मैं  असमर्थ नहीं हूं – हेमलता गुप्ता

मां. मैं सोच रहा था इस बार दिवाली पर पीछे के कमरे को सही करवा देते हैं और उसमें एक टीवी भी लगवा देते हैं! क्यों बेटा.. पीछे का कमरा तो हमारा स्टोर रूम है उसको सही करवाने की क्या जरूरत है वह तो अच्छा भला है वैसे भी हम उसमें सोते बैठते थोड़े हैं, क्यों फालतू में हजारों का खर्चा करना! मां …आप मेरी बात समझी नहीं, मैं चाहता हूं

कि अब से आप पीछे वाले कमरे में शिफ्ट हो जाएं आपको तो पता ही है आजकल आपके पोते आदित्य को देखने लड़की वाले आते रहते हैं और आप हमेशा बीच वाले हाल में ही बैठी रहती है, यही सोती हैं जिसके कारण पूरा हॉल अस्त व्यस्त रहता है, लड़की वालों के सामने तो कम से कम अपनी छवि अच्छी होनी चाहिए तभी तो अपनी लड़की इस घर में देंगे

और मां  आपको कोई तकलीफ भी नहीं होगी पीछे के कमरे में! बेटा.. अभी तेरे पापा को गए हुए पूरे 2 महीने भी नहीं हुए और तूने घर में रंगाई  पुताई और घर की व्यवस्था को ही बदलने की सोच ली, बेटा मुझे तो कभी-कभी ऐसा लगता है तू तेरे पापा के जाने का इंतजार ही कर रहा था, शायद पापा के सामने तू असमर्थ था यह सब कहने को!

अगर तेरा बस चलता तो तेरे पापा को और मुझे कब का पीछे के कमरे में रखवा देता, अच्छी तरह जानता है तू भी कि तेरे पापा का समाज में और घर में कितना रुतबा था, बेटा कुछ तो सब्र रखता साल तो बीतने देता इतनी भी क्या जल्दी पड़ी थी! मां.. आप मेरी बात को कुछ गलत ही ले रही हो मेरा ऐसा मतलब बिल्कुल भी नहीं है! खैर..

बेटे की बात सुनकर मा ने उसे हां कह दिया और सोचने लगी… 2 महीने पहले तक सब कुछ कितना अच्छा चल रहा था उसके पति के सामने कोई चू  नहीं बोल पाता था घर के सारे निर्णय कुंती जी या उनके पति विमलेश जी लेते थे, उनके निर्णय पूरी तरह से साफ स्पष्ट और निष्पक्ष होते थे, कुंती जी के दो बेटियां और एक बेटा निशांत है

बेटियां शादी करके अपने घर में व्यस्त हैं बेटे की  पत्नी और दोनों बच्चे साथ ही रहते हैं  बच्चे भी शादी लायक हो रहे हैं, निशांत के बेटे आदित्य ने  बीटेक करके एक कंपनी पकड़ ली है जिसमें ज्यादा तो नहीं पर ₹50000 महीने की सैलरी मिल जाती है और निशांत तो अपने पापा का अच्छा खासा बिजनेस संभाल रहा है, घर में कोई  कमी नहीं है, बस अब उसे  मैं ही घर में भारी लग रही हूं

, यह वह  हाल  था जहां अक्सर दोनों पति-पत्नी बैठा करते थे सारे मिलने जुलने वाले भी इसी हाल में आते थे, बहुत बड़ा टीवी लगा हुआ था यह घर का सबसे अच्छा कमरा था, कुंती जी को इस हाल से विशेष लगाव था, बच्चों की खुशी के लिए कुंती जी पीछे के कमरे में रहने चली गई, अब उनसे घर में कोई भी राय मशवरा लेना जरूरी नहीं समझता था,

इतनी जल्दी तो कपड़ों का रंग भी नहीं उडता जिस तरह बेटे बहु ने अपने रंग दिखाने शुरू कर दिए, इतनी मजबूत महिला होते हुए भी पति के जाते ही इतनी असमर्थ क्यों हो गई अपनी मर्जी का कुछ नहीं कर सकती! एक दिन उन्होंने बहू से हलवा बनाने के लिए कहा तब बहू बोली…. मम्मी.. आपको यह हलवा कितना पसंद आता है जब देखो तब आप हलवे की डिमांड करती रहती हैं

अब तो पापा जी भी नहीं है आपकी भी उम्र हो गई है अब तो खाने पीने में परहेज कीजिए, पहले पापा जी भी  भर भर के हलवा खाते थे उस समय  तो हम कुछ कह नहीं पाते थे किंतु  अब तो सारी जिम्मेदारी इनके कंधों पर आ गई है तो सोच समझकर घर चलाना पड़ेगा?

ऐसी कई बातें थी जो  कुंती जी का सीना छलनी कर जाती थी! कई बार सोचती यह घर मेरा है या तो मैं बेटे बहु को अलग रहने के लिए बोल दूं या फिर मैं ही कहीं चली जाऊं, फिर सोचती.. पर मैं जाऊंगी कहां, इनके सिवा मेरा है  ही  कौन? नहीं नहीं… अब जैसा चल रहा है वैसे चलने देते हैं मैं कुछ भी नहीं बोलूंगी!

एक दिन कुंती जी के पोते को देखने वाले आने वाले थे कुंती जी अच्छी सी नई सी साड़ी पहनकर तैयार हो गई क्योंकि उन्हें पता था की सभी जने आदित्य की दादी के बारे में भी पूछेंगे तो दादी को भी अच्छा लगना चाहिए और वह बिल्कुल अच्छे से तैयार होकर बैठी रही, 2 घंटे 3 घंटे 4 घंटे हो गए किंतु कोई दादी को बुलाने ही नहीं आया, कुंती जी ने बाहरजाने की कोशिश की  तो यह क्या…

बाहर से तो कमरे की कुंडी बंद थी अब कुंती जी को माजरा समझ में आ गया कि उसके बेटे बहु नहीं चाहते कि उनकी बूढी मां लड़की वालों के सामने आए, पर बस अब मैं अपने ही घर में बेइज्जत नहीं होना चाहती माना मेरे पति नहीं है रहे किंतु मैं अभी असमर्थ नहीं हूं उसने अपने बेटे बहु को पास बुलाया और बोला ….

बेटा यह जो सारा कारोबार और घर है वह मेरे पति का है, मुझे आज तक बेइज्जत होकर रहना पसंद नहीं आया मैं काफी समय से तुम दोनों का व्यवहार सहन कर रही हूं किंतु अब और नहीं, तुम अपना रहने का ठिकाना कहीं और देख लो मैं अपने लिए कोई अच्छी सी कामवाली लगा लूंगी, मेरे पति इतना तो मेरे लिए छोड़ कर गए हैं

कि मैं अपनी पूरी जिंदगी आराम से व्यतीत कर सकूं, तुमको अपने पिता के जाने के बाद मां इतनी बोझ लगने लग गई कि तुमने एक समर्थ मां को असमर्थ बनाकर एक खिलौने की तरह पटक दिया, नहीं मैं एक स्वाभिमानी महिला हूं और मैं इस तरह से नहीं रहना चाहती मैं अपनी जिंदगी इस तरह नहीं खत्म होना देना

चाहती बाकी तुम समझदार हो,! अगर तुम्हें घर में रहना है तो जैसे पहले पापा थे वैसे ही रहो या फिर अपना ठिकाना कहीं और देख लो! निशांत और उसकी पत्नी ने सोचा मां सही कह रही है अगर हम कहीं बाहर रहने चले गए तो मां  तो फिर भी अच्छे से रह लेंगे लेकिन हम कैसे रहेंगे और फिर उन्होंने अपनी मां से माफी मांगते हुए कहा…

नहीं मां आज से आप जैसे पहले रहती आई हैं वैसे ही रहेगी आप जहां जिस कमरे में भी रहना चाहे आप रह सकती हैं! बेटा तुझे क्या लगता है तू इस तरह से अगर अपने बुजुर्गों को कमरे में बंद कर देगा तो तेरी समाज में इज्जत बढ़ जाएगी, अरे पागल.. बुजुर्गों को सम्मान देने वालों की इज्जत बढ़ती है

ना कि सम्मान  नही करने वालों की और यही संस्कार तेरे बच्चों में भी आएंगे, तेरे बच्चे भी बड़े हो गए हैं कहीं ऐसा ना हो जो तु मेरे साथ कर रहा है कल को तेरे बच्चे तेरे साथ करें! सच में हम बहुत बड़ी गलती करने जा रहे थे

जिस घर में बड़े बुजुर्ग होते हैं वह बेटा तो अपने आप में वैसे ही समर्थ है क्योंकि उसके सिर पर हमेशा अपनेबुजुर्गों का आशीर्वाद जो है, मां मुझे माफ कर देना मैं बहुत बड़ी गलती करने जा रहा था!  कुंती जी भी तो एक मां थी वह  अपने बच्चों को कैसे माफ नहीं करती और अब सब कुछ पहले की तरह हो गया!

     हेमलता गुप्ता स्वरचित

   कहानी प्रतियोगिता (असमर्थ) #मैं  असमर्थ नहीं हूं

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