ये गंवार तुम्हारी मां है – मंजू ओमर

हेलो हेलो मां हां, हां बेटा कैसी है मां ठीक है ,और बेटा तू कैसा है कब आएगा तू ,कब से तेरे आने की राह देख रही हूं। बेटा बस जल्दी ही मिलूंगा मां, मां मैं शादी कर रहा हूं।दो दिन बाद मेरी शादी है बड़े होटल से । मां बस तुम तैयारी करके रखना मैं तुम्हें गाड़ी भेजकर बुलवा लूंगा। अच्छा, अच्छा बेटा और कहां की लड़की है,,,,,,।और फोन कट हो गया।राघव ने फोन काट दिया ।रमा जी खुबसूरत सपने संजोने लगी, खुशी के मारे लड्डू फ़ूटने लगे मन में ।

                तैयारी शुरू कर दी  बेटे की शादी में जाने के लिए ।बड़ा बक्सा बाहर खींचकर निकाला खोल कर देखा ऊहं, कोई ढंग की साड़ी भी तो नहीं है ।उलट पुलट करती रही , तभी तीस साल पहले की शादी के समय की पोटली दीख गई।खोला उसे लाल रंग की साड़ी ,कितने हुलास से खरीदा था वो साड़ी कितनी पसंद थी उसको । पोटली बाहर निकाली तो देखा उसमें एक छोटी सी डिब्बी भी रखी थी उसमें उसका मंगल सूत्र रखा था ।

उसको खोलकर देखते ही रमा तीस साल पहले की दुनिया में खो गई जब वह‌ शादी करके इस घर में भुवनेश जी की दुल्हन बनकर आई थी ।ये लाल साड़ी तुमपर बहुत फब रही है रमा, बहुत सुंदर लग रही हो।और भुवनेश जी ने रमा के गालों पर प्यार का एक चुम्बन ले दिया था।कितनी शर्म से लाल हो गई थी रमा। फिर धीरे से एक छोटा सा मंगलसूत्र भुवनैश जी ने रमा के गले में डाल दिया था।

               फिर क्या था शादी की पहली रात में दोनों पति-पत्नी एक दूसरे के आगोश में  खो गए थे।रमा बहुत खुश थी भुवनेश जी जैसा प्यार करने वाला जीवन साथी पाकर। तीन लोगों का परिवार था रमा, भुवनेश जी और उनकी बूढ़ी मां। हंसी खुशी दिन व्यतीत हो रहे थे। भुवनेश एक बस ड्राइवर था । तीर्थ यात्रा करवाने यात्रियों को लम्बे लम्बे टूर पर ले जाते थे। अभी शादी के छै महीने हुए थे कि रमा ने एक दिन खुशखबरी सुनाई नन्हे मेहमान के आने की ।घर में खुशियां बिखर गई 

          आज भुवनेश तीर्थ यात्रियों से भरी बस लेकर दस दिन के लिए टूर पर जा रहा था।रमा शीशे के सामने बैठी श्रृंगार कर रही थी ।सिंदूर की डिबिया जैसे ही उठाई अपनी मांग भरने को डिब्बी पता नहीं कैसे जमीन पर गिर पड़ी और सारा सिंदूर बिखर गया।रमा का मन किसी अनहोनी से सशंकित हो उठा।आज ही भुवनेश जी को लम्बी यात्रा पर जाना है और आज ही ऐसा अपशगुन हो गया।रमा का मन किसी आशंका से घबराने लगा ।

            नाश्ता बना कर भुवनेश के सामने रखा तो रमा बहुत चुप चुप सी थी, भुवनेश ने पूछा क्या बात है रमा इतनी उदास क्यों हो मेरे जाने के नाम से ।मैं तो हमेशा ही टूर पर जाता हूं तब तो तुम इतनी उदास नहीं होती हो आज क्या बात है। कुछ नहीं जी आज मेरा मन किसी अनहोनी से घबरा रहा है  आप ये टूर कैंसल कर दें ।अरे कैसी बातें कर रही हो एक  महीने पहले से सबकी टिकट बुक है अब बस दो घंटे में निकलना है और तुम कह रही हो कि कैंसिल कर दो आखिर क्यों,अरे वो आज मेरे हाथ से सिंदूर नीचे फर्श पर सारा गिर गया ।अरे इन सब बातों का क्या कोई मतलब होता है हाथ से फिसल गया होगा तो गिर गया बस। परेशान न हों , फालतू बात मत सोचो।रमा को तसल्ली देकर भुवनेश चला गया ।

                दो दिन बाद दोपहर में रमा मांजी के साथ बैठकर खाना खा रही थी तभी दरवाजे पर दस्तक हुई ।रमा ने दरवाजा खोला तो किसी अपरिचित को देखकर थोड़ा घबरा गई। भुवनेश जी का घर यही है , हां क्यों क्या बात है , भुवनेश जी की बस खाई में गिर गई है और उनका कुछ पता नहीं है ।की सारे तीर्थ यात्री भी लापता हैं और कुछ मारे गए हैं।राहत कार्य चल‌ रहा है। सुनकर तो रमा लड़खड़ा कर गिरने ही वाली थी कि मांजी ने संभाल लिया। मांजी भी सकते में आ गई ।रमा की सास जमुना ने खाट पर लिटाया और मुंह पर पानी के छीटे मारे  होश में आने पर दोनों सास बहू एक दूसरे से लिपट कर रोने लगी।

           खबर सुनकर कुछ अड़ोसी पड़ोसी भी आ गए थे ।वो लोग दोनों सास बहू को दिलासा दे रहे थे। जहां बस गिरी थी खाई में क्योंकि पहाड़ों पर बस चलती थी , वहां बचाव कार्य चालू था। अभी तक भुवनेश की मृत देह नहीं मिल पाई थी जिससे उसका अंतिम संस्कार किया जा सके।इन सबके बीच एक ये भी इस बची थी कि शायद भुवनेश जिंदा है ।एक हफ्ते बीत गए पर कुछ खबर न लगी।अब तो सास बहू दोनों ने ही ये मान लिया कि भुवनेश अब इस दुनिया में नहीं है।चाहती तो रमा अपने मायके चली जाती, लेकिन वहां भी भाई भाभी के साथ पापा अकेले थे मां नहीं थी।और यहां मांजी को इस हालत में अकेले छोड़ कर भला कैसे चली जाती।

            कुछ दिनों बाद सरकार की तरफ से सभी मृतकों के परिवार जन को मुआवजा के रूप में धनराशि मिलीं। जिविका चलाने का एक सहारा मिल गया था रमा को।रमा ने चार महीने बाद एक बेटे को जन्म दिया ।रमा सोचने लगी कितना अभागा है मेरा बेटा दुनिया में आने से पहले ही पिता को खो दिया। फिर भी घर में नन्हे मेहमान के आ जाने से घर की वीरानी दूर हो रही गई थी। लेकिन भुवनेश के जाने का ग़म मांजी बर्दाश्त नहीं कर पाई और बिस्तर पकड़ लिया और एक दिन इस दुनिया से चली गई।

               अब रमा अपने नन्हे से बेटे का लालन-पालन प्यार से करने लगीं।अब राघव तीन साल का हो रहा था।रमा ने सोच रखा था मैं तो कुछ ज्यादा पढ़ी लिखी नही हूं लेकिन अपने बेटे को जरूर पढ़ाऊंगी। कुछ काम करने की उसकी भी इच्छा होती थी लेकिन समझ नहीं आता था कि क्या करे‌ और क्या काम करें । और राघव को कहां छोड़े।एक दिन वो राघव को स्कूल छोड़ने गई थी तो वहां की प्रिंसिपल चौकीदार से कह रही थी कि देखना रामलाल तुम्हारे जान पहचान में कोई महिला हो जो स्कूल में चपरासिन का काम कर सकें तो बताना ,पांच हजार सैलरी दूंगी।रमा जो सबकुछ सुन रही थी वो जल्दी से जाकर प्रिंसिपल से बोली मैडम अगर आप कहें तो मैं यहां नौकरी कर लूं।मेरा बेटा भी इसी स्कूल में पढ़ता है । उसके सिवा कोई नहीं है मेरा । मुझे कुछ काम की जरूरत भी है । ठीक है प्रिंसिपल ने कहा ।

              इस तरह रमा उस स्कूल में चपरासिन का काम करने लगी ।और स्कूल छूटता तो राघव को साथ लेकर घर आ जाती।बस इसी तरह राघव बड़ा होता रहा।

                   मुवावजे का पैसा संभाल कर रखा था राघव की पढ़ाई के लिए।और अब राघव इंजीनियर बन गया था ‌बाम्बे में उसकी नौकरी लगी थी।आज पहली बार मां को छोड़कर जा रहा था और सांत्वना दें रहा तुम को बहुत जल्दी वो  वही बुला लेगा।

              बाम्बे जाकर राघव को लगा जैसे वो एक सपनों की दुनिया में आ गया है।अच्छी सैलरी , बड़ा शहर , बड़े लोग इन सबको देखकर उसकी आंखें चकाचौंध हो गई।जिस कम्पनी में राघव काम करता था उसकी इकलौती बेटी अक्सर आफिस आ जाती तो उसे घर छोड़ने को मालिक राघव को बोलते तो वो चला जाता।दो चार बार जाने से दोनों में दोस्ती हुई फिर एक दूसरे को पसंद करने लगे। सोनिया ने ये बात अपने पापा को बताई कि राघव को हम पसंद करते हैं तो उनको भी अच्छा लगा इसी तरह के लड़के के जुगाड़ में थे राघव के पास भी सिर्फ मां के सिवाय कोई नहीं था।घर जमाई बनाने में आसानी रहेगी।जब ये बात राघव से पूछा तो उसने भी हां कर दी ।और बोला मेरी मां है सर जी उसको भी यही अपने पास रखना होगा।

                  रमा जी तो जैसे नींद से जागी । शादी की साड़ी निकाली देखा तो साड़ी की जगह से फट गई थी।अब क्या पहनू। रमा ने उन्हीं साड़ियों में से एक सिम्पल सी साड़ी निकाल कर पहन ली और गाड़ी का इंतजार करने लगी । गाड़ी आ गई और होटल के सामने जाकर रूक गई । गाड़ी से उतर कर बड़ा होटल देखकर उनके तो कदम ही आगे न बढ़ रहे थे। फिर हिम्मत करके आगे बढ़ी । जैसे ही अंदर गई राघव मिल गया। मां का हाथ पकड़कर सोनिया के पास ले गया , सोनिया देखो ये मेरी मां है , मां तुम्हारी , सोनिया ने पलटकर देखा ,ये गंवार तुम्हारी मां है ,जिसे न पहनने का तौर तरीका है न बड़े जगह पर जाने का ये कैसे कपड़े पहने हैं गंवारों जैसे ।पर सोनिया, पर क्या राघव इतने लोगों के बीच में मेरी इंसल्ट मत कराओ । मुझे तो किसी से इनका परिचय कराने में भी शर्म आ रही है ।ले जाओ इनको यहां से और उधर सामने सर्वेंट क्वार्टर है वहां रख दो ।राघव संकोच कर रहा था तभी सोनिया के पापा बोले राघव ऐसे लोगों का हमारी पार्टी में क्या जरूरत , इन्हें सर्वेंट क्वार्टर में ही रखो समझे ।

              अब दो दिन हो गए राघव मां से मिलने नहीं आया।घर का चौकीदार कुछ खाना पीना दे जाता था। फिर चौथे दिन रमा जी ने चौकीदार से कहा सुनो मेरे बेटे को बुला दो तो चौकीदार बोला मेमसाब और राघव जी हनीमून पर गए हैं पंद्रह दिन बाद लौटेंगे।अब रमा जी को बहुत खराब लगा कि एक दिन भी राघव मिलने नहीं आया और बिना मिले ही बाहर चला गया।अब अपना सामान समेटकर रमा जी वहां से बाहर निकली और पूछते पूछते रेलवे स्टेशन पहुंच गई। वहां पता करके अपने शहर का रेलगाड़ी का टिकट लिया और अपने घर आ गई।

             अब जब पंद्रह दिन बाद राघव हनीमून से  लौटा तो उसे होश आया कि मां सर्वेंट क्वार्टर में है । वहां गया तो पता चला कि मां तो चली गई । राघव ने मां को फोन किया मां तुम चली गई। क्या करूं बेटा , मैंने वहां देखा मेरा बेटा बड़े शहर और बड़े लोगों की चकाचौंध में खो गया है । तुम्हारे पास समय नहीं है मां से मिलने के लिए। मां मैं जल्दी आऊंगा तुमसे मिलने और सोनिया को भी लाऊंगा। ठीक है बेटा ।बस रमा जी समझ गई कि अब न बेटा अपना रहा और बहू ,बहू तो अपनी हो ही नहीं सकती ।अब रमा जी अकेले ही दिन काट रही है‌ ।राघव को आजतक समय न मिला मां से मिलने का छै महीने में। रमा जी ने सोचा जिसने सात जन्मों का वादा करके इस घर में लाया था और चंद महीनों में ही छोड़ गया तो बेटा , बेटा भी पराया हो गया है । औलाद का क्या भरोसा कब बदल जाए।चल रहा अब बस अकेले ही जीना सीख ले । अपनी छोटी सी नौकरी और अपनी छोटी सी दुनिया में खुश रह समझीं।

मंजू ओमर 

झांसी उत्तर प्रदेश 

24 सितम्बर

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