जानकी… ऑफिस वाले कह रहे हैं बाबूजी अगले महीने रिटायर हो जाओगे तो घर में बैठकर भी क्या करोगे आप चाहो तो दोबारा यहां पर ही काम कर सकते हो अभी तो आप शारीरिक और मानसिक रूप से बिल्कुल स्वस्थ हो, तो मैं सोच रहा था सही कह रहे हैं वह अभी तो मैं ऐसा बूढ़ा तो हुआ नहीं हूं अगर ऑफिस जाया करूंगा तो रोज मन भी लगा रहेगा और दिनचर्या भी सही रहेगी!
रामचंद्र जी के इतना कहने पर जानकी जी बोली… बहुत हो गई तुम्हारी सरकारी नौकरी जब सरकार ने ही रिटायरमेंट दे दिया है तो अब क्यों दोबारा माथा पच्ची करना, अब तो घर में रहिए शांति से नाती पोतो के साथ खेलिए और वह सब कीजिएजो आज तक तुमने समय की कमी की चलते नहीं किया वह शौक पूरे कीजिए,अपने दोस्तों के साथ सुबह सैर पर जाइए ,अखबार पढ़िए टीवी देखिए,
कितने सारे काम है करने को, थोड़ी देर रुक कर जानकी फिर बोली… सुनिए मैं सोच रही थी जो तुम्हारा रिटायरमेंट का पैसा मिलेगा क्यों ना उससे बहू के लिए एक जोड़ी कंगन बनवा दे और बेटे के लिए भी कुछ पैसा दे दे ताकि वह अपनी दुकान बड़ी कर सके, कब से कह रहा था कि जब पापा का रिटायरमेंट होगा उस पैसे से हम अपनी दुकान को और भी अच्छा कर सकते हैं और बेचारा अकेला दुकान पर थक भी जाता है तो इस बार एक नौकर भी रख देंगे ताकि उसकी मदद हो जाए
और हां बेटी के लिए भी कुछ अच्छा सा सोचना पड़ेगा! जानकी की बात सुनकर रामचंद्र जी चिंता में घिर गए फिर बोले… देखो जानकी मैं लिपिक के पद से रिटायर हुआ हूं बहुत बड़ी पोस्ट से नहीं, इसलिए मुझे पैसा भी कम ही मिलेगा, आज तक मैंने अपने बच्चों के पालन पोषण के लिए,
घर की जिम्मेदारी को निभाने के चलते कटोतिया कम करवाई थी ,तुम्हें तो पता ही है मेरे माता-पिता भी मेरे लिए कुछ भी छोड़कर नहीं गए बल्कि दो बहनों की जिम्मेदारी भी मेरे ऊपर थी वह तो तुमने मेरा हमेशा साथ दिया इसलिए हमें कोई परेशानियां नहीं आई, बच्चों को भी कितनी ऊंची शिक्षा दिलाने की कोशिश की किंतु बच्चे भी कुछ नहीं कर पाए, महेश को भी 7 साल पहले एक किराने की दुकान खुलवा कर देनी पड़ी और बेटी की शादी भी कराई, मैं सोच रहा था
जानकी सबसे पहले तो इस मकान के लोन की किस्त पूरी कर दें ताकि आने वाले समय में किसी के ऊपर दबाव न रहे और तुम्हारी मोतियाबिंद का भी ऑपरेशन कब से टालते आ रहे हैं वह पूरा करवा ले और जो तुम्हारी इच्छा है मेरे साथ सभी जगह पर भ्रमण करने जाने की, पहले वह सब पूरी कर लें, आज तक घर और दफ्तर की जिम्मेदारियां के कारण हम कभी नहीं जा पाए, ,जानकी जो समय मैंने कभी तुम्हें नहीं दिया भरपूर जीना चाहता हूं,
अब घर को संभालने के लिए बेटे बहू भी हैं और हमारे ऊपर कोई पैसों से संबंधित दबाव भी नहीं है बताओ तुम्हारा क्या विचार है..? नहीं नहीं… घूमना फिरना सब बाद में हो जाएगा पहले तो मुझे बहू के लिए चार तोले के कंगन बनवा कर देने हैं, 4 साल हो गए उसे कहते-कहते, इस दिवाली बनवाएंगे इस दिवाली पर बनवाएंगे पर कभी हाथ में इतना पैसा हुआ ही नहीं कि उसकी एक इच्छा पूरी कर सके, उसकी शादी के समय भी हमने कुछ भी खास नहीं चढ़ाया बेचारी मुंह खोलकर कभी कुछ कहती भी नहीं है!
तुम्हें पता है जानकी सोने के भाव क्या है? तुम अभी सोने के कंगन रहने दो और बहू और बेटी दोनों को सोने की अंगूठी बनवा दो कंगन कभी बाद में देख लेंगे !क्यों रिटायरमेंट का इतना सारा पैसा मिलेगा, हम दोनों बूढ़े बुढ़िया क्या उसे ऊपर लेकर जाएंगे? अरे अपने जीते जी अपने सामने ही घर में खुशियां आ जाए तो इससे बड़ी बात क्या होगी और रही मेरी ऑपरेशन की बात …वह बाद में देख लेंगे, अभी तो घर की जरूरत पूरी हो जाए वही बहुत है और चिढ़ती हुई
जानकी अंदर चली गई! रामचंद्र जी बैठे-बैठे सोचने लगे…. यह लोग मुझसे कितनी उम्मीद लगा कर बैठे हैं कि रिटायरमेंट के बाद मुझे बहुत सारा पैसा मिलने वाला है लेकिन मैं कैसे समझाऊं की रिटायरमेंट पर पैसा भी तो तभी मिलता है जब कटौतियां शुरू में ज्यादा करवाई जाए, मेरी बात तो कोई समझना ही नहीं चाहता, सब कितने स्वार्थी हो गए हैं सभी को बस पैसा दिख रहा है,
सबसे पहले मकान की लोन किस्त पूरी हो जाए क्या यह हम सबके लिए अच्छा नहीं होगा, जानकी की आंखों का ऑपरेशन जरूरी है वैसे तो हर समय कहती रहती है धुंधला दिख रहा है धुंधला दिख रहा है और जब भी ऑपरेशन की बात आती है हमेशा टाल जाती है, मुझे तो लगता है मैं कभी रिटायर हूंगा ही नहीं और मैं सोच रहा हूं
की वापस से दफ्तर जाना शुरू ही कर दूं ताकि मेरे हाथ पैर भी चलते रहें और घर का गुजारा भी चलता रहे वैसे भी घर में बैठा आदमी सबको बोझ ही लगता है! कुछ देर बाद जानकी फिर बाहर आई और रामचंद्र जी को चाय और बिस्कुट देते हुए बोली…. सुनिए जी मुझे माफ कर दीजिए मैंने पता नहीं गुस्से में क्या-क्या बोल दिया, आप बिल्कुल सही कह रहे हैं सबसे पहले हमारे सर पर हमारी छत का होना बहुत आवश्यक है तो हम सबसे पहले इसी की किस्त चुकाएंगे
और बेटे को भी अगर जरूरत होगी तो भरपूर मदद करने की कोशिश करेंगे और मैं सोच रही थी अगले महीने जब हम इतना बड़ा रिटायरमेंट का फंक्शन करने वाले थे उसको भी थोड़े छोटे रूप में ही कर लें और उसके बाद मेरे मोतियाबिंद का भी ऑपरेशन करवा लेंगे ताकि मैं अपने पति को भी साफ-साफ देख सकूं और कह कर हंसने लगी और आप बिल्कुल चिंता मत कीजिए आपका जैसा मन करे आप वैसा ही कीजिए,
अगर आपको लगता है कि आप को ऑफिस जाना चाहिए तो आप बेशक जाइए अभी हम इतने बूढ़े नहीं हुए कि हम घर में बैठ जाएं और वैसे देखी जाए तो तुम्हें तो फिर भी सरकार रिटायर कर देती है लेकिन हम औरतों का क्या… इन्हें तो सिर्फ भगवान रिटायर करता है, इसलिए जब तक हाथ पैर सलामत है सही है हम बैठकर इनमें जंग क्यों लगाए, हम अपने सारे काम करेंगे खुशी-खुशी बिना किसी तनाव के, लीजिए चाय पीजिए ठंडी हो रही है!
जानकी की बात सुनकर रामचंद्र जी के सिर पर से एक बोझ उतर गया रिटायरमेंट एक सरकारी प्रक्रिया है ना की जिम्मेदारियां से मुक्त होने की प्रथा, अगर व्यक्ति स्वस्थ है तो वह क्यों काम नहीं कर सकता बल्कि उसे काम करते रहना चाहिए जैसे की औरतें कभी रिटायर नहीं होती पुरुषों को भी मन से कभी रिटायर नहीं होना चाहिए और यह सोचकर उनके चेहरे पर भी मुस्कान आ गई!
हेमलता गुप्ता स्वरचित
कहानी प्रतियोगिता (रिटायरमेंट)
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