आप अपने बेटे के साथ क्यों नहीं रहते – मंजू ओमर 

अरे शर्मा जी कब आए बेटे के यहां से,कल ही आया हूं। शर्मा जी दूध लेने को आए थे स्टिक का सहारा लेकर जाने लगें तो गुप्ता जी ने कहा लेकिन अब आपको अकेले यहां नहीं रहना चाहिए । देखिए आप ठीक से चल भी नहीं पा रहे हैं । वहां कम से कम बहू बेटा तो देखभाल के लिए है ।आप ठीक कह रहे हैं गुप्ता जी वहां भी नौकर ही सब काम करते हैं बहू बेटा के पास वक्त ही कहां है , यहां भी नौकर लगाकर करवा लूंगा।

और आप गुप्ता जी आप भी तो गए थे बेटे के पास कब आ गए ।अरे मैं तो हफ्ते दस दिन से ज्यादा नहीं रहता ।मेरा तो मन ही नहीं लगता। शर्मा जी अपना ही घर अच्छा, जहां इतने साल रहे हैं देखिए वहीं मन लगता है अपना ,अपना आजादी से रहो ।आपका मन नहीं लगता और मुझे कहते हैं कि बहू बेटे के पास रहना चाहिए।अरे शर्मा जी आप अकेले हैं न , यहां कोई देखभाल करने वाला नहीं है । भाभी जी के देहांत के बाद आप बिल्कुल अकेले हो गए हैं न ।

            शर्मा जी गुप्ता जी से इतनी बात करके घर आ गये।एक कप चाय के साथ कुछ बिस्किट लेकर बैठ गए कुर्सी में। भाभी जी के देहांत के बाद ,,,,,,,,,यही बात उनके दिमाग में गूंज रही थी । हां, हां हो गया हूं मैं बिल्कुल अकेला शकुन के जाने के बाद।पर इस बचे हुए जीवन का क्या करूं ,इस जीवन को कैसे काटूं तुम्हारे बिना शकुन। क्या बेटे बहू से अपना अपमान करवाकर,या तिरस्कार सहकर। दिनभर अपनी जुबान बंद करके समय से पहले ही क्या मर जाऊं।ये मरना क्या एक तरह से बिना मौत के ही मर जाना नहीं होगा।

पता है मरना तो सबको है पर इस तरह घुट घुटकर,हर चीज के लिए तरस कर,हर बात को दिल के अंदर दबाकर। कुछ कहो तो यही सुनने को मिलेगा पापा आप चुपचाप रहिए, आपको क्या पड़ी है क्या कैसे हो रहा है ।आप फालतू में न बोलिए ।तो अब सब चीजों पर खाने पर और बोलने पर भी रोक है तो क्या फायदा ऐसे घुट घुटकर जीने का । इससे तो अपना घर ही अच्छा है । यहां भी अकेला वहां भी तो अकेला ही तो हूं।सबके रहते हुए अकेला। यहां और कोई नहीं तो कम से कम बोलने की तो आजादी है।

              तभी दरवाजे की खट-खट सुनकर शर्मा जी की तंद्रा टूटी, दरवाजा खोला तो सामने कमली खड़ी थी।आजा कमली आजा और कैसी है तू बच्चे ठीक है । हां बाबूजी सब ठीक है और आप ठीक है , हां ठीक हूं ।अच्छा चल अपना काम कर सफाई करके मेरे लिए नाश्ता बना दे ।और दोपहर का खाना बना दे।और हां दो परांठे बना देना शाम के लिए भूख लगेगी तो गर्म करके खा लूंगा।और हां कद्दू की सब्जी बनाना जैसे तुम्हारी मां जी बनाती थी थोड़ा सा गुड़ डालकर।

बहुत दिन हो गए कद्दू खाने का मन कर रहा था।अच्छा बाबूजी कहकर कमली अपने काम में लग गई। इतना कहकर शर्मा जी कुर्सी में बैठ गए और कद्दू की सब्जी के बारे में सोचने लगे कि कितनी झिड़की मिली थी जब बेटे गौरव के यहां कह दिया था बहू से कि कद्दू की सब्जी बना देना तो कैसे बेटे ने झिड़क दिया था । क्या पापा अब इस उम्र में भी आपका स्वाद नहीं गया ।अब आपके लिए कद्दू की सब्जी अलग से थोड़े ही न बनेगी हम लोग खाते नहीं है कद्दू। इतना समय कहां होता है मुग्धा के पास ।जो बन जाता है न बस वो चुपचाप खा लिया करिए।

                     एक दिन बहू बेटे की अनुपस्थिति में शर्मा जी अपना खाना निकाल रहे थे कि दाल की कटोरी हाथ से छूट गई और रसोई में दाल फैल गई। शर्मा जी ने साफ तो किया लेकिन ढंग से साफ़ नहीं हो पाया उनको नीचे बैठने में परेशानी थी।शाम को जब आफिस से बहू घर आई तो वो पापा पर बिफर पड़ी।ये क्या पापा अपने रसोई कितनी गंदी कर रखी है ।

एक काम आपसे ढंग से नहीं होता । क्या गिरा दिया यहां सब चिप चिप कर रहा है ।अरे बहू वो जरा दाल की कटोरी हाथ से फिसल गई थी।आप तो बस कहकर निकल गए अब मैं पहले रसोई साफ करूं फिर कोई काम करूं । पापा ये शहर है गांव नहीं है कि चाहे जैसी गंदगी फैला कर रखे । मुझे गंदी रसोई बिल्कुल भी पसंद नहीं है। शर्मा जी सब चुपचाप सुन रहे थे।

               दूसरे दिन सुबह चाय पीकर शर्मा जी ने कप वहीं डाइंग रूम के टेबल पर छोड़ कर बाथरूम चले गए ।वापस आने पर गौरव कहने लगा अरे पापा चाय पीकर कम से कम कप तो सिंक में रख दिया करो ।और ये दवाइयों का डब्बा क्यों यहां रखा है इसे अपने कमरे में रखा करो ।वो बेटा बस मैं ,,,,,,,वो अपनी बात पूरी भी न कर पाए थे और गौरव वहां से चला गया।

               शर्मा जी को नहाने जाना था वो उठकर बहू के पास गए और बोले अरे बहू मेरे कपड़े कहां है दे दो जरा नहा लूं ।अब पापा जी मैं क्या क्या करूं ,आप अपने कपड़े भी नहीं उठा सकते क्या बाहर पड़े होंगे देख ले । क्या मुसीबत है यहां अपना ही काम करना मुश्किल होता है अब इनका काम और ये दे दो वो दे दो।बस यही रोज का काम हो गया है।

               शर्मा जी अपने घर में पत्नी के साथ आराम से रह रहे थे। अभी छै महीने पहले पत्नी शकुन का निधन हो गया था।शकुन के छोड़ कर जाने के बाद शर्मा जी बीमार हो गए हंसी खुशी दोनों लोग रहते थे। शर्मा जी हर काम के लिए शकुन पर आश्रित थे । कोई काम नहीं करते थे।उनके जाने से वे टूट से गए हैं।घर में जो भी आता यही सलाह देता कि अब तो आप बेटे बहू के पास रहिए । यहां अकेले अब आप रह नहीं सकते।

            अब गौरव और मुग्धा की मजबूरी हो गई थी पापा को अपने साथ लाने की । दोस्तों जब बच्चे अकेले अकेले रहने लगते हैं न तो उनको किसी की जिम्मेदारी उठानी बहुत भारी पड़ती है।और खास तौर से मां बाप। वहीं रह सकते हैं बेटे के पास जाकर और कौन रहेगा।

          शर्मा जी यहां मजबूरी में आ तो गए लेकिन हर वक्त बहू बेटो का झुंझलाना, चिल्लाना, बात बात पर टोकना यह साबित कर रहा था कि बहू बेटों को पापा का आना अच्छा नहीं लग रहा था। महीने भर में ही सबकुछ समझ आने लगा था शर्मा जी को। फिर क्या था एक दिन उनने हिम्मत करके कह दिया बेटा अब मुझको घर भिजवा दो ।

मैं वहीं रह लूंगा, किसी को रख लूंगा काम करने को । क्योंकि कल रात को बाथरूम जाते समय बहू बेटे के कमरे से बात करने की आवाज आ रही थी कि पापा के आ जाने से बहुत परेशानी हो गई है।बहू कह रही थी मम्मी थी तो कोई दिक्कत नहीं थी अपना रहते थे आराम से ।अब तो पता नहीं कबतक रखना पड़ेगा।अब भला मैं कैसे बताऊं तुमको कि कबतक रखना पड़ेगा गौरव बोला।

             बाथरूम से आकर शर्मा जी सोचने लगें सब कहते हैं बेटे बहू के पास रहो , ऐसे कैसे रहो बहू बेटे के पास। नहीं रहना मुझे बेटे के पास अपने घर में रहना है।जब शरीर थक जाता है न और मां बाप बुजुर्ग हो जाते हैं तो बहू बैटे अपने नहीं रह जाते पराएं हो जाते हैं।

         इस लिए दोस्तों बुढ़ापा आ गया है तो और अकेले हैं तब भी अपने घर में रहे । आखिर बहू बेटों के यहां भी तो आपकी सेवा नौकर ही करेंगे कौन सा बहू या बेटा कर देगा।तो अपने घर में ही नौकर लगवा कर करवा लें सेवा।बेटों के घर जैसा अपमानित तो न होना पड़ेगा न।

आपकी क्या राय है बताएं।

मंजू ओमर 

झांसी उत्तर प्रदेश 

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