आज भी मुझे याद है रमा ने अपने पति का परिचय मेरे कार पार्किंग में कराया था ।
“बंदना ,ही इज माई हसबैंड मिस्टर राज “मैंने औपचारिकता बस उनसे हाथ मिलाया और हेलो कहां ।
मिस्टर राज ने एक हाथ में लैपटाप बैग पकड़ा हुआ था । दूसरी हाथ से मुझसे हाथ मिलाते हुए हेलो कहां ।एक ही नजर में देख कर मुझे एहसास हो गया मिस्टर राज एक अच्छे पद पर हैं ।
कहते हैं मर्द का रुतबा, पोस्ट और पैसा से ही आता है ।
समय बीता हम दोनों परिवार मिलते जुलते रहे ।
अच्छी दोस्ती हो गई हमारी ।जब भी कोई घर में कार्यक्रम होता था हम दोनों परिवार साथ में मिलकर मनाते थे ।
पहली बार यह जोड़ा जब मेरे घर आया था तो मेरी ही नजर लगते लगते बची । जैसा मैंने पहले भी कहा की रमा देखने में बहुत आकर्षक, क्लासि लड़की थी ।उसका पहनावा एकदम सटीक होता था ।जैसा ओकेज़न वैसा ड्रेस |बाल बनाने का तरीका, जूतों का सिलेक्शन बड़ी उम्दा होता था । उसको देख के किसी भी स्त्री को उससे ईर्ष्या हो जाए ।इस पर सोने पे
सुहागा उसका शैक्षणिक योग्यता बना देता था ।
यहां मुझे यह भी कहना पड़ेगा की रमा और मिस्टर राज की जोड़ी शिव जी ने खुद ही बनाई थी ।
मिस्टर राज का भी लंबा कद , चौड़ा ललाट बड़ी बड़ी आंखें ‘उन्हें आकर्षक बनाती थी ।एक साधारण सर्ट र्भी उसके ऊपर ऐसे फबती थी जैसे कोई हिंदी सिनेमा का नायक खड़ा है । मुझे हंसी आती है अपने आप पर सोचती हूं शराब पीना, सिगरेट पीना खराब है लेकिन जब वही शराब की गिलास और सुलगती सिगरेट मिस्टर राज के हाथ में होता है तो देखने वाले के आंख में एक अलग आकर्षण भर देता है ।
अब दोनों परिवार का सुख और दुख एक हो गया ।
सब कुछ अच्छा चल रहा था तभी एक दिन मैं छुट्टी पर थी और अपना शाम का चाय बना रही थी तभी दरवाजे की घंटी बजी मैंने दरवाजा खुला तो देखा रमा रोती हुई खड़ी है । मैं घबरा गई मैंने बोला “अंदर आओ और बैठो बताओ कि क्या हुआ ?”।
उसने उस दिन जो बताया उसको सुनके मेरा दिमाग सन्न रह गया ।उसने मिस्टर राज का दूसरा रूप दिखाया ।
उसने बताया कि कैसे हर पार्टी के बाद उस पर ताना क से जाते हैं । उसको मर्द खोर बोला जाता है । हर एक मुस्कुराहट का उसको जवाब देना पड़ता है । वह अपने मर्जी से एक समान नहीं खरीद सकती ।बगल वाले दुकान पे भी जाना वर्जित है। पड़ोसियों से ज्यादा मेलजोल भी वर्जित है ।
मेरे लिए यह सब एक दुख देने वाला प्रसंग था मुझे बहुत बुरा लग रहा था ।यह बोलना चाहूंगी कहीं ना कहीं मेरे मन में मिस्टर राज के लिए एक कोमल भावना थी और उनका यह रूप मेरे से झेला नहीं जा रहा था ।
मुझे अफसोस हो रहा था की इतनी पढ़ी लिखी महिला जिसने अहमदाबाद आई आई एम से मैनेजमेन्ट की पढ़ाई कर रखी है चाहे तो अच्छा नौकरी कर सकती है लेकिन वह लाचार है ।
मुझे बड़ी अफसोस होता है और गुस्सा भी आता है ऐसी महिलाओं पर जो अपने लिए खड़ी नहीं हो सकती हैं । इतनी शिक्षित होने के बाद भी अपने को लाचार मजबूर कर लेती है।
और अपना सब कुछ भुला कर सिर्फ घर परिवार पर केंद्रित हो जाती हैं । घर परिवार देखने में हानी नहीं है । स्त्री का यह धर्म भी है लेकिन साथ में अपना अस्तित्व, गुण को भी उजागर करना है । जो हाई सोसाइटी में सिर्फ एक खूबसूरत कठपुतली बनकर और फलाने की मिसेस बनकर आती हैं इसलिए मैं ऐसी औरतों को “सोन चिरैया” बोलती हूं । सोने की चिड़िया जो आलीशान पिंजरे में बंद है ।
खैर मेरी पूरी सहानुभूति रमा के लिए थी लेकिन मैं जैसा पहले भी बोल चुकी की मन के एक कोने में मिस्टर राज के लिए एक कोमल भावना थी
एक समय गुस्सा तो बहुत आया लेकिन मैंने सोचा मेरा कोई अधिकार नहीं बनता बोलने का । दांपत्य जीवन बहुत रोचक है इसमें तीसरे की गुंजाइश नहीं है । पति पत्नी मिलकर इसे संभाले वही अच्छा है ।
दो वर्ष हो गए हमारी दोस्ती को । आज शाम को एक पार्टी रखा है कुछ मित्र आने वाले हैं । दिल्ली से और कुछ वही मित्र हैं, रोजमर्रा वाले पुराने मित्र । रमा और मिस्टर राज को भी बुलाया है ।
पार्टी अपनी पिक पर थी । सभी काफी अच्छे लग रहे थे । म्यूजिक भी लाउड है । हर जोड़ा अपने पार्टनर के साथ नाच रहा था । रमा हमेशा की तरह आज काला स्लीवलेस ड्रेस में काफी अच्छी लग रही थी ।उसने बाल बांध रखे थे इसलिए उसकी सुराही दार गर्दन बोट नेक वाले ड्रेस में एकदम तनी हुई दिख रही थी ।
सब अपने आप में मग्न हैं मेरा एक दोस्त विशाल दिल्ली से बहुत दिनों के बाद मुझसे मिलने आया है वह भी पार्टी में है
मैं एक मित्र को खाना परोस रही थी तभी मेरा दोस्त जो दिल्ली से आया था उसने मुझे इशारा करके बालकनी में बुलाया मैंने पूछा” क्या है”, “उसने बोला यह रमा , जो तुम्हारी सहेली है इसको कब से जानती हो?” मैंने उल्टा सवाल दाग दिया पूछा “क्यों ?”
उसने जो बताया वह मेरे पूरे अनुभूति को बदल दिया उसने बोला कि वह रमा को अच्छी तरह से जानता है । यह वही रमा है जो मेरे मित्र के साथ अपने पति और बच्चे को छोड़कर उसके साथ चली गई थी और मिस्टर राज के पास आने को तैयार नहीं थी ।मैंने पूछा “क्यों ?”उसने बस इतना बोल इतना ही बोला कि” जितना मैं जानता हूं , इसका पति इसको टाइम नहीं दे पाता था । इसलिए वह खुश नहीं थी और उसने वो टाइम मेरे मित्र में ढूंढ लिया “।” राज , इतना प्यार करने वाला पति, अच्छा पिता बेचारा असहाय पड़ा था । उसने रमा को लाने के लिए उसके पैर तक पड़े । बोला “बच्चे के खातिर वापस आ जाओ” ।
यह सब बातें मेरे शरीर में करंट की तरह दौड़ रही थी । सोच रही थी कि हम लोग बहुत आसानी से कहि सुनी बातो पर अपनी एक घारणा बना लेते है और किसी को अपराधी बना देते हैं । क्या मिस्टर राज की इतनी ही गलती थी कि वह रमा को टाइम नहीं दे पाते थे?
मुझे राज के लिए अफसोस लगा और गर्व भी हुआ कि उसने सब कुछ भुला कर रमा को स्वीकार किया । लगा सबसे बड़ा नायक तो मिस्टर राज निकला जिसका रुप कुछ और दिखाया गया लेकिन पर्दे के पीछे कुछ और निकला ।
तब मुझे थोड़ा एहसास हुआ कि उसने रमा को” सोनचिरैया “क्यों बना कर रखा है । उसको डर है यह “चिरैया ” इस बार उड़ी तो वह वापस नहीं ला पाएगा ।
सस्नेह
लेखिका : बंदना श्रीवास्तव