कि कोई काम में हाथ न लगाया करो ये सब काम बहुओं का होता है। मीता पर लगाम लगाकर रखो नहीं तो आपको ही घर से बेघर कर देगी ।
अब गौरव सिया के कान भरने लगा कि तुम्हारी मां के पास पैसा है उनसे मांगों तो हम लोग अपना कुछ बिजनेस कर पाए नहीं तो ऐसे ही घूमते रह जाएंगे। सिया को मालूम था कि मां के पास बैंक में पैसे हैं और एफ डी भी है। सिया ने मां से कहा मां हम लोगों को कुछ पैसे दो हम लोगों को अपना काम शुरू करना है। लेकिन बेटा वो नितिन के पैसे है । नहीं मां वो तुम्हारे पैसे हैं बेटी की मदद नहीं करोगी क्या बहला फुसला कर पांच लाख रुपए ले लिए मां से सिया ने।
मीता प्रेगनेंट थी उसको खाना हजम नहीं हो रहा था उल्टियां आ रही थी तो वो कमरे में जाकर लेट गई।इधर रसोई में चाय नाश्ता न बना देखकर सिया बिफर पड़ी ।जाकर कमरे में बोली ये देखो मैडम जी आराम कर रही है।अरे नाश्ता कौन बनाएगा।वो दीदी कुछ पकता है तो मुझे उल्टियां आती है इसलिए नहीं बनाया। तभी निर्मला जी चिल्ला पड़ी तो क्या महारानी नौ महीने तक आराम ही करेगी क्या। बेटी दामाद को नाश्ता खाना कौन देगा।चल जाकर बना नाश्ता। तभी नितिन बोल पड़ा आप या सिया भी तो बना सकती हो नाश्ता। अभी उसकी तबीयत ठीक नहीं है। अच्छा बहू के रहते मां या बेटी नाश्ता बनाएगी। मीता कुछ न बोली और उठकर नाश्ता बनाने लगी। नाश्ता बनाते हुए भी मीता को उल्टी आ रही थी ।बस नाश्ता करके सिया और गौरव बाहर निकल गए ।इधर उधर की ख़ाक छानते और घर वापस आ जाते।काम धाम कुछ न शुरू हो रहा था। मां को फुसलाकर धीरे धीरे पैसे निकलवाती रहती थी सिया।
आज निर्मला जी की तबीयत ठीक नहीं थी बुखार आ रहा था कई दिनों से। देखभाल मीता कर रही थी सिया कुछ भी नहीं कर रही थी।जब नितिन घर आ जाता दुकान से तो बस दिखावे के लिए मां के पास बैठ जाती। अभी अभी मां के लिए मीता पतली सी खिचड़ी बनाकर लाई थी और कह रही थी मां जी खिचड़ी खा लो। तभी सिया ने मीता के हाथ से खिचड़ी ले ली और बोली जाओ तुम यहां से मेरे और गौरव के लिए खाना बनाओ ,मैं खिला दूंगी खिचड़ी।ये नहीं कि बैठकर चम्मच से खिलाएं खिचड़ी बस लेकर खड़ी हो गई,लो मां खिचड़ी खा लो।
नौ महीने बाद मीता ने एक बेटी को जन्म दिया । डिलिवरी के पंद्रह बीस दिन बाद ही सिया कहने लगी अब दिनभर लेटी ही रहोगी क्या उठो और कुछ काम धाम करो । कबतक मां अकेले करती रहेगी और मुझसे तो कोई उम्मीद न ही रखना। इतना काम पड़ा हुआ से। नार्मल डिलीवरी हुई है तो उसमें क्या इतना आराम करना ।जाओ रसोई में जूठे बर्तन पड़े हैं धोओ उन्हें। मीता ने कहा बहुत कमजोरी है दीदी , कोई कमजोरी नहीं है बस ये तो सब बहाने है ।
बच्ची को रोता हुआ छोड़कर मीता काम में लगी रहती थी। एक दिन मीता रसोई में खाना बना रही थी कि तभी गौरव आ गया और उसने मीता का हाथ पकड़ लिया । मीता हाथ छुड़ाने की कोशिश करने लगी कि तभी चाय लेने के लिए नितिन रसोई में आ गया तो उसने देखा कि गौरव मीता के साथ छेड़खानी कर रहा है। खबरदार गौरव जी आपने यदि मीता पर गलत नजर डाली अच्छा नहीं होगा।इस बात को लेकर गौरव ने घर में हंगामा कर दिया कि नितिन हमारी बेइज्जती कर रहा है ,गलत इल्जाम लगा रहा है मुझपर। मीता के ही चाल चलन ठीक नहीं है।इस बात को लेकर सिया ने घर में खूब हंगामा काटा और मां से बोली मां मैं अब इस घर में नहीं रहूंगी ,मां अब तुम फैसला कर लो ।अब मां क्या फैसला करें उसका दिमाग तो सिया ने खराब कर रखा था।
घर में मां को कुछ बोलते न देखकर नितिन ने ही फैसला किया कि वो इस घर से चला जाएगा। जहां उसकी दुकान थी उसी के पीछे की साइड में एक बड़ा कमरा , बाथरूम और छोटा सा आंगन था। नितिन मीता को लेकर वहां चला गया।और निर्मला जी से बोला मां तुम्हें भी चलना हो तो चलों। लेकिन सिया ने मां को नहीं जाने दिया।
अब धीरे धीरे पैसे मां से निकलवा कर सिया अपने बैंक में जमा करने लगी । उसकी नीयत मकान पर भी थी ।एक दिन स्टैम्प पेपर बनवा कर गौरव ने मां को दूध में नींद की गोलियां खिलाकर अंगूठा लगवा लिया ।और जो कुछ भी एफ डी वग़ैरह थी सब अपने कब्जे में कर लिया।
घर का अकेले काम करते करते निर्मला जी बीमार पड़ गई थी उन्हें अस्थमा का अटैक आ गया था घर पर कोई नहीं था।अब निर्मला जी अकेले ही बीमारी हालत में पड़ी रहती सिया पूछने भी न आती और नहीं डाक्टर को दिखाती। तभी निर्मला जी के कानों में सिया और गौरव की बात करने की आवाज कानों मे पड़ी वो आपस में बात कर रहे थे कि सबकुछ तो अपने कब्जे में आ गया है अब इस बुढ़िया का क्या करें , हां वही तो अब मां का क्या करें मुझसे तो नहीं होती उनकी देखभाल।इनको इनके बेटे के पास भेज दो गौरव बोला।अब तो निर्मला जी भूखी प्यासी पड़ी रहती और सिया और गौरव दिनभर घर से बाहर रहते।आज उनको अपनी बहू याद आने लगी। कितना ध्यान रखती थी मीता ।मैं तो व्यर्थ में ही सिया के बहकावे में आ गई। मैंने सिया के चक्कर में पड़कर अपनी जिंदगी खराब कर ली। कैसा जमाना आ गया है लोग कहते हैं कि यदि बहू बेटा मां की सेवा नहीं करते तो बेटी तो करती ही करती है । लेकिन यहां तो उल्टा हो गया बेटी ही मेरा सबकुछ लूट ले गई।
सच ही कहा हे बुढ़ापे में बेटी नहीं बहूं ही सहारा बनती है वहीं सेवा करती है। मैंने बहुत बड़ा धोखा खाया है बेटी से । निर्मला जी आज हिम्मत करके बहू बेटे के पास आ गई थी । बहुत शर्मिन्दा भी अपने किए पर थी। लेकिन मीता बहुत अच्छी थी उसने बिना किसी ताने उलाहने के मां जी को अपना लिया था।उनका अच्छे से इलाज करा कर खूब सेवा की और निर्मला जी स्वस्थ हो गई है।
नितिन भी सिया की सब सच्चाई जानकर वकील से सलाह करके कोर्ट में मकान के लिए नोटिस लगा दिया है जो कुछ संभव है अपना पैसा मकान वापस पाने को वो सब कर रहा है।
आज पोती को गोद में लेकर सुबह की गुनगुनी धूप में बैठी है निर्मला जी।और मीता ने चाय लाकर दी मांजी चाय पी लिजिए।खुश रहो बेटा मुझसे गलती हो गई तुम्हें पहचानने में मुझे माफ कर देना बेटा । नहीं मां जी मुझसे माफ़ी न मांगे आप बड़ी है आपका तो आशिर्वाद मिलते रहना चाहिए बस इतना कहकर बहू और सास दोनों एक दूसरे के गले लग गई।
मंजू ओमर
झांसी उत्तर प्रदेश
10 अक्टूबर