आंतरिक खुशी ही सच्ची सफलता है – सुधा जैन

अपराजिता एक कस्बे में रहने वाली प्यारी सी लड़की है। भविष्य को लेकर उसके मन में बहुत सारे सपने हैं, चाहती है अच्छी पढ़ लिख कर जॉब करूं। अच्छा सा घर सजाऊं। प्यारे से जीवन साथी के साथ अपने सपनों को पूरा करू। इंजीनियरिंग करने के बाद मुंबई की आईटी कंपनी में उसका चयन हो गया। जिंदगी को लेकर उसने जो ख्वाब देखे थे ,वे पूरे हो रहे थे ।उसके मम्मी पापा भी बहुत खुश थे। कंपनी में वह बहुत मेहनत कर रही थी। ऑफिस के सब लोग उससे बड़े प्रसन्न थे।

IT कंपनी में ही एक साथी प्रणय  के साथ दोस्ती हो गई, और नवजीवन के सपने देखने लगी, प्रणय के साथ खूब सारी बातचीत करना  उसके साथ काम करना  घूमने जाना  यह सब करने लगी  लेकिन  थोड़े समय बाद ही उसे पता लगा कि वह तो शादीशुदा है ।

उसके सपने टूट गए ,लेकिन उसने हार नहीं मानी। वह सोचती रही ,पढ़ी लिखी हूं अच्छी जॉब है,  एक सपना टूट जाने से जिंदगी खत्म नहीं होती। एक सपने के टूट जाने पर दूसरा सपना देखना यही जिंदगी है । वह खुशमिजाज लड़की  है। हर पल उसको यही लगता रहता जिंदगी में खुशियां कैसे पाऊं?  वह बाहरी खुशी के अलावा हृदय की आंतरिक खुशी भी चाहती हैं। मैं क्या करूं ?

जिससे मेरा अंतर्मन भी खुश हो जाए इस बारे में सोचती रहती ।

जिस फ्लैट में रहती थी, उसके पास में ही एक नई बिल्डिंग बन रही थी ,और एक मजदूर रामू का परिवार वहीं रहता था ।उसकी चार बेटियां हैं। अपराजिता जब भी उन बेटियों को देखती ,उसके हृदय में एक हूक सी उठती थी। वह मन ही मन रामू के परिवार के लिए कुछ करना चाहती  है ।एक बार वह बेटियों के पापा के पास गई और उनसे उनके बारे में पूछने लगी बच्चियां क्या पढ़ती है ? कौन से स्कूल जाती है?  तुम्हारी आमदनी कितनी है? घर का खर्च पूरा होता है या नहीं?  रामू की सब बातें सुनने के बाद मन ही मन अपने आप को इस बात के लिए तैयार कर लिया कि मुझे एक बिटिया को दत्तक लेना है, उसको अच्छे से पढ़ाना है ,उसका भविष्य बनाना है ,और मेरी आंतरिक खुशी को पाना है। उसने बिटिया के पापा से बात की और जब अपना मंतव्य स्पष्ट रूप से रख पाई तो मजदूर ने अपनी 5 वर्ष की बिटिया राधा को कानूनी रूप से अपराजिता को दत्तक दे दिया। अपराजिता बहुत खुश थी। उसके माता-पिता पहले तो नाराज थे ,यह तुम क्या कर रही हो ?लेकिन उसने उन्हें समझाया कि मैं कोई बुरा काम नहीं कर रही हूं ,किसी बेटी का जीवन संवारना अच्छा काम है, और मैं वही कर रही हूं ।

अपराजिता के माता-पिता भी खुश हो गए ।उन्हें भी राधा के रूप में नन्ही सी नातिन  मिल गई थी ,और अपराजिता को मन की आंतरिक खुशी जो कि  सच्ची सफलता है ।  हम सफलता के लिए भागते रहते हैं लेकिन कभी-कभी यह सफलता हमें जीवन के छोटे-छोटे कार्यों द्वारा मिल सकती है ,जैसे भूखे को भोजन ,प्यासे को पानी किसी अशिक्षित को शिक्षित करना , बिटिया को गोद लेना बच्चे, बूढ़े और बीमार की सेवा करना, यह सी छोटी खुशियां हैं जो हमें बड़ी सफलता देती है। अपराजिता ने तो अपनी आंतरिक खुशी और सफलता के लिए एक नन्ही सी बेटी को गोद लेकर अपने जीवन की सच्ची खुशी को पा लिया था क्योंकि बेटियां तो होती ही खुशी का खजाना है।

“बेटी होती है फागुनी चित्र जैसी, बेटी होती है मांगलिक मित्र जैसी, बेटी बांटती है खुशबू जीवन भर,

बेटी होती है  जीवन भर इत्र जैसी”

सुधा जैन

कहानी

मौलिक एवं स्वरचित

Leave a Comment

error: Content is protected !!