शालिनी रसोई में फटाफट काम निपटा रही थी काम करने के साथ साथ अतिरेक सावधानी भी बरत रही थी फिर भी पता नहीं कुछ न कुछ हो ही जाता है अंजाने में क्योंकि जब हमारी गलतियों को ज्यादा हाइलाइट किया जाता है तो गलती होने के और ज्यादा चांस रहते हैं… इंसान का कॉन्फिडेंस डगमगाने लगता है।
“” बहु यह मेज देखो कितनी गंदी पड़ी है… एक भी काम ढंग से नहीं करती हो… भगवान जाने इस घर का क्या होगा मेरे बाद? “सासु माँ सुशीला का शिकायती तानपुरा शुरू हो चुका था।
” मम्मी जी अभी तो साफ की थी…..! “
“बस मम्मी से जुबां लड़ाते रहना… कोई काम ढंग से मत कर लेना। ” दिनेश उसका पति ऑफिस के लिए तैयार होकर डाइनिंग टेबल की तरफ आ रहा था, उसने शालिनी की बात को बीच में ही काटते हुए कहा।
“बेटा मैं तो कुछ बोलती ही नही तब यह हाल है नहीं तो पता नही क्या होता मेरा राम जाने? ” सासु माँ ने अपना दुखी होने का पैंतरा चला।
“अरे मम्मी आप क्यों परेशां हो रही हो… यह तो है ही गँवार औरत। ” दिनेश ने बेरुखी से शालिनी की तरफ देखते हुए कहा तो शालिनी का दिल एक बार फिर से छलनी हो गया ऐसा लगा मानो एक साथ अनगिनत नुकीले तीर उसके सीने को छलनी कर गए हों।
सोफे पर बैठा उसका आठ साल का बेटा पुलकित सहम गया वह अपनी मम्मी से जाकर लिपट गया।
“माँ पर ही जायेगा यह भी। “दादी सुशीला ने बुरा सा मुँह बनाते हुए कहा।
” अरे मम्मी क्या बोलती रहती हो वो मेरा बेटा है… किसी गंवार का नहीं शेर है शेर मुझे जायेगा एकदम सभ्य और इंटेलिजेंट। “दिनेश ने गरवीले अंदाज में कहा।
” मेरा बच्चा है तो मुझ पर तो जायेगा ही… आखिर नौ महीने तक मैंने अपने खून से सींचा है इसको अपने पेट में। “शालिनी चिल्लाकर यह कहना चाहती थी लेकिन चुप हो गई क्योंकि वह जानती थी कि अगर कुछ भी बोला तो यह लोग उसके बेटे के सामने और अधिक बुरा भला कहेंगे।
एक बार फिर से वह खामोश हो गई हर बार की तरह ताकि उसके बेटे पर नकारात्मक असर न पड़े।
उसको याद आया जब वह शादी में आई दुल्हन बनकर तभी सासु माँ ने कह दिया था…. “तुमको हमारे घर के सभी तौर तरीके सीखने होगे। “
शालिनी ने बहुत कोशिश की यहाँ तक कि उसने अपनी जड़ों जहाँ वह जीवन के चौबी पच्चीस साल गुजारकर आई थी उनको विसरा कर ससुराल पक्ष के रंग में रंग जाने की लेकिन फिर भी शिकायतों में कमी नही आई … उसकी जिंदगी बद से बदत्तर होती गई।
पुलकित सब कुछ समझता था अब। वह बड़ा हो रहा था। किशोर मन अब और ज्यादा खिन्न रहने लगा था उसको गुस्सा आता था घरवालों पर मम्मी दादी और पापा पर… “मम्मी इतना काम करती है पूरे घर का फिर भी उसको हर वक्त जलील किया जाता है… और मम्मी भी पता नहीं कौनसी मिट्टी की बनी हुई हैं जो जवाब ही नहीं देती… अपने लिए स्टंट नही लेतीं।
समय बीतता गया और स्कूल के बाद पुलकित ने जब कॉलेज पपास किया वहाँ पर डिग्री वितरण समारोह में आज मम्मी पापा को ही जाना था।
“चल जल्दी कर पुलकित देर हो रही है…! ” दिनेश ने गाड़ी में बैठते हुए कहा।
“पापा मम्मी आ रही हैं… पांच मिनट रुकिए..! “
“अरे वो क्या करेगी जाकर… बोलना तक आता नहीं। ” दिनेश ने मुँह बनाते हुए कहा।
“आपने कभी बोलने ही नहीं दिया उनको पापा… कभी न मन की सुनी उनके और न ही सम्मान दिया…. हाँ मेरी मम्मी गँवार थी तभी तो अपनी जिन्द्गी के बीस बाइस साल आपका घर बनाने, मुझे पालने और… इस घर पर खर्च कर दिये। ” पुलकित ने भर्राये गले से कहा तो दिनेश को तो काटो तो खून नहीं वाली स्थिति पैदा हो गई और अभी तक दरबाजे के पीछे खड़ी मम्मी की आँखों में से आँसूओ का सैलाव उमड़ पड़ा।
कदम देहलीज के भीतर को बढ़ने ही वाले थे कि पुलकित ने आकर हाथ पकड़ लिया।
“मम्मी आपसे बड़ा ज्ञानी और समझदार मेरे लिए कोई न तो था और न होगा। ” पुलकित की बात सुनकर शालिनी उससे लिपटकर फुट फुटकर रोई। दिनेश की आँखें शर्म से झुक गई।
आज तक न जाने कितनी ही दफा उन्होंने अपनी पत्नी को नीचा दिखाया उसको उल्टा सीधा बोलकर बिना यह अनुमान लगाए कि उसके बिना उनका और उनके परिवार का कोई वज़ूद ही नहीं।
राशि सिंह
मुरादाबाद उत्तर प्रदेश
(मौलिक उन अप्रकाशित कहानी)