यशिका अपना ऑफिस शिफ्ट करती है और अभिमन्यु देविका को मिलने के लिए बोलता है
अब आगे :
यशिका सुबह अपने नए ऑफिस में पहुँचती है वहां अमर पहले ही पहुँच गया था और अपनी निगरानी में वो सब कुछ सेट करवा रहा था । दिनेश और बाक़ी स्टाफ भी था जो सब चीजों को व्यवस्थित करवा रहा था
यशिका को देख कर अमर उसके पास आया और बोला
“गुड मॉर्निंग, चलें आप देख लें अपना केबिन “
यशिका ने गुड मॉर्निंग किया और हाँ कहा वो उसके साथ अंदर चली गयी यशिका ने अपने हाथ में लिया हुआ बॉक्स वहाँ रखी हुयी टेबल पर रखा और अपना केबिन देखने लगी
“सब कुछ परफेक्ट है अमर जी थैंक यू इतने कम समय में आपने ये सब किया “
“माय प्लेजर आपको पसंद आ गया मेरे लिए इतना ही काफी है , मै बाहर हूँ आप देख लें कुछ भी आपको लगे तो बता दीजिए “
“ओके “यशिका ने कहा अमर बाहर चला गया यशिका ने अमित शाह की तस्वीर को बॉक्स से बाहर निकला और कोने में रखी हुई टेबल पर रखा और उस पर माला चढ़ा कर दिया जला दिया उसने उनकी तस्वीर के आगे हाथ जोड़े और अपना केबिन देखने लगी तभी किसी ने नॉक किया
“कम इन “यशिका ने कहा
“मैम आपने पूजा के लिए बोला था तो कब करनी है आप बता दें ” दिनेश ने कहा
“शाम को कर लेते है तब तक सब सेट भी होजाएगा और आज लंच मेरी तरफ से “
” ओके मैं बोल देता हूँ सबको ” दिनेश ने कहा और चला गया
यशिका सब देख ही रही थी कि तभी उसके फोन पर शौर्य का मेसेज आया ” कांग्रेचुलेशंस और मै थोड़ा बिज़ी हूँ थोड़ी देर में आऊंगा “
यशिका ने “थैंक्स और ओके”लिखा और अपने काम में लग गयी
शाम तक सब सेट हो गया था यशिका ने छोटी सी पूजा की अभी तक शौर्य नहीं आया था और ना ही अभिमन्यु
यशिका को थोड़ी हैरानी हो रही थी उसने स्टाफ को घर जाने के लिए बोल दिया और अपना बैग लेकर केबिन के बाहर आ गयी
” यशी कुछ काम है और तो करें नहीं तो हम लोग भी चलें “देविका ने पूछा
“नहीं काम तो नहीं है तुम रुको मैं ज़रा मिस्टर रंधावा से मिल कर आती हूँ उन्होंने बोला था वो आयेंगे लेकिन वो आए नहीं ना ही उनका फोन आया “
“ओहो …तो मैडम को चिंता हो रही है कि कहाँ है मिस्टर रंधावा “? देविका ने उसे छेड़ते हुए कहा
“चुप करो चिंता नहीं बस एक बार मिल लेती और वो भी देख लेते इसलिए बस “
“हाँ हाँ… जाओ जाओ अपने मिस्टर रंधावा के पास “
यशिका ने मुंह बनाया और ऑफिस से बाहर निकल गयी उसने बाहर आकर लिफ्ट का बटन प्रेस किया लिफ्ट आयी तो यशिका उसमें गयी उसमें पहले से ही तीस नंबर फ्लोर का बटन दबा हुआ था यशिका को जरूरत नहीं थी बटन प्रेस करने की ।
शौर्य का ऑफिस उसी फ्लोर पर था
यशिका शौर्य के ऑफिस में पहुँची तो देखा ऑफिस खाली था उसने ग्लास का लॉक ओपन किया तो वो खुल गया यशिका अंदर चली गयी
वो शौर्य के केबिन की तरफ बढ़ गयी उसने केबिन में नॉक किया लेकिन किसी ने जवाब नहीं दिया तभी पियॉन
आया वो लाइट्स ऑफ कर रहा था
उसने यशिका को देखा तो पूछा “मैम किस से मिलना है आपको “?
“मिस्टर रंधावा से ” यशिका ने कहा
” मैम वो तो चले गए “
“कितनी देर हो गयी उन्हें गए”
“यही कोई बीस पच्चीस मिनट मै बस लाइट्स ऑफ कर रहा था “
“ओके, यशिका ने कहा और ऑफिस से बाहर निकल के शौर्य को कॉल करने लगी लेकिन शौर्य का कॉल लग नहीं रहा था यशिका ने लिफ्ट से देविका को कॉल किया लेकिन वो भी नहीं लग रहा था यशिका ने फिफ्थ फ्लोर का बटन प्रेस किया लिफ्ट नीचे की तरफ जाने लगी ।
फिफ्थ फ्लोर पर
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देविका यशिका का वेट कर रही थी तभी वहां शौर्य और अभिमन्यु आए
देविका ने उन दोनों को देखा और बोली ” आ गए आप यशी कहाँ है “?
“यशिका यहाँ नहीं है “?शौर्य ने पूछा
“नहीं वो आपको देखने आपके ऑफिस में गयी है मै उसके आने का वेट कर रही थी “
देविका की बात सुनकर शौर्य ने यशिका को फोन किया लेकिन लिफ्ट में होने है की वजह से यशिका का फोन लग नहीं रहा था शौर्य ऑफिस के बाहर गया और लिफ्ट आने का वेट करने लगा कुछ देर में लिफ्ट आयी लेकिन यशिका उसमें नहीं थी वो तीनों हैरानी से एक दूसरे को देखने लगे तभी सायरन बजने लगा शौर्य ने अभिमन्यु की तरफ देखा दोनों अपने फोन में देखने लगे शौर्य ने कहा ” अभी तुम यहीं रही मै जाता हूँ “
शौर्य ने देखा दूसरी लिफ्ट बीस फ्लोर पर रुकी है उसने पहले वाली लिफ्ट में जा कर बीस फ्लोर का बटन प्रेस किया ।
क्या हुआ देविका ने पूछा ” कुछ नहीं कोई हमारे ऑफिस में गया है शौर्य उसे ही देखने गया है “
“गार्ड तो होगा ना वहाँ ” देविका ने क्या
“हाँ वो है आप बैठी और फिक्र मत करो ” कह के अभिमन्यु ने देविका को बैठा दिया और अपने फोन से एक फोन किया
“जी सर”
“सिराज एक क्लिप भेज रहा इसे देखो और जो भी है पकड़ो उसे “
“ठीक है सर आप भेज दें ” अभिमन्यु ने क्लिप भेज दी
शौर्य जब बीसवें फ्लोर पर पहुँचा तो लिफ्ट खुलते ही उसने इधर – उधर देखा उस फ्लोर पर कोई ऑफिस नहीं था उसने अपने फोन में यशिका की लोकेशन को चेक किया वो रिफ्यूजी एरिया दिखा रहा था
शौर्य ने वहां गया उसने धीरे से उसका दरवाज़ा खोला तो देखा एक आदमी यशिका को पकड़े हुए खड़ा था उसने मुंह पर कपड़े का मास्क था जो पूरी तरह से उसे ढका हुआ था यशिका उस से अपना हाथ छुड़ाने की कोशिश कर रही थी यशिका ने अपने पैर से उस आदमी मारा तो उसने यशिका की गर्दन में हाथ डाल कर उसे कस लिया तभी शौर्य वहाँ आ गया उसने कहा ” अगर जिंदा रहना चाहता है तो छोड़ इन्हें “
“नहीं रहना चाहता और तुझ में दम है तो छुड़ा ले मै तो नहीं छोडूंगा ” उसका हाथ यशिका की गर्दन पर और कस गया
शौर्य ने देखा उसके पैर के पास एक रॉड पड़ी है उसने उसे उठाया और बोला ” मै आखिरी बार बोल रहा हूँ छोड़ इनको “
वो आदमी हंसते हुए बोला ” अभी तो तू मेरा कुछ नहीं कर सकता देखना चाहता है देख” कहकर वो यशिका को दीवार की तरफ ले गया और उसे दीवार से सटा दिया यशिका की चीख निकल गयी ” शौर्य से अब बर्दाश्त नहीं हुआ उसने वही से रॉड खींचकर उस आदमी को मारी जो उसके पैर में जा कर लगी एक पल को उसका बैलेंस बिगड़ा और हाथ की पकड़ ढीली हो गयी यशिका ने पूरी ताकत लगाते हुए उसे पीछे कि तरफ धकेल दिया और भाग कर शौर्य के पास आ गयी शौर्य ने उसका हाथ पकड़ा और उसे गले से लगा लिया तभी उसकी नज़र उस आदमी पर गयी वो आदमी उसी रॉड को उठा कर मरने के लिए बढ़ा तो शौर्य ने जल्दी से यशिका को पलट दिया और रॉड शौर्य के कंधे पर आ कर लगी
शौर्य करहा उठा उसे गिरता हुआ देखकर वो आदमी वहाँ से भाग कर दरवाज़े से बाहर चला गया शौर्य ने यशिका के हाथ को कस के पकड़ा यशिका ने उसे संभाला और वहीं बैठ गयी शौर्य ने अपनी आँखें खोली अपनी पॉकेट से फोन निकला और अनलॉक करके यशिका को दिया यशिका ने फोन लिया और अभिमन्यु को कॉल कर दिया
“हाँ शौर्य “
“आप जल्दी से ऊपर आ जाओ इनको बहुत लग गयी है “यशिका ने कहा
अभिमन्यु ने और कुछ सुना ही नहीं वो लिफ्ट की तरफ भागा देविका ने देखा तो वो भी अभिमन्यु के साथ लिफ्ट में आ गयी दोनों बीसवें फ्लोर पर पहुँचे तो देखा कि रिफ्यूजी एरिया का दवाजा खुला हुआ था
दोनों उस तरफ भागे अब अंधेरा होने लगा था यशिका शौर्य को अपनी गोदी में लिए हुए थे अभिमन्यु उसके पास गया और बोला ” शौर्य … शौर्य ने हल्के से अपनी आँखें खोली अभिमन्यु ने जल्दी से एम्बुलेंस को फोन किया और हॉस्पिटल में फोन किया कुछ देर में एंबुलेंस आयी शौर्य और यशिका को एंबुलेंस में भेज कर अभिमन्यु और देविका गाड़ी से हॉस्पिटल की तरफ चले गए ।
क्रमशः
अगले भाग के साथ जल्दी ही मिलूंगी
धन्यवाद
स्वरचित
काल्पनिक कहानी
अनु माथुर ©®