द ग्रैंड हीवेन फार्म हाउस मेहमानों से खचाखच भरा हुआ था… हो भी क्यों ना हो… आज रेवा और शशांक की शादी के बाद का रिसेप्शन जो था । शशांक एक आकर्षक और शानदार व्यक्तित्व के साथ -साथ एक बेहतरीन कलाकार भी था ।
कभी किसी होटल या किसी छोटी-मोटी पार्टी में अपनी आर्क्रेस्ट्रा पार्टी के साथियों संग वो भी गाने गाता था । ऐसे ही किसी समारोह में मिस्टर बजाज (रेवा के पिता) जो एक फ़िल्म निर्माता भी है, उन्होंने उसकी आवाज़ सुनी और उसके सामने अपनी आने वाली फ़िल्म में गाना का मौक़ा दे दिया…
फिर क्या था… वो गाना इतना मशहूर हुआ कि… शशांक बड़ा कलाकार बन गया । आज उसी शशांक की शादी का भव्य समारोह है ।
स्टेज के एक तरफ़ आर्क्रेस्ट्रा पार्टी में उभरते युवा कलाकार मधुर संगीत में अपना जलवा बिखेर रहे थे तो.. वही दूसरी तरफ़ स्टेज़ पर वर-वधू को आशीर्वाद देने के लिये लोग आ -जा रहे थे ।
सभी मेहमान इस शानदार पार्टी में शामिल हो मधुर संगीत के साथ-साथ विभिन्न प्रकार के व्यंजनों का भी लुत्फ ले रहे थे कि… तभी एक थोड़ी बुजुर्ग महिला की तरफ़ सबका ध्यान आकर्षित हुआ क्योंकि वह एक बहुत ही सामान्य साड़ी पहने हुए थी,
इतनी बड़ी पार्टी और उसके वस्त्रों का कोई मेल नहीं था।को किसी मध्यम वर्गीय परिवार की लग रही थी शायद इसी वजह से इस उच्च वर्गीय समाज की पार्टी में वी अलग सी लग रही थी लेकिन उसके चेहरे पर आत्मविश्वास का तेज झलक रहा था । वो भीड़ को चीरती हुई स्टेज पर पहुँचने कोशिश कर रही थी कि… एक सुरक्षा गार्ड उसके पीछे भागते हुवे आया और उसका रास्ता रोककर बोला….”
मैडम जी आप वहाँ कहाँ जा रही है?? आपके पास निमंत्रण पत्र की आईडी है??” वो बोली-“ नहीं“। “ आपको पता भी है… इस हाई प्रोफ़ाइल पार्टी के बिना आईडी के आना मना है.. #गँवार औरत ! तब तक वहाँ कई लोग आ गए और उस गार्ड की हाँ में हाँ मिलने लगे।
इस अफ़रातफ़री में स्टेज से उतर कर शशांक और रेवा भी आ गये, रेवा ने उस औरत को देख कर अजीब सा मुंह बनाया और बोली-“ गँवार औरत तुम्हें किसने यहाँ बुलाया है??” वो महिला कुछ बोलती उससे पहले शशांक बोला-“# ये गँवाए औरत मेरी माँ है ।”
“ क्या….सभी आश्चर्य से एक दूसरे का मुँह देखने लगे…शशांक उस महिला का हाथ पकड़ कर स्टेज पर ले गया… बोला- ये “राधिका माँ है …
जो ‘घरौंदा बाल आश्रम’ की एक सहायिका है। मैंने जन्म देने वाली माँ को नहीं देखा…मैं इन्हें किसी मंदिर की सीढ़ियों पर रोता – बिलखता मिला है…. मुझे इस माँ ने पाला है ,आप सब इन्हें # गँवार कहते हो…. पर… मैं उन माताओं को गंवार कहता हूँ जो…
अपनी कुछ पल की ख़ुशी या कुछ ग़लतियों के चलते …हम जैसे बच्चों को जन्म तो दे देते है, पर… समाज के डर या अपनी इज्जत की खातिर … मंदिर की सीढ़ियों या नाले, के पास छोड़ देते है… जहाँ से हम जैसे बच्चे को या तो… राधिका माँ जैसी माँ मिल जाती है या फिर…
किसी अनाथ आश्रम… या किसी बुरे इंसान मिल जाते है… । मैं बहुत ही भाग्यवान हूँ कि… मुझे राधिका माँ मिली और उनकी कड़ी परवरिश से मैं आज इस मुकाम पर पहुँचा हूँ । वो तो साथ ही आ रही थी कि… उन्हें रास्ते में मुझ जैसा एक अनाथ बच्ची दिखाई दे गई और उसे वो “ घरौंदा बाल आश्रम” में छोड़ने चली गई थी ।
आज इस हाई प्रोफ़ाइल समारोह में एक पाल को सन्नाटा पसर गया । राधिका माँ के चेहरे के आगे… सभी के चेहरे फीके पड़ गए थे ।अपने को शिक्षित और समझदार समझने वाले लोग आज # गँवार लग रहे थे ।
लेखिका : संध्या सिन्हा