आज सुबह-सुबह ही घर में नई बहू कायरा का गृह प्रवेश हो चुका था। विवाह के बाद की एक के बाद एक रस्में चल रही थी । घर मेहमानों से खचाखच भरा हुआ था। हंसी ठिठोली का माहौल था। परिवार के सभी सदस्य बहू कायरा को लेकर बहुत खुश थे क्योंकि बला की खूबसूरत थी वो।
कायरा लाल साड़ी में साक्षात् देवी मां जैसी लग रही थी। उसकी बड़ी-बड़ी आंखें मानो कुछ ना कहते हुए भी जैसे कुछ कह रही हो। मनोरमा जी बहुत खुश थी कि उनके घर इतनी पढ़ी लिखी खूबसूरत संस्कारी बहू आई है।
ऐसे उनका बेटा रवि भी कम ना था। सरकारी ओहदे पर था इसीलिए पूरे विवाह में और उसके बाद घर में बहू की खूबसूरती और दोनों की जोड़ी पर बातें सुन सुनकर मनोरमा जी के तो मानों आज पांव जमीन पर नहीं टिक रहे थे।
कुछ देर में ही बहू की मुंह दिखाई की रस्म भी शुरू हो गई। सभी ने अपनी तरफ से कायरा को मुंह दिखाई में अच्छे-अच्छे उपहार दिए।
किसी ने पायल किसी ने नूपुर किसी ने झुमके। मनोरमा जी ने भी बड़े चाव से बहुत पहले ही बहू की मुंह दिखाई के लिए गले की चैन बनवा ली थी और आज उसे ही देने के लिए जैसे ही मनोरमा जी ने अलमारी से वो चैन बाहर निकाली।
अचानक रश्मि मनोरमा जी के पीछे आकर खड़ी हो गई और उनके हाथ में इतनी खूबसूरत और भारी चैन देखकर बोल उठी। मां भाभी को मेरे जैसी इतनी भारी चैन देने की क्या जरूरत है। उसके तो और भी बहुत गहने आ गए हैं।
आप कोई हल्का-फुल्का झुमका भी दे सकती हैं । मनोरमा जी बेटी रश्मि की बात सुनकर आश्चर्य चकित होकर तुरंत बोल उठी। रश्मि मैं ऐसा क्यों करूं??
मैंने बिल्कुल एक जैसी दो चैन बनवाई थी। जिसमें से मैंने एक तेरे को दे दी और दूसरी तेरी भाभी के लिए रख ली थी, तो अब मैं उसे क्यों ना दूं।
मैं उसके साथ यह विश्वास घात क्यों करूं। जब मैंने तुम्हें दी थी। तब तुम कितनी खुश हुई थी। तुम्हारे विवाह में भी हमने बहुत गहने दिए थे।
तुम्हारे ससुराल पक्ष से भी बहुत सारे गहने आए थे,और हां जरा याद करो तुम्हारी मुंह दिखाई में तुम्हारी सासू मां ने तुम्हें कितने भारी खानदानी झुमके दिए थे । तुमने कितनी चाव से मुझे वो झुमके दिखाए थे और आज तुम ही मुझे अपनी भाभी को यह चैन देने से रोक रही हो। ऐसा क्यों??
मनोरमा जी यही नहीं रुकी। वह फिर बेटी रश्मि को समझाते हुए बोल उठी। देख रश्मि आज तुम्हारी भाभी का इस घर में पहला दिन है और अगर आज ही मैंने मेरे और अपनी बहू कायरा के बीच एक विश्वासघात की नींव रख दी, तो आगे चलकर इसके परिणाम भी सिर्फ मुझे ही नहीं बल्कि पूरे परिवार को भुगतने पड़ेंगे, क्योंकि विधि का यही विधान है ।
जो मैं हरगिज नहीं करना चाहती और बिटिया आज के बाद तू भी ऐसी बातें कभी नहीं करना। रश्मि को शायद मनोरमा जी की सभी बातें बहुत अच्छी तरह समझ आ गई थी, इसीलिए वो फिर मन में पश्चाताप लिए मनोरमा जी से बोल उठी।
मुझे क्षमा कर दो मां । यह सच है,कुछ देर के लिए मेरे मन में भाभी के लिए छोटे विचार आ गए थे।
मगर मैं अच्छी तरह जान गई हूं। हम किसी के लिए जैसा
सोचते हैं। हमें ईश्वर वैसा ही परिणाम देते है। आप बिल्कुल सच कह रही हैं मां। विधि का विधान हमसे यही तो कहता है कि जैसे कर्म वैसे परिणाम और अब चलो मां ।
भाभी की मुंह दिखाई की रस्म में सभी आपका इंतजार कर रहे हैं। हां बिटिया कहते हुए वह चैन का डब्बा हाथों में लिए मनोरमा जी खुशी-खुशी बेटी रश्मि के साथ अपनी बहू कायरा की मुंह दिखाई की रस्म की अहम किरदार बनने के लिए चल पड़ी।
स्वयंरचित
सीमा सिंघी
गोलाघाट असम