अरे! वकील बाबू ये आप क्या कह रहे हैं? मेरा भाई ऐसा नहीं कर सकता है, वो तो बहुत अच्छा है, अपने बड़े भाई का सदा सम्मान करता है और वो मेरा भी हिस्सा ले लेगा, मुझे तो यकीन नहीं हो रहा है, देवेश
ने कहा।
आप ये कागजात देख लीजिए, आपकी मां ने अपनी सारी जायदाद आपके छोटे बेटे सोमेश के नाम कर दी है, वकील ने देवेश को कागजात दिखाएं।
देवेश ने पन्ने पलटकर देखा, एक जगह जाकर उसकी नजर रूक गई, मां तो पढ़ी लिखी थी, मां तो हस्ताक्षर करना जानती थी फिर मां ने अंगूठा क्यों लगाया?
देवेश को अब विश्वास हो गया था कि सोमेश ने उसका भी हिस्सा हड़प लिया है, उसके साथ विश्वासघात हुआ है।
देवेश तुरंत ही पहली ट्रेन पकड़कर गया और घर के बाहर जैसे ही पहुंचा, मनोहरी निवास की जगह सोमेश निवास देखकर सब माजरा समझ गया।
अंदर पहुंचकर वो गुस्से से दनदनाता हुआ बोला, भाई मेरा हिस्सा हजम करते हुए तुझे शर्म नहीं आई?
इस जायदाद में मेरा भी बराबर का हिस्सा था, तू इतना स्वार्थी निकलेगा मैंने कभी सोचा नहीं था। उन कागजों पर मां के हस्ताक्षर नहीं थे, तूने जबरदस्ती अंगूठा लगवाया होगा।
सोमेश कुछ ना बोला क्योंकि उसके मन में चोर था, वो चुप रहा। थोड़ी देर बाद वो देवेश से बोला,
“भाई साहब आराम से रूककर जाइयेगा, आपका ही घर है।
घर…. अब ये घर मेरा नहीं है, तूने मेरा विश्वास तोड़ दिया है, मैं बाहर गया हुआ था और तूने पीछे से ये कांड कर दिया, मैं तुझे कभी माफ नहीं करूंगा और देवेश घर से चला गया।
ट्रेन में बैठे -बेठे उसका मन नहीं लग रहा था, पुरानी यादों में वो खोता जा रहा था, मनोहरी देवी और राम लाल जी की दो संतानें हुईं थीं, देवेश और सोमेश, दोनों भाइयों में पांच साल का अंतराल था।
रामलाल जी और मनोहरी देवी अपनी दोनों संतानों पर जान छिडकते थे, परिवार में कभी किसी चीज की कमी नहीं थी, देवेश में धीरज था वो कोई भी निर्णय उतावले पन में नहीं लेता था, वहीं सोमेश इसके विपरीत जिद्दी था। मनोहरी देवी का लाडला भी सोमेश ही था क्योंकि छोटा बच्चा कभी बड़ा ही नहीं होता है, वो सदैव मां के लिए छोटा ही रहता है, वो उसकी सभी गलतियों को माफ कर देती थी, इसी वजह से सोमेश जिद्दी भी हो गया था।
रामलाल जी का अपना व्यापार था, उसी से घर- परिवार चल रहा था, बड़ा सा घर और काफी जमीनें थी, देवेश शुरू से पढ़ाई में होशियार था वहीं सोमेश बस उत्तीर्ण हो जाता था। सोमेश का मन पढ़ाई में नहीं लगता था।
दोनों बड़े हुए, सोमेश की रूचि घर के व्यापार में थी वो उसमे लग गया और देवेश की नौकरी दूसरे शहर में बैंक में लग गई। मनोहरी देवी और रामलाल जी चाहते थे कि देवेश भी उनका ही व्यापार संभाले पर देवेश को नौकरी करने की इच्छा थी। देवेश नौकरी करने लगा, कुछ समय बाद उसका विवाह कामिनी से हो गया जो उसी के गांव की लड़की थी, जिसे उसकी मां ने पसंद किया था, इन सबके बाद भी देवेश पर शहरी रंग नहीं चढ़ा था, वो छुट्टियों में गांव पहुंच जाता था और अपने माता-पिता की सेवा में कोई कसर नहीं छोड़ता था।
कामिनी भी अपने सास-ससुर का ख्याल रखती थी, घर से दूर रहने के बाद भी वो दोनों अपने घर से जुड़े हुए थे।
सोमेश पर देवेश जान छिड़कता था और उसे अपने बच्चे की तरह प्यार करता था। अब सोमेश भी विवाह लायक हो गया था, वो गांव की ही लड़की से प्रेम करने लगा था, बचपन से जिद्दी था, मनोहरी देवी को मीना पसंद नहीं थी क्योंकि वो उसे संस्कारी और घरेलू लड़की नहीं लगती थी फिर भी सोमेश की जिद के आगे दोनों को झुकना पड़ा और सोमेश की मीना के साथ शादी हो गई।
मीना का घरेलू कामों में जरा भी मन नहीं लगता था, उसे सोमेश के साथ घुमना -फिरना और सिनेमा देखने जाना बहुत पसंद था। चौके का काम भी ज्यादा ना आता था, वो मीना को सिखाने का प्रयास करती थी, पर वो सीखना ही नहीं चाहती थी, जुबान की भी कड़वी थी। ऊंची आवाज में बोलती थी और अपने सास-ससुर को कुछ भी सुना देती थी।
अब जब भी देवेश और कामिनी घर आते थे तो वो अपने कमरे से बाहर ही नहीं निकलती थी, उन लोगों का आना उसे पसंद नहीं था। कामिनी आती थी और अपनी सास के साथ काम में लग जाती थी, मनोहरी देवी जरा सी कामिनी की तारीफ कर देती थी तो मीना चिढ़ जाती थी। उसे लगता था कि सास-ससुर रहते तो मेरे साथ है और तारीफ कामिनी भाभी की करते हैं।
जबकि सब इसके विपरीत था, सोमेश भी शादी के बाद काम कम संभालने लगा था और चौके का काम सास ही संभालती थी। दोनों ने सास-ससुर को रख नहीं रखा था बल्कि वे दोनों उनके साथ में रहते थे।
मीना के बेरूखी व्यवहार के कारण कामिनी और देवेश ने आना कम कर दिया था, जहां पहले छुट्टी होते ही गांव आ जाते थे, वहीं अब बस त्योहार पर आने लगें थे।
समय के साथ दोनों के बच्चे भी अब बड़े हो रहे थे, बच्चों की पढ़ाई के कारण कामिनी और देवेश अब कम ही जाने लगे थे। रामलाल जी से भी व्यापार नहीं संभलता था। टीबी की लंबी बीमारी के चलते रामलाल जी ने अपने प्राण त्याग दिए। देवेश और कामिनी पन्द्रह दिनों तक रूककर गये थे, उन दोनों ने ही सारा काम संभाला था। अपने पति के जाने के बाद मनोहरी देवी आधी टूट गई थी। जीवन साथी के जाते ही आदमी हो या औरत जल्दी बूढ़ा होने लगते हैं। अब उससे ज्यादा काम भी नहीं होता था, वो अकेली ही बैठी रहती थी, काम ना करती तो मीना दिनभर चिकचिक करती थी।
एक दिन रात को लेटे -लेटे उन्हें अचानक लकवा आ गया और वो बिस्तर पर आ गई। मीना रोज देवेश और कामिनी के लिए सोमेश के कान भरती थी कि वो तो चले गए हैं, अब उनका इस घर और जायदाद पर कोई हक नहीं बनता है, अब जो भी है हमारा है, हमारे इकलौते बेटे के भविष्य में काम आयेगा।
सोमेश भी मीना की बातों में आ गया। मनोहरी देवी बिस्तर पर पड़ी रहती थी, उनके रोज के कामकाज के लिए गांव की ही एक गरीब विधवा को लगा दिया। सोमेश और मीना ने उन्हें ठीक करने के लिए ज्यादा भागादौड़ी भी नहीं की। देवेश ने काफी कोशिश की वो अपनी मां को शहर ले आये और उनका अच्छे से इलाज करवाये पर सोमेश और मीना ने उन्हें ले जाने नहीं दिया। इसके पीछे का कारण देवेश को अब समझ में आया।
मां के बिस्तर पर आते ही वकील से जायदाद के कागज बनवायें और मां का उस पर धोखे से अंगूठा लगवा लिया। रामलाल जी के जाने के बाद वो ही पति की संपत्ति की मालकिन थी। चार दिन बाद अचानक मनोहरी देवी की भी मौत हो गई। सोमेश ने बड़े भाई को बुला लिया। देवेश को लगा जैसे आज मां के जाने के बाद वो अनाथ हो गया है।
पन्द्रह दिनों के रीति रिवाजों को निभाकर वो भी वापस शहर चला गया, जायदाद और घर की बात कही उसके दिमाग में आई ही नहीं थी। एक दिन अचानक गांव से वकील बाबू शहर गये थे, कोर्ट की कागजी कार्यवाही करने के लिए। वही पर उसे देवेश मिल गया जो बैंक जा रहा था तो वहीं पर बातचीत शुरू हुई और वकील बाबू ने देवेश को वो कागज भी दिखा दियें। देवेश ने कामिनी को बताया वो भी सुनकर अचंभित हुई, दो बेटियां थीं, इसी भरोसे थी कि गांव की जमीन जायदाद से उसकी बेटियों की शादी के लिए थोड़ी मदद मिल जायेगी, आखिर बैंक की तनख्वाह से होता ही क्या है?
ट्रेन स्टेशन पर आ गई थी, देवेश उतरा और अपने घर आ गया। दोनों पति पत्नी ने इसे अपना भाग्य समझा और कुछ दिनों में सामान्य हो गयें। उधर गांव में सोमेश और मीना का इकलौता बेटा सोमेश की तरह ही जिद्दी था, उसे कम उम्र में ही शराब और जुंए की लत ने घेर लिया था। वो अपने माता -पिता की एक ना सुनता था।
दिन भर आवारागर्दी करना और दोस्तों के साथ समय बर्बाद करना, लड़कियों को ताड़ना उसकी यही आदत थी। पढ़ाई भी पूरी नहीं की और एक लड़की से इश्क लड़ाने लगा। सोमेश और मीना को लगा कि हो सकता है, शादी के बाद उनका बेटा राजू सुधर जायेगा तो उन्होंने उसकी उसी लड़की से जल्दी शादी करवा दी। देवेश और कामिनी भी राजू की शादी में अपनी बेटियों के साथ में आये थे। दोनों बेटियां पढ़ाई कर रही थी, उनकी नौकरी लगने वाली थी। गांव वाले मीना के भाग्य की सराहना कर रहे थे कि एक ही बेटा है उसका भी जल्दी ब्याह हो गया है, देवेश की दोनों बेटियां कुंवारी ही घूम रही है, देवेश और कामिनी गांव वालों को जानते थे, उन्होंने बेटियों को समझा दिया था कि वो गांव वालों की बातों में ना आये, उसे दिल पर ना लगाएं। शादी के बाद देवेश परिवार के साथ वापस शहर चला गया।
शादी के बाद भी राजू की हरकतें वैसे ही रही और जिस लड़की को ब्याह करके लाया था, वो भी परेशान होकर उसे छोड़कर चली गई। मीना और सोमेश भी अपने बेटे की हरकतों से काफी परेशान हो गए थे। ना तो वो घर पर रहता था ना ही वो व्यापार संभालता था। रात भर दोस्तों के साथ अय्याशी करता था। बेटे की चिंता में घुलकर मीना बीमार रहने लगी थी, उसके जीवन की सारी खुशियां चली गई थी, एक ही बेटा था वो भी खोटा ही निकला। एक दिन मीना उदास सी पानी भर रही थी, उसका पांव फिसला और वो सर के बल गिर गई, सिर पर गंभीर चोट आई और उसकी अचानक से मृत्यु हो गई।
अब राजू को और भी आजादी मिल गई, सोमेश किसी तरह घर संभाल रहा था। एक रात जब उसकी नींद खुली तो देखा उसके दोनों हाथ पैर बंधे हुए थे, सामने राजू और उसके दोस्त खड़े हुए थे। राजू एकदम से नशे में चूर था, राजू ने चाकू की नोंक पर उससे हस्ताक्षर करवा लिए और सारी जमीन, घर अपने दोस्त के नाम पर कर दी क्योंकि जुएं में वो अपने दोस्त से इस घर और बाकी जमीनों को हार चुका था। दोस्त को तुरन्त घर के कागजात चाहिए थे।
सोमेश ने इतनी मन्नतें की कि वो क्या कर रहा है, जिस जायदाद को अपने बेटे के लिए भाई से छीना वो ही जायदाद वो दोस्त को लुटा रहा है,पर राजू ने एक ना सुनी। सुबह उठते ही सब कुछ राजू के हाथ से जा चुका था। दोस्त ने धक्के देकर राजू और सोमेश को घर से निकाल दिया। राजू का नशा उतरा तो उसे अपनी ग़लती का अहसास हुआ, उसने बहुत मन्नत की पर दोस्त की नजर तो उसकी जायदाद पर काफी पहले से थी, तभी तो उसने पहले उसे खूब शराब पिलाई, फिर जुआ खिलाया और उसका सब कुछ हड़प लिया। राजू ने पिता सोमेश की हालत देखी वो भी बेसुध हो गये थे, राजू अपने पिता को अकेला छोड़कर वहां से भाग गया।
एक ही दिन में हाथ से सारी जायदाद भी चली गई और बेटा भी चला गया। आज सोमेश को महसूस हुआ कि उसने अपने पिता तुल्य भाई की जायदाद हड़प कर कितना बड़ा गुनाह किया था, उसे उसकी ही सजा मिली है, बुरे कर्मों का अच्छा फल तो नहीं मिलता है। सोमेश के मन पर बोझ था, मन तो उसका हुआ कि वो अपने प्राण दे दे पर जब तक अपने बड़े भाई से माफी नहीं मांग लेता तब तक उसका पश्चाताप पूरा नहीं होगा।
वो पहली ही बस पकड़कर शहर चला गया, रविवार का दिन था, देवेश घर पर ही था, दूर दरवाजे से परिवार की हंसी ठिठोली की आवाजें गूंज रही थी।
सामने अपने चाचा को देखकर दोनों बेटियां अंदर चली गई, उन्हें भी पता था कि चाचा ने उनके पापा के हिस्से की भी जायदाद हड़प ली थी। अब दोनों बेटियां अच्छी कंपनी में नौकरी करने लगी थी। घर में पैसों की कमी नहीं थी। दोनों इतना कमाने लगी थी कि अपनी शादी का खर्च खुद भी उठा सकती थी।
देवेश और कामिनी भी चौकन्ने हो गये थे, वहां गांव में क्या हुआ था, रिश्तेदारों और पड़ोसियों के फोन तो आ गये थे, पर सोमेश यहां क्यों आया है ? देवेश कुछ बोलता कि इससे पहले सोमेश भाई के पैरों में गिर पड़ा, मुझे माफ़ कर दीजिए भाई साहब!!! मेरे मन पर बड़ा बोझ है… मैंने आपके साथ विश्वासघात किया था, उसकी सजा मुझे मिल रही है….. जिस बेटे के लिए मैंने आपका हिस्सा भी छीन लिया था, उसी बेटे ने मेरे साथ छल किया और मैं अपना सब कुछ लुटा चुका हूं, अब मेरे पास कुछ नहीं है, ना घर है ना परिवार है…. मैं मरने से पहले आपसे माफ़ी मांगना चाहता हूं ताकि मेरे मन और आत्मा पर कोई बोझ नहीं रहें। ये बात अब समझ में आई है कि छीनने वाला इंसान कभी सुखी नहीं रह सकता है….
सोमेश मेरे भाई मैंने तुझे माफ किया और तू कहीं नहीं जा रहा है, मैंने तुझे भी अपनी संतान समझा है, तू हमेशा मेरे ही साथ रहेगा, देवेश से माफी मिली और वो जोर -जोर से सांसे लेने लगा, कामिनी ने तुरंत डॉक्टर को फोन लगाया पर तब तक देवेश के पैरों में सोमेश दम तोड़ चुका था।
पाठकों, ये सच है किसी का हक छीनकर आप कभी सुखी नहीं रह पाओगे। बुरे कर्मों की सजा इसी जन्म में भुगतनी होती है, विश्वासघात से बड़ा कोई पाप नहीं होता है।
धन्यवाद
लेखिका
अर्चना खण्डेलवाल
# विश्वासघात