बस कीजिए मांजी बहुत हुआ गर्भवती नैन्सी सासूमां भावना जी की रोज रोज की किचकिच से तंग आ चुकी थी । पोता ही चाहिए पोता ही चाहिए बस जब देखो तब एक ही रट लगाए रहती आज जैसे ही उन्होंने पोते की रट लगाई पोता ये पोता वो वंश चलेगा तो पोते से ही। नैन्सी का तो गुस्सा ही फूट पड़ा
मांजी आपकी ये पोते पोते की रट ने मेरा तो दिमाग ही खराब कर दिया है। आज के जमाने में क्या पोता क्या पोती ? दोनों ही एक समान है कुछ भी मिल जाये मैं तो खुशी से स्वीकार कर लुंगी। वो जमाने लद गये मांजी जब बेटियों को बोझ समझा जाता और बेटों को कुल का संरक्षक माता-पिता का नाम रौशन करने वाले चिराग।
क्या कहा…तुमने कुछ भी स्वीकार कर लेगी ? हूंऽऽ बड़ी आई स्वीकार करने वाली। बहु नैन्सी को इतना बोलते देख भावना जी तीखे स्वर में बोली – मुझे पोता ही चाहिए अपने कुल का चिराग अगर हमारे घर में रहना है तो हमारे अनुसार ही चलना होगा हमारे रीति सँस्कार अपनाने होंगे पहले पहल
पोता नहीं जन्मा तो तुमको इस घर से चलता करूंगीं समझी तुम, भावना जी चिल्लाई पोता होगा तभी इस घर में अस्पताल से घर वापस लाई जाओगी मैंने तो तुमको पहले ही कह दिया जांच करवा ले पोता है तभी रख वरना हटा फैंक एक तरफ लेकिन नैन्सी तुम न मानीं तो अब भुगतने को तैयार रहो…
सासूमां भावना की कठोर वाणी नैन्सी ने एक बार पति उमेश की तरफ बड़ी याचना भरी नज़र से देखा मगर वो तो बड़े आराम से आँगन में अपने पिता दयाशंकर जी के साथ बैठा चाय की चुस्कियां लेते हुए
इतवार की छुट्टी का मजा ले रहा । ऐसे मुस्कुरा रहा जैसे उसके लिए कोई बड़ी बात ही न हो । माँ के उसकी पत्नी को बोले कटु वचनों का उस पर कोई प्रभाव नहीं पड़ रहा उसने नैन्सी की तरफ नजर तक उठाकर भी नहीं देखा। लगता जैसे माँ की बातों में उसकी भी सहमती हो ।
नैन्सी ने फैसला कर लिया अब वो इस घर में अधिक नहीं रूक सकती जहां उसे बेटा जनने पर ही रहने का अधिकार मिलेगा और बेटी को जन्म देने पर बाहर का रास्ता दिखा दिखा जायेगा । बेटा हुआ तभी सम्मान मिलेगा बेटी होगी तो अनादर मिलना ही तय है। ये कल क्या मेरे अपने होंगे जो आज ही अपना रंग दिखा रहे हैं। नहीं चाहती वो ऐसा घर ऐसा ससुराल ऐसे अपने ऐसा पति जो बीवी का
अपमान आसानी लापरवाही से बर्दाश्त कर पा रहा है। तभी नैन्सी के ससुर दयाशंकर जी ने कुछ बोलने का प्रयास किया ही था लेकिन उससे पहले ही उनकी धर्मपत्नी भावना जी ने दो टूक जवाब देकर मुंह बन्द करवा दिया..” आप तो चूप ही रहिए कुछ ही न ही बोलें तो सही रहेगा भावना जी बड़बड़ाई “ !
किसी का सहारा न देख नैन्सी कमरे में आती है अपने कपड़े अटैची बैग में भरकर घर से बाहर निकल जाती है। कोई भी उसे रोकने की कोशिश नहीं करता है। नैन्सी अपने पिता के घर वापस चली आती है। और सभी बातें घर वालों को बताती है। घर वालों का उसे पूरा पूरा सहारा मिलता है। वो
कोर्ट में तलाक की अर्जी दे देती है। उसे आसानी से तलाक मिल भी जाता है। इस बीच नैन्सी नौकरी के लिए अनेक जगह आवेदन करती है। वैसे भी पढ़ने लिखने में वो कुशाग्र बुद्धि अच्छा एकेडमिक रिकार्ड होने के कारण एक प्राइवेट इन्टर कालेज में बतौर अध्यापिका की नौकरी मिल जाती है। सुख सुविधाएं स्कूल, वेतन भी अच्छा सरकारी नियमानुसार निर्देश का पालन होता। नैन्सी मेहनती फुर्तीली
ईमानदार कर्त्तव्यपरायण निपुण, सुस्ती क्या होती ? वो तो बचपन से ही जानती भी नहीं गर्भवास्था में भी बराबर कार्य करती उसके मेहनत से वहां की प्रिंसिपल बहुत खुश सन्तुष्ट नजर आतीं उसके प्रति बराबर सहयोग बनाए रखती । इस बीच नैन्सी एक सुंदर प्यारी सी बैटी को जन्म देती है। उसके काम से प्रिंसिपल पहले ही खुश तो उसको बिना कहे ही मेटरनिटी लीव दे देती है।
बेटी के जन्म से नैन्सी बहुत खुश बेफिक्र उसको कोई चिंता नहीं की अब कोई उसे घर से निकाल देगा ऐसा कोई डर ही नहीं वो अपने किये फैसले से सन्तुष्ट उसने अपने सम्मान को बनाए रखा खुशी खुशी बेटी की परवरिश करने लगती है। वो बेटी को खूब प्यार करती और कहती देखना बिटिया मैं तुम्हें एक
दिन कितने ऊँचे पद पर पहुंचाऊगीं जिन्होंने तुझे ठुकराया अपनाने को तैयार नहीं हुए एक न एक दिन अपने कर्म पर खूब पछतायेंगे रोयेंगे । और “ जानेंगे की बेटियां उन जैसै अभागों के घर नहीं क़िस्मत वाले के घर में जन्म लेती हैं “ ।
नैन्सी बेटी का नाम नताशा रखती है। उसके घर वाले रिश्तेदार मित्र सभी सगे संबंधी सभी का उसे पूरा पूरा सहयोग मिलता है। समय करवट लेता है वो कभी रूकता नहीं आगे बढ़ता जाता है नताशा भी अपनी ‘माँ नैन्सी की तरह कुशाग्र बुद्धि धीरे धीरे बड़ी होने लगती है।एक दिन खूब पढ़-लिख कर
डाक्टर बन जाती है। वो एम एस ,एम सी एच डाक्टर आफ सर्जरी मास्टर आफ चिरूगीं की उपाधियां हासिल कर लेती है। इंटर्नशिप में ही उसके नाम के चर्चे होने लगते हैं। जब सरकारी अस्पताल में उसकी नियुक्ति का पहला दिन होता है नैन्सी उसको तिलक लगा मुंह मीठा कर ही नौकरी पर भेजती है।
डाक्टर नताशा जल्दी ही अपने काम लगन मेहनत से अस्पताल में सबकी चहेती बन जाती है। उसकी कामयाबी आसमान छूने लगती है उसकी गिनती बड़े सर्जनों में होने लगती है। समय की रफ्तार बढ़ती
जाती है एक दिन अस्पताल में इमरजेंसी में केस आता है जिसमें एक अधेड़ व्यक्ति और एक बुजुर्ग महिला को लाया जाता है। जिसमें बुजुर्ग महिला को गम्भीर चोटें लेकिन अधेड़ व्यक्ति को सर्जरी की जरूरत होती है दोनों ही अचेत अवस्था में होते हैं। नताशा द्वारा की गई सर्जरी सफल रहती है दोनों को वार्ड में शिफ्ट कर दिया जाता है।
होश में आने पर नताशा अपनी आदत अनुसार उन दोनों का हाल चाल पूछती है बुजुर्ग महिला बताती
है वो माँ और बेटा है सुबह सुबह मन्दिर जाते घर के पास ही उनकी गाड़ी दुर्घटना ग्रस्त हो गई उसके बाद उनको कोई होश नही नताशा उनको अस्पताल में सर्जरी व ट्रीटमेंट का बताती है। आपकी हालत काफी नाजूक थी मगर अब घबराने की जरूरत नहीं है। और अपनी मीठी मीठी बातों से उनका दिल जीत लेती है। कहती हैं जल्दी ही उनको अस्पताल से छुट्टी मिल जाएगी।
बुजुर्ग महिला नताशा को आशीर्वाद देती है दुआएं देती है तुम हमारे लिए भगवान बनकर आई हो
वो कहती है..बेटी, धन्य है वो माता-पिता जिन्होंने तुम जैसी बेटी को जन्म दिया तुम जैसी बेटियां ही परिवार का गौरव होती उसका नाम रौशन करती हैं।
कहकर बुजुर्ग महिला रोने लगती है उसकी आँखें आँसूओं से भीग जाती है। ऐसा लगता जैसे कोई घटना याद आकर उसके दिल में एक टीस सी चूभन छोड़े जा रही हो ।
नताशा कहती हैं अम्मा बाबूजी आप दोनों क्या अकेले हैं ? आप को कोई मिलने नहीं आया अस्पताल में आपके बाल बच्चे नाती पोते कोई तो होंगे।
बुजुर्ग महिला लम्बी सांस छोड़कर बोलना शुरू करती है बिटिया मेरे तो एक यही बेटा है। कुछ बरस पहले मेरे पति का स्वर्ग वास हो गया।
मेरे बेटे की दो बार शादी हुई एक जो पहली बहु उसे मैंने घर से निकाल दिया दूसरी आई वो खुद ही घर को हमको छोड़कर चली गई मुझे पोते की चाह थी और पोते की उसी चाह ने मेरा घर बर्बाद करवा दिया दूसरी बहु गर्भवती जब मुझे पता चला उसकी कोख में बेटी तो मैंने उसका दो बार
अबोर्शन करवा दिया फिर मेरे कर्मों का फल बाद में उसके सन्तान ही नहीं हुई वो टूट गई गुपचुप रहती मानसिक रूप से अस्वस्थ रहने लगी और एक दिन हमको चुपचाप छोड़कर कहीं चली गई बहुत खोजा नहीं मिली बरसों से हम दोनों मां बेटा अकेले ज़िन्दगी काट रहे हमारे कर्म हमारा पीछा नहीं छोड़ते अब देखो दुर्घटना का शिकार बना दिया।
नताशा दोनों को आश्वासन देती धीरज बंधाती तो बुजुर्ग महिला उसे आशीर्वाद देती कहती बेटी कभी अपने माता-पिता से मिलवाना पता नहीं क्यों तुमको देखकर अपनेपन का अहसास सा हो रहा है ? ये मेरा मन अपनों की पहचान के लिए भटक रहा है। जरूर किसी जन्म में तुमसे हमारा कोई नाता रहा होगा।
नताशा कहती हैं अम्मा बाबूजी अपनों की पहचान की कोई माप नहीं है ये दिल जिसे अपना समझे जो अपने दुख सुख में साथ बना रहे वो ही अपना वरना तो आज के जमाने में जो अपने खून के रिश्ते होकर भी लोग पराये सा व्यवहार करते हैं। अब तो नताशा का रूटीन ही बन गया सुबह अस्पताल आती तो दिन भर मं दो चार बार उनके वार्ड में चक्कर लगा ही लिया करती।
आज अस्पताल में डॉक्टर नताशा के कार्य लगन मेहनत का परिणाम उसकी सेवाओं व्यवहार से प्रसन्न उसे अस्पताल में विभागाध्यक्ष पद पर नियुक्त कर दिया जाता है। अस्पताल में आज सेमिनार हाल में फंक्शन रखा जाता है जिसमें अस्पताल के प्रमुख, साथ ही डाक्टर नताशा के सहयोगी मित्र सम्बन्धियो
को भी आमंत्रित किया जाता है नताशा माँ नैन्सी को लेकर अस्पताल पहुंचती है वो कहती हैं मां अभी थोड़ा समय है तो अपना कैबिन दिखाने ले चलती हूँ कैबिन के पास वार्ड में बुजुर्ग महिला और अधेड़ व्यक्ति से मिलाने भी ले जाती है।
वो कहती हैं माँ दो लोगों से मिलवाती हूँ वैसे तो वो लोग अनजान हीँ हैं कोई खून का रिश्ता नहीं हमारा उनसे मगर फिर भी पता नहीं क्यों ? इनको देखकर कुछ अपना सा महसूस होता है मुझे, आप भी मिलें शायद आपको ही उनमें कुछ “अपनों की पहचान” हो जाये । जैसे ही वार्ड में नताशा के साथ
नैन्सी दाखिल होती है सामने पूर्व पति उमेश और सास भावना को देखकर उसके पांव वहीं के वहीं ठिनक कर रह जाते हैं वो उनको अचानक आज अपने सामने देख चौक पड़ती है फिर वो अधेड़ व्यक्ति उमेश और बुजुर्ग महिला भावना जी भी नैन्सी को देख आश्चर्यचकित से रह जाते हैं ।वो कुछ बोल ही नहीं पाते शब्द मुंह में ही अटक कर रह जाते हैं। दोनों कभी डॉ नताशा की तरफ देखते तो कभी नैन्सी की तरफ फटी आँखों से देखने लगते हैं।
तभी डॉक्टर नताशा कहती हैं… अम्मा, आप मेरी माँ से मिलना चाहती थीं…. देखिए, मिलिए…
“ ये है मेरी माँ नैन्सी जी “ ।
बुजुर्ग महिला कुछ कहे इससे पहले ही नताशा कहना शुरू कर देती है।
मेरी ‘माँ.. जिन्होंने मेरी परवरिश की मुझे इस लायक बनाया जो मै आज हूँ ये मेरी इसी माँ की मेहनत पुण्य प्रताप का ही फल है। मेरी इस कामयाबी में मेरी इस माँ के आँसुओं पीड़ाओं का इतिहास छिपा है ।
इन्होंने समय रहते जो फैसला किया तभी आज मैं आप सबको सेवाएं दे पा रही हूँ । वरना तो… मुझे जन्म न देने रोकने की कोशिश करने वालों ने कोई कसर नहीं छोड़ी थी। वो तो चाहते ही नहीं थे मैं इस धरती पर आंऊ जन्म लूं मुझे जन्म से पहले ही मार देना चाहते थे।
फिर नैन्सी एक तीखी नजर से उस अधेड़ व्यक्ति उमेश की तरफ देखकर हौले से फीकी सी मुस्कुराहट फैंक अपना मुंह दूसरी तरफ उस बुजुर्ग महिला भावना जी की और घुमाकर नफरत भरी क्रोधित सी वाणी में कहती हैं –
देखा मांजी.. “ आज आपको अच्छे से समझ आ गया होगा पोते ही नहीं पोतियां भी कुल का नाम रौशन करतीं हैं “ ।
ये है मेरी होनहार इकलौती बेटी डाक्टर नताशा और यह कहकर बिना रूके बेटी नताशा का हाथ पकड़कर वार्ड से बाहर आ जाती है ये कहती हुई बेटी तुमको ‘अपनों की पहचान’ नहीं है मैं बताती
हूँ…तुमको बिटिया, ये परिस्थितियां देखकर पल पल में रंग बदलते लोग कभी अपने नहीं हो सकते और जो अपने होते हैं बेटा वो कभी रंग नहीं बदलते हर परिस्थिति में हमेशा एक समान ही रहते हैं। याद रखना बेटा..ऐसे लोगों पर एकदम से कभी भी ज्यादा विश्वास नहीं करना चाहिए।
#अपनो की पहचान
लेखिका डॉ बीना कुण्डलिया