बहु, नंदिनी का रोका वह लोग अगले हफ्ते ही करना चाहते हैं। वह कह रहे हैं अनुपम को अगले महीने ही लंदन जाना है तो वह रोक करके जाना चाहता हैं, फिर एक साल बाद शादी। आशा जी ने अपनी बहू नम्रता से कहा
नम्रता: पर मम्मी जी, इतनी जल्दी सब तैयारी कैसे हो पाएगी? आप कहे तो हम बात करें उनसे?
आशा जी: अरे नहीं नहीं, मैंने बात कर ली है उनसे, उनकी कोई ज्यादा मांग भी नहीं है, बस रस्में करवाना है, तो मैंने भी हां कर दी।
अब बात करने से मेरी क्या इज्जत रह जाएगी.? वैसे भी रोका जितनी जल्दी हो जाए उतना ही अच्छा, हम भी निश्चिंत और वह भी, फिर शादी के लिए एक साल भी मिल जाएगा।
नम्रता: ठीक है मम्मी जी! शाम को पापा जी और वह आ जाए तो मिलकर बात करते हैं इस बारे में। अब जो करना है सो करना ही है, बस सब सकुशल हो जाए।
आशा जी: वह बहू तुमसे एक और बात करना था।
नम्रता: हां बोलिए मम्मी जी!
आशा जी: तुम्हें तो पता ही है तुम्हारे पापा जी का एक छोटा सा व्यापार है। तो रवि को ही ज्यादातर संभालना होगा। ऐसे में तुम लोग थोड़ा अपने खर्चों पर भी ध्यान रखना। मुझे गलत मत समझना। एक ही तो ननद है तुम्हारी,
बस इसकी शादी में कोई कमी ना रहे। यही मेरी हमेशा से ही ख्वाहिश रही है। मेरे जो भी ज़ेवर थे, वह तो ज्यादातर अब नहीं रहे, कभी रवि की पढ़ाई तो कभी घर की मरम्मत में चले गए। अब ऐसे में नंदिनी के सारे जेवर बनवाने पड़ेंगे, जो थोड़ा रवि दे देगा तो, थोड़ा हम कर लेंगे।
नम्रता: मम्मी जी! आप इतनी चिंता मत कीजिए, हम सब परिवार है और नंदिनी हमारी जिम्मेदारी, सब हो जाएगा।
उसके बाद शाम को सभी बैठकर इस पर चर्चा करते हैं, तो सभी अब अनुपम के घर जाने का निश्चय करते हैं। ताकि रोके की एक शुभ तिथि निकाल ली जाए। रवि को कुछ ज़रूरी काम आ जाता है तो, उसे छोड़कर आशा जी, अमर जी और नम्रता अनुपम के घर जाते हैं।
जहां बातों ही बातों में अनुपम की मां कविता जी कहती है, समधन जी! इतनी जल्दी पता नहीं आप लोग सारी तैयारियां कैसे करेंगे? हमारे तो हाथ पांव फूले जा रहे हैं, ज्यादातर लड़की वालो की तरफ से मौहलत चाहिए होती है, पर यहां तो आप लोग ही तैयार बैठे हैं, चलिए जो प्रभु की ओर इच्छा।
नम्रता हैरान होकर बोलती है, आंटी जी! हम कहां तैयार बैठे हैं? हम तो खुद ही…? उसका इतना कहना हुआ ही था कि आशा जी उसे रोक लेती है और फिर कहती है, अरे नम्रता इनका कहना है कि हमने इतनी जल्दी सारी तैयारी कैसे कर ली? अब यह सब छोड़ो और तारीख का बात करते हैं।
नम्रता को यह सारा माजरा समझ नहीं आया, क्योंकि आशा जी और कविता जी की बातों में कोई मेल नहीं था। पर फिर भी नम्रता ने कोई और सवाल नहीं पूछा और तारीख निकालने के बाद सारे घर आ गए। घर पर आते ही नम्रता ने का कहा, मम्मी जी,
मैं कपड़े बदलकर आती हूं, तब तक आप लोग नंदिनी को यह खबर दे दीजिए, इधर नम्रता अपने कमरे में चला गई, उधर आशा और अमर जी नंदिनी के कमरे में।
आशा जी: नंदिनी! तेरा रोका तय हो गया है।
अमर जी: आशा! तुमने तो कहा था की अनुपम के घर वाले हड़बड़ा रहे हैं, पर समधन जी तो कह रही थी की हड़बड़ी हमने की, समझ नहीं आया कुछ? मैंने सोचा घर चलकर तुमसे बात करता हूं।
आशा जी: हां वह सही कह रही थी, मैंने ही हड़बड़ी की थी। क्योंकि एक दिन मैंने नम्रता को रवि से सोने के सेट बनवाने के लिए बोलते हुए सुना और इधर अनुपम के लंदन जाने का भी मुझे पता लगा, तो सोचा ऐसा कुछ किया जाए जिससे मेरे दोनों कम निपट जाए।
अमर जी: चलो अनुपम के लंदन जाने से पहले तुम उनका रोका करवाना चाहती थी, यह तो समझ आया, पर नंदिनी की शादी का और बहू के सोने का सेट का आपस में क्या संबंध?
आशा जी: यह बात आप नहीं समझेंगे! हम औरतों का दिमाग 100 गुना तेज चलता है, देखिए अभी सोने का भाव क्या है? हम चाहे भी तो इतने महंगे सेट नंदिनी के लिए नहीं बनवा सकते! अगर अभी रवि ने सोने का सेट बनवा दिया
तो फिर नंदिनी के शादी के वक्त वह इसी का बहाना बनाकर अपना पल्ला झाड़ना चाहेगा, फिर हम कहां से दे पाएंगे? ऐसे में अब वह सेट नंदिनी के लिए बनवा लूंगी, तो मेरा एक काम तो हो जाएगा ना?
अमर जी: यह कैसी बातें कर रही हो तुम आशा? तुम्हें ज़रा सा भी अंदाजा है ऐसा करके तुमने नम्रता के साथ विश्वासघात किया है, उसने कभी भी मेरा तेरा नहीं किया और रवि वह खुद भी नंदिनी के लिए अपनी हद से बाहर जाकर करता है
और मुझे पता है, वह आगे भी करेगा। पर तुम्हारी ऐसी सोच से दोनों ही चौंक जाएंगे। सही कहा तुमने तुम औरतों का दिमाग 100 गुना तेज़ चलता है, पर इतना भी तेज़ मत चलाओ की उससे अपने रिश्ते को ही कुचल दो। बहू चाहे कितनी भी मेहनत कर ले
अपने परिवार को बांधे रखने की, पर उसकी सास बेटी और बहू में फर्क करके उसे पराया बना ही देती है और इसी कारण जब बहू अपना देखने लगे, तो तुरंत उस पर घर तोड़ने का लांछन लगा दिया जाता है। तुमने एक बार भी सोचा कि जब बहू को इस बारे में पता चलेगा तब उसे कैसा लगेगा?
नंदिनी: पर पापा भाभी को बताया कौन?
अमर जी: बेटा! नए घर परिवार में जाने वाली हो ऐसी सोच मत रखो। भाभी ने हमेशा तुम्हें अपनी छोटी बहन माना है। जिस चीज़ पर तुमने हाथ रखा, भले ही वह कोरी थी, पर फिर भी उसने तुम्हें कभी ना नहीं कहा और आज तुम अपनी मां के साथ मिलकर उनके साथ गलत बातों का साथ दे रही हो?
नंदिनी: नहीं पापा! मैं खुद भी अनजान थी इस बात से, मैं तो इसलिए भाभी को बताने को मना कर रही थी, ताकि उनको बुरा ना लगे।
आज मां के इस हरकत से मुझे भी काफी बुरा लगा है। पापा, नहीं चाहिए मुझे कुछ भी जो भाभी से छीना जाए, आप लोगों का दिया एक जोड़ा ही मेरे लिए काफी है। क्योंकि मैं अपना मायका सदा प्यार से जोड़े रखना चाहती हूं ना की लेनदेन से।
अमर जी: देखो आशा! तुमसे ज्यादा समझदार तुम्हारी बेटी है और भगवान की दया से मेरा रवि भी काफी समझदार है। तुम्हारे इस हरकत से अब मुझे बहु से नज़रे मिलाने में भी शर्म आएगी, पर फिर भी मैं उसे यह सारी बातें बताऊंगा और तुम उससे माफी भी मांगोगी, चलो अब बाहर।
उसके बाद सभी बाहर जाते हैं, जहां नम्रता रात के खाने की तैयारी कर रही थी। तभी अमर जी उसे कहते हैं, बहु तुमसे तुम्हारी सास कुछ कहना चाहती है और फिर माफी भी मांगना चाहती है।
आशा जी की तरफ सभी देखने लगे, इससे पहले आशा जी कुछ कहती नम्रता कहती है, पापा जी! अपने बच्चों के लिए हर मां ही स्वार्थी हो जाती है, तो मम्मी जी भी हो गई, इसमें इन्होंने ऐसा कोई अपराध तो नहीं किया ना?
जिससे उन्हें मुझसे माफी मांगनी पड़े, मम्मी जी, आपने उस दिन यह तो सुन लिया कि मैंने इनसे सोने का सेट बनवाने को कहा, पर आपने शायद यह नहीं सुना कि वह नंदिनी के लिए ही था। मम्मी जी मुझे कौन सा सेट पहन कर शोरूम में विज्ञापन करना है?
यहां तो नंदिनी की शादी है उसमें कोई कमी कैसे रहने दे? मुझे तो सोने जैसा परिवार मिल गया इस सोने के आगे भला उसे सोने का क्या मोल? मैंने मन से बहन माना है नंदिनी को, आगे से ऐसी कोई बात मन में आए तो बहु समझ कर नहीं, बेटी समझ कर बता दीजिएगा।
आशा जी: कितनी गलत थी मैं? तुम्हारा व्यवहार जानकर भी तुमसे ही विश्वासघात करने चली थी, बहू मुझे माफ कर दो, मैंने अपने ही घर के असली सोने को नहीं पहचाना। आज एक बात और अच्छे से समझ आ गई मुझे, हर बहू बेटी बनकर रहेगी बस सारी सास जो मां बन जाए।
दोस्तों, मैं नहीं कहती सारी सास बुरी होती है और सारी बहु अच्छी होती है, पर शुरुआत कहीं से तो होती ही है और यही शुरुआत वह चिंगारी है जो सास बहू के रिश्ते में आग लगा देती है।
धन्यवाद
#विश्वासघात
लेखिका : रोनिता कुंडु