रीमा आरू से फोन पर बात कर रही थी।आरू अपने घर की और बच्चों की बातें कर रही थी। खुशियां,शिकायतें और छोटी-छोटी ढेरों बातें।बातें आज की होते-होते पुराने समय तक पहुंच गई।
आरू ने अपनी 25वीं शादी की सालगिरह पर उसे न्योता देने के लिए फोन किया था। शुभकामनाएं देते हुए रीमा ने आने का वादा किया और फोन रख दिया।
फोन रखते हैं वह निढाल होकर कुर्सी पर बैठ गई। सच में क्या जिंदगी थी उसकी!वह ना तो ब्याहता थी और ना ही विधवा। काश,काश की उसने हिम्मत कर अपने लिए कुछ फैसला किया होता।लेकिन कहां कर सकी वो।उस वक्त होश ही कहा था उसे। उसके घर वालों ने भी कहां सोचा उसके बारे में। सब अपनी इज्जत की बात करते रहे। लेकिन उसका क्या? उसकी गलती क्या थी,कहां थी?
मन बहुत व्याकुल हो गया।बीती हुई जिंदगी की यादों में विचरण करने लगा था मन।
उसे जमाने में शादियां माता-पिता के पसंद से होती थी। रीमा की शादी भी परिवार के बड़ों ने तय की थी। जैसा कि पहले या कहें आज भी होता है लड़के वाले उसे मिलने, नहीं-नहीं मिलने कहां वो तो उसे देखने आए थे। तरह-तरह के सवाल थे उनके। जरा चल कर दिखाओ।खाना बनाना आता है या नहीं।सिलाई बुनाई कढ़ाई आती है या नहीं।
हमारा परिवार बड़ा है। सब मिलजुल कर रहते आए हैं अभी तक।तुम्हें भी सभी को साथ लेकर चलना होगा।तुम घर की बहू हो आखिरकार,ठीक है ना!
रीमा बस सर हिला कर रह गई थी। ऐसे माहौल में,इतने अनजाने लोगों के बीच में वह क्या ही कह सकती थी। बस नज़रें नीचे कर बैठी रही। एक बार सर उठा कर भी नहीं देखा उसने।
अपनी उम्र की बाकी लड़कियों की तरह उसके भी कितने सपने थे ,शादी को लेकर परिवार को लेकर।वह खुश भी थी और डरी हुई भी थी। उसकी कई सहेलियों की शादी हो चुकी थी और उन्होंने अपने अच्छे बुरे खट्टे मीठे अनुभव उसके साथ भी बांटे थे। मीरा भी अपने शादीशुदा जीवन के सपने देखती।
लड़के वालों ने अपनी सहमति दे दी थी।क्योंकि लड़की और उसके साथ मिलने वाला दहेज दोनों उन्हें पसंद आ गया था। ना कहने का तो फिर सवाल ही नहीं उठता था।
रीमा के घर में शादी की तैयारीयां शुरू हो चुकी थी। छः बहनों में तीसरी थी मीरा।दोनों बड़ी बहनें अपने ससुराल से आ चुकी थीं।भाइयों की शादी अभी नहीं हुई थी।इसलिए घर में भाभी की कमी थी। हां रिश्ते की भाभियों जरूर आ गई थी। घर में रौनक लगी थी।
बड़ी पापड़ अचार बनाए जा रहे थे। मेहमानों के ठहरने की व्यवस्था।उनके खाने-पीने की व्यवस्था के साथ-साथ किसे क्या देना है।इस पर भी चर्चा लगातार चल रही थी। खरीदारी भी हो रही थी।
घर में धीरे-धीरे मेहमान आने लगे थे।चहल-पहल हंसी मजाक का सिलसिला चल रहा था। सभी लोग मिलजुल कर काम भी करवा रहे थे।ऐसे काम भी निपटता जा रहा था।
रीमा के साथ ले जाने के लिए बक्सा भी तैयार किया जा रहा था।बक्से में हाथ से बने चादर,तकिया के गिलाफ, मेजपोश और भी ढेरों सामान रखे जा रहे थे। रंग बिरंगी साड़ियां और श्रृंगार का सामान।एक चूड़ी बॉक्स में तरह-तरह की चूड़ियां और कंगन।जरूरत के और समान जो नई दुल्हन के लिए जरूरी हो मीरा के बक्से में सजाए जा रहे थे।
देखते देखते शादी का दिन भी आ गया। बारात आ गई थी।पूरा परिवार बारातियों के स्वागत में लगा था। जलपान और भोजन के बाद रात्रि में शादी संपन्न हुई।विदाई का समय भी आ गया। अपनों से दूर जाने का गम और पिया से मिलने की खुशी के साथ रीमा ससुराल को चली गई।
कुछ दिन तक सब कुछ ठीक रहा। घर वाले रीमा का ध्यान रख रहे थे। वह भी खुश थी। खुद उस घर के लोगों के साथ सामंजस्य बिठाने की कोशिश कर रही थी। घर वालों के साथ धीरे-धीरे सामान जैसे बैठने लगा था। लेकिन पति पता नहीं क्यों कटा कटा सा रहता।
दो-तीन महीने के बाद धीरे-धीरे सब की असलियत उसे दिखाने लगी थी। उसे अपने पति के किसी और से अवैध रिश्ते की बात भी पता चल रही थी। दबी छुपी आवाज में घर में इस बारे में उसने बात होते सुन लिया था। अपने प्रति उसकी बेरुखी का मतलब अब उसे समझ में आने लगा था। यह परिस्थिति उसे और परेशान कर रही थी और कहीं डरा भी रही थी।
सास और ननदों को उसका सांवला रंग अब नजर आने लगा था। अब उन्हें उसे मिला दहेज भी कम लगने लगा था। पति का कोई सहयोग तो कभी था ही नहीं।हां कुछ भी बोलने,पूछने पर वह हाथ जरूर उठने लगा था। उसे घर में उसका साथ देने वाला तो पहले से ही कोई नहीं था। बिल्कुल अकेली पड़ गई थी वो अनजान से शहर में।
विदाई का दिन बना और वह अपने मायके आ गई।भाई लेने आया था उसका उसे। उसके मायके आने के बाद ससुराल वाले तो जैसे भूल ही गए उसे।
15 दिन एक महीना डेढ़ महीना।घर में सभी के मन में खटका सा लगा।
उसकी मॉं ने पूछा,”सब ठीक था ना वहां! झगड़ा करके तो नहीं आई तुम!”
मीरा चौक गई थी,-” मैं क्यों झगड़ा करके आऊंगी मां!आपको ऐसा क्यों लगा?”
“तुम्हारे ससुराल से कोई खबर नहीं आ रही विदाई की,इसलिए पूछा मैंने”,मां ने कहा।
मायके से दो-तीन चिट्ठियां भी भेजी जा चुकी थी। लेकिन जवाब किसी का नहीं आया।
अब तो सभी को लगने लगा कि कुछ तो बात जरूर है। मीरा से जब जोर देकर पूछा गया तो उसने झिझकते हुए पति के किसी और के साथ रिश्ते, ससुराल वालों का व्यवहार और दहेज के तनों के बारे में सब कुछ बता दिया।
मॉं ने समझने की कोशिश की,”पति का अच्छे से ध्यान रखो। अच्छा खिलाओ पिलाओ सेवा करो ।वह तुम्हारे पास आ ही जाएगा। तुम उसके साथ प्यार से रहोगी तो वह सबको भूल ही जाएगा।आखिर तुम पत्नी हो उसकी।”
मीरा ने कहा,”मां, वहां कुछ भी ठीक नहीं है और मुझे नहीं लगता कि कभी ठीक होगा भी। घर का हर सदस्य मेरे विरोध में खड़ा दिखता है। सबसे बड़ी बात तो यह है कि मेरा पति ही मुझे इज्जत नहीं देता। फिर दूसरों से क्या ही उम्मीद रखना। मैं यहां ही ठीक हूं। मुझे वापस मत भेजो ना।”
मां ने कहा,”अरे ब्याही हुई बेटियां मायके में रहें तो समाज क्या कहेगा? घर गृहस्थी में तो ऐसी छोटी बड़ी बातें होती रहती हैं ।ऐसी बातों के लिए कोई अपनी शादीशुदा जिंदगी बर्बाद थोड़ी करता है। देखना सब ठीक हो जाएगा। वैसे भी तुमसे छोटी बहनों की भी शादी करनी है। थोड़ा तो सोचो।”
मीरा चुप रह गई थी। उसकी बात किसी ने नहीं सुनी थी। किसी को सुननी ही नहीं थी।
ऐसे ही 6 महीने बीत गए। ससुराल वालों ने खबर किया अगर कुछ और दहेज दिया जाए तभी वो उनकी बेटी को लेकर जाएंगे।
घर में एक बार फिर विचार हुआ और तय किया गया कि उनकी मांग पूरी कर दी जाए। कम से कम बेटी की गृहस्थी तो बची रहेगी।
दहेज का लोभी पति उसे लेने भी आ गया। मीरा एक बार फिर ससुराल चली गई।
इस बार पति बड़े प्यार से पेश आ रहा था। बाकी के ससुराल वाले तन देने से गुरेज नहीं करते थे। लेकिन मीरा खुश थी कम से कम पति तो उसके पक्ष में था।ऐसा उसे लगता था। कभी-कभी मीरा कहती भी थी पति से कि आपके घर वाले ऐसे क्यों बोलते रहते हैं ।
उसका पति प्यार से कहता, “मीरा,पहले मैं भटक गया था।लेकिन देखो अब तुम्हारे पास आ गया हूं। घर वालों की चिंता ना करो। उन्हें कहने दो ना जो कहना है। मैं तो तुम्हारा साथ दे रहा हूं ना!”
मीरा तो इतने में भी खुश थी। उसने अपने पति को आश्वस्त किया की वो उसके घर वालों का ख्याल रखेगी। वो अब मुस्कुराते हुए घर के काम करती। उसे लगता की चलो अब उसकी शादीशुदा जिंदगी सुधर रही है।
अपनी खुशियों में उसने ध्यान ही नहीं दिया की उसके पीठ पीछे घर में क्या मंसूबे बनाए जा रहे हैं। उसे तो लगता था कि धीरे-धीरे वो सब का मन जीत ही लेगी।
उसके सास,ससुर,ननद,देवर और तो और पति भी सब मिलकर उसे जला कर मारने की योजना बना रहे थे। कहां मीरा उन्हें अपना बनाने का सोच रही थी। इस योजना से अनभिज्ञ।
अगले दिन सुबह-सुबह पूरा परिवार कहीं जाने को तैयार था। मीरा ने पूछा,”आज कुछ है क्या?आप सब तैयार हैं।”
उसके पति ने कहा,” हां मीरा,हम सब मंदिर जा रहे हैं।तुम हमारे लिए नाश्ता तैयार करो, तब तक हम सब आ भी जाएंगे।”
मीरा ने कहा ,”मुझे बताया नहीं। बताया होता तो मैं भी तैयार हो जाती।आपके साथ मंदिर हो आती।”
तभी उसकी सास ने थोड़े जोर से कहा,”तू भी चली जाएगी तो खाना कौन बनाएगा?क्या अकेले नहीं है तुझे?”
वो जवाब देने ही वाली थी कि उसके पति ने इशारा किया और वो चुप हो गई। ससुराल वाले दरवाजा बाहर से बंद कर चले गए थे।
सभी के जाने के बाद वो रसोई में चली गई। रसोई की खिड़कियां बंद थी। उसे थोड़ा आश्चर्य हुआ क्योंकि खिड़कियां हमेशा खुली रहती थी। उसने आगे बढ़कर खिड़कियां खोली।गैस ऑन करते हुए माचिस जलाया।तेजी से आग बढ़ गया। सिलेंडर पहले से ही लीक कर रहा था। अगरबत्ती के महक के वजह से उसे सिलेंडर से लीक करते हुए गैस की महक ही नहीं पता चली थी। आग फैलने लगा। वह खुद को बचाते हुए बाहर हाल की तरफ भागी। उसकी साड़ी के कोर में आग पकड़ चुका था। मदद के लिए वह जोर-जोर से आवाज़ लगने लगी और दरवाजा पीटने लगी। आस पड़ोस के लोगों ने जब उसकी आवाज और घर में सिलेंडर फटने की आवाज सुन दौड़ते आए।
दरवाजे की कुंडी को बाहर से तोड़ते हुए दरवाजा खोला पड़ोसियों ने। तब तक मीरा के हाथ पेट पीठ पर आग ने अपना असर दिखा दिया था। बदन के वह हिस्से जल गए थे। बहुत ज्यादा तो नहीं लेकिन फिर भी जल तो गए थे। किस्मत से उसकी जान बच गई थी।
तभी मंदिर से उसके घर वाले भी आ गए। उसे जिंदा देख पहले तो वह सब चौंक गए। पड़ोसियों को देख दुखी होने का दिखावा करने लगे।
“अरे बहु ऐसा कैसे हो गया!ध्यान रखा करो अपना”,उसके ससुर जी ने कहा।
मीरा बोलने की हालत में कहां थी,वह तो स्तब्ध थी। उसे समझ ही नहीं आ रहा था कि क्या हुआ।
उसका पति आगे आया और उसे संभालते हुए अंदर ले गया।
मैं डॉक्टर को बुलाता हूॅं।अभी तुम्हारा इलाज हो जाएगा और तुम ठीक हो जाओगी। घबराओ मत मैं तुम्हारे साथ हूं। इतना का वह डॉक्टर को फोन करने लगा।
डॉक्टर जल्दी ही आ गए थे।उन्होंने घाव को साफ किया और दवा लिख दिया। मीरा और उसके पति को ध्यान रखने का बोल डॉक्टर चले गए।
मीरा के पति ने उसके घाव पर मलहम लगाया और सहानुभूति भी जताई। मीरा को लगा कि यह तो मेरा हमदर्द है। मेरे दुःख में दुखी है।
घरवाले पड़ोसियों के जाने के बाद फिर इकट्ठे हुए।इस बात पर चर्चा चल रही थी कि बच कैसे गई? अब क्या किया जाए? इसका कुछ तो कहना ही पड़ेगा ना!
कमरे में पानी नहीं था। मीरा ने आवाज लगाई थी लेकिन किसी ने सुनी नहीं। वह पानी लेने ही कमरे से बाहर निकली थी।जब अपने ससुराल वालों की यह बात उसे सुनाई दे गई। उसे तो अपने कानों पर यकीन ही नहीं हो रहा था। इतना बड़ा षड्यंत्र उसके खिलाफ। सबसे ज्यादा आश्चर्य और दुःख तो इस बात का था की इस षड्यंत्र में उसका पति भी बराबर का भागीदार था। वह पति जिसे वह अपना समझती थी।
पड़ोसियों की मदद से किसी तरह मीरा वहां से जान बचाकर मायके आ गई। वह दिन और आज का दिन आज भी वह मायके में ही है। अपने उसे पति के सुहाग चिन्ह के साथ जिसने उसे जान से मारने की कोशिश की थी।
मीरा ने गहरी सांस ली और अपने मंगलसूत्र को देखा। माता-पिता भाई बहन सबकी इज्जत तो बच गई। लेकिन मेरा क्या? तन के घाव तो फिर भी भर गए। लेकिन उनके दाग मुझे कुछ भी भूलने नहीं देते।मन के घाव लिए आज भी मैं कितनी अकेली हूॅं ।क्या कोई कभी समझ पाएगा? मेरी जिंदगी से क्या इज्जत बड़ी थी?किस बात की सजा है ये ?
उसकी आंखों से आंसू बहकर गालों तक आ गए और दिल से एक आह सी निकली।
स्मिता
देवसेना दुत्ता