अपने मन की सुनना – विमला गुगलानी : Moral Stories in Hindi

     “ ओह माँ जी, ये बहूजी भी ना, मजाल है किसी काम को हाथ लगा ले, नाशते के बर्तन तक नहीं उठाती, और कमरा कितना बिखरा पड़ा है, सारे कपड़े पंलग पर फैला दिए” नौकरानी रामी काम भी कर रही थी और बुड़बुड़ा भी रही थी। 

      सुषमा सामने ही बाहर चारपाई पर बैठी मेथी साफ कर रही थी। उनहें रामी की बकबक साफ सुनाई दे रही थी।रामी घर की बहुत पुरानी और मुँहलगी नौकरानी थी। सुबह से लेकर रात का खाना बनाने तक वहीं रहती। उसका घर ज्यादा दूर नहीं था। 

    जब लगी थी तो सिरफ शाम का खाना बनाती थी, उसके बच्चे छोटे थे तो यहां पर भी सुदीप और सावी छोटे थे। रामी के चार बच्चे थे , उसका पति किसी दुकान पर काम करता था। समय के साथ बच्चे सभंल गए लेकिन खर्चे भी बढ़ गए तो रामी ने सुबह काम करने का मन बना लिया। सुषमा ने सोचा क्यों ना उसे ही सुबह के  काम पर भी रख लिया जाए। 

   पहले सुषमा सुबह का खाना खुद बना लेती और शाम का रामी, वो सुबह के लिए भी तैयारी करवा देती। लेकिन पिछले पांच सालों से सारा काम वही करती। इसी बीच छोटी होने के बाद भी सावी की शादी पहले हो गई और फिर सुदीप की मुनमुन से। सब बच्चे खूब पढ़े लिखे थे, सावी भी शादी से पहले ही नौकरी पर लग गई थी और मुनमुन भी काम पर जाती थी। 

         रामी काम में बहुत होशियार थी, सुबह जल्दी ही आ जाती, नाश्ता, लंच, डिनर सब बनाती। दिन में सफाई बर्तन वगैरह के लिए कमला आती। सुषमा जी भी कुछ छोटे मोटे काम कर लेती। विपुल यानि की सुषमा के पति वैसे तो बीमा कंपनी से रिटायर थे लेकिन उनके पास बीमा संबधी बहुत काम था।

       घर भी अच्छा बड़ा था, खाने वाले कुल चार लोग ही थे। सावी और आशीष अपने बेटे यमन के साथ महीने में एक दो बार छुट्टी के दिन  आते तो रौनक सी लग जाती। 

    आजकल बच्चों की दिनचर्या पहले जैसे नहीं रही। देर से सोना और देर से उठना और छुट्टी वाले दिन तो और भी देर से उठना। अब नौ से पांच तक काम करने  वाले लोग कम ही रह गए है। अधिकतर काम कम्पयूटर से होते हैं तो तरीके बदल गए हैं। 

     और अब लड़कियां खास तौर पर पढ़ी लिखी भी वैसी नहीं रही कि उठते ही रसोई में घुस जाना।हर घर की यही कहानी है। घर के बुजुर्ग भले ही जल्दी उठ जाएं या फिर कोई सुबह की सैर का शौक रखता हो तो। जिम जाना शान की बात मानी जाती है।

   बात कर रहे थे रामी की। बोलती बहुत थी, सुषमा ने कई बार समझाया कि अपने काम से काम रखो। आजकल के बच्चे ऐसे ही है। सावी भी तो ऐसी ही थी , अब मुनमुन है। बेटी हो या बहू क्या फर्क है। सुषमा जी खुले विचारों वाली पढ़ी लिखी औरत थी। चाहती तो थी कि बेटी हो या बहू घर के कामों में कुछ हाथ बटाएं, कभी रसोई में अपने हाथों से बना कर कुछ खिलाएं। 

       लेकिन ये सब सोचने से कुछ लाभ नहीं। लाखों कमा रही है,नौकर काम कर रहे हैं, जो खाने को मन करे आर्डर करो और सब दरवाजे पर हाजिर।सुषमा को आज भी याद है सर्दियों के मौसम में जब लाल लाल गाजरें आती तो वो अपने हाथों से कद्दूकस करके दूध में पकाती और खूब सारे मेवे डालकर गजरेला तैयार करती, सब कितने चाव से खाते। पूरी सर्दियां ये ही सिलसिला चलता। 

      और आज कहो तो आर्डर कर दिया और डिब्बे में आ गया गाजर का हलवा, उपर उपर दो चार बादाम डले होते है, पता नहीं कौन कैसे घी में पकाता है, लेकिन किसी को कोई फर्क नहीं पड़ता। काम चल जाता है। सुषमा जी में तो अब हिम्मत नहीं और काम वाली से कौन सिरखपाई करें। 

     चूकिं विपुल जी को तो वही पंसद है तो एक दो बार स्टूल वगैरह पर बैठकर सुषमा बना देती है। रामी की बातें निरतंर चालू रहती है। सुषमा का मन तो कई बार होता है कि बहू को घर के काम के लिए कुछ कहे, लेकिन फिर चुप कर जाती है। 

       रामी को कुछ कहो तो कहेगी, अरे मालकिन , मेरी तो आदत है बोलने की, बहूजी को क्या जरूरत है काम करने की, बाहर से इतना थक कर आती है।रामी तो घड़ी में तोला घड़ी में माशा।  सुषमा भी मुस्करा देती है। कभी कभी लगता है कि कहीं रामी की बातों में आकर वो कुछ कह ही न दे, हर समय उल्टी पट्टी पढ़ाती रहती है, लेकिन फिर वो अपने आप को संयत कर लेती है।किसी की बातों में न आकर अपने मन की सुननी चाहिए , रामी तो नौकरानी है, कोई और कुछ भी कहे, मस्त रहो और अपने परिवार की खुशी ढ़ूढ़ो।

     फिर सोचने लगी,चलने दो जैसा चल रहा है। किसी की बातों में नहीं आना। जब उनके बच्चे होंगे तो अपने आप जिम्मेवारी समझेगें।बिना बात के अपने घर की शांति क्यूं भंग करनी। पैसों से सब हो रहा है। जमाने के साथ चलने में ही भलाई है। खुद से जितना हो सके करते रहो। और वो शांत मन से मेथी काटने लगी ताकि स्वादिष्ट सी मनपंसद भुर्जी बना सके जो कि घर में सबको पंसद है।

विमला गुगलानी

चंडीगढ़।

कहावत- उल्टी पट्टी पढ़ाना

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