रोहित अभी थोड़ी देर पहले ही घर आया था। फ़्रेश होकर दो कप चाय बनाई और ट्रे में कुछ बिस्कुट और
नमकीन रख कर पत्नी रोमा के पास आकर मेज़ पर चाय रखी। तकिये का सहारा देकर पहले रोमा को अच्छे से
बिठाया और फिर चाय का कप उसके हाथ में पकड़ाया। रोमा ने चुपचाप चाय पकड़ी और धीरे धीरे पीने लगी। जब
बात करने का कोई भी सिरा हाथ न लगा तो रोहित ने चुप्पी तोड़ते हुए यहाँ वहाँ की बाते शुरू कर दी, जैसे कि किसी
का फ़ोन आया था क्या, या फिर कामवाली मालती ने ढ़ग से काम किया या नहीं।रोमा ने हर बात का उत्तर सिर्फ़ सिर
हिला कर ही दिया। चाय खत्म होते ही रोहित उसके पास आकर पंलग पर बैठ गया और उसका हाथ अपने हाथ में
लेकर सहलाने लगा।
बड़ी मुशकिल से रोमा ने अपनी चुप्पी तोड़ी और कातिर निगाहों से उसकी और देखते
हुए बोली, आख़िर कब तक तुम मेरी सेवा करते रहोगे, जबकि ये सब तो मुझे करना चाहिए। क्यों भई ये किस
किताब में लिखा है कि पति घर का काम नहीं कर सकता"। बात पूरी भी नहीं हुई थी कि डोर बैल बजी। दरवाज़ा
खोला तो उनकी इकलौती बेटी पूर्वी अपने पति जतिन के साथ बैग उठाए खड़ी थी। रोहित का मन आशंकाओं से भर
उठा, लेकिन बेटी और दामाद का मुस्करा कर स्वागत करना भी जरूरी था। दोनों अंदर आकर माँ के पास बैठ गए।
रोहित दोनों के लिए पानी लाया। चाय बनाने के लिए जाने लगा तो पूर्वी ने उसे मना कर दिया, और स्वंय ही चाय
बनाने के लिए उठ गई। तभी जतिन का मोबाईल बजा तो वो भी उठकर बाहर बरामदे में चला गया। रोहित और रोमा
ने एक दूसरे की और देखा। दोनों की आखों में एक ही सवाल था, और परेशानी भी थी।
बेटी और दामाद घर पर आए तो खुशी होती है, और वो भी इकलौती बेटी, लेकिन जिस तरह वो अटैची
लेकर आए थे तो मन में खटका होना जरूरी था। पूर्वी रोहित और रोमा की इकलौती बेटी थी। सुदंर, सुशील, संस्कारी
और सुशिक्षित । बड़ी अच्छी आन लाईन पचास हज़ार रूपए महीने की नौकरी मिली हुई थी। सिर्फ़ थोड़ा सा जन्मजात
पाँव में नुक़्स था। थोड़ा लँगड़ाकर चलती थी। बहुत इलाज करवाया लेकिन कमी दूर नहीं हुई। चार साल पहले घर में
कितनी रौनक़ थी। रोहित की माँ बाबूजी दोनों थे, और रोमा भी बिलकुल स्वस्थ थी। दोनों बहनों की शादी पहले ही हो
चुकी थी, और छोटा भाई अपने परिवार के साथ आगरा में में नौकरी करता था। दो साल के अंतराल में ही माँ
बाबूजी चल बसे, और बीमारी ने रोमा को ऐसा जकड़ा कि बिस्तर ही पकड़ लिया। रोहित की आर्थिक स्थिति पहले से
ही ठीक नहीं रही। जब तक बाबूजी ज़िंदा रहे, उनकी पेंशन से ही काम चल जाता था, थोड़ा बहुत गाँव के मकान और
दुकान का किराया आ जाता था।
बाद में गाँव की जायदाद बेचकर शहर में एक घर बना लिया, और छोटे भाई को भी कुछ पैसे दे
दिए। उसने कुछ बैंक से लोन लेकर आगरा में ही एक फ़्लैट ख़रीद लिया था। रोहित की आमदनी बहुत कम थी, काम
तो कई किए लेकिन किस्मत ने साथ नहीं दिया। आजकल वो बीमे का काम करता था। गुजारा मुशकिल से हो पाता।
लेकिन चलो मकान अपना था। जब पूर्वी को नौकरी मिली तो उसने नई गाड़ी ख़रीदने की ज़िद की। यों तो पुरानी गाड़ी
थी, पर अकसर खराब ही रहती थी। यहाँ वहाँ जाने में दिक़्क़त होती थी और फिर फ़रीदाबाद जैसा शहर। सबसे ज्यादा
मुशकिल तो रोमा को डाक्टर के पास ले जाने की होती थी। भले ही कैब का जमाना है, लेकिन अपनी गाड़ी का अलग
ही मजा है। जहाँ जी चाहे रोक लो, सामान रख लो। वैसे रोहित अपने काम के लिए तो बाईक पर ही जाता था। पूर्वी
बहुत ही समझदार लड़की थी। वह अपने माँ बाप का पूरा ख़याल रखती थी। हमारे देश में अच्छी भली लड़कियों की
शादी में सौ अड़चनें आती है, और पूर्वी की टाँग में नुक़्स के साथ साथ क़द भी काफी छोटा था। शादी होने की उम्मीद
तो थी नहीं, इसलिए उसने अपना पूरा ध्यान अपनी नौकरी और माँ बाप की सेवा में ही लगाया हुआ था।
काफी पहले से ही उनका सात आठ दोस्तों का एक गरूप था, जो कि पहले तो ईकटठे स्कूल कालिज
मे थे, और बाद में नौकरी या अपने कामों से जब भी फ़ुरसत मिलती अकसर मिलते रहते। दो की शादी भी हो गई थी,
लेकिन मिलने का सिलसिला चलता ही रहा। यहाँ तक कि साल में एक बार तो वो सभी इकटठ्ठे कभी, गोवा, मनाली ,
उंटी आदि भी जरूर जाते थे। गरूप में लड़के लडकियां दोनों ही थे। सबका पूर्वी पर विशेष स्नेह रहता। सात साल से
जतिन भी उन्हीं के गरूप से था। बहुत ही अच्छे घर का लड़का। जतिन के पिता और चाचा का अपना होलसेल का
काम था। दोनों परिवार इकट्ठा ही रहते थे। बदक़िस्मती से दो साल पहले जतिन की ममी की मृत्यु हो गई थी। चाची
ने उनका बहुत साथ दिया। जतिन का एक भाई और एक बहन थी, दोनों की शादी हो चुकी थी। चाचा का एक बेटा
और दो बेटियाँ भी शादीशुदा थी, अब जतिन की शादी की बारी थी। माँ की मौत के सदमे से अभी परिवार उबरा नहीं
था, लेकिन समय की गति तो चलती ही रहती है। जतिन की बहन ने शादी की बात चलाई। अच्छा घरबार और पढ़ा
लिखा लड़का हो तो रिशतों की क्या कमी होती है। घर वालों के कहने पर कई लड़कियां देखी, लेकिन जतिन को कोई
पंसद नहीं आई। दरअसल जतिन बहुत ही सादा और उच्च विचारों वाला मितभाषी लड़का था। सबसे छोटा होने के
नाते उसका माँ से बहुत जुड़ाव था। माँ के बाद वह अपने आप को बहुत अकेला महसूस करने लगा था। पिता काम में
और बाकी सब अपने अपने परिवार में व्यस्त थे। आजकल के जमाने में लोगों के पास समय के इलावा सब कुछ है।
घर से ज्यादा उसका मन दोस्तो में लगता था। एम. बी. ए. की पढ़ाई के बाद उसका मन तो नौकरी करने को था,
लेकिन फ़ैमिली बिज़नेस ही इतना फैला हुआ था कि उसे भी उसी में ही लगना पड़ा।
जब भी समय मिलता, सभी दोस्त जरूर मिलते। कम से कम महीने में एक बार तो मिल ही लेते। सब
आसपास दिल्ली ,गुड़गाँव, फ़रीदाबाद नोएडा में ही थे। कुछ समय से जतिन के मन में पूर्वी के लिए कुछ ज्यादा ही
साफ्ट कोरनर बनने लग गया था। दोस्त तो वो बहुत पुराने थे। बहुत बार अकेले भी मिल चुके थे। लेकिन आजकल
जतिन पूर्वी से मिलने के लिए ज्यादा ही उत्सुक रहता। जबकि पूर्वी में कोई बदलाव नहीं, वो तो उससे पहले की तरह
ही मिलती। वैसे भी पूर्वी को पता था कि ढ़ग का लड़का उसे मिलेगा नहीं, और समझौता करना वो चाहती नहीं थी। वो
बड़ी दृढ़ निश्चय वाली और अपने कैरियर को समर्पित थी। जिस कंपनी में वो काम करती थी, वहां उसकी बहुत इज़्ज़त
थी।कंपनी का आफिस तो हैदराबाद में था। वो तो घर से ही काम करती थी। लेकिन साल में दो बार उसे वहाँ एक एक
हफ़्ते के लिए जाना होता था। ज़ाहिर है कि सब ख़र्चा कंपनी ही उठाती थी।समय अपनी गति से चलता जा रहा था।
जतिन का पूर्वी के घर भी आना जाना होता था।आजकल के जमाने में लड़के लडकियां मिलते रहते है और उनकी
दोस्ती पर पढ़े लिखे लोगों के घरों में कम ही आपत्ति होती है।
जतिन का अपनी और खिंचाव कुछ दिनों से पूर्वी भी महसूस कर रही थी लेकिन फिर उसे ये
अपना वहम ही लगा। उसने महसूस किया कि जैसे जतिन कुछ कहना चाहता हो, लेकिन कह नहीं पा रहा। उसे लगा
कि शायद उसके घर में कोई प्रोब्लम न चल रही हो। दरअसल जतिन भी अपने आप से उलझ रहा था। पूर्वी के बारे में
उसके परिवार के बारे में वो अच्छे से जानता था। पूर्वी को प्रपोज़ करने से पहले वो अपने मन की थाह लेना चाहता
था। क्या सचमुच ही वो पूर्वी से प्रेम करने लगा था या फिर उसे सहानुभूति थी। कहीं ऐसा तो नहीं कि बाद में उसे
अपने निर्णय पर पछताना पड़े। पैर में नुक़्स है तो क्या हुआ, बोलती कितना मधुर है, घने बाल गोरे मुखड़े पर जब
अठखेलियाँ करते है तो वह अपनी नज़र ही नहीं हटा पाता। ग़ुस्सा करना तो जैसे वो जानती ही नहीं। सबसे बड़ी बात
कि अपने आप को हर स्थिति में कितनी आसानी से एडजस्ट कर लेती है। पिछली बार जब उनका गरूप घूमने गया
था, तो एक जगह जंगल में रास्ते में उनकी गाड़ी खराब हो गई, और उन्हें काफी मुशकिल हुई। सब लोगों का मूड
खराब और पैकेज कम्पनी को फ़ोन पर उलटा सीधा बोल रहे थे। सिर्फ़ पूर्वी ही शांत मन से सबका मूड ठीक करने में
लगी हुई थी। बड़ी बार ऐसा होता था कि कठिन से कठिन परिस्थितिथी में भी उसके होंठों पर स्वाभाविक मुसकान
तैरती ।
जतिन को लगता कि माँ की मृत्यु के बाद वो पूर्वी के ज्यादा क़रीब हो गया। दरअसल छोटा होने के कारण वो
अपनी माँ के बहुत क़रीब था। कुछ तो पिताजी का स्वभाव गरम था और कुछ वो बिजनस में व्यस्त रहते। कई बार
तो वो अपने आप को बिलकुल ही अकेला महसूस करता। आख़िर एक दिन हिम्मत करके उसने पूर्वी को कह दिया कि
वो उसे प्यार करता है, और शादी करना चाहता है।एकबारगी तो पूर्वी को अपने कानों पर यक़ीन नहीं हुआ । वो इस
स्थिति के लिए बिलकुल तैयार नहीं थी। बिना उसकी बात का जवाब दिए उसने जतिन को घर छोडने के लिए कहा।
मन की बात तो कह दी, लेकिन हड़बड़ा वो भी गया। चुपचाप उसने बाईक स्टार्ट की और पूर्वी को घर छोड़ दिया।
रास्ते में दोनो ही चुप रहे। घर के आगे उतर कर पूर्वी ने 'बाए बाए 'कहने की बजाए सिर्फ़ इतना ही कहा कि अपनी
बात पर अच्छी तरह ग़ौर करले। जल्दबाज़ी में निर्णय लेना ठीक नहीं। और अपने घर के अंदर चली गई। शायद पहली
बार उसने जतिन को घर के अंदर आने के लिए नहीं कहा था। वरना तो हमेशा ही वो उसे अंदर आकर चाय काफी
पीने के लिए जरूर कहती थी, और कई बार वो आ भी जाता था। लेकिन आज परिस्थितियाँ कुछ और थी।
हर लड़की की तरह शादी के सुनहरी सपने तो पूर्वी ने भी देखे थे, लेकिन धीरे धीरे उसे वास्तविकता
भी समझ आ गई थी। अब तो उसकी उम्र तीस की होने वाली थी। ये नहीं कि उसकी शादी की किसी को चिंता नहीं
थी। उसके परिवार वाले सभी बहुत अच्छे थे। कई बार उसकी सहेलियाँ अपने परिवार की लड़ाई झगड़े की बातें बताती
तो उसे बड़ी हैरानी होती क्योकिं उसके परिवार में ये बातें न के बराबर थे। दूर दूर के रिशतेदारों का उनके घर आना
जाना लगा रहता था, और वो भी जाते थे। रिशते की बात तो कई जगह चली लेकिन कहीं न कहीं अटक गई। आज
जब जतिन ने अपने मन की बात कही तो वह सोचने को मजबूर हो गई। वो कोई अठारह – बीस साल की अल्हड़
यौवना तो थी नहीं, वो तो अपनी उम्र से भी ज्यादा परिपक्व मन की थी। मन के किसी एक कोने में खुश तो वो भी
थी, लेकिन उसे धरातल पर पैर रखकर फैसला लेना था। जतिन और उसके परिवार में किसी प्रकार की कोई कमी नहीं
थी, तो क्या वो उसे बहू के रूप में स्वीकार कर पाऐगें ? दूसरी तरफ़ वो मांबाप की इकलौती संतान थी, माँ भी अकसर
बीमार रहती है। इलाज पर काफी ख़र्चा हो जाता था। पापा की कमाई से तो घर भी नहीं चल पाता। पहले उसके दादा
जी की पेंशन आती रहती थी। बाद में उनके गुज़र जाने के बाद ननिहाल से बहुत सहारा मिला। और अब तो वो भी
कमाने लग गई। लेकिन इस मंहगाई के जमाने में गुजारा करना आसान नहीं है, अभी तो गाड़ी की भी कितनी किश्तें
बाकी है। शुक्र है कि फ़्लैट की सारी किशते दादा जी ने चुकता कर दी थी।
इसी उहापोह में दो दिन निकल गए। न उसका काम में मन लगता और जतिन को
फ़ोन करने की हिम्मत भी नहीं थी। आख़िर बात करती भी तो क्या। तीसरे दिन जतिन का फ़ोन आया कि वो उसकी
बिल्डिंग के नीचे ही खड़ा है, और वो उससे मिलना चाहता है। मिलना तो पूर्वी भी चाहती थी, लेकिन पहल करने से
सकुचा रही थी। दस मिंट मे ही वो नीचे पहुँच गई, मगर जतिन से नज़रें नहीं मिला पाई। "हाय "कह कर चुपचाप
बाईक के पीछे बैठ गई। उसे ख़ुद पर ही हैरानी हो रही थी। माना कि वो बहुत बातूनी नहीं थी, लेकिन फिर भी काफी
बातें होती थी। दो दिन में ही जैसे सब बदल गया। जतिन ने काफी हाउस के सामने जा कर बाईक खड़ी कर दी। दोनों
चुपचाप एक कोने वाली टेबल पर बैठ गए। कुछ देर तक यों ही चुप्पी पसरी रही। फिर जतिन ने हिम्मत करके धीरे से
उसके हाथ पर अपना हाथ रखते हुए पूछ ही लिया" कुछ सोचा
पूर्वी कुछ बोल नहीं पा रही थी, शब्द जैसे मुहँ में अटक कर रह गए। कुछ देर मौन
पसरा रहा।बात बदलते हुए जतिन ने पूछा, " क्या खाओगीकोई जवाब न पाकर जतिन ने साऊथ इंडियन आर्डर कर
दिया। उसे मालूम था कि पूर्वी को डोसा इडली बहुत पंसद है। थोड़ी देर में खाना आ गया तो दोनों चुपचाप धीरे धीरे
खाने लगे। ऐसे चुपचाप तो वो कभी खाते ही नहीं थे। जब भी मिलते थे तो न जाने कितनी ही बातें दोनों के बीच
होती थी शेयर करने के लिए। समय बीत जाता, लेकिन बातें खत्म ही नहीं होती थी। तभी खाते खाते अचानक ही पूर्वी
ने सीधे शब्दों में पूछा, " क्या तुम्हारे घर वाले इस रिशते के लिए राज़ी होगें"? उनसे बात करने से पहले मैं तुम्हारे
विचार जानना चाहता हूँ? अगर तुम तैयार हो तो मैं घर वालों को मना लूँगा। वैसे सब अपनी अपनी गृहस्थी में मस्त
है, किसी को मेरे बारे में सोचने की फ़ुरसत नहीं है। पिताजी को काम और शराब के अलावा कुछ सूझता नहीं, माँ होती
तो और बात थी, जतिन का स्पष्ट उत्तर था। जानती तो पूर्वी पहले भी थी, लेकिन आज उसके मुँह से सुनकर साफ
था कि माँ की मौत के बाद जतिन अपने आप को कितना अकेला महसूस करता है।
"वैसे तो तुम मेरे बारे में काफी कुछ जानते हो, लेकिन फिर भी में बहुत सी बातें स्पष्ट
करना चाहूँगी।मेरी विकलांगता के बारे में तो तुम्हें पता ही है। इसके इलावा मुझे अपने माँ बाप की आर्थिक सहायता
भी करनी होगी। उनकी सेवा मेरी जिममेदारी है। किसी प्रकार के दहेज की उम्मीद न रखना। शादी बिलकुल सादा
तरीके से होगी। पूर्वी ने बिना किसी लागलपेट के एक ही बार में सारी बातें कह दी। जतिन तो इस सब के लिए
पहले से ही तैयार था। उसके उदास चेहरे पर जैसे रौनक़ लौट आई, खुशी के मारे मुँह से जब कोई शब्द न सूझे तो
उसने धीरे से पूर्वी का हाथ दबा दिया और उसकी आखों में झाँकने लगा। उसकी नज़र में न जाने क्या था कि पूर्वी के
गाल सुर्ख़ हो उठे , जैसे किसी ने मुट्ठी भर गुलाल मल दिया हो। खाना तो लगभग खत्म हो गया था, और बातों के
चक्कर में कोफी ने तो ठंडा होना ही था। लेकिन किसे परवाह थी। जतिन ने जल्दी से बिल से कहीं ज्यादा पैसे प्लेट
में रखे और अधिकार से पूर्वी का हाथ पकड़कर बाहर आ गया।जतिन ने बाईक को किक मारी तो पूर्वी पहले की तरह
पीछे बैठ गई लेकिन थोड़ा सा सटकर। अब जतिन का हौसला भी बढ़ गया था। वो मुस्करा कर थोड़ा पीछे को हो
गया। पूर्वी ने भी हलके से अपनी बाहें जतिन की कमर में डाल दी। दोनों मानों हवा में उड़ते जा रहे थे।जतिन ने पूर्वी
को घर के बाहर छोड़ दिया।
जतिन के तो पाँव मानो ज़मीन पर नहीं पड़ रहे थे, लेकिन आने वाली मुश्किलों से वो भी अनजान
नहीं था।दो तीन बार पूर्वी भी जतिन के घर जा चुकी थी, लेकिन अकेले नहीं। उसकी बहन की शादी पर और ममी की
मृत्यु पर उनका सारा गरूप ही गया था। दोनों बार ही काफी भीड़ थी, इसलिए किसी को कुछ याद नहीं होगा, लेकिन
बहन की शादी के वक़्त सब लोग उसकी माँ और भाभी से विशेषतौर पर मिले थे। माँ तो अब रही नहीं, तो जतिन ने
सोचा कि भाभी से ही बात की जाए। वैसे तो देवर भाभी के रिशते में बहुत अपनापन और चुहलबाजी होती है, लेकिन
जतिन थोड़ा शर्मीला था। मज़ाक़ वजाक करना उसे नहीं आता था। उसकी भाभी से सिर्फ़ काम की बात ही होती थी।
चाचाजी की बहू भी थी, लेकिन उससे भी वो कम ही बोलता था। चाची और पिताजी से बात करने की हिम्मत ही नहीं
हो रही थी। उसकी अपनी बहन और चाचा की दोनों बेटियाँ अपने अपने घरों में थी। उसने अपनी बहन से ही बात
करने का मन बनाया। बहन का घर दूसरे शहर में था, और बिना किसी काम के वो वहाँ जाए कैसे। यूँ तो उसकी
शादी को चार साल हो गए थे, लेकिन जीजाजी से भी काम की बात होती थी।
जतिन समझ नहीं पा रहा था कि आख़िर अपने मन की बात किससे कहे। रह रह कर माँ की याद
आती। काश अगर आज माँ ज़िंदा होती तो सब कुछ संभाल लेती। इसी ऊहापोह में चार दिन निकल गए। इस बीच वो
पूर्वी से मिला तो नहीं, अलबत्ता फ़ोन पर रोज़ बात होती। दोनों का समय इधर उधर की बातों में निकल जाता। पूर्वी ने
कुछ पूछा नहीं और जतिन के पास बताने को कुछ था नहीं। दोस्तों की मदद भी नहीं ली जा सकती थी। अगले दिन
जब वो शाम को घर पहुँचा तो अपनी बहन को देखकर उसकी खुशी की सीमा न रही। दरअसल उसके जीजाजी को
साथ वाले शहर में एक दिन के लिए कुछ काम था तो बहन भी साथ ही चली आई। वो उसे छोड़कर चले गए थे।
जतिन बात करने का मौका ढूँढ रहा था, लेकिन संयुक्त परिवार में एकांत मिलना इतना आसान नहीं होता। चाची,
दोनों भाभियाँ , उपर से बच्चों ने उधम मचा कर रखा हुआ था। रात के खाने के बाद जब सब सोने को चले गए तो
बहन पिताजी के कमरे में जाकर उनका हाल चाल पूछने लगी। पहले तो बड़ा भाई भी था, लेकिन फिर वो चला गया।
जतिन भी वहाँ जाकर बैठ गया। पिताजी ने ही बहन से कहा कि वो कोई लड़की जतिन के लिए ढूँढे।
बहन ने कहा कि लड़कियां तो दो तीन उसकी नज़र में है, लेकिन जतिन हां तो बोले। एक तो उसकी नन्द की सहेली
ही है, अगर कहो तो बात चलाऊँ । बहन ने मोबाईल से उसकी फ़ोटो भी दिखा दी। लेकिन जतिन को कहाँ दिलचस्पी
थी। मगर उसने थोड़ी हिम्मत दिखाई। उसने भी पूर्वी की फ़ोटो मोबाईल से उसके आगे करते हुए कहा, " ये लड़की
कैसी रहेगी, याद है आपको, आपकी शादी में भी आई हुई थी। बहन मीता ने ध्यान से देखा और बोली, तब का तो
याद नहीं, लेकिन मैने इसे देखा हुआ है। जहाँ तक मुझे याद है, छोटे क़द की गोरी सी लड़की है, और थोड़ा लँगड़ाकर
चल रही थी, शायद इसके पैर में चोट लगी हो। नहीं दीदी, इसके पैर में थोड़ा जन्मजात नुक़्स है। लेकिन बहुत अच्छी
और मुझे पंसद है। पिछले सात सालों से मैं इसे जानता हूँ। इसके पहले की मीता और पापा कुछ बोलते जल्दी जल्दी
उसने उसके बारे में सब कुछ बता दिया। अब बाप बेटी एक दूसरे का मुँह देख रहे थे।
जिस बात का जतिन को डर था वही हुआ।पिताजी की आखों में जैसे ख़ून उतर आया। दिन का समय
होता तो न जाने वो कया करते। रात के बारह बज रहे थे।वो चुप रहे,ग़ुस्से को दबाते हुए सिर्फ़ इतना ही कहा, सुबह
बात करेंगे। अगले दिन घर में हंगामा खड़ा हो गया। चाची ने तो कुछ नहीं कहा, मगर उनका बेटा और जतिन का
सगा भाई तो आक्रोश से भरे बैठे थे। ऐसी लड़की से शादी कर के समाज में हमारी नाक कटवानी है क्या? लोग
हमारा मज़ाक़ बनाऐगें, तुझे क्या लड़कियों की कमी है। भाभियाँ भी कहाँ पीछे थी। जिसके मुँह में जो भी आया कहे
जा रहा था।एक तो जतिन सबसे छोटा, उपर से कम बोलने वाला, कुछ कह नहीं पा रहा था। वैसे भी उसको अपनी
बात रखने का मौका ही कहाँ मिल रहा था। बामुशकिल इतना ही कह पाया कि मुझे वो पंसद है। और घर से बाहर
निकल गया। जतिन की अपने चाचा के बेटे से शुरू से ही कम बनती थी, और अपने सगे बड़े भाई से भी कम ही बात
होती थी। पिताजी तो वैसे ही भड़के हुए थे। घर के माहौल में उसका मन पहले ही कम लगता था और अब तो कोई
उससे सीधे मुँह बात भी न करता। एक तरह से घर में मातम सा छाया हुआ था। दो दिन के बाद चाची ने सिर्फ़ इतना
पूछा कि क्या लड़की वाले बहुत अमीर है?;नहीं, साधारण परिवार है। तो इसका मतलब कि वो तो हमारी बराबरी के
भी नहीं है, आख़िर तूने क्या देखा उस लड़की में, जो उसके पीछे दीवाना हुआ फिरता है। जतिन को सिर्फ़ बहन से कुछ
उम्मीद थी, लेकिन अगले दिन वो बिना उससे मिले ही चली गई थी।माँ के जाने के बाद यूँ तो जतिन पहले भी अकेला
था और अब तो बिलकुल ही तन्हा हो गया। पहले तो कभी कभी पिताजी फिर भी उससे बात कर लेते थे लेकिन अब
वो भी बंद।
बिजनैस में चारों के काम बँटे हुए थे। दो आफिस थे। एक में जतिन और चाचा का बेटा बैठता था और
दूसरे को पिताजी और बड़ा भाई संभालते थे। बिजनैस के इलावा जतिन की किसी से और कोई बात नहीं होती थी।
महीना इसी तरह बीत गया। पूर्वी ने अपनी मां को सब बता दिया था और माँ ने पापा को। उन्हें तो यक़ीन ही नहीं हो
रहा था कि पूर्वी की किस्मत इतनी अच्छी भी हो सकती है।जतिन को वो काफी अच्छे से जानते थे। पर अदंर अंदर वो
भी डर रहे थे। वैसे भी दोनों बहुत ही सादा प्रवति के, और छल कपट से कोसों दूर। जतिन की पूर्वी से लगभग रोज़
ही बात होती, और वो मिलते भी रहते। पूर्वी भी अब काफी अशवस्त हो गई थी। घर मे भी जतिन का आना काफी बढ़
गया था। पूर्वी के कुछ नज़दीकी रिशतेदार भी आसपास ही रहते थे। कितना भी छुपाओ , ऐसी बातें कहाँ छुपती है।
तीन महीने और निकल गए। पूर्वी के ममी पापा जतिन के पापा और उसके परिवार वालों से मिलकर बक़ायदा रिशते
की बात करना चाहते थे, मगर जतिन टाल रहा था।
उधर जतिन अपने पापा को समझाने की पूरी कोशिश कर रहा था, लेकिन वो टस से मस नहीं हुए। घर में
और किसी से बात करना ही बेकार था। लेकिन जतिन के मन में पूर्वी का प्यार कम नहीं हुआ, बल्कि दिन प्रतिदिन
बढ़ ही रहा था। चाहे जो भी हो, शादी तो उसे पूर्वी से ही करनी थी। उसी शहर में रहने वाली पूर्वी की बड़ी मासी को
सारी बात का पता था। चूँकि पूर्वी की ममी की तबियत ठीक नहीं रहती थी, इसलिए अकसर उसका छोटी बहन के घर
काफी आना जाना लगा रहता था। लगभग पाँच महीने होने को आए, लेकिन बात आगे बढ़ी ही नहीं, अलबत्ता पूर्वी और
जतिन का मिलना जुलना बहुत बढ गया था। अब उनको मना करना भी मुशकिल था, और कुछ कह कर वो इतना
अच्छा रिश्ता गँवाना भी नहीं चाहते थे। पूर्वी की माँ ने कई बार पूर्वी और जतिन के सामने बहाने से कई बार बात
छेड़ी लेकिन कुछ नहीं हुआ। अब तो उसे चिंता भी होने लगी, जो कि स्वाभाविक ही था।
कुछ दिनों बाद की बात है कि पूर्वी की मासी आई हुई थी। पूर्वी की माँ जितनी शांत और मितभाषी
थी, मासी उतनी ही तेज़तर्रार और चुस्त थी। उसी शाम को जतिन भी आ गया। मासी तो कई दिनों से जैसे इसी के
इंतजार में थी। चाय पीते वक़्त उसने जतिन से कह ही दिया कि बहुत मिल लिए , अब तो शहनाई बजनी चाहिए।
हमेशा की तरह जतिन बहाना बनाने लगा, लेकिन मासी भी कहाँ कम थी। उसने भी जतिन को आड़े हाथों लिया।
आख़िर जतिन ने इतना कहा कि इस साल में वो हर हालत में शादी कर लेगा। साल खतम होने में अभी चार महीने
थे, लेकिन इंतजार करने के सिवाय कोई चारा भी तो नहीं था। पूर्वी को तो जतिन ने अपने घर वालों के बारे में सब
बता दिया था। ताकि वो आने वाली परिस्थितियों के लिए तैयार रहे।
इसी बीच पूर्वी की मासी और पापा अपने दो और क़रीबी रिशतेदारों के साथ जतिन के
घर हो आए थे, लेकिन किसी ने उनसे ढ़ग से बात तक नहीं की।एक तो उसकी ममी बीमारी के कारण नहीं गई थी,
दूसरा उसे वो ले जाना भी नहीं चाहते थे। माँ का दिल ऐसे घर में भला कैसे अपनी बेटी को भेजने के लिए तैयार
होता, जहाँ कोई सीधे मुँह उससे बात करने वाला भी न हो। किसी को समझ नहीं आ रहा था कि आख़िर क्या किया
जाए। जतिन ने पूर्वी से इतना भी कह दिया कि हो सकता है उसके घर वालों का व्यवहार उससे भी अच्छा न हो। वो
चाहे तो रिशते के लिए इनकार कर सकती है। लेकिन अब तो पूर्वी भी पीछे हटने को तैयार नहीं थी। उसने सोचा कि
जब जतिन उसके साथ है तो चिंता किस बात की, धीरे धीरे सब ठीक हो जाएगा। इसी तरह दो महीने और निकल
गए, लेकिन पापा को मनाने की जतिन की हर कोशिश नाकाम रही।
पूर्वी और जतिन ने कोर्ट मैरिज करने का फैसला कर लिया। इसमें कुछ समय भी लगता है। जतिन
ने अपने घर पर अभी तक किसी को कुछ नहीं बताया था। अर्ज़ी दाख़िल हो चुकी थी। दोनों की इच्छा थी कि शादी के
बाद छोटी सी रिसेप्शन पार्टी कर देगें। जतिन की ज़िद देखकर चाची और बहन थोड़ा मान गए थे, लेकिन उन्होनें
बहनों ( एक सगी बहन और दो चाचा की बेटियां) और परिवार के अन्य सदस्यों के नेग की इतनी लंबी लिस्ट और
रीति रिवाजों के बारे में इतना कुछ बताया कि जतिन को तो जैसे चक्कर ही आ गया। पूर्वी की आर्थिक स्थिति से वह
भली भाँति परिचित था। दूसरी और ऐसे फालतू के आडंबरों से उसे भी बहुत चिढ़ थी। उस दिन के बाद उसने घर मे
इस बारे में बात करनी ही बंद कर दी। पूर्वी के माता पिता को कोर्ट मैरिज के बारे में जानकारी थी। वो दोनो तो ढ़ग
से शादी करना चाहते थे, आख़िर पूर्वी उनकी इकलौती बेटी थी। माना कि वो बहुत ख़र्चा नहीं कर सकते थे, लेकिन
फिर भी वो समाज के सामने पूर्ण रीति रिवाज के साथ बेटी को बिदा करना चाहते थे।
मासी के साथ जाकर पूर्वी ने शादी के लिए थोड़ी बहुत खरीददारी कर ली थी। एक सादा सा शादी का
जोड़ा और चार पाँच और ड्रेसेज़ । माँ के कहने पर उसके पुराने गहने देकर हल्के फुल्के दो चार गहने भी ले लिए।
थोड़ा बहुत रोज़मर्रा की ज़रूरतों का सामान। किसी को बिना बताए एक दिन दोनों कोर्ट पहुँच गए और साथ में जतिन
का एक दोस्त और एक दूर का कज़न और उसकी पत्नी। जानबूझकर कर जतिन ने पूर्वी के घर वालों को भी नहीं
बताया। ताकि कल को उसके घर वाले पूर्वी के पैरेंट्स पर कोई इल्ज़ाम न लगाए। वैसे तो उनका कहना था कि उन्होने
अमीर घर के लड़के को फँसा लिया। अपनी विंकलाग लड़की उसके गले बाँध रहे है। और भी बहुत कुछ। लेकिन जतिन
को किसी की परवाह नहीं थी। कोर्ट पहुँच कर पूर्वी ने मासी को फ़ोन किया, और सारी बात बताई। जल्दी से मासी ने
पूर्वी की माँ को फ़ोन किया और कुछ जरूरी सामान लेकर बहन के घर पहुँच गई। उसने पूर्वी की तीन चार सहेलियों
को भी फ़ोन करके घर पहुँचने के लिए कह दिया। जब जतिन और पूर्वी शादी करके घर पहुँचे तो सबने उनका स्वागत
किया।
पूर्वी तो टाप जीन्स मे ही शादी करके आ गई थी। घर में सब खुश थे। पूर्वी की ममी ने अपने दो
तीन पड़ौसी भी बुला लिए थे। रिशतेदार सब दूर थे। पूर्वी के रिशते के एक ताऊ पास मे रहते थे। पापा ने उनहें भी
बुला लिया था। अच्छे से खाना पीना हुआ। बाजे वाले भी बुलाए गए। जितनी हो सकी तैयारी करके पूर्वी की बिदाई कर
दी गई। आख़िर सोसायटी में सबको पता चलना जरूरी था। नहीं तो फालतू में लोगों को बातें बनाने का मौका मिल
जाता। वैसे तो जतिन के अकसर आने से बात छुपी हुई भी नहीं थी। इसी बीच जतिन ने अपने घर पर फ़ोन करके
भाभी को सब बता दिया। ज़ाहिर है कि वहाँ तो तूफ़ान आ गया होगा। लेकिन एक दिन तो इस स्थिति का सामना
करना ही था।
दोनों घर पहुँचे तो फीका सा स्वागत हुआ। मर्द तो कोई घर पर था नहीं। तीनों औरते और
एक नौकरानी । पूर्वी का सूटकेस जतिन के कमरे में रखवा दिया गया। चाय पानी की औपचारिकता के बाद सब अपने
अपने कामों मे व्यस्त हो गए। निशचित रूप से अंदर ही अंदर मोबाईल से खबर तो दूर दूर तक पहुँच ही गई होगी।
कहने को तो घर में जतिन के पापा, चाची, चाचा का बेटा बहू और उनके दो बच्चे, जतिन का सगा भाई , भाभी और
उनकी एक छोटी सी बेटी रहते थे। लेकिन संयुक्त परिवार वाली कोई बात नहीं थी। सब जैसे रिशतो को ढो रहे थे। घर
काफी बड़ा था। आर्थिक हालात भी बहुत अच्छे थे, लेकिन आपसी प्यार , सम्मान और भावनाएँ ग़ायब थी। घर की
तीनों शादी शुदा बेटियां अच्छे अमीर घरों में ब्याही थी और ख़ूब खुश थी। किसी ने ज्यादा पढ़ाई लिखाई नहीं की थी,
और किसी ने इस और ध्यान भी नहीं दिया। बस ख़ूब सारा दाज दहेज देकर विदा कर दिया। उन सब की जिंदगी
घूमने फिरने , किट्टी पार्टियों और गहने बनवाने तुड़वाने में ही मज़े से गुज़र रही थी। घर की दोनों बहुएँ भी लगभग
ऐसी थी। जतिन की सगी भाभी अच्छी पढ़ी लिखी थी, और शादी से पहले नौकरी करती थी। लेकिन उसकी नौकरी भी
छुड़वा दी गई। पहले तो उसने विरोध किया लेकिन फिर धीरे धीरे उसने हालात से समझौता करने में ही अपनी भलाई
समझी।
लेकिन पूर्वी तो बिलकुल ही अलग थी। उसने तो अच्छे कालिज से इजिंनियरिंग की हुई थी।
बहुत से सपने भी थे। कैरियर और जिंदगी में उसे बहुत आगे बढ़ना था। उसे उम्मीद थी कि जतिन उसका पूरा साथ
देगा। पिछले छ: महीनों में जतिन ने उसे अपने घर के हालातों से अच्छी तरह वाक़िफ़ करवा दिया था। पूर्वी ने भी
कुछ नहीं छुपाया था। शादी तो हो गई, लेकिन असली इम्तिहान तो अभी शुरू होने थे।सबके अपने अपने कमरे और
घर के कामों के लिए एक परमानैंट नौकर था। दिन में दो मेड भी आती थी। चाची ने कुछ काम दोनों बहुओं को बाँटे
हुए थे। जिंदगी जैसे यंत्रवद सी चल रही थी। टाईम पर सुबह शाम खाना बन जाता और जिसका जब जी करता अपने
कमरे मे ले जाकर खा लेता। पुरूषों के टिफ़िन पैक करना बाजार से सब्ज़ी राशन सब ज़िम्मेवारी नौकर की थी। अपने
बच्चों का खाना , नाश्ता सब अपने आप तैयार करते। कोई फ़्रूट खाता तो कोई डबलरोटी। बहुत बार खाना बाहर से भी
आ जाता। आपस में कई कई दिन तक बात ही नहीं होती थी। चाची बहुत वहमी स्वभाव की थी। अपना खाना ख़ुद ही
पकाती। जतिन के पिताजी का थोड़ा बहुत ध्यान नौकर ही रखता था।
शादी वाले दिन जब सब घर आए तो किसी ने किसी से इस विषय में कोई बात
नहीं की। अपने अपने कमरों में जाकर जरूर की होगी। पूर्वी और जतिन ने खाना अपने कमरे में ही खा लिया। सुबह
हुई तो पूर्वी नहा धो कर कमरे से बाहर निकली। रसोई में झाँका तो कोई नहीं। शायद उस दिन बच्चों की छुटटी थी।
बस चाची अकेली बैठी चाय पी रही थी। पूर्वी ने सिर पर पल्लू लेकर उनके पैर छूने चाहे तो बस इतना कहा किठीक
है, ठीक है"। पूर्वी और जतिन ने मिलकर चाय बनाई, तो पापा जी भी दिखाई दिए। दोनों उनको चाय देने गए तो पैर
भी छू लिए। वो कुछ नहीं बोले। दोनों अपने कमरे में आकर चाय पीने लगे। थोडी देर बाद घर में हलचल शुरू हो गई।
घर के पुरूष अपने अपने कामों पर चले गए। पूर्वी अपने कमरे मे आ गई। जतिन ने कहा कि आज वो लंच पर घर
आएगा। वैसे तो उनके टिफ़िन साथ हा जाते थे। तीन चार दिन इसी तरह निकल गए। कोई मुँह दिखाई, चौका चढ़ाना,
कोई शगुन कुछ नहीं हुआ। घर का वातावरण मातम समान था। तूफ़ान के संकेत थे।
पूर्वी ने धीरे धीरे घर के कामों में दिलचस्पी लेनी शुरू कर दी। साथ ही साथ उसने अपना आन
लाईन काम भी जारी रखा। शाम को वो दोनों घूमने भी चले जाते। बीच में दोनों पूर्वी के घर भी चक्कर लगा आए थे।
माँ के पूछने पर पूर्वी ने बस इतना ही कहा कि सब ठीक है। पूर्वी के ममी पापा ने रिशतेदारों को भी उसकी शादी की
सूचना दे दी थी और न बुलाने के लिए क्षमा भी माँग ली। लेकिन सब रिशतेदार इस शादी से बहुत खुश थे।किसी ने
कोई गिला नहीं किया, बल्कि आशीर्वाद दिया और अपने घर आने का निमंत्रण भी दिया। पूर्वी अपनी और से पापा और
चाचीजी के काम करने की कोशिश करती । उनके लिए चाय बनाना, कपड़े समेटना तथा और भी छोटे मोटे काम कर
देती। इसी दौरान उसकी तीनों ननदें भी चक्कर लगा गई। बस सब औपचारिकताएँ पूरी हो रही थी। पूर्वी के पापा ने
कई बार जतिन के पापा से बात करने की कोशिश की, लेकिन उन्होनें फ़ोन काट दिया। वो चाहते थे कि सारा परिवार
उनके घर खाने पर आए, लेकिन बात नहीं बनी। उनहोनें जतिन के घर पर जाने का प्रोग्राम बनाया लेकिन जतिन ने
उन्हें मना कर दिया।
जतिन के पिताजी रोज़ रात को शराब पीते थे, लेकिन फिर चुपचाप सो जाते थे। शादी को दस बारह दिन
ही हुए थे कि एक रात खाने के बाद जतिन और पूर्वी को अपने कमरे में बुलाया और मन की सारी भड़ास निकाल दी।
यहाँ तक कि ख़ूब गालियाँ भी बकी। दरअसल उनके एक दोस्त जो कि अपनी भांजी की शादी जतिन से करवाना
चाहता था, ने यह कह कर उनका मज़ाक़ बनाया कि लगता है करोड़ो का दहेज मिला है, अकेली लड़की है, लड़का घर
जवाई बन कर रहेगा। दोनो चुपचाप उठ कर आ गए। पूर्वी का मूड बहुत खराब हुआ। उसे इस प्रकार के बर्ताव की तो
क़तई उम्मीद नहीं थी। सारी रात वो यही सोचती रही कि आख़िर उसका क़सूर क्या है। अगर शादी के बाद किसी के
साथ कोई दुर्घटना घट जाए तो क्या तब भी इनका बर्ताव यही होता।यह सोचते सोचते पूर्वी कब नींद के आग़ोश में
चली गई , उसे पता ही नहीं चला।
कुछ दिन और गुज़र गए, लेकिन कुछ नहीं बदला। हर दो तीन दिन के बाद जतिन के पापा
शराब पीकर तमाशा करते। पूर्वी और जतिन दोनों को उल्टा सीधा बोलते,पूर्वी के घर वालों को ख़ूब गालियाँ निकालते।
एक रात बोले कि आज से अगर तुम्हें इस घर में रहना है तो पूर्वी अपने मायके नहीं जाएगी और न ही जतिन
जाएगा। उन्होनें एक बार भी नहीं सोचा कि पूर्वी अपने माँ बाप की इकलौती बेटी है, और उपर से उसकी माँ भी बीमार
रहती है। जतिन तो नहीं चाहता था लेकिन पूर्वी ने जतिन को समझाया कि चलो कोई बात नहीं। कुछ दिन नहीं जाऐगें
। उसने अपनी माँ को भी फ़ोन पर बता दिया और समझा भी दिया। पूर्वी के मायके में तो आपस में बहुत मिलना
जुलना होता था, जबकि यहाँ हालात बिलकुल उल्ट थे। बाहर से तो किसी ने क्या आना, घर में रहने वालों की भी
आपस में बहुत कम बातचीत होती थी। पूर्वी के सब रिशतेदार तो यही समझते थे कि पूर्वी बहुत खुश है। जब भी कोई
उसके मायके आता तो पूर्वी को मिलने की इच्छा ज़ाहिर करता। वो उसे बहाने से टालकर उसे उसकी ससुराल न जाने
देते, और पूर्वी और जतिन ही उनसे आ कर मिल जाते, लेकिन अब तो उनका आना भी बंद हो गया था। जतिन के
पापा को शक था कि वो चोरी छुपे जाते होगें, लेकिन उन दोनों ने अपना वचन नहीं तोड़ा।
इसी घुटन भरे माहौल में तीन महीने गुज़र गए। बेचारी पूर्वी समझ नहीं पा रही थी कि आख़िर
वो क्या करे। सिर्फ़ पापाजी ही नहीं, घर के बाकी सदस्य भी बेगानों सा व्यवहार करते। अब तो जतिन का आफिस में
भी मन नहीं लगता था, क्योकिं वहाँ पर उसका पापा, चाचा का बेटा यहाँ तक उसका अपना सगा भाई भी उससे ढ़ग
से बात नहीं करते थे। बामुशकिल काम की बात ही होती थी। ऐसा लगता था कि सब उसको वहाँ से निकालना चाहते
हो।
एक दिन किसी शादी के सिलसिले में पूर्वी की मासी की बेटी लता अपने पति के साथ उस शहर में आई, जो
कि पूर्वी की हमउमर थी। दोनों में बहुत प्यार था।उसने पूर्वी की ममी यानि अपनी मासी से पूर्वी के घर का पता माँगा।
पहले तो उसने बहुत टालमटोल की लेकिन मजबूरन उसे पता बताना पड़ा।संयोग से जिस शादी में वो आई थी वो पूर्वी
के घर के पास ही था। उसने योजना बनाई कि वो रात को पूर्वी के घर पर ही रहेगी। दोनों ख़ूब बातें करेगी और वो
उसके ससुराल वालों से मिल भी लेगी। उसने पूर्वी को फ़ोन कर दिया और साली के हक़ से जतिन को भी फ़ोन पर
शादी पर न बुलाने के लिए ख़ूब खिंचाई की।मज़ाक़ मज़ाक़ में ये भी कह दिया कि जो भी साली का नेग होता है, वो
लेकर रहेगी।
कुछ बढ़िया तोहफे लेकर वो उनके घर पहुँच गई। लेकिन वहाँ का माहौल देखकर तो उसके होश उड़
गए। पूर्वी ने बहुत छिपाना चाहा लेकिन आख़िर कितना। शाम का समय था। आदमी तो कोई घर पर था नहीं। सब
औरते थी। कोई उससे मिलने नहीं आई। कोई भूले से बैठक में आ भी गई तो नमस्ते तक करने की किसी ने ज़हमत
नहीं उठाई। थोड़ी देर बातों में निकल गई। जतिन भी आ गया था। चाय वग़ैरह पीकर वो उठ खड़े हुए। लता काफी
कुछ समझ चुकी थी। उसे अपनी बहन के लिए बहुत बुरा लग रहा था, लेकिन वो भी क्या कर सकती थी। ऐसी और
भी बहुत सी घटनाएँ घटी। पूर्वी और जतिन की घर वालों को खुश करने की हर कोशिश बेकार हो रही थी। तीन महीने
और निकल गए। पूर्वी लगभग सारा दिन अपने कमरे में ही रहती और अपने कम्प्यूटर पर काम करती रहती । रात
को कभी कभी दोनों थोड़ी देर आसपास ही घूम लेते। पूर्वी मायके भी नहीं गई थी। जतिन के पापा के मिज़ाज को
देखते हुए पूर्वी के पापा की तो उनहें फ़ोन करने की भी हिम्मत नहीं होती थी। बस यही तसल्ली थी कि जतिन का
साथ है।
पिछले कुछ दिनों से पूर्वी की माँ की तबियत बहुत खराब चल रही थी। उन्होनें तो पूर्वी को नहीं
बताया लेकिन फिर फ़ोन पर माँ की आवाज़ से पूर्वी को शक हुआ। उसने जतिन से कहा, कि वो माँ से मिलना चाहती
है। जतिन समझ चुका था कि पापा पर कोई असर नहीं होने वाला, फिर भी उसने उनसे बात की। आशा के अनुसार वो
ग़लत ही बोले। जतिन के सहने की सीमा अब खत्म हो चुकी थी। वो जानता था कि माँ का प्यार क्या होता है। अगर
आज उसकी माँ होती तो उसकी स्थिति कुछ और ही होती। शाम को ही वो दोनों माँ से मिलने चले गए। रात को
जतिन के पापा ने ख़ूब बखेड़ा किया। अगले दिन आफिस में भी लड़ाई की। जतिन जलदी घर वापिस आ गया। अब
उसने आफिस जाना बंद कर दिया। जलदी ही उसे किसी अच्छी कंपनी में नौकरी मिल गई। आख़िर इतना पढा लिखा
था। घर के बाकी लोग बोलते नहीं थे, लेकिन पापा के कान भरते रहते थे। जतिन को अपने सगे भाई भाभी से ऐसी
उम्मीद क़तई नहीं थी। उसने तो हमेशा ही उन दोनों से प्यार किया था। अब तो ऐसा लग रहा था कि कोई उनको घर
में देखकर ही खुश न हो।
शादी को एक साल होने को आया। जब जतिन ने नौकरी ज्वाईन की तो किसी ने एकबार भी
नहीं पूछा कि घर का बिजनैस छोड़कर वो नौकरी क्यूं कर रहा है। आफिस जाने के लिए उनके पास दो गाड़िया थी,
और एक गाड़ी घर पर औरतों के लिए भी खड़ी रहती थी। लेकिन जतिन लोकल बस से आफिस जाता था। उसे सपने
में भी घर वालों से ऐसे व्यवहार की उम्मीद नहीं थी। सबसे छोटा, घर भर का लाड़ला जैसे लावारिस हो गया। वो दोनों
दो तीन बार बीमार भी हुए लेकिन कोई पूछने नहीं आया। फिर भी न जाने किस उम्मीद पर अब तक वो घर में रह
रहा था। शायद पिताजी का दिल पिघल जाए। एक दिन अचानक ही रात को जतिन के पापा की तबियत बिगड़ गई।
हस्पताल में दाख़िल करवाना पड़ा। रात को जतिन रहता और दिन में पूर्वी रहती। दो दिन तक बेहोश ही रहे। तीसरे
दिन होश आया तो देखा पूर्वी उनके पास बैठी है। कुछ नहीं बोले। लगभग हफ़्ता वहीं पर रहना पड़ा। घर के बाकी लोग
थोड़ी देर के लिए आते, लेकिन पूर्वी और जतिन तो वहीं पर रहते। बस थोड़ी देर के लिए घर जाते। पूर्वी ने वहाँ पर
जीजान से उनकी सेवा की। घर पर आकर दो चार दिन वो चुप रहे। जतिन को लगा कि शायद कुछ बदलाव आ गया
हो। लेकिन अगली रात ही गालियाँ बकने का सिलसिला चालू हो गया। सारा क्रोध पूर्वी और उसके मायके वालों पर
निकला।
दो दिनों के लिए जतिन को कंपनी के काम से पूना जाना पड़ा। पहली बार पूर्वी को उसके बग़ैर
रहना था। दो दिन के बाद जब वो वापिस आया तो पूर्वी अकेली कमरे में बीमार बुखार से तप रही लगभग बेहोश सी
लेटी पड़ी थी। अब तो हद ही हो चुकी थी। आख़िर ऐसा भी क्या गुनाह था बेचारी का। यही कि उसकी एक टाँग में
नुक़्स और क़द छोटा था। उसका सोने सा दिल किसी को नहीं दिखा। उसने नौकरानी से पूछा। वो बेचारी भी क्या
करती। जितना हो सका उसने तो सेवा की थी। लेकिन किसी ने उसको दवाई तक ला कर नहीं दी, किसी ने उसका
हाल तक नहीं पूछा। तीन चार दिन में वो ठीक हो गई। जतिन के सब्र का बाँध टूट चुका था। वो समझ गया था कि
उसके विरूद्ध साज़िश है, और उसका अपना भाई और चाचा का बेटा पापा के कान भरकर उसका घर जायदाद में
हिस्सा हड़पने के चक्कर में है। वो दु:खी तो बहुत हुआ, लेकिन फिर उसने मन को समझाया। देखा तो पास ही पूर्वी
कुर्सी पर बैठे बैठे ही सो गई थी। कितनी मासूमियत थी उसके चेहरे पर। लगभग डेढ़ साल होने को आया। कभी कोई
शिकायत नहीं , कोई माँग नहीं। लेकिन जतिन ने मन में कुछ ठान लिया था। उसने पैकिंग शुरू कर दी। आवाज़ें
सुनकर पूर्वी की नींद खुल गई। उसने पूर्वी को भी पैकिंग करने को कह दिया। उसने जतिन को समझाने की कोशिश
की लेकिन उसका इरादा पक्का था।
सिर्फ़ अपने कपड़े और अपना जरूरी सामान दो अटैचियों में भरा और आटो में बैठकर
पूर्वी के मायके आ गए। चार लाईनें लिखकर जतिन डाईनिगं टेबल पर छोड़ आया था। उस समय सिर्फ़ नौकर ने ही
उन्हें जाते देखा। रात को पूर्वी ने घर में सब कुछ बता दिया। रोहित और रोमा भी क्या कहते। मन तो सबका बहुत
दु:खी था। हल्की सी उम्मीद थी कि शायद जतिन के घर से कोई आए। लेकिन किसी ने आना तो क्या एक फ़ोन तक
नहीं आया। जल्दी ही जतिन ने पास में ही एक घर किराए पर ले लिया। पूर्वी के ममी पापा ने तो बहुत कहा कि वो
उनके साथ ही रहे, लेकिन जतिन नहीं माना। दोनों इतना तो कमा लेते थे कि गुजारा आराम से हो जाए। एक महीने
के अंदर ही वो अपने घर में शिफ़्ट कर गए। जतिन ने बहुत मना किया लेकिन घर का कुछ जरूरी सामान रोहित ने
भी लेकर दे दिया।
दोनों अब वैसे तो बहुत खुश है। हफ़्ते में दो तीन बार पूर्वी के घर भी हो आते है। पूर्वी की माँ की
हालत में भी काफी सुधार हो रहा है।जतिन कुछ नहीं कहता, लेकिन मन में तो सोचता ही होगा। सब दोस्तों से
मेलजोल है। पूर्वी और जतिन घूमफिर भी आए है। लेकिन एक कसक जरूर पूर्वी के मन में बनी हुई है। आख़िर उसका
क़सूर क्या है, और वो क्या करे। क्या रिशतों के धागे इतने कच्चे होते है?
विमला गुगलनी