रिश्तों का विश्वासघात – ज्योति आहुजा 

 बात कुछ वर्ष पुरानी है ।कुरुक्षेत्र का मेन बाज़ार  हर  रोज़ की तरह चहल–पहल से भरा था। दुकानों की रोशनी में गहनों की चमक आँखों को चौंधिया रही थी। 

शारदा ज्वेलर्स की दुकान पर भी भीड़ थी। काउंटर के पीछे महेन्द्र जी और उनकी पत्नी शारदा जी बैठे थे। तभी अचानक एक जानी–पहचानी आवाज़ आई—“नमस्ते अंकल, नमस्ते आंटी।” दोनों ने सिर उठाया तो सामने कविता खड़ी थी। मुस्कुराते हुए पास आई और बोली—“आंटी, आज एक अंगूठी देखनी थी।”

कविता को आज इतने लंबे समय बाद देख दोनों ख़ुश हुए ।

अरे कविता बेटी ससुराल से कब आई?कितने लंबे समय बाद तुझे देखा है ।

 कहते हुए शारदा जी ने ट्रे आगे खिसका दी। मगर कविता का मन अंगूठियों में नहीं, कहीं और खो गया था। उसे अपनी सबसे प्यारी सहेली नेहा (शारदा जी की बेटी) की याद आ गई—कॉलेज के दिन, हँसी–ठिठोली, सपनों की बातें। और फिर उसकी शादी, जो उसने अपनी आँखों से देखी थी। अचानक ही उसके होंठों से निकल पड़ा—“आंटी, नेहा कैसी है? कनाडा में खुश तो है न? कहाँ रहती है वहाँ?”

ये सुनते ही शारदा जी का चेहरा बदल गया। उनकी आँखें भर आईं। धीरे से बोलीं—“बेटा, नेहा की शादी हमने दुबारा कर दी है।”

कविता सन्न रह गई—“क्या? मुझे तो लगा वो तो कनाडा में है!”

शारदा जी ने गहरी साँस ली—“हाँ, यही तो सबको लगा था। लेकिन सच्चाई बहुत दर्दनाक थी।”

“ पहली शादी हमने धूमधाम से की थी।  तुम्हें तो पता ही है कि रजत नाम का लड़का मिला था ।लुधियाना का रहने वाला, कनाडा में नौकरी करता था। परिवार सम्पन्न था,  हमने छानबीन की, कोई शिकायत नहीं मिली। नेहा के सपनों जैसा रिश्ता था। शादी के कुछ ही दिन बाद रजत कनाडा लौट गया। नेहा दिन–रात गिनती रहती थी कि कब बुलावा आएगा।विदेश जाने का जूनून मानो चरम सीमा पर था ।और हम माता पिता उसे देख सुख ले लेते पर हमे कहाँ पता था कि विदेशी धरती सभी को नहीं अपनाती ।

रजत ने उसके लिए स्पाउस स्पॉन्सरशिप डाली। कागज़ इकट्ठे हुए, शादी की तस्वीरें, रजिस्ट्री, गवाह—सब जमा हुआ। हमें लगा अब बस थोड़े दिन की बात है। मगर प्रोसेस में समय लगता है। तब तक हमे इंतज़ार करना पड़ा।

उन महीनों में नेहा अक्सर कहती—‘माँ, मैं कब जाऊँगी?’ और हम उसे ढाँढस बंधाते—‘बेटी, थोड़ा सब्र कर, सब ठीक होगा।’ आखिर वो दिन भी आया जब वीज़ा हाथ में आया। नेहा का चेहरा खुशी से चमक उठा। घर में फिर से शहनाई जैसी रौनक थी। हमें लगा हमारी बेटी की ज़िंदगी अब सचमुच बदल जाएगी। कुछ ही हफ्तों बाद वो पहली बार कनाडा चली गई।”

“शुरू में सब ठीक लग रहा था। डेढ़ महीने तक नेहा का फोन आता रहा। बड़ी खुशी से बताती—‘माँ, सब अच्छा है। आज रजत मुझे यहाँ घुमाने ले गया।’ उसकी आवाज़ सुनकर हमें लगता था कि हमारी बेटी सुखी है।

लेकिन अचानक फोन आना बंद हो गया। जब-जब मैंने कॉल किया, हमेशा स्विच ऑफ आया। मैंने रजत को फोन किया, पहले तो उठाया ही नहीं। फिर बेरुख़ी से बोला—‘उसका फोन गुम हो गया है, नया लेने में टाइम लगेगा।’ पर उसने कभी नेहा से बात नहीं कराई। दिल घबराने लगा।

आख़िर हम लुधियाना उसके ससुराल गए, उसके माँ–बाप से मिले। वे भी हैरान थे। बोले—‘हमें खुद कुछ नहीं पता। बेटा साल में दो–तीन बार आता था, सबको खुश करके चला जाता था।’ तेरे अंकल ग़ुस्से में बोले—‘आपको पता ही नहीं आपका बेटा कनाडा में क्या कर रहा है! आपने हमें वादा किया था कि हमारी बेटी सुखी रहेगी। हमने आपकी बात मानकर, भरोसा करके अपनी बच्ची आपको दी थी।’ उनके पास कोई जवाब नहीं था। तब तय हुआ कि हमें खुद कनाडा जाकर देखना होगा।”आख़िर बेटी तो हमारी ही थी ना ।

वीज़ा लगवाने और टिकट कराने में थोड़ा समय और लगा। तुझे क्या बताऊँ कविता वो कठिन समय मैंने और अंकल ने कैसे निकाला था ।एक एक दिन बिताना मुश्किल था ।करीब डेढ़ महीने बाद तुम्हारे अंकल, नेहा का भाई और रजत के पिता कनाडा पहुँचे। 

दरवाज़ा खुला तो सामने नेहा थी। उसका चेहरा पीला, आँखें सूजी हुईं, बाल बिखरे हुए। 

हमें देखते ही वो टूट गई, पापा और भाई के गले से लिपट गई और रोते-रोते बोली—‘पापा, मुझे यहाँ से ले चलो। ये मुझे मारते है… कई-कई दिन कमरे में बंद कर देते है। मेरा फोन छीन लिया, इंडिया के सारे नंबर मिटा दिए। और ये घर पर  फिरंगी लड़कियाँ भी लाता है। मैं अब और नहीं सह सकती।’

पापा… आप सोच रहे होंगे कि मैं पहले क्यों नहीं भाग गई, किसी से मदद क्यों नहीं माँगी। पर मैं कहाँ जाती पापा? मेरा पासपोर्ट हमेशा रजत के पास रहता था। मुझे क्या पता क्या करना होता है?

पापा, ये देश मेरा नहीं था। न भाषा आती थी, न रास्ते पता थे। यहाँ किससे मदद माँगती? पुलिस तक जाने की हिम्मत नहीं थी। मुझे डर था कि अगर मैंने कुछ किया तो मेरा वीज़ा कैंसल हो जाएगा, और लोग कहेंगे कि मैं ही नाकाम रही, मैंने ही शादी नहीं निभाई।

पापा… मैं रोज़ सोचती थी कि काश आप आकर मुझे यहाँ से ले जाएँ। मैं बस आपकी ही राह देख रही थी। मुझे पता था कि एक दिन आप आएँगे… और मुझे इस नरक से निकाल लेंगे।”

भाई का गला भर आया—‘दीदी, अब तुम अकेली नहीं हो। हम आए हैं तुम्हें ले जाने।’

रजत वहीं खड़ा ढीठ बन कर बोला—‘हाँ, तो क्या हुआ? मैं ड्रिंक करता हूँ, लड़कियों से मिलता हूँ। यही कनाडा है। इसे रहना है तो मेरे हिसाब से रहे, नहीं तो इंडिया चली जाए… मुझे फर्क नहीं पड़ता।’

तेरे अंकल का खून खौल उठा। उन्होंने रजत के पिता से कहा—‘यही है आपका बेटा? आपने हमें वादा किया था कि हमारी बेटी सुखी रहेगी। और आज देखिए उसकी हालत!’ आपने हमारे साथ विश्वास घात किया है ।रजत के पिता का सिर झुक गया, आँखों में आँसू थे। बोले—‘भाईसाहब, हमें सच में कुछ नहीं पता था। हमें लगा नौकरी करता है, घर पैसे भेजता है। आज ये देखकर हम भी शर्मसार हैं।’

उस दिन फैसला हो गया। कुछ ही दिनों में इंतज़ाम करके नेहा को भारत वापस लाया गया। सच तो यही था कि रिश्ता वहीं खत्म हो गया था। तलाक़ की कागज़ी प्रक्रिया बाद में चली, इसमें महीने लगे, लेकिन वो तो बस औपचारिकता थी।”

भारत लौटकर नेहा महीनों तक टूटी रही। दिनभर चुप, रात को तकिये में मुँह छुपाकर रोती। हर आवाज़ पर सहम जाती। मैं उसके दरवाज़े पर खड़ी होकर आँसू पोंछती—‘हे भगवान, मेरी बच्ची फिर मुस्कुरा दे।’ 

 लोग कहते थे विदेश में बहुत कुछ है ।क्या बढ़िया जीवन है ।सुख है ।सुविधा है, वहाँ जाएँगे तो ज़िंदगी बन जाएगी। लेकिन बेटा, हम सबने यही सीखा कि विदेश जाना ही सुख की गारंटी नहीं। सुख तो तब है जब पति भरोसेमंद हो, इज़्ज़त दे। अगर इंसान ही गलत निकला तो विदेश क्या और भारत क्या, हर जगह दुख ही मिलेगा।”बल्कि विदेशी धरती पर इतनी दूर खबर लेने देने वाला भी कोई नहीं ।बहुत सोच विचार कर परखकर लड़की के हाथ पीले करने चाहिए खास कर लड़का विदेशी धरती पर रहता हो ।

  खैर फिर धीरे-धीरे वक्त ने मरहम लगाया। कुछ महीनों बाद महेन्द्र जी ने कहा—“बेटी की ज़िंदगी ऐसे भंवर में नहीं रहनी चाहिए, हमें उसके लिए  एक अच्छा रिश्ता फिर से देखना होगा।” रिश्तों की तलाश शुरू हुई। साथ ही साथ नेहा ने ज्वेलरी डिजाइनिंग का कोर्स भी कर लिया ताकि कुछ कर सके ।और उसके जीवन को एक नई दिशा मिल सके ।उसका मन भी लगने लगा था ।पर कई जगह से रिश्ते के लिए मना हो गया, आखिर आदित्य मिला। वो विधुर था, मगर नेकदिल। पहली मुलाक़ात में ही उसने नेहा से कहा—“मैं आपको सपने नहीं दिखाऊँगा। बस इतना कह सकता हूँ कि रिश्ते में सबसे ज़रूरी है सम्मान, और वो मैं आपको दूँगा।”

नेहा ने उसकी आँखों में सच्चाई देखी। धीरे-धीरे उसने हामी भरी। शादी हुई और इस बार उसकी आँखों में सच्ची मुस्कान लौटी। आज नेहा अपने नए घर में खुश है।

शारदा जी ने आँसू पोंछते हुए कहा—“कविता बेटा, यही सीखा है कि कौन-सा रिश्ता अच्छा निकलेगा, कौन-सा बुरा, ये कोई नहीं जान सकता। लोग ताने मारते हैं, पर भविष्य किसी के हाथ में नहीं। असली सुख वहीं है जहाँ विश्वास और सम्मान हो। 

और हाँ एक रिश्ता जो ग़लत हो टूट भी जाए तो ज़िंदगी खत्म नहीं होती… नया सवेरा हमेशा आ सकता है।”

दोस्तों ये कहानी एक सच्ची घटना पर आधारित है ।

ये कहानी कैसी लगी?

ज्योति आहुजा 

#विश्वासघात

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