लखनऊ शहर एक नवाबों का शहर है इसी शहर से दूर एक गांव में ठाकुर सूरजप्रतप सिंह जी की हवेली थी। जो कि पहले जमींदार थे लेकिन जब भारत आजाद हुआ उसके बाद में सब की जमीदारी खत्म हो गई हवेली के बहुत बड़े-बड़े फाटक लेकिन उसके अंदर जो जिंदगी थी उसकी कहानी है।
सूरज की पहली किरण निकले आज जमींदार अपने पलंग पर बैठ हुक्का पी रहे थे और सोच रहे थे की जब उनके पास जमींदारी थी नौकर चाकरों से पूरी हवेली भर रहती अनाज के गोदाम चारों तरफ भरे रहते थे बाहर जाने के लिए घोड़ा गाड़ी बग्गी तैयार रहती थी
तभी उनके पिताजी भानु प्रताप सिंह जी आवाज देते सूरज चल आज इस काम के लिए बाहर जाना है आज इस काम के लिए बाहर जाना है। देश तो आजाद हो गया लेकिन सूरज प्रताप सिंह जी की जमींदारी पूरी तरह समाप्त हो गई थी ।
अब खाने के भी लाले पड़े हुए थे यही सोच सोच कर दुखी हो रहे थे। कि अब आगे क्या करें ।तो अभी वहां उनकी पत्नी किरण और उन्होंने उनकी पीठ पर हाथ रखते हुए कहा क्या हुआ क्या सोच रहे हो बुझे हुए चेहरे से सूरज प्रताप सिंह जी बोले समझ में नहीं आ रहा क्या करू।
तभी उनकी पत्नी किरण नेकह आप चिंता ना करो सब ठीक हो कुछ दिनों बाद अनाज खत्म हो जाएगा तो बच्चों क्या खिलाएंगे।
वह हुक्का पीते हुए बोले हुक्के की आग ठंडी हो रही है तुम जरा आग लेकर आओ मै कुछ सोचता हूं।
किरण जी ने कहा अब आप क्या करोगे दोनों हाथों से हवेली के बाहर हमेशा लोगों को अनाज दान देते थे आज हमारे घर ही भोजन के लाले पड़ रहे हैं
हमारी स्थिति ऐसी हो गई है की हम शर्म के मारे ना किसी से कुछ मांग सकते हैं और ना ही मजदूरी करके अपने परिवार का पालन पोषण कर सकते हैं समझ नहीं आ रहा ।अब आगे परिवार को कैसे जीवित रखे अगर हमने किसी से,,__कुछ मांग तो लोग क्या कहेंगे __
तभी किरण बोली लोगों का काम है कहना। लेकिन जब परिवार भूखों मर जाएगा तब क्या होगा ऐसा झूठा दिखावा शान शौकत किस काम की जिसमें अपने परिवार की बलि चढ जाए।
अगर आप को शर्म लगती तो मैं अपनी हवेली से निकलकर अपने खेत खलिहानों में काम करूंगी लेकिन अपने बच्चों को भूखा मरते हुए नहीं देख सकती ।
सूरज प्रताप सिंह जी बोले अगर तुम जाओगी तो भी तो बदनामी होगी तो भी तो लोगों कहने का मौका मिलेगा किरण जी बोली मैं लोगों की परवाह नहीं करती जब हम भूखे होते हैं तो के लोग हमें खाना देने आएंगे।
तभी उनका 10 साल का बेटा आदित्य प्रताप सिंह अपने माता-पिता की बातें सुना था और बोला क्या हम भूखे मर जाएंगे उसकी बात सुनकर सूरज प्रताप सिंह ने अपने बेटे को सीने से लगाए ।
कहा नहीं बेटा हम भूखों नहीं मारेंगे मेरे लिए तुमसे बढ़कर कोई नहीं है मान सम्मान या कुछ भी नहीं है जब परिवार होगा तभी तो मान सम्मान होगा जब परिवार ही नहीं है बच्चे नहीं है तो किसका मान सम्मान। मैं तुम्हारी मां के साथ कल खेत में जाऊंगा और हम लोग अपने खेत में खुद फसल उगेंगे ।
अगले दिन सुबह सूरज प्रताप सिंह और उनकी पत्नी किरण खेतों में गए हल चल रहे थे ।
सभी गांव के लोग आपस में बातें करने लगे और
बड़ी-बड़ी हवेली की बड़ी-बड़ी बातें यह भी रहा है मजदूरी कर रहे हैं।।
किरण ने कहा आप केवल अपने काम पर ध्यान दीजिए। हमें अपने लहराते हुए खेत देखने ना कि लोगों की बातों पर ध्यान देना है सूरज जी को उनकी बात समझ में आ गई ।और दोनों पति-पत्नी ने मिलकर अपने खेतों को जुताई की फसल उगाई उनकी करनी मेहनत रंग लाई ।
और उनके खेत में फसल लहराने लगी और कुछ दिनों बाद उनके बहुत अच्छी खेती हुई और पहले की तरह उनके पास धन दौलत पैसा सब कुछ हासिल हो गया अगर वह लोगों की परवाह करते तो उनका परिवार शर्म और मान सम्मान के चक्कर में समाप्त हो जाता।
कोई भी मान सम्मान हमें भूखे रहने और भूखे मरने की प्रेरणा नहीं देता बल्कि हमें कड़ी मेहनत करनी चाहिए और मेहनत करके जो हमें सफलता मिलती है
वही हमारा सबसे बड़ा मान सम्मान है और जब आप सफल होंगे तो वही लोग आपकी तारीफ करेंगे जो कि आपकी असफलता में बुराई करती इसलिए लोगों की बात पर ध्यान न देते हुए केवल अपनी मेहनत और ईमानदारी से कम कीजिए
हमे अपना काम मेहनत और ईमानदारी से करना चाहिए लोग की परवाह किए बिना।।
विनीता सिंह
बीकानेर राजस्थान