विश्वास घात – हेमलता गुप्ता : ries in Hindi

शिवानी बेटा..  तेरे पापा मम्मी भैया भाभी तेरी बड़ी बहन, तू मेरा बेटा सब वैष्णो देवी माता के दर्शन के लिए जा रहे हैं, मेरी तो कितने सालों से इच्छा थी कि मैं भी माता रानी के दरबार में जाऊं पर मेरी यह इच्छा कभी पूरी ही नहीं हो पाई, विवेक के पिता  मेरी हर इच्छा पूरी करते थे किंतु असमय ही चले गए

और मेरी इच्छा मन की मन में ही रह गई, आज जब पता चला कि तुम सभी जने ट्रेन से जा रहे हो तो बहू मेरा भी टिकट करवा देना मैं अकेली बुड़िया यहां घर में क्या करूंगी..? कमला जी की बात सुनकर बहु बोली.. लेकिन माजी वहां बहुत उबड खाबड रास्ते हैं और आपकी इतनी सारी दवाइयां

चलती हैं शुगर की बीपी की, ऊपर चढ़ने में और लंबा रास्ता पार करने में आपको मुश्किल आएंगी और आपके साथ-साथ हम भी मुसीबत में पड़ जाएंगे, आपको तो बस घूमना चाहिए आप तो रहने ही दो! तभी विवेक घर में आया और बोला… अरे शिवानी मां को भी चलने दो ना.. तुम्हारा पूरा परिवार जा

रहा है,तुम्हारी मम्मी पापा भैया भाभी तुम्हारी दीदी सभी जा रहे हैं मां की भी इतनी इच्छा है, उन्हें अकेला छोड़कर कैसे जाएं? देखो शिवानी माता रानी की जिसको  भी बुलाने की इच्छा है वह उसे बुलाकर ही मानेगी हम और तुम रोकने वाले कोई नहीं होते, देख लो सब व्यवस्था हो जाएगी बस तुम

मां का टिकट करवा दो तब तक में ऑफिस के काम भी निपटा लेता हूं, और हम सब है ना मां का ध्यान रखने के लिए! विवेक की बात सुनकर शिवानी मुंह बनाती हुई कमरे में चली गई और जाकर बरबड़ाने लगी… पता नहीं इस उम्र में भी इनको बड़ी घूमने फिरने की इच्छा जागृत होती है अब वहां

हम मौज मस्ती करें या उनकी सेवा करें, मन में तो आता है मैं भी ना जाऊं पर मेरी मायके के सभी लोग जा रहे हैं कितनी इच्छा होती है उनके साथ में जाने की, एक आफत  और गले पड़ गई खैर.. जो होगा देखा जाएगा! एक काम करती हूं मैं इनका टिकट ही नहीं करवाऊंगी और कह दूंगी पता नहीं

कैसे टिकट नहीं हो पाया! अगले दिन ही कमला जी में बच्चों की तरह उत्साह पैदा हो गया और वह भाग भाग कर अपना बैग तैयार करने लगी, बार-बार शिवानी के पास आती और पूछती… बहु कितनी साड़ियां ले चलूं, वहां तो ठंड होगी ना तो तुम मेरे ऊनी कपड़े भी निकलवा देना,  कौन-कौन सी साड़ियां लूंगी यह वाली अच्छी लग रही है, यह वाली अच्छी लग रही है, यह शॉल जुराब टोपी सब ले

चलूंगी,  और बहू कितने पैसे ले चलेंगे, खाने में क्या-क्या ले चलेंगे, चल ठीक है मैं बना दूंगी खाने में, चिंता मत करना और हां मैं मेरी दवाइयां भी खुद ही ले लूंगी, बेटा बस तू मुझे माता रानी के दर्शन करवा दे तेरी बड़ी मेहरबानी होगी! और ऐसा कहते कहते कमला जी की आंखों से खुशी के दो आंसू

आंखों पर ढलक आए! कभी-कभी तो ऐसी हरकत पर शिवानी को दया आती कि इनकी कितनी तीव्र इच्छा है वहां जाने की तो चलने दो ना  किंतु उसके मन की कुंठित इच्छा  फिर जागृत हो गई और उसने अपनी सास के अलावा सभी के टिकट करवा दिए! विवेक जब भी शिवानी से पूछता तब वह

कहती सारी तैयारी हो गई है आप बिल्कुल चिंता मत कीजिए!एक दिन कमला की सहेली सुशीला का फोन आया शिवानी रसोई में खाना बना रही थी वह किसी काम से मां के कमरे में गई तो देखा मां अपनी सहेली से कह रही थी… पता है सुशीला मैंने जाने कितने पुण्य कर्म करे होंगे जो ऐसी शिवानी

जैसी बहू मिली है आजकल की  बहुएं तो अपनी सास के पास में बैठना तक पसंद नहीं करती और मेरी बहू तो मुझे वैष्णो देवी ले जा रही है वैष्णो देवी! पूरे 7 दिन का प्रोग्राम है तुझे तो पता है मेरी बचपन से ही कितनी इच्छा थी किंतु माता-पिता ने तो यह कहकर की शादी के बाद अपने पति के

साथ जाना पल्ला झाड़ लिया था और मेरे  पति भी मेरी इच्छा पूरी करें बिना ही मुझे छोड़ कर चले गए किंतु मेरी बहू तो मेरी बेटी से भी बढ़कर निकली, उसने झट से मुझे ले जाने के लिए हां कर दी! देखना मैं आज के बाद उसे कभी परेशान नहीं करूंगी कभी कुछ भी नहीं कहूंगी अरे वह तो साक्षात लक्ष्मी

है, आजकल कौन अपनी सास के बारे मेंइतना सोचता है! उधर से सहेली बोली सच कमला तू बड़ी भाग्यशाली है जो ऐसी बहू मिली है, मेरी बहू तो कहीं भी जाती है मुझे बता कर भी नहीं जाती साथ में ले जाना बहुत दूर की बात है,  माता रानी भी उन्हीं को बुलाती है जिन्हें बुलाना ही होता है इसमें हमारी और तुम्हारी इच्छा कुछ नहीं करती तू अपने बेटे बहू के साथ खुशी-खुशी जा और हां प्रसाद लाना मत

भूलना और फिर दोनों सहेलियों ने फोन रख दिया! थोड़ी देर बाद कमला जी शिवानी से बोली… बहु तू वहां पर ना सलवार कुर्ती ले चलना सुना  है वहां पर बहुत रास्ते खराब है तुझे तो साड़ी की आदत भी नहीं है अगर तेरा पांव फिसल गया तो, तुझे कुछ हो गया तो..? नहीं नहीं… जो तेरी इच्छा हो वह आराम

दायक  कपड़े ले चलना! सुन तू जाकर आराम कर ले मैं रास्ते के लिए थोड़ी सी नमकीन और मठरिया बना लेती हूं रास्ते में खाने का मजा ही कुछ और होता है! शिवानी जाकर कमरे में सोचने लगी मां कितनी उतावली हो रही है वैष्णो देवी जाने के लिए, यह उनकी बचपन की इच्छा थी  जो वह मेरे द्वारा

पूरी करना चाहती हैं और मैं उनके साथ विश्वास घात कर रही हूं..? नहीं नहीं.. मैं उन्हें यहां छोड़कर नहीं जा सकती अब चाहे मैं जाऊं या ना जाऊं किंतु मां जी जरूर जाएंगी, मैं आज ही तत्काल में एक टिकट की और व्यवस्था करती हूं और अब मैं अपनी मां जी का एक बेटी की तरह ही ध्यान रखूंगी, शायद वैष्णो देवी मां का ही कोई इशारा हो, मैं कितनी बड़ी गलती करने जा रही थी थोड़ी बहुत नोक

झोंक लड़ाई झगड़ा किस परिवार में नहीं होते, मेरी भाभी भी तो अपने सास ससुर के साथ जा रही है तो क्या मैं अपनी प्यारी सासू मां के साथ नहीं जा सकती और एकदम से कमला जी की बच्चों जैसी उत्सुकता देखकर शिवानी का मन पलट गया और वह मन ही मन सोचने लगी… मुझ से यह विश्वास

घात नहीं होगा, मैं मां को माता रानी के दर्शन करवा कर लाऊंगी और उनका एक बेटी की तरह ध्यान रखूंगी और यह सब सोचते ही उसने अपने अंदर एक आत्मिक संतुष्टि का भाव महसूस किया और अब वह निश्चित होकर सो गई!

हेमलता गुप्ता स्वरचित

   कहानी प्रतियोगिता (विश्वास घात)

  #“मुझसे विश्वास घात नहीं होगा”

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