भगवान भी माँ के बाद – विमला गुगलानी

    माँ माँ , देखो मुझे आज फिर ‘ गुड ‘ मिला , विशू ने स्कूल से आते ही अपनी कापी का वो पन्ना माँ के आगे रखते हुए कहा। विशू के चेहरे पर खुशी की चमक देखकर गोमती ने उस पन्ने पर पहले  बड़े प्यार से हाथ फेरा, और फिर बेटे की और देख कर बोली,

मेरा राजा बेटा, खूब पढ़ लिख कर एक दिन बहुत बड़ा अफसर बनेगा, और सब लोग उसे सैल्यूट मारेगें ऐसे, और गोमती ने उल्टे सीधे तरीके से बाएं हाथ से सैल्यूट वाला पोज बनाया।

   “मां, तुम भी ना, सैल्यूट ऐसे नहीं , ऐसे होता है”, और विशू ने सही ढ़ग से हाथ के साथ साथ पैर भी वैसे ही किया।ओए , होए , मेरा प्यारा बच्चा, कह कर उसकी बलाएं ली, और उसका बस्ता समेटते हुए बोली, चल तूं हाथ मुंह धोकर आ, मैं तेरे लिए खाना लगाती हूं।

   अभी आया मां , सच में ही बहुत भूख लगी है, स्कूल में बहुत अच्छा ‘मिड डे मील’ खाने को मिलता है, लेकिन मां, जो स्वाद तेरे हाथ के खाने में है, वो कहीं नहीं, यह कर विशू उछलता हुआ कपड़े बदलने चला गया। 

      दो जोड़ी तो स्कूल की वर्दी के थे उसके पास,एक तो बहुत पुरानी हो चुकी था, दूसरी कुछ महीने पहले बनवाई थी। गोमती की कोशिश रहती कि वो नई वाली ही पहन कर जाए, इसलिए रोज धो कर सुबह लोटे में गर्म पानी डालकर अपनी और से प्रैस भी कर देती। कई बार न सूखती तो पुरानी भी पहन जाता। 

     अनपढ़ गोमती के लिए काला अक्षर भैंस बराबर था, लेकिन विशू की कापी पर लाल रंग से लिखे गुड से वो समझ जाती कि कुछ अच्छा ही लिखा होगा। विशू कई बार हंसते हुए कहता , मां लाल रंग का प्रयोग सिर्फ गुड लिखने के लिए नहीं होता, गल्तियों पर भी लाल रंग से निशान लगाती है मैडम।

 मेरा विशू तो गल्ती करता ही नहीं, गोमती उस पर बलिहारी जाते हुए कहती।सरकारी स्कूल में विशू पांचवी कक्षा में पढ़ने वाला होनहार छात्र था। उसका पिता बंसी लाल रिक्शा चलाता और और वो इस छोटे शहर के साथ बस्ती में रहते। 

    गांव में रहने वाले मजदूर परिवार का बेटा बंसी मुश्किल से पांच तक पढ़ पाया। चाहकर वो पढ़ न सका। परिवार के हालात ही ऐसे थे। तीन भाई दो  बहनें , गांव मे कच्चा सा घर, दिन निकलते गए। जैसे तैसे पिताजी के साथ वो भी काम करने लग गया, पहले एक चाय की दुकान पर लगा, फिर दिहाड़ी करने लगा। 

       इसी बीच शादी हो गई। उसके दोस्त विजय ने कहा कि वो देहली में उसके पास आ जाए। तब तक विशू का जन्म हो चुका था। बंसी को भी ये सुझाव सही लगा। उसके मन में एक ही इच्छा थी कि उसका बेटा विशू यानि कि विशाल खूब पढ़े लिखे। वो खुद तो नहीं पढ़ पाया। 

    परिवार से इज़ाजत लेकर वो गोमती और नन्हें विशू को लेकर देहली आ गया और विजय के साथ कुछ दिन उसके घर , घर क्या, झुग्गी बस्ती में रहा और फिर पास में ही उसके लिए भी वैसी ही झुग्गी का इंतजाम हो गया। विजय किराए का आटो चलाता था। 

   वो चाहता था कि बंसी भी चलाए लेकिन बंसी को तो चलाना भी नहीं आता था, सीखना, लाईसैंस वगैरह, बहुत झंझट थे, तो उसके लिए रिक्शा चलाने की बात हुई। बंसी को भी ये ठीक लगा। दो महीने ये काम किया लेकिन देहली जैसे शहर में रिक्शा की सवारी बहुत कम मिलती। गुजारा भी नहीं हो रहा था। विशू भी तीन साल का हो गया ।

    बंसी ने देहली के पास ही छोटे शहर में शिफ्ट होने का फैसला किया। विजय को भी यही सही लगा। किसी तरह वहां रहने का इंतजाम होने पर विशू को आंगन बाड़ी में डाल दिया और गोमती ने आसपास झाड़ू बर्तन का काम पकड़ लिया। 

      काम ठीक चल पड़ा तो बंसी ने अपना रिक्शा खरीद लिया और विशू भी सरकारी स्कूल में जाने लगा। सरकार भी मदद कर देती है और अगर बच्चा होशियार हो तो स्कूल से भी मदद मिल जाती है। दसवीं, बारहवीं में अच्छे नंबरों में पास हुआ तो आगे की पढ़ाई तो शहर में ही करनी थी।

      यहां बंसी का काम कुछ जम सा गया था, गोमती भी घरों में काम करती। विशू को देहली  में ईजिंयनिरिंग में दाखिला मिल गया। दोनों जन दिन रात मेहनत करते और वहां विशाल भी एक दो टयूशन करने लगा। आधे पेट रह कर भी गुजारा किया।  

        मेहनत रंग लाई और विशू यानि कि विशाल बिजली महकमें मे उच्च पद पर लग गया।बंसी और गोमती अपने घर पर ही रहे। विशाल को सरकारी घर मिल गया था, लेकिन उसके मां बाप अपने छोटे शहर में ही रहना चाहते थे और अपना काम ही करना चाहते थे।

लेकिन विशाल अब उनहें काम नहीं करने देता। उसने वहीं पर उनके लिए मकान बनवा दिया और जब बंसी न माना तो उसे पांच सात रिक्शे खरीद कर दे दिए। अब वो खुद रिक्शा नहीं चलाता था, आगे किराए पर देता था।  तीन चार साल निकल गए। साथ ही काम करने वाली नैन्सीं से विशाल को प्यार हो गया।

      विशाल ने नैन्सीं को अपने परिवार के बारे में बता दिया था और वो उसे एक बार अपने घर भी ले गया। नैन्सीं को कोई आपत्ति नहीं थी ,

उसके मां बाप बहुत अमीर तो नहीं थे लेकिन अच्छे खाते पीते बिजनैस मैन थे। अपनी कोठी थी। रिक्शे वाले के और कामवाली के बेटे से बेटी की शादी करना उनहें पंसद नहीं आया, लेकिन बेटी की जिद और विशाल की अच्छी पदवी को देखकर उनहें ये रिशता मानना पड़ा।

      शादी शहर में होटल में हुई। वहां तो सिरफ मां बाप और कुछ खास लोग , दोस्त मित्र ही शामिल हुए। नैन्सीं की और से भी कम लोग ही बुलाए गए, उनहें इतना ही पता था कि विशाल का घर कहीं और है, लेकिन देहली में अच्छा घर, नौकरी सब बढ़िया था। 

      शादी के बाद दो बार बंसी और गोमती देहली आए। कपड़े साफ सुथरे लेकिन पहनने का ढ़ग और भाषा तो वही थी,  नैन्सी स्वभाव की बहुत अच्छी था और  उनकी बहुत इज्जत करती थी। दो तीन बार वो भी ससुराल वाले घर में हो आई थी। बहुत कहने पर भी बंसी और गोमती अपने घर में ही रहना चाहते थे।

     तीन साल बीत गए। नैन्सी ने प्यारे से बेटे को जन्म दिया । नामकरण सस्कांर रखा गया तो नैन्सीं के मां बाप, भाई भाभी, इधर बंसी, गोमती के इलावा काफी दोस्त मित्र शामिल हुए। जब पंडित जी ने हवन पर बैठने को कहा तो विशाल और नैन्सी के इलावा उसने बंसी

और गोमती को भी वहीं बैठने का इशारा किया। तभी वहां पर आई हुई नैन्सी की मां की सहेली  ने नाक सिकौड़ते हुए कहा, ये सूती धोती में दिखने वाली गंवार सी औरत कौन है। उसकी मां को बड़ी शर्म महसूस हुई, उसने धीरे से उसके कान में कहा, ये बच्चे के लिए आया रखी है।

   पास बैठे विशाल को ये सुन गया, वो उठ खड़ा हुआ और बोला, ये गंवार दिखने वाली औरत आया नहीं मेरी माँ है, आज मैं जो भी हूं अपने मां बाप की बदौलत हूं।

भगवान से पहले मैं इनकी पूजा करता हूं। रिक्शा चलाकर और घरों में काम करके कड़ी मेहनत से पसीना बहाया है इन दोनों ने, तभी मैं आज इस ओहदे पर हूं। मुझे यह बताते हुए कोई शर्म नहीं बल्कि फख्र महसूस हो रहा है। जिसे एतराज है वो यहां से जा सकता हैं।

        सब चुप, कोई कुछ नहीं बोला, तो विशाल ने पंडित जी को आगे की विधी पूरा करने का इशारा किया।

विमला गुगलानी

चंडीगढ़

वाक्य- ये गंवार औरत मेरी माँ है।

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