मीता के पति तनुष बहुत धार्मिक,सात्विक,शुद्व शाकाहारी और संस्कारी थे।उनका स्वभाव बेहद सरल और सीधा था।वे एक बैंक में कार्यरत थे।और पति की संगति से मीता भी उसी परिवेश में ढल गयी थी और उसका 11 साल का बेटा किंशू भी
अपने मम्मी पापा के पास बैठकर अच्छी बातें सुनता और सीखता था। मीता किंशू को छोटी छोटी बातों के प्रति ध्यान रखना सिखाती थी,कि जैसे अगर ज़मीन पर चींटियां चल रही हो तो उनपर पैर न पड़ने पाए। किसी भी कीड़े मकोड़े को मत मारो।
वो हमेशा यही कहती कि जितना पाप किसी बड़े जीव को मारकर लगता है उतना ही छोटे जीवजंतुओं को मारने पर भी लगता है।और लगातार माता पिता से ये सब सुनकर अब किंशू भी कुछ हद तक पाप और पुण्य का मतलब समझने लगा था जो कि अमूमन इस उम्र के बच्चों में कम देखने को मिलता है।
इन्ही सब बातों के साथ मीता किंशू को बड़ो का आदर सम्मान करना भी सिखाती थी
और किंशू यह भी देखता था कि उसके पापा भी अपने माँ पिताजी का बहुत सम्मान करते थे और अपनी माँ के बेहद तेज़ स्वभाव के बावजूद भी कभी पलटकर जवाब नहीं देते थे।
तनुष की माताजी यानी कि गीताजी बहुत तेज़ तर्रार थीं।
वो मीता से भी कभी संतुष्ट नहीं रहती थीं बस मीता पलट के जवाब नहीं देती थी तो कभी कोई बहस या लड़ाई नही होती थी। उनको देखकर कोई कह नही सकता था कि तनुष उनके बेटे हैं। हालांकि उनकी बेटी खुशी उन्ही का पूरा अवतार थी बस दूसरे शहर में नौकरी करती थी तो घर की शांति बरकरार थी।
मीता खुद कभी कभी हैरान रह जाती थी कि मां और बेटे कितने अलग हैं।
मीता के ससुर सुनील जी भी सीधे और सरल थे। तनुष ने अपने स्वभाव की खूबियां अपने पिता से ही पायी थीं। सुनीलजी और गीताजी अपने स्वभाव के बिल्कुल विपरीत थे। पर एक नरम और एक गरम होता है तो जीवन की गाड़ी चलती रहती है।
गीताजी खुलेआम अपने दोनों बच्चों में फर्क करती थीं। और ये सब देखते थे पर कुछ बोल पाने की हिम्मत न थी किसीमें। तनुष भी कई बार देखकर अनदेखा कर देते थे क्योंकि खुशी उनकी छोटी बहन थी। पर मीता वाकई कभी कभी बहुत खीझ जाती थी और अपने कमरे में बैठकर आंसू बहा लेती थी।
किंशू को अपनी मम्मी को रोता देखकर बहुत बुरा लगता था,पर वो बड़ों के बीच मे कुछ भी नहीं बोलता था।
एक बार खुशी घर आई हुई थी और उसी दौरान मीता की तबियत खराब हो गई। उसको तेज़ बुखार और सर्दी हो गई। शाम के समय मीता ने सब्ज़ी बनाकर रख दी और बहुत हिम्मत करके गीताजी से जाकर कहा कि,”माँजी आप पराठे सेंक लीजिये मुझे बहुत चक्कर आ रहे हैं।”
गीताजी मुंह बनाते हुए उठीं और खुशी को आवाज़ लगाती हुई बोलीं,”आजा बिटिया,थोड़ी मदद कराले मेरी,महारानी जी को चक्कर आ रहे हैं।”दोनों माँ बेटी किचन में पहुंच गईं।
किचन से लगा हुआ कमरा मीता का था और दरवाज़ा खुला हुआ था। थोड़ी देर में ही पूरे घर मे देसी घी की महक उड़ने लगी और खुशी ने अपने पापा को खाने के लिए आवाज़ दी, जब सुनीलजी खाने बैठ गए तो सासू माँ ने खुशी के लिए भी प्लेट लगा दी। एक बार भी तनुष को आवाज़ नही दी जो दिन भर के बाद आफिस से आया था। खैर तब तक सुनील जी खा चुके थे और खुशी भी लगभग खाना
खत्म करने ही वाली थी। जब गीताजी ने किसीको आवाज़ नहीं दी तो बहुत हिम्मत करके मीता उठी कि किंशू और तनुष की थाली लगा दे और वो किचन में पहुँचकर अवाक रह गयी कि सुनीलजी और खुशी को खिलाकर और खुद के दो पराठे देसी घी में सेंकने के बाद अब गीताजी ने कटोरी में
रिफाइंड निकाला और तनुष, मीता और किंशू के परांठे सेंकने लगीं।पीछे खड़ी मीता ये सब देखकर गुस्से से तमतमा उठी और जैसे उसका खुद पर से नियंत्रण खो गया।वो रोते हुए अपने कमरे में पहुँची और सिसकते हुए कहने लगी,”अगर भगवान है इस दुनिया में तो ये औरत एक दिन बहुत
पछताएगी,अपने पोते और अपने बेटे के लिए इसको दो चम्मच देसी घी नहीं बर्दाश्त है , फिर मैं तो गैर हूं,आज से पहले मैंने ऐसी पक्षपात करने वाली माँ नहीं देखी।”
किंशू वहीं बैठा टी वी देख रहा था और अपनी माँ के मुंह से ये बातें सुनकर मीता को बड़ों को तरह समझाता हुआ बोला,”मम्मी आप सब कुछ जानते हुए भी ऐसे क्यों बोल रही हो। अगर आपको भगवान पे भरोसा है तो उन्ही पे छोड़ दो न। जो गलत करेगा उसको भगवान जी खुद ही सज़ा देंगे।आप क्यों किसीके लिए गलत बोलकर पाप कमा रही हैं।”
अपने बेटे के मुंह से ये सीख सुनकर मीता के क्रोध में निकले आंसू गर्व की मुस्कान में बदल गये और पास ही खड़े तनुष बोले,”देखा मुझे भगवान ने बिना मांगे ही कैसा नायाब हीरा दिया है बस इसको मंज़िल मिलने तक हमको इसे तराशते रहना है,बाकी सब कुछ भगवान पर छोड दो।”
जब मीता कमरे के बाहर निकली तो देखा कि सुनीलजी गीताजी से गुस्से में कह रहे थे कि,” ये हरकत करते हुए तुम्हे शर्म आनी चाहिए,क्योंकि तुम खुद ये उदाहरण अपनी बहू के सामने रख रही हो ,कल को अगर वो यही करे तो फिर बुरा मत मानना,इसी वक्त ये सारे पराठे गाय को खिला दो और तनुष,मीता और किंशू क लिए देसी घी के पराठे बनाओ….।।।।
हमे अपने बच्चों को अच्छी सीख देनी चाहिए क्योंकि यही इनकी वास्तविक विरासत है जो इन्हें अपने परिवार से मिलती है बाकी धन संपत्ति तो अपनी जगह है और अगर इनके संस्कार मजबूत होंगे तो अपने जीवन की हर परिस्थिति का ये मजबूती से सामना कर लेंगे। आखिर पुरानी कहावत ऐसे ही थोड़ी न कही गई है कि ,”पूत कपूत तो क्यों धन संचय, पूत सपूत तो क्यों धन संचय।”
सिन्नी पाण्डेय