सुशीला रसोई में जल्दी जल्दी हाथ चला रही थी और कामवाली रेशमा को भी मन ही मन कोसे जा रही थी।जब भी घर में मेहमान आने हो, ये महारानी छुट्टी करके बैठ जाती है, और ये भी नहीं कि एक दिन पहले बता दे, सुबह ही फोन करेगी।
तभी कौशल जी रसोई में आए और सुशीला को बुड़बुड़ाते देख कर हँसते हुए बोले, लगता है बुढ़ापे का असर होना शुरू हो गया, तभी तो अपने आप से बातें कर रही हो। “ चुप रहो जी, पता है न आपको, मेरी बहन यानि कि आपकी साली साहिबा आ रही है, पहुंच जाएगी दोपहर तक। अब लंच की तैयारी तो करनी पड़ेगी।
बहू तो मजे से चली गई अपने दफ्तर, अपना और गिरिश का टिफिन पैक किया और चल दी। शुक्र मनाओ अभी तक काव्या नहीं उठी, वो उठ गई तो कोई काम नहीं करने देगी।
तभी सफाई, बर्तन करने वाली ज्ञाणवती ने प्रवेश किया। उसे देखकर जैसे सुशीला की जान में जान आई। चलो थोड़ी इसकी मदद लेती हूं, सब्जी वगैरह काट दे तो काफी काम हो जाएगा।
तभी काव्या की आवाज आई, दादी, दादी। “ आई मेरे बच्चे, और वो भागती हुई उसके कमरे में पहुचीं। डेढ़ साल की काव्या दादी के गले से लिपट गई, और फिर काफी समय लग गया उसको फ्रैश करवाने और दूध वगैरह पिलाने में। जब वो खेलने लगी तो सुशीला फिर से काम पर लग गई।
ज्ञाणवती ने थोड़े नखरे तो दिखाए, लेकिन सुशीला की मदद कर दी। जब सारी तैयारी हो गई तो सुशीला को चैन पड़ा।पति कौशल भी दुकान के लिए निकल चुके थे।
हंसता खेलता परिवार था सुशीला का। बेटी नयना की शादी हो चुकी थी और गिरिश और बहू पायल नौकरी करते थे। शादी के दस साल बाद काव्या का जन्म हुआ। सुशीला तो पोता पोती का मुंह देखने की उम्मीद छोड़ चुकी थी
लेकिन भगवान ने सुन ली और काव्या का जन्म हुआ, लेकिन डा़ की सख्त हिदायत थी कि पायल दूसरी बार माँ बनने की कोशिश न करे, नहीं तो जान का खतरा है, इस बार भी बहुत मुशकिल से जान बची है।
जहां सुशीला को काव्या के जन्म की खुशी थी वहीं पोते की चाह भी था। अगली बार शायद भगवान ये मुराद भी पूरी कर दे, लेकिन पायल की जान को खतरा था। काव्या का जन्म भी सिजेरयन से हुआ। डा़ ने तो कह दिया था
कि कुछ भी हो सकता है, मां और बच्चा दोनों की जान खतरे में हैं, हो सकता है एक ही बच पाए। सुशीला के कुछ कहने से पहले ही गिरिश ने फार्म पर साईन करते हुए कहा कि उसे पायल चाहिए।
लेकिन किस्मत अच्छी कि दोनों की जान बच गई। सुशीला काव्या को जी जान से प्यार करती, नन्हीं बच्ची पूरे घर की आंखों का तारा थी। कई बार सुशीला के मन में आया कि वो बेटे बहू को एक और चांस लेने के लिए कहे, लेकिन हिम्मत न होती।
सारा काम निपटा कर बहन अनुजा का इंतजार करने लगी, थोड़ी देर में ही बाहर गाड़ी रूकने की आवाज आई। काव्या के जन्म के बाद अनुजा पहली बार आई थी। अनुजा सुशीला से पांच साल छोटी थी, उसका एक बेटा और दो पोते थे, तो थोड़ा घंमड में रहती थी और थोड़ी उसे बातें बनाने की आदत भी थी।
दोनों बहने गले मिली, खूब बातें हुई, खाना पीना हुआ और शाम को सारे परिवार ने इकटठे खाना खाया। दरअसल अनुजा के पति को किसी काम से जाना था तो सुशीला का शहर रास्ते में ही पड़ता था, तो अनुजा भी साथ हो ली। दो दिन के बाद उसके पति वापसी पर उसे ले जाने वाले थे।
अगले दिन सुबह रोज की तरह सब अपने अपने कामों पर चले गए तो दोनों बहनों ने दुःख सुख सांझे किए। अनुजा काव्या के लिए काफी तोहफे लाई थी।बातों बातों में ही उसने कहा कि अब अगली बार काव्या का भाई आना चाहिए।
“ ऐसी किस्मत कहां, काव्या आ गई झोली में, ये ही बहुत है” और उसने डा़ की हिदायत बता दी। साथ वाले कमरे में कौशल लेटे हुए थे, आज वो काम पर नहीं गए थे। अरे छोड़ो दीदी, डाक्टर तो यूं ही कहते रहते है, जैसे काव्या का जन्म हुआ वैसे दूसरे बच्चे का भी हो जाएगा।
सुशीला को लगा कि किसी ने उसकी दुखती रग पर हाथ रख दिया हो।वह बोली, चाहती तो हूं, पर कह नहीं सकती, गिरिश कभी नहीं मानेगा।” और मानना भी नहीं चाहिए”
दूसरे कमरे से उठ कर आते हुए कौशल बोले। लेकिन जीजा जी, अभी उसकी बात मुंह में ही थी कि कौशल ने कहा, प्लीज अनुजा, इस बात को यही खत्म करो और आग पर तेल छिड़कने का काम मत करो।
हमारा परिवार खुशी खुशी रह रहा है,काव्या का जन्म ही हमारे लिए अनमोल तोहफा है। लड़की , लड़के में कोई फर्क नहीं। बेटा , बेटी एक समान।चलो सुशीला चाय बनाओ, मिल कर चाय पीते है। सुशीला उदास सी उठकर रसोई में चली गई।
अनुजा प्लीज, मैनें सुशीला को बहुत समझा कर और रोक कर रखा है कि इस बारे में कोई बात नहीं करनी। डा. ने साफ कहा है कि मां की जान को खतरा हो सकता है और हमें अपनी बहू बहुत प्यारी है। और आप उसे उकसाए नहीं ब्लकि काव्या की दादी बनने की खुशी मनाने को कहे। काव्या के पहले जन्मदिन पर तो आप नहीं आ पाई, इस बार जरूर आना।
इससे पहले कि सुशीला, अनुजा की बातों में आए कौशल ने सब संभाल लिया ।
दोस्तों, कभी किसी की बातों में नहीं आना चाहिए, कुछ लोगों का काम आग पर तेल छिड़कना ही होता है, पर अपने घर के हालात खुद को ही पता होते है।
विमला गुगलानी
चंडीगढ़
कहावत- आग पर तेल छिड़कना