अपने घर के अंदर की सफाई समाप्त करने के पश्चात् पोर्च को साफ करने के लिए सविता अपने हाथ में पकड़े हुए वायपर से पूरी ताकत से पोर्च का पानी खींचती हुई जैसे ही गेट पर पहुंची कि उसे सामने से उनकी सोसायटी की पिछली गली में रहने वाली अपनी सखी रेखा आती दिखाई दी। असमंजस की स्थिति में सविता हाथ में वायपर लिए दहलीज पर खड़ी रहकर ही उसे आते हुए देखती रही।
उसे हाथ में पानी की पाइप और वायपर पकड़े गेट पर स्वयं सफाई करते देखकर रेखा उसके समीप आकर रुक गई, ‘अरे ,क्या हुआ सविता ? आज तुम खुद ही सफाई कर रही हो ? गृह सहायिका ने काम करने से इंकार कर दिया या आज अचानक दगा दे गई ?’
रेखा की बात सुनकर सविता हँसते हुए तपाक से बोली, ‘नहीं-नहीं री ! नज़र न लगे, लेकिन किस्मत से मेरी काम वाली सहायिका तो बहुत अच्छी और समझदार है। नियमित रूप से समय पर आ जाती है। वह जानती है कि मैं नौकरी करती हूँ और उसके द्वारा बिना बताए छुट्टी कर लेने से मेरे घर की सारी व्यवस्था ही बिगड़ जाती है। अतः वह मुझे बताकर ही छुट्टी करती है। दरअसल कल शाम को उसे अचानक ही अपनी मां के अस्वस्थ होने की सूचना मिली, तो मुझे फ़ोन करने वह अपनी बीमार माँ को मिलने नजदीक के ही गांव में गई है। कल सुबह तक ही वापिस आ जाएगी। आज मेरी छुट्टी थी। सो, अपने पति को ऑफिस और बच्चों को स्कूल भेजकर मैं खुद ही सफाई में जुट गई। अब जितनी सफाई मुझसे हो पाएगी,उतनी मैं कर लूंगी, बाकी कल तो वह आकर संभाल ही लेगी।’
’अरे वाह ! तब तो तुम सचमुच ही भाग्यशाली हो सविता ,लेकिन एक बात बताओ कि जब तुम्हें पहले ही पता था कि आज वह नहीं आने वाली है , तो तुम आस-पड़ोस के किसी अन्य घर में आने वाली किसी सहायिका को कुछ पैसे देकर उससे सफाई करवा सकती थी न ! तुम इतनी अच्छी नौकरी कर रही है। आत्मनिर्भर होने के कारण पैसे खर्च करने में भी पूरी तरह स्वतंत्र एवं समर्थ हो। फिर, इतनी भी क्या कंजूसी करना?’ रेखा ने हँसते हुए व्यंग्य बाण छोड़ा। ‘
सविता उसकी बात का प्रत्युत्तर देती कि इस से पहले ही रेखा पुनः बोल पड़ी, ‘ सविता, सच बोलूं, तो तुम्हें इस प्रकार गीले अस्त-व्यस्त कपड़ों में, हाथ में पानी की पाइप और वायपर लिए सफाई करते देखकर मैं सचमुच हैरान रह गई थी। ठीक ऐसे ही तुम्हें इस स्थिति में देखकर आसपास के लोग भी हैरान होकर तुम्हारे बारे में न जाने क्या सोचेगें ?’
‘क्या सोचेगें ? मतलब ? यही सोचेंगे न कि आज इसकी सहायिका नहीं आई होगी इसलिए खुद सफाई कर रही है, तो इसमें क्या हर्ज है रेखा ! अपने घर का काम स्वयं करना कोई गुनाह है क्या ? अच्छा तुम्हीं बताओ, अभी अपनी युवावस्था में तो हम अपने सहायकों से अपने घर का काम सिर्फ ‘समयाभाव’ के कारण ही करवा रहे हैं न ? अभी हम शारीरिक रूप से अपने घर के कामों को करने में ‘असमर्थ’ तो नहीं हैं न ? फिर, शारीरिक रूप से ‘समर्थ’ होते हुए, आवश्यकता पड़ने पर और पर्याप्त समय होने पर अपना काम खुद करने में शर्म कैसी ? हां, अपने स्वास्थ्य एवं आयु के अनुसार यदि ऐसा संभव न हो पाए ,तो बात अलग है, किन्तु, तुम तो देख रही हो न कि ईश्वर की कृपा से मैं स्वास्थ्य एवं आयु दोनों की दृष्टि से इसके लिए पूरी तरह से ‘फिट एंड फाइन’ हूँ,उस पर आज छुट्टी होने के कारण मेरे पास समय भी पर्याप्त था।’ कहते हुए सविता जोर से खिलखिला पड़ी।
तभी सहसा अपनी सखी को हैरान होते देखकर सविता उसके कान में फुसफुसाते हुए एक बार पुन: हँसी, ‘एक मजेदार राज की बात बताऊं तुम्हें? ये जो हमारी ‘वजन घटाकर स्लिम-ट्रिम रहने की चाह वाली समस्या है न, उसका भी बड़ा आसान सा हल है यह सफाई अभियान। अतः अवसर मिलते ही हथिया लेना चाहिए इसे। मैं तो इसे ‘बिल्ली के भाग से छींका टूटा’ की तरह लपक लेती हूँ। और जहां तक ‘लोग क्या कहेंगे ?’ वाली बात है न, तो इस संबंध में प्रचलित वह मशहूर गाना मैं कभी नहीं भूलती , ‘ कुछ तो लोग कहेंगे ,लोगों का काम है कहना…’ इसलिए, केवल ‘स्टेटस सिंबल’ के चक्कर में अपनी सेहत को दरकिनार करके मैं क्यों सोचूं कि कौन क्या कहेगा ?’
‘हां ! तुम अपने मन ही मन में यह अवश्य कह रही होगी कि यह कैसी सखी है मेरी, अभी तक मुझे एक बार भी अंदर आने के लिए नहीं कहा’ और इस बात की मुझे अवश्य परवाह है’, कहते हुए जब सविता, रेखा की बांह पकड़कर उसे अंदर लाने का प्रयास करने लगी, तो दोनों सखियां खिलखिलाकर हंस पड़ीं।
उमा महाजन
कपूरथला
पंजाब।
#असमर्थ