इंदु और रितेश को इस “ खुशी” नामक वृद्धआश्रम में आए लगभग दो महीने हो गए थे। ये एक ऐसा आश्रम है जिसमें वो हर सुख सुविधा है, जो वैसे तो हर एक को लेकिन विशेष तौर पर उम्रदराज लोगों को चाहिए।आज के जमाने में बहुत कम लोग या कह लो बच्चे बुजुर्गों की समस्याएं समझते है।
पहले जब सयुंक्त परिवार थे तो समस्याएं नहीं आती थी।हम किसी को दोषी नहीं ठहरा सकते, सब की अपनी अपनी समस्याएं, मजबूरियां, आदतें हो सकती है। “ खुशी” एक ऐसी जगह थी जहां पर पेंमट देकर घर की तरह रहने की सुविधा है। वृद्धआश्रम कई तरह के है।अक्सर देखने में आता है कि मजबूरी वश ही वहां लोग रहने आते हैं, लेकिन अब समय कुछ बदल रहा है।
जो लोग सक्षम है, बच्चे विदेश में या कहीं दूर रहते हैं या फिर आपस में नहीं निभती वो “ खुशी” जैसी जगह पर रहना पंसद करते है।इंदु और रितेश “ खुशी” में आकर खुशी महसूस कर रहे थे।वहां पर लगभग बीस पच्चीस कपल और कुछ लोग अकेले अकेले भी थी। हर रोज की तरह शाम का समय था, लगभग सभी वहां बने अति मनोरम पार्क में टहल रहे थे, बतिया रहे थे। अब तक इंदु और रितेश भी कई लोगों से घुल मिल गए थे।
“ खुशी” नामक प्राईवेट इमारत में चालीस पचास वन रूम अपार्टमैंट बने हुए थे, जिसके अंदर हर सुख सुविधा थी। चाहो तो अपना खाना बनाओ या फिर वहां पर सांझा चूल्हा भी था। इसके इलावा, छोटी सी मार्किट, कैंटीन, पार्क,मैडीकल सुविधांए, पार्लर, जिम यानि कि एक छोटा सा आधुनिक गांव, केयर टेकर चाहिए या डाक्टर सब मिल जाते। किसी बात की चिंता नहीं सिवाय इसके कि अपनों का साथ नहीं।
देखा जाए तो आजकल परिवार में रह कर भी बुजुर्गों को अपनों का कितना साथ मिलता है। बात चल रही थी इंदु और रितेश की। सीमा और हरीश , सुशीला और नीरज के इलावा विधुर सलिल, पुनीत और विधवा शीला , रेखा, रीना भी वहीं एक जगह इकट्ठे बैठकर शाम की चाय काफी का आनंद ले रहे थे। लगभग सभी को एक दूसरे की दुखती रग का पता ही था।
इस उम्र में हर कोई बच्चों , नाती, पोतों के साथ रहना चाहता है लेकिन कहानी हर घर की वही है।इंदु और रितेश के यहां आने के पीछे का कारण किसी को पता नहीं था। बात चल पड़ी तो किसी ने पूछ लिया। इंदु तो चुप रही लेकिन रितेश ने आज बताने का मन बना ही लिया था क्यूकिं पहले भी एक दो बार ये बात चली थी, और अब वो सब काफी हद तक सब घुलमिल भी गए थे और सब बहुत अच्छी आर्थिक स्थिति वाले थे।
“खुशी” का खर्च दे पाना किसी आम आदमी के बस का था भी नहीं। पुनीत ने कहा कि वो यहां आकर बहुत खुश है। वो और इंदु सरकारी नौकरी से रिटायर है और दोनों की काफी अच्छी पैंशन है,और सेविंगस भी है, जिससे कि वो यहां का खरच आराम से दे सकते है।
दो बेटे हैं और एक बेटी,बेटी अपने घर में सुखी है। एक बेटा विदेश और एक यहीं पर है।दोनों के पास रह कर भी देख लिया और अपने घर में अलग रह कर भी। जब” खुशी” के बारे में पता चला तो सोचा कि यहां भी आजमा लेते है। बहुत अच्छा लग रहा है।
इसी बीच इंदु ने कई बार अपनी आंखे पोंछी, मानों आंसूओं को बाहर आने से रोक रही हो। पुनीत का भी गला भर आया लेकिन अपनी बात जारी रखते हुए वो बोले, विदेश में छः महीने रह कर आए, लेकिन किसी के पास समय नहीं। सब काम भले ही मशीनों से होता है, लेकिन हमें तो उन पर काम करना सुविधाजनक नहीं लगा। न हमें वहां का खाना रास आया। हर समय हम दोनों ही काम लगे रहते, न कोई जान न पहचान, कोई बात करने को ही नहीं। बेटा बहू या दोनों बच्चे , कभी कभी ही किसी की शक्ल दिखती।
बात करें यहां कि तो यहां वाली बहू दो बहनें हैं। बेटा उसी शहर यानि ससुराल वाले में ही नौकरी करता है। आजकल बेटा बेटी में कोई अंतर नहीं लेकिन बहू को हर समय अपने मां बाप की ही चिंता रहती है। रहते वो अलग घर में हैं, लेकिन उनका हर काम बहू या हमारा बेटा ही करता है, डाक्टर को दिखाना हो या बाजार ले जाना हो खुद कार में ले जाऐगें और अगर हमें कहीं जाना हो तो कैब , और डाक्टर के जाना हो तो घर का नौकर साथ जाए। हम दोनों को अक्सर टैस्ट करवाने पड़ते है, बात भले छोटी हो पर दिल को बहुत चुभती है।खाना बनाने, काम करने के लिए भले ही मेड हो, लेकिन घर के अनेकों काम होते है, जो अब करने की हिम्मत नहीं रही।
अलग रहने पर घर की देखभाल भी करनी पड़ती, कभी कुछ खराब तो कभी कुछ, नौकरों के सहारे सब नहीं छोड़ा जा सकता, किसी का कुछ भरोसा नहीं।पुनीत कुछ देर चुप रहे, फिर बोले, एक रात मेरी शुगर बहुत कम होने से बेहोशी सी छा गई। वो तो इंदु को पता चल गया। मौके पर किसको बुलाए। वो तो भला हो पड़ौसियों का, फोन लग गया और सहायता मिल गई।बेटा तो अगले दिन शाम को आया और सुबह होते ही चला गया। अब दोष दे भी तो किसको, सबकी अपनी मजबूरियां ही कह सकते हैं।
उम्र हो चली है, पता नहीं कब उपर से बुलावा आ जाए। कौन अकेला रह जाए।उन सबसे अच्छा तो अब यहीं रहना लग रहा है।कोई चिंता नहीं।बस यही कारण है कि बेटों के पास न रह कर या फिर अकेले रहे, उससे तो अच्छा है कि यहां हमउम्र लोगों में रह कर मस्ती करें, गानें गाए या अपना कोई भी शौक पूरा करें।
पैसे तो हम बेटों को भी देते थे, लेकिन उसे तो वो अपना हक समझते है। दो टाईम रोटी खाना ही जीवन का मकसद नहीं है। ये तो हमारा गोल्डन पीरीयड है, ये उम्र तो बोनस समान है, परिवार में अनावशयक बोझ बन कर रहने से यहां रहना बेहतर है। पैसे बचाकर रखेगें तो उन्हीं के काम आऐगें जो हमें पूछते भी नहीं।जब हमारे पास साधन है तो किसी की दया पर जीने से तो अच्छा है कि हम स्वाभिमान से रहें।
बच्चों के लिए दिल तड़पता है, कभी कभी मन खराब जरूर होता है, लेकिन आप सब से मिलकर सब भूल जाता है। बच्चों का जब दिल करेगा मिल जाया करेगें।
माहौल कुछ गमगीन सा हो चला था, सब धीरे धीरे उठकर चल दिए।
विमला गुगलानी
चंडीगढ ।
वाक्य-आप अपने बेटे के साथ क्यूं नहीं रहते।