उम्र मात्र एक संख्या है! – प्रियंका सक्सेना

रविकांत सिन्हा आधिकारिक तौर पर आज 60 साल के हो चुके हैं और सरकारी सेवा से रिटायर हो गए हैं। उनके कार्यालय ने रविकांत जी के सम्मान में ऑफिस में रिटायरमेंट पार्टी आयोजित की। हॉल में रंग-बिरंगी लाइटें, फूलों की सजावट और ऑफिस के उनके कुछ यादगार चित्र लगे हुए हैं। सभी सहकर्मी और वरिष्ठ अधिकारीगण बड़ी संख्या में आए हुए हैं।

रविकांत और उनकी पत्नी प्रभा जैसे ही हॉल में आए सभी सहकर्मियों ने तालियाँ बजाकर उनका स्वागत किया। रविकांत ऑफिस में उच्च पद पर कार्यरत हैं।  रिटायरमेंट पार्टी में अन्य वरिष्ठ अधिकारी भी आए हुए हैं। रविकांत आज कुछ भावुक हो गए, ये भांपकर कुछ वरिष्ठ अधिकारीयों ने पुराने किस्से सुनाए तो कुछ कनिष्ठ अधिकारीयों ने कहा, “रविकांत सर, अब ऑफिस की दौड़-भाग खत्म !”

रविकांत मुस्कुराते हुए बोले, “हाँ, अब मेरी रफ्तार घर और परिवार की ओर बढ़ेगी।”

इस पार्टी में सहकर्मियों की सराहना और हँसी-मजाक के बीच, रविकांत के मन में हल्की सी उदासी भी है। ऐसा होना स्वाभाविक भी है आखिरकार उनकी सम्पूर्ण ज़िन्दगी का अहम हिस्सा ये ऑफिस है जिसमें उन्होंने पूरे चौंतीस वर्ष बिताए हैं। ऑफिस का वातावरण बहुत भव्य था लेकिन अब उनका असली जीवन तो घर और परिवार के साथ ही है।

पार्टी खत्म होने के पश्चात रविकांत और प्रभा अपने परिवार के पास घर लौटे। घर में उनका बेटा भानु, बहू किरण, बेटी रश्मि और दामाद विभोर बच्चों के साथ इंतजार कर रहे थे। आदित्य और दीप्ति अपने बाबा -दादी को देखकर उत्साहित हो गए। विहान उनका दो वर्षीय धेवता विहान अपने नाना को देखते ही लपककर उनकी गोद में आ गया और नाना-नाना बोलने लगा। 

रविकांत ने जी भरकर उसको प्यार किया और साथ ही आश्चर्य से रश्मि से पूछा, “बेटा, अपने आने की खबर नहीं दी मैं गाड़ी भेज देता। “

“सरप्राइज़ है पापा! बधाई हो पापा!” रश्मि ने चहकते हुए कहा 

प्रभा जी भी इस बात पर मुस्कुरा दी। 

“इसका मतलब तुम्हें भी पता था कि रश्मि और विभोर आ रहे हैं। “

प्रभा ने मंद मंद मुस्कुराते हुए सिर हिलाया। 

“कैसे हो विभोर बेटा?”

“बढ़िया पापाजी ! बधाई हो पापाजी !” 

विभोर और उसके साथ सभी ने उन्हें बधाइयाँ देनी शुरू कर दी और साथ में ही रश्मि और विभोर ने एक क्लासिक पेन और पैंट शर्ट के साथ खूबसूरत बुके दिया।  भानु और किरण ने पैर छूकर उन्हें कुरता सेट स्टॉल के साथ दिया और उनके मनपसंद लेखक की किताबें दी।  आठ साल के आदित्य ने बाबा को अपने हाथ से बनाया बहुत ही सुन्दर कार्ड दिया और साथ में पेनस्टैंड भी । छह साल की दीप्ति ने बाबा को एक डायरी दी और साथ में सुन्दर सा लकड़ी का पेन भी दिया।  

“अरे भाई ! इतना कुछ तुम लोगों ने दिया।  अब तो मैं रिटायर हो गया हूँ।  घर पर ही रहूँगा।”

रश्मि और किरण  ने कहा, “पापा, हमने सोचा है कि कल आपके लिए एक पार्टी रेस्टोरेंट में रखें ताकि परिवार और करीबी मित्र मिलकर जश्न मनाएं।”

रविकांत की आँखों में खोई चमक लौट आई, “वाह! तो कल का दिन धमाकेदार होने वाला है। ठीक है, मैं तैयार हूँ।”

सभी ख़ुशी से चिल्लाए, ” ये हुई ना बात पापा ! अब लग रहे हो हमारे पापा ! 

भानु ने झट से जोड़ा,”हाँ ! नहीं तो सुबह से घर में उदास उदास घूम रहे थे।”

अगले दिन घर में हलचल शुरू हो गई। रसोई से स्वादिष्ट खाने की खुशबू आ रही है।  रविकांत की छोटी बहन रेखा और उनके पति कार्तिक भी पार्टी में शामिल होने के लिए सुबह ही घर पहुँच चुके हैं। घर में हर तरफ़ हँसी और उत्साह का माहौल है।

शाम को वे लोग रेस्टोरेंट में  समय से पहुँच गए। कुछ ही समय के बाद सभी लोगों ने आना शुरू कर दिया। इनमे कॉलोनी के जान पहचान के लोगों के साथ ही रविकांत के घनिष्ट मित्र सतीश और मोहन व छोटी  बहन सुरेखा और बहनोई भी शामिल हुए। पार्टी का इंतजाम बेहतरीन था और सभी ने बहुत पसंद किया। बच्चो और बड़ों ने रविकांत को माला पहनाई। रश्मि और किरण ने एक एक गाना सुनाया, बच्चों ने डांस किया और भानु और विभोर ने भावपूर्ण कविताएँ  सुनाईं। रेखा बुआ और कार्तिक फूफाजी ने एक प्यारे से गाने पर डांस किया। प्रभा ने भी रविकांत की उपलब्धियों का वर्णन करते हुए उनको एक अच्छा प्रशासक, समझदार पति और प्यार करने वाला बेहतरीन पिता बताया।  कुल मिलाकर सभी कुछ बहुत अच्छा रहा ।   

रश्मि, विहान और विभोर दो दिन पश्चात अपने शहर लौट गए। एक हफ्ते बाद रेखा बुआ और फूफाजी भी अपने घर चले गए। 

घर पर सभी अपने अपने कार्यो में व्यस्त हो गए। अब रविकांत के सामने न सिर्फ खालीपन, बल्कि एक लंबी जिंदगी थी जिसमें अब रोज़मर्रा का काम और लोगों से मेल-मिलाप की नियमितता नहीं थी।

ऐसे ही एक शाम को घर में प्रभा और रविकांत चाय पी रहे थे। 

“अजीब लगता है, प्रभा । लगता है जैसे जीवन अचानक धीमा पड़ गया हो।” रविकांत ने धीमे स्वर में कहा

तभी वहां पर भानु और किरण आ गए। 

भानु ने हँसते हुए कहा, “पापा, आप अब कुछ दिनों आराम करो पर मैं उम्मीद करता हूँ कि आप हमें  मार्गदर्शन देते रहेंगे। हम आपको ऐसे ही नहीं छोड़ेंगे।”

किरण ने हाथ पकड़ते हुए कहा, “हाँ, पापा। अभी तो लाइफ शुरू हुई है।”

दीप्ति ने अपनी प्यारी सी आवाज में कहा, “बाबा, आप अब हमारे साथ खेलेंगे ना?”

रविकांत ने हँसते हुए कहा, “बिलकुल बेटा, अब तुम लोग मेरी नई शारीरिक कसरत के साथी हो।”

दीप्ति ने नटखट मुस्कान के साथ कहा, “बाबा, लेकिन मैं तो अभी छोटी हूँ, मैं योग कर लूंगी। हमें स्कूल में करवाते हैं।”

रविकांत ने हंसते हुए कहा, “ठीक है दीप्ति, हम तुमसे सीखेंगे।”

बात आई गई हो गई। रविकांत ने देखा कि घर में उनका परिवार व्यस्तता के बावज़ूद प्रेम से भरा हुआ है। वे लोग कोशिश करते रहते हैं कि उनके साथ वार्तालाप करते रहें।  प्रभा भी पूरा समय उनको देने लगी हैं फिर भी उनके मन में एक हल्का सा तनाव और अकेलापन घर करने लगा। रिटायरमेंट के कुछ ही दिनों में उनका स्वास्थ्य धीरे-धीरे बिगड़ने लगा। कभी पीठ दर्द, कभी नींद की समस्या और कभी हल्की बेचैनी उन्हें अक्सर परेशान करने लगी।

रविकांत के ज़िगरी दोस्त सतीश और मोहन, उनसे मिलने हफ्ते में दो-तीन बार आते रहते हैं। 

उनको उदास देख एक शाम, सतीश  ने कहा, “रविकांत, तुम इतने दबाव में क्यों हो? अब तो अपने लिए जियो। अपने स्वास्थ्य और मानसिक शांति पर ध्यान दो।”

मोहन ने जोड़ा, “हाँ भाई, ध्यान और योग अपनाओ। मैं जानता हूँ, तुम्हारे जीवन में यह नई ऊर्जा लाएगा।”

रविकांत ने शुरुआत में इसे मात्र दोस्तों की एक परवाह जताना माना लेकिन फिर उन्हें महसूस हुआ कि अब उन्हें अपने जीवन में बदलाव लाना ही होगा। उन्होंने अपने दिन की शुरुआत सतीश और मोहन के साथ योग और प्राणायाम से की। पहले दिन, उनके शरीर में दर्द हुआ और मन ने कहा कि रविकांत तुम कहाँ ये सब करने लगे, आराम करो….पर कुछ ही दिनों में  धीरे-धीरे जीवन में हल्कापन और संतुलन आने लगे।

रविकांत ने महसूस किया कि रिटायरमेंट का मतलब केवल काम से मुक्ति नहीं, बल्कि अब तो परिवार, मित्र और हल्के-फुल्के पल उन्हें नई ऊर्जा दे रहे हैं।

रविकांत ने अपनी दिनचर्या में बदलाव किया। सुबह जल्दी उठना, मित्रों के साथ  हल्का व्यायाम, योग और ध्यान करना, पौष्टिक आहार और शाम को डिनर के बाद नियम से प्रभा के साथ टहलना । 

एक रविवार की सुबह, रविकांत अपने पोते और पोती को लेकर बगीचे में बैठे थे। आदित्य ने पूछा, “बाबा, यह ध्यान क्या होता है?”

“बेटा, यह मन और शरीर को एक साथ शांत करने की प्रक्रिया है। जब हम ध्यान लगाते हैं, तो हमारे विचार भी शांत होते हैं और हम अपने अंदर की ऊर्जा महसूस करते हैं।”

दीप्ति ने उत्सुकता से कहा, “क्या मैं भी सीख सकती हूँ बाबा?”

“बिलकुल बेटा, चलो आज से हम सब साथ अभ्यास करेंगे।”

आदित्य ने उत्सुकता से कहा, “बाबा, क्या आप अब हमें रोज़ योग कराएंगे?”

रविकांत ने मुस्कुराते हुए कहा, “छुट्टी वाले दिन तुम लोग कर सकते हो और मैं उम्मीद करता हूँ कि तुम लोग भी इसे अपनी जिंदगी में अपनाओगे।”

दीप्ति ने कहा, “बाबा, अब मैं भी रोज़ ध्यान लगाऊँगी और आपको देखकर खुश रहूँगी।”

रविकांत ने बच्चों को सरल व्यायाम और ध्यान सिखाना शुरू किया। 

आदित्य ने हँसते हुए कहा, “बाबा , मुझे लगता है कि मेरा ध्यान अब अच्छे से लगने लगा है।”

रविकांत हँसते हुए बोले, “बिलकुल बेटा, लेकिन ध्यान करते समय जोर से हँसना नहीं, वरना तुम्हारे बाबा का ध्यान उड़ जाएगा।”

दीप्ति ने  कहा, “बाबा, मैं तो बस आपके पास बैठकर ही खुश हूँ।”

इस तरह छुट्टी वाले दिन आदित्य और दीप्ति  भी बाबा-दादी के साथ धीरे-धीरे इस दिनचर्या में शामिल होने लगे।

धीरे-धीरे रविकांत ने महसूस किया कि योग, ध्यान और हल्के-फुल्के पल उन्हें मानसिक संतुलन प्रदान कर रहे हैं। मित्र सतीश और मोहन भी उनके साथ योग और ध्यान में शामिल होते।

एक दिन परिवार के साथ पिकनिक का आयोजन हुआ। झील किनारे हरे-भरे मैदान में बच्चे दौड़ते रहे, आदित्य और दीप्ति  नाचते-गाते हुए पानी के पास पहुंचे। शिवकांत ने हँसते हुए कहा, “बच्चों, सावधान! पानी में ध्यान लगाना मेरे लिए नई चुनौती है।”

प्रभ ने मजाक में कहा, “अब आपको बच्चों के साथ दौड़ते दौड़ते योग करना पड़ेगा!”

भानु और किरण भी हँसी में शामिल हो गए।

कुछ दिन बाद, मित्रों के साथ मंदिर भ्रमण हुआ। रविकांत, सतीश और मोहन सुबह-सुबह मंदिर पहुँचे। मंदिर की शांति, घंटियों की ध्वनि और प्रार्थना का माहौल उन्हें भीतर से तरोताजा कर गया।

मोहन ने कहा, “रविकांत, मुझे लगता है अब हम कभी कभी मंदिर से लौटकर भी योग कर सकते है और भी सुखद होगा।”

रविकांत ने मुस्कुराते हुए कहा, “हाँ दोस्त, शांति सिर्फ मंदिर में नहीं, मन में भी होती है और इसे खोजने की कला हमें जीवन भर अपनानी चाहिए।”

रिटायरमेंट के कुछ ही दिनों में रविकांत के मन में पहले जो खालीपन और बेचैनी थी वह अब संतोष और ऊर्जा में बदल गई । घर में हलचल, पोते-पोती-धेवता की हँसी, बेटे-बहू, दामाद-बेटी की परवाह, मित्रों का साथ और रिश्तेदारों की मस्ती अब उनके जीवन का आधार बन चुका है।

एक शाम रविकांत अपने बगीचे में बैठे, सूरज ढल रहा था और उन्होंने महसूस किया कि जीवन की गति अब धीमी ज़रूर हो गई है लेकिन उसमें संतुलन, स्वास्थ्य और खुशी की चमक बढ़ गई है। उन्होंने अपने परिवार की ओर देखा – पत्नी प्रभा की मुस्कान, भानु और किरण की गर्मजोशी, रश्मि और विभोर की समझदारी, आदित्य और दीप्ति और नन्हें विहान की नटखट हँसी ओर मासूमियत भरी बातें , बहन रेखा और बहनोई कार्तिक की मस्ती, ये सभी याद कर उनके अधरों पर मनमोहक मुस्कान बिखर उठी। 

रविकांत ने धीरे से कहा, “प्रभा, देखो ना, शुरुआत में रिटायरमेंट का डर किस तरह मेरे जीवन में नए रंग भर गया था परन्तु मैं अब खुद को स्वस्थ, खुश और पूरे परिवार से जुड़ा महसूस करता हूँ।”

प्रभा ने हाथ पकड़ते हुए कहा, “आप  हमेशा से मेरे लिए प्रेरणा रहे, अब हम सब के लिए मार्गदर्शक भी! आपकी  नई जीवनशैली ने हम सबको भी सिखाया कि उम्र मात्र एक संख्या है, संतुलन और मन की शक्ति ही असली ताकत है।”

और इस तरह रिटायरमेंट के पश्चात रविकांत की ज़िंदगी के एक नए अध्याय की शुरुआत हुई—जहाँ योग, ध्यान, परिवार, मित्रता और संतुलन उनके जीवन की नई पहचान बन गई है।

इति।। 

धन्यवाद 

-प्रियंका सक्सेना ‘जयपुरी’

(मौलिक व स्वरचित)

डिस्क्लेमर: यह कहानी पूर्णतया काल्पनिक है। इस कहानी की कथावस्तु, पात्र व घटनाएं लेखिका की कल्पना मात्र है। यह कहानी केवल मनोरंजन के उद्देश्य से लिखी गई है। 

#रिटायरमेंट  

कहानी का शीर्षक -उम्र मात्र एक संख्या है!

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