नेहा घर के दरवाज़े पर खड़ी रमन का इंतजार कर रही थी। जैसे ही रमन ऑफिस से घर आया, वह दौड़ती हुई उसके पास गई और मुस्कुराते हुए बोली “सुनो रमन, इस बार नवरात्रि पर गुरुजी हमारे ही घर रुकेंगे। नौ दिन की माता की चौकी यहीं लगेगी!”
यह सुनते ही रमन उत्साह से बोला, “अरे वाह, ये तो बहुत खुशी की बात है। मगर हमारे घर में जगह कहाॅं है? इतनी बड़ी व्यवस्था कैसे होगी?”
यह सुनकर नेहा हॅंसते हुए बोली “रमन बाबू, ”why to fear, when Neha is here।” मैंने सब सोच लिया है। माॅंजी के कमरे में गुरुजी और उनके चेले रुकेंगे। माता की चौकी हाॅल में लगेगी।
“हाॅं, ठीक है। बच्चे हमारे साथ हमारे कमरे में सो जाऍंगे और माॅं बच्चों के कमरे में।” नेहा की बातों से सहमति जताते हुए रमन बोला।
रमन की यह बात सुनते ही नेहा की भौंहें सिकुड़ गईं। उसने तीखे स्वर में कहा, “नहीं नहीं, यह नहीं हो पाएगा। हमारे इतने छोटे से कमरे में एक साथ चार लोग कैसे सोऍंगे। ऐसा करो, तुम नौ दिन के लिए माॅंजी को निधि दीदी के यहाॅं छोड़ आओ।”
यह सुनते ही रमन बुरी तरह चौंक गया “क्या! क्या कहा तुमने? माॅं को बाहर भेज दूॅं?
“रमन, ज्यादा सेंटी मत हो। पूजा के समय हजारों तरह के काम होते हैं। माॅंजी को अलग परहेज़ का खाना चाहिए। उनकी दवाइयाॅं, देखभाल… मैं यह सब इन दिनों नहीं कर पाऊॅंगी। इसलिए बेहतर होगा माॅंजी नवरात्रि के उन नौ दोनों में निधि दीदी के यहाॅं रहें।”
रमन ने कुछ नहीं कहा और गुस्से में वहाॅं से चला गया। पर, नेहा ने तो जिद ही पकड़ ली। रोज़ वही बात। धीरे-धीरे रमन की माॅं के कानों में भी यह बात पड़ने लगी। रोज-रोज बेटे-बहू के बीच में उनके कारण होती तकरार को देखकर एक दिन उन्होंने ही रमन से कहा, “बेटा, थोड़े दिन के लिए मुझे निधि के पास छोड़ दे। नेहा को भी पूजा की तैयारी करनी है। इतने सारे कामों के बीच में वह मेरा ध्यान नहीं रख पाएगी। बेटा, बात को समझ।”
यह सुनकर रमन का दिल भारी हो गया, लेकिन माॅं की बात मानते हुए रविवार की सुबह वह माॅं को लेकर निकल पड़ा। नेहा से कहा, “मैं कल सुबह तक आ जाऊॅंगा, आज रात दीदी के यहाॅं रुकूॅंगा।”
लेकिन, अगली शाम तक भी रमन नहीं लौटा। नेहा ने उसे फोन किया—लेकिन उसका फोन लगातार बंद आ रहा था। परेशान होकर उसने अपनी ननद निधि को फोन मिलाया, पर निधि का जवाब सुनते ही वह हक्की-बक्की रह गई “भाभी ,भैया और माॅं तो यहाॅं आए ही नहीं।”
अब नेहा के होश उड़ गए। कहाॅं गए वे दोनों? अभी वह यह सोच-सोच कर परेशान हो ही रही थी कि तभी उसके फोन पर रमन का कॉल आया।
उसके फोन उठाते ही रमन ने कहा “नेहा, मैं माॅं के साथ वैष्णो देवी में हूॅं…”
अभी रमन अपनी बात पूरी भी ना कर पाया था कि यह सुनते ही नेहा चिल्ला पड़ी “क्या?! ये क्या तरीका है? घर में पूजा हो रही है, मेहमान आने वाले हैं और तुम माॅंजी को लेकर घूमने चले गए?”
यह सुनकर रमन ने गुस्से से कहा
“आवाज़ नीचे करो नेहा। पूजा तुमने रखी है, तुम ही संभालो। मैंने बहुत सह लिया, अब और नहीं। तुम हमेशा माॅं का अपमान करती आई हो। उनकी जिम्मेदारी से हमेशा मुॅंह मोड़ती रही हो। जब मैंने माॅं को हमारे साथ रखने की बात की, तब भी तुमने साफ कहा था कि उनका ख्याल रखना तुम्हारे बस की बात नहीं है। एक हेल्पर रख लो।
घर की शांति के लिए मैं तुम्हारी हर बात मानता रहा। लेकिन, अब पानी सर के ऊपर बह चुका है। तुम घर में माता की चौकी रखना चाहती हो, यह बहुत अच्छी बात है। लेकिन,अगर उसी चौकी के लिए माॅं को घर से निकालना पड़े, तो वो पूजा किस काम की? मैं अब नौ दिन बाद वापस आऊॅंगा। तुम आराम से अपनी पूजा पूरी करो, मेहमानों की सेवा करो। कोई तुम्हें डिस्टर्ब नहीं करेगा।” कहते हुए रमन ने फोन काट दिया।
यह सब सुनकर नेहा स्तब्ध रह गई। रमन के शब्दों की सच्चाई ने उसे झकझोर कर रख दिया था। रमन ऐसा कैसे कर सकता है! घर में इतनी बड़ी पूजा है। माता की चौकी रखी है। ऐसे में सब कुछ छोड़कर वह घर से बाहर कैसे जा सकता है। रमन के बिना हुआ अकेली पूजा कैसे करेगी? जब सभी मेहमान रमन के बारे में पूछेंगे तो वह क्या जवाब देगी? नहीं, नहीं रमन को वापस आना ही होगा।” यह सोचते हुए वह रमन को फोन मिलाने लगी। पर रमन का फोन बंद था। वह बार-बार ट्राई किये जा रही थी। लेकिन, रमन का फोन लगातार बंद आ रहा था।
अंत में निराशा और हताश होकर वह वहीं माता की चौकी के सामने बैठ कर फूट फूट कर रो पड़ी। “माता रानी, मुझे माफ कर दीजिए। मैंने सिर्फ माॅंजी का ही नहीं,आपकी पूजा का अपमान किया है। अपने घमंड और अहंकार में मैं यह समझ ही नहीं पाई कि असली पूजा तो घर के बड़ों की सेवा और सम्मान में है। शायद इसीलिए मैं आज आपके सामने अकेली खड़ी हूॅं। ना मेरे साथ मेरे पति का प्यार है ,ना सास का आशीर्वाद। लेकिन मैं आपसे वादा करती हूं कि जब माॅंजी वापस आएगी तो मैं उनका पूरा ध्यान रखूॅंगी और उनके साथ मिलकर आपकी चौकी फिर से सजाऊॅंगी।”
धन्यवाद
लेखिका- श्वेता अग्रवाल,
धनबाद , झारखंड
कैटिगरी -लेखक /लेखिका बोनस प्रोग्राम (सितंबर माह-छठी कहानी)
शीर्षक-माता की चौकी