रिटायरमेंट – सोनिया अग्रवाल

मोबाइल पर जैसे ही बैंक खाते में पैसे प्राप्त होने का मैसेज मिला तो बुजुर्ग रामलाल जी के चेहरे पर मुस्कान की एक लकीर चमक गई। देखते ही देखते आँखें नम हो गई तो जल्दी से बेटी सपना को फोन कर घर आने के लिए बोल दिया।

मासिक पगार  तय तिथि पर आ जाने की वजह से अब रामलाल जी का आत्मविश्वास मजबूत होने लगा था। सपना के साथ जाकर उन्होंने उसके महीने का राशन और दूध का बिल अदा किया। साथ ही साथ सपना की बिटिया राही की स्कूल की फीस भी भर आए।

सपना मन ही मन कसक के रह जाती थी कि उसके पिता को इस उम्र में भी उसका भरण पोषण के लिए इतनी मेहनत करनी पड़ रही है। मगर रामलाल जी उसके चेहरे के हावभाव को समझ उसको चिंता न करने की सलाह देते। 

           रामलाल जी सपना को उसके घर भेज थोड़ी देर मंदिर में जाकर बैठ गए। एक मात्र मंदिर ही ऐसी जगह है जहां मन को शांति मिलती थी उनके। आज उनके कारखाने की भी छुट्टी थी। रामलाल जी मंदिर में बैठे बैठे माया जी

अपनी पत्नी को याद करने लगे कि कैसे वो दोनों शादी के एक महीने के बाद ही नियम से मंदिर आते थे। मौसम , हालत चाहे कितने भी बदले मगर उनका नियम कभी नहीं बदला। मगर अब जब से माया जी चली गई तो उनका भी अब मंदिर आने का मन नहीं करता।

रामलाल जी और मायादेवी की दो संताने थी । पुत्र विजय और पुत्री सपना। दोनों बच्चे होनहार थे। प्रिंटिंग प्रेस में छोटी सी नौकरी से ही रामलाल जी ने अपने बच्चों को  पढ़ाया भी और ज्यादा बड़ा तो नहीं मगर दो कमरे का घर भी बना लिया था। 

        पुत्र विजय ने भी अपनी पढ़ाई पूरी कर जल्दी ही नौकरी भी प्राप्त कर ली थी। जैसी शिक्षा वैसी ही नौकरी और तनख्वाह भी वैसे ही थी। सपना की भी पढ़ाई पूरी हो जाने पर उन्होंने सही घर वर देख उसके भी हाथ पीले कर दिए।

नसीब अच्छा था कि सपना को राजीव के रूप में बड़ा अच्छा जीवनसाथी मिला था। राजीव के माता पिता नहीं थे मगर बड़े भाई भाभी ने उसे अपने बच्चे की ही तरह पाला था। राजीव के बड़े भाई भाभी अपने बच्चों के साथ गांव में रह कर खेती करते थे।

राजीव ने नौकरी करने के लिए शहर का जो रुख किया तो फिर शहर का ही हो गया। भैया भाभी की रजामंदी से राजीव और सपना की शादी हुई। सपना कुछ दिन भैया भाभी के साथ रहकर वापस राजीव के पास शहर लौट आई। मगर दोनों हर बड़े त्यौहार पर गांव जरूर जाते थे। 

       दो साल बाद विजय की भी दीपाली से शादी संपन्न कर रामलाल जी और माया देवी को लगा कि अब जिम्मेदारी से मुक्त हो गए। खुशी खुशी जिंदगी चल रही थी। बहु भी घर परिवार को संभालने वाली सुघड़ लड़की थी तो घर भी जन्नत लगता था।

रामलाल जी भी अपनी नौकरी पूरी कर अब रिटायर हो चुके थे। मगर अपने व्यवहार और कार्य कुशलता के चलते वो महीने में अपने कार्यालय के 2 चक्कर  लगा आते थे , जहां उनके मालिक के बच्चे भी उन्हें पूरा सम्मान देते थे। रामलाल जी रिटायर होने के बाद भी कभी बैठे नहीं।

घर के छोटे मोटे काम सब्जी फल लाना , बच्चों को स्कूल छोड़ना और लाना अब उनका नया नियम बन गया था।  दो पोतों से घर में समय का पता ही नहीं चलता। रामलाल जी का अधिकांश समय बच्चों को    पढ़ाने , स्कूल से लाने ले जाने में अच्छे से बीत रहा था।

कभी कभी वो माया देवी को छेड़ते की वो तो नौकरी से रिटायर हो गए मगर मायादेवी अभी तक भी रसोई से रिटायर नहीं हुई। ऐसा नहीं था कि मायादेवी को कोई मजबूरी थी रसोई का काम करने की। बहु दीपाली तो उनसे बहुत मना करती की अब वो अपना ध्यान दे, घुमा फिरा करे। मोहल्ले में होने

वाली भजन कीर्तन में जाया करे। तो मायादेवी का सरल सा जवाब होता की जब तक सांसे चलती रहे तब तक इंसान को सक्रिय बना रहना चाहिए। रसोई का काम उनके लिए किसी पूजा से कम नहीं था। वो स्त्री को अन्नपूर्णा मानती थी

जिसका संपूर्ण दायित्व अपने परिवार जन की जरूरत को पूरा करना होता है। और यह सोच सिर्फ उनकी अपने लिए थी। बहु पर कोई दबाव नहीं था। मगर दीपाली भी अपने सास के वचनों का पूरा पालन करती थी। कभी उसने घर में महसूस ही नहीं होने दिया कि वो पराए घर से आई है। 

        अपनी ननद को पूरा प्यार और सम्मान देती थी। समय पंख लगा कर उड़ रहा था कि  जल्दी ही सबकी खुशियों को ग्रहण लग गया जब राजीव का घर लौटते समय तेज गति से आते हुए

वाहन से टक्कर हो गई। सपना और राजीव की सारी की सारी जमा पूंजी राजीव को बचाने में ही खर्च हो गई। राजीव बच तो गया था मगर एक पैर से विकलांग हो गया था। सबको राहत थी कि राजीव बच गया। 

                अब राजीव नौकरी पर तो नहीं जा सकता था मगर उसके बड़े अधिकारियों से बात कर रामलाल और विजय ने राजीव की जगह छोटे पद पर सपना को नौकरी दिलवा दी थी। सपना की तनख्वाह का एक हिस्सा तो राजीव की दवाइयों पर खर्च हो जाता था

जिस से पूरा महीना निकालना भारी पड़ने लगा। हालांकि राजीव के भैया ने हर संभव कोशिश की वो हर महीने राजीव की कुछ आर्थिक मदद कर सके। मगर खेती से उनका ही घर चल जाए वोही काफी था।

राजीव अपने बड़े भाई की परिस्थिति से भली भांति वाकिफ था इसलिए उसने भाई को आर्थिक मदद के लिए मना कर दिया। फिर भी राजीव के भाई भाभी जो और जितना बन पड़ता मदद कर देते। 

        सपना से घर के खर्चे संभाले भी नहीं सम्भल रहे थे। एक तो उसकी तनख्वाह कम थी या यूं कहो कि राजीव की तनख्वाह के मुकाबले आधी थी। फिर घर की किश्त, बेटी की पढ़ाई, राजीव के इलाज और घरेलू खर्च पूरा कर पाना बड़ा कठिन हो रहा था। रामलाल जी और  मायादेवी  सब समझ रहे थे मगर मजबूर थे।

          रामलाल जी के पास भी कोई खास जमा पूंजी तो थी नहीं और अब तो कमाई का भी कोई साधन नहीं था। विजय की तनख्वाह उनके घर के लिए ही पर्याप्त थी। ऐसे में सपना की मदद की तो वो सोच भी नहीं सकते थे। 

         बेटी के दुख से आहत हो मायादेवी ने जो खाट पकड़ी तो फिर कभी नहीं उठी। एक रात सोई तो उठी ही नहीं। रामलाल जी का साथी छूट गया। एक तरफ साथी के जाने का ग़म और दूसरा बेटी की असहायता ने रामलाल जी को धीरे धीरे तोड़ना शुरू कर दिया था। जब दुख से हिम्मत जवाब देने लगी तो वो मंदिर चले गए।

वहां बैठ माया जी को याद कर रहे थे तो उन्हें माया जी की रह रह कर वो बात याद आ रही थी जिस में वो कहा करती थी,“ इंसान को मरते दम तक सक्रिय रहना चाहिए”। रामलाल जी को लगा कि जैसे वो इशारा था कि उन्हें वापस कोई काम ढूंढना चाहिए। मगर वो समझ ही नहीं पा रहे थे कि आगे उन्हें क्या करना है? तो वो भगवान पर ही छोड़ वहां से चले गए।

                घर लौटते समय वो यही सोच रहे थे कि फैक्ट्री में भी उन्होंने बस मशीनों के बीच में ही समय गुजार  दिया । उसके सिवा उन्हें और कुछ नहीं आता। और इस उम्र में उन्हें कौन काम देगा। एक बार कल कार्यालय होकर आने की ठान उन्होंने घर का रुख किया। 

         कहते है न जब आप भगवान के ऊपर सब कुछ छोड़ देते है तो भगवान कोई न कोई जरिया जरूर निकाल देते है भक्त की मदद करने के लिए। जैसे ही घर पहुंचे तो घर के बाहर पुराने मालिक की गाड़ी को क्षण भर में पहचान तेजी से घर में घुसे।

वहां बरामदे में ही कुर्सी पर उनके पुराने मालिक लाला वेद प्रकाश बैठे उनका इंतेज़ार कर रहे थे। औपचारिक सलाम दुआ के बाद बहु दीपाली ने बताया कि लाला जी तकरीबन घंटे भर से आपका इंतेज़ार कर रहे है ।

  रामलाल जी के पास फोन भी न हो पाने के कारण उनको सूचना देना नहीं हो पा रहा था। रामलाल जी के कुशल क्षेम पूछने पर लाला जी ने कहा कि अब उनका फैक्ट्री जाना बिल्कुल बंद ही हो गया है। जब से घुटनों का प्रत्यारोपण करवाया है तो डॉ ने उन्हें अब ज्यादा देर खड़े होने,

चलने फिरने के लिए मना किया हुआ है। चूंकि लाला जी का प्रिंटिंग प्रेस का काम उनके पिता के द्वारा स्थापित किया हुआ है तो लाला जी का उस कार्य को बंद करने का मन नहीं करता। उनके बच्चे उनके अन्य नामी व्यवसायों को तो बहुत अच्छे से संभाल रहे है मगर प्रेस को अनदेखा कर देते है। जिस वजह से कारीगर भी अब जी चुराते है।

काम के समय बीड़ी और ताश खेलते कई बार तो लाला जी ने ही रंगे हाथों पकड़ा है। लाला जी के चारों बच्चे चाहते है कि प्रिंटिंग प्रेस अब बंद कर दी जाए। मगर लाला जी विरासत को यूं अधर में नहीं छोड़ सकते। आज लाला जी रामलाल जी के पास आने से पहले अपने और भी कर्मचारियों के घर होकर आए है। 

उन में से काफी ने  तो लगभग हामी भर दी, कुछ तो काफी खुश थे कि  काम पर लौटने को मिलेगा। खाली वक्त काटना उन लोगों के लिए बड़ा मुश्किल हो रहा था। कुछ तो अवसाद से भी ग्रसित होने लगे थे। क्योंकि रामलाल जी सबसे ज्यादा अनुभवी और पुराने कर्मचारी थे तो लाला जी ने पहले उन कर्मचारियों से बात की ।

जिस से अगर वो सब तैयार हो जाए तभी रामलाल जी को मनाना उनके लिए आसान होगा। रामलाल जी को अब वहां निरीक्षक की पदवी मिली थी जहां उनका काम सबसे नियत समय में काम पूरा करवाना और कोई त्रुटि हो तो सुधार करना ही था। 

      रामलाल जी की तो मनचाही मुराद पूरी हो रही थी। लाला जी के जाने के बाद विजय को जब पता चला कि पिताजी जल्दी ही कार्य पर वापिस लौटने वाले है तो उसने रामलाल जी को मना भी किया कि इस उम्र में अगर आप बाहर काम करेंगे तो दुनिया कितनी बातें बनाएगी। तब रामलाल जी ने विजय को प्यार से समझाया कि बेटे हमारी परेशानियों को हमे खुद ही हल करना है तो दुनिया के बारे में क्या सोचना। तुम सक्षम हो अपने परिवार का भरण पोषण करने में समर्थ हो, इसलिए तुम्हारी तरफ से मैं आश्वस्त हूं मगर जब भी सपना को देखता हूं तो परेशान हो जाता हूं। तब विजय ने रामलाल जी से वचन लिया कि आपकी तनख्वाह के पैसे से आप सिर्फ सपना की मदद करेंगे। 

    जल्दी ही उन्होंने अपने सब साथियों के साथ फैक्ट्री का काम संभाल लिया और जो कर्मचारी काम से जी चुरा रहे थे वो भी वक्त के साथ अब सुधरने लग गए थे। 

     महीना पूरे होते ही मिली हुई पहली तनख्वाह ने रामलाल जी की राह आसान कर दी थी। उन्होंने विजय और दीपाली की सहमति से सपना का हाथ बटाने की सोची। उन्होंने अपनी तनख्वाह से एक हिस्सा विजय को यह कह कर देना चाहा कि जब वो यहां रहते है , खाते है तो उनकी विजय के परिवार की तरफ भी तो जिम्मेदारी बनती है । उनको घर खर्च तो देना ही चाहिए तो दीपाली ने बड़े प्यार से रामलाल जी को यह कहते हुए मना कर दिया कि ,“ पिताजी आप अपना आशीर्वाद हम सब पर बनाए रखिए , आपका हाथ बस हम पर बना रहे तो विजय के रहते इस घर की चिंता करने की जरूरत नहीं रहेगी। ” रामलाल जी आज सच में बहुत खुशी महसूस कर रहे थे कि बेटा बहु कितने समझदार और सुलझे हुए है।  

        फिर भी आगे चलकर कभी विजय को भी कोई परेशानी आने पर उसकी भी मदद हो सके उन्होंने शुरू से ही आधी कमाई सपना के घर खर्च और फीस के लिए दी और आधी विजय के लिए बैंक में जमा करते रहे। समय बीतने पर रामलाल जी ने लाला जी से बात कर राजीव को भी उसकी शारीरिक स्थिति के मुताबिक नौकरी पर रखवा दिया। अब सपना , राजीव और रामलाल जी की मदद से अब सपना का परिवार  भी सुचारू रूप से चल रहा था। 

        जब भी कोई रिश्तेदार या जान पहचान वाला रामलाल जी से इस उम्र में आराम करने की सलाह देता तो उनका एकमात्र ही जवाब सदा तैयार रहता की अपनी पत्नी के कहे मुताबिक जब तक उनके शरीर में प्राण है तब तक वो सक्रिय रहेंगे। अब शरीर की और कार्य की रिटायरमेंट साथ साथ ही होंगे। 

सोनिया अग्रवाल 

Leave a Comment

error: Content is protected !!