छोटका भइया – डाॅ उर्मिला सिन्हा

आज का दिन हम सभी के लिये बहुत खास है क्योंकि आज 18 सितंबर को हमारे पितृ तुल्य छः फीट के सुदर्शन व्यक्तित्व के स्वामी छोटका  भइया का 90 वां जन्मदिन है।

   हमारे परम आदरणीय पितृ तुल्य छोटका भइया श्री प्रमोद रंजन सिन्हा, 1995 ई में अवकाश प्राप्त उच्च  शिक्षा निदेशक बिहार सरकार हमारे मार्गदर्शक अभिभावक अग्रज  हैं आज के समय में  परिवार के सबसे बडे़  सदस्य 

कर्मठता, अनुशासन, जीवटता, परोपकार, परिवार के प्रत्येक दुख-सुख में ढाल बनकर अडिग खड़ा रहना इनकी पहचान है।

   दरअसल मैं आठ भाई-बहन हूं। सबसे पहले दो बड़े भाई, उनके पश्चात चार बड़ी बहनें फिर एक भाई और आखिरी में अपने माता-पिता की पेंट पोंछनी बेटी मैं। क़ायदे से मुझे उन्हें मंझला भइया कहना चाहिये लेकिन दीदीयों के मुंह से छोटका भइया सुनते-सुनते मैं भी छोटका भइया ही कहती हूं।यही जबान पर चढ़ा हुआ है।

   मुझे जबसे होश हुआ भइया को अपने अभिभावक के रुप में पाया। मेरे पिताजी अत्यंत भाग्यशाली थे जिनके इतने संवेदनशील परिवार के लिये प्रतिबद्ध हीरा-मोती जैसे पुत्र-रत्न थे। स्मृति शेष बड़का भइया हों या छोटका भइया दोनों हर प्रकार से परिवार की बेहतरी के लिये तत्पर रहते थे।

     जबसे मैंने होश संभाला है दोनों भाईयों भाभियों को अपने बहुत करीब पाया है। मुंह खोलने की देर और सामान हाजिर।उस समय भी छोटी-मोटी रचनाएं लिखती और बाबा, माई बाबूजी,भाईयों बहनों, भाभियों का प्रोत्साहन पाकर फूली न समाती।

   कितने जरुरतमंदों को बिना किसी  लाग-लपेट रिटर्न के वे अपने घर पर रखते और शहर में पढ़ाई जारी रखने की सारी सहुलियतें देते। संयुक्त परिवार था, सामाजिक दायरा बहुत बड़ा था लेकिन छोटका भइया और छोटकी भाभी पूरी तत्परता से लगे रहते।

तब पैसे भले गिने-चुने थे , संसाधनों का अभाव था लेकिन जांबाज दिल के अमीर मेरे छोटका भइया जहां जरुरत होती कभी भी संसाधनों का रोना नहीं रोते बल्कि तन-मन-धन से सभी की सहायता करते जिसमें मेरी छोटकी भाभी का सहयोग काबिले-तारीफ था। शायद उन लोगों की इन जीवटता का असर हमारे जीवनधारा भी पड़ा और जुझारूपन हमें विरासत में मिला।

   छोटका भइया ने अपनी सीमित आमदनी से धीरे-धीरे छपरा में  बड़ा- सा दो मंजिला मकान बनवाया जिसमें आज भी जरुरतमंदों को जगह मिल जाती है।

अवकाश प्राप्ति के बाद भी वे इतने सक्रिय हैं कि अपने पैतृक गांव घर जो उपेक्षित पड़ा था उसे फिर से मरम्मत करवा  आधुनिक सुख-सुविधाओं से लैस कर दर्शनीय तीर्थ स्थल सा बना दिया है।वे नियमित वहां जाते हैं,खेती करवाते हैं। चावल, गेहूं,आलू ,साग-सब्जी उपजाते हैं और परिवार के अलावा जरुरतमंदों में बांट देते हैं।उनका ही यह प्रयास है कि जो पैतृक गांव से विमुख हो गये थे, देहात कौन जाता है…कह अपने पुरखों की धरती की अवहेलना करते थे । आज पैतृक गांव परौना जिला सारण  जाने के लिये लालायित रहते हैं।

 कई प्रकार के आम , अमरुद, आंवला,  फलों का बाग,केले का बाग,सभी प्रकार की सुख-सुविधा , पोखरा में मछलियों की कलाबाजी देख मन प्रसन्न हो जाता है। वहां देखभाल के लिये आदमी रख दिए हैं यह तत्परता कर्मठता पुश्तैनी मकान जमीन के प्रति समर्पण प्रतिबद्धता नई पीढ़ी को अवश्य ही राह दिखायेगी।

 आप कितना भी हतोत्साहित हों एकबार गांव की धरती पर जायें … स्वच्छ हवा जलवायु आबोहवा  अपनों से मिलना,आपमें नयी ऊर्जा भर देगी यह छोटका भइया ने दिखा दिया।

    जब हमलोग छोटे थे वे हमारी पढ़ाई-लिखाई के लिये सदैव तत्पर रहते। हम बहनों का विवाह भी उन्होंने ही तय कराया था।

चूंकि वे सोशल थे उनका सामाजिक दायरा बहुत बड़ा था… ऊंच-नीच समझते थे… बहनों की बेहतरी किसमें है वे जानते थे और फैसला लेते थे जिसमें हमारे पुण्यात्मा माई बाबूजी, बड़का भइया बड़की भाभी का पूर्ण समर्थन और सहयोग रहता था।

   मुझे स्मरण हो आया आज से पचपन वर्ष पूर्व जब मेरा विवाह छोटका भइया ने तय कराया था तब मैं कालेज के दूसरे वर्ष में थी।घर में सबसे छोटी सभी की लाड़ली थी।माई गंगा पार उतनी दूर विवाह कर भेजने के लिये तैयार नहीं थी।तब छोटका भइया ने छोटकी चाची से कहा,

” चाची आज के युग में इतना सात्विक मेधावी लड़का मिलना सौभाग्य की बात है। लड़का और उसके बड़े भाई का आपसी तालमेल एक-दूसरे का आदर,भारत सरकार की नौकरी,नहर किनारे खेती-बाड़ी…यह ईश्वरीय वरदान  है ” … और मेरी शादी हो गई।

भरा-पूरा हंसता-खेलता एक-दूसरे के लिये समर्पित परिवार पाकर मैं भी दूध पानी की तरह इनमें घुल-मिल गयी।आज सोचती हूं कितने दूरदर्शी पारखी हैं हमारे छोटका भइया।

    इस उम्र में भी सफाई पसंद मेरे छोटका भइया नियमित योग करते हैं, टहलते हैं अपने स्वास्थ्य के प्रति सजग रहते हैं।छोटकी भाभी हमारा साथ 2010 में ही छोड़ गई ।छोटका भइया के दो यशस्वी बेटे हैं सुशील आज्ञाकारी बहुएं हैं… पोते पोतियां हैं।

तीन पोती इंजीनियर है एक पोती दामाद भी इंजीनियर है।उनका पोता आईआईटी में द्वितीय  वर्ष का छात्र है ,छोटी पोती स्कूल में है। अच्छा पेंशन मिलता है।उनका व्यक्तित्व आचरण सकारात्मक सोच का कायल घर-परिवार जान-पहचान वाले भी हैं। पटना में भी निवास स्थान है।

मेरी  रचनाओं के वे प्रबल प्रशंसक हैं।उनका यह उद्गार ,

” तोर  लिखल पढ़नी ह… बड़ा जीवंत आउर सांच बात लिखले ह…तू त नइहर-ससुरार के अमर कर देले ” तब मुझे अपनी लेखनी सार्थक लगने लगती है।

    ईश्वर आपको सदैव स्वस्थ प्रसन्न और दीर्घजीवी रखें यही मंगलकामना है।आपका आशीर्वाद और मार्गदर्शन हमारा संबल है वह सदैव बना रहे। वटवृक्ष हैं हमारे छोटका भइया।

मौलिक रचना -डाॅ उर्मिला सिन्हा रांची झारखंड 

(पांचवी कहानी)

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