“मां, हम दोनों देवरानी-जेठानी का काम बांट दीजिए, वरना मैं अकेले कब तक करती रहूंगी। मेरे भी छोटे-छोटे बच्चे हैं। अभी तक अकेली थी तो पूरे घर का काम अकेली ही करती रही हूं।” मीना कितने सालों से इंतजार कर रही थी कि देवरानी आएगी तो थोड़ा सा काम तो बटेगा।
“आपने कहा भी था — ब्याह कराई है, अभी दो-तीन महीने चूल्हे-चौके में नहीं घुसेड़ना है, फिर तो जिंदगी भर करना ही है। जबकि मुझे तो पहले दिन से ही चूल्हा-चौका पकड़ा दिया था आपने। देवरानी जी अपने आप से आगे बढ़कर कोई काम नहीं करतीं। अगर कोई काम कह दो तो उन्हें यह लगता है कि सास ने नहीं कहा तो जेठानी क्यों कह रही है। लेकिन अब अकेले काम करना मेरे बस की बात नहीं है। घर के कामों के चक्कर में मैं बच्चों पर बिल्कुल ध्यान नहीं दे पाती।”
तनवीर ने अपनी सासू मां जानकी देवी से कहा।
“देखो, फिर कभी मेरे सामने घर के काम बांटने की बात की तो… तुम बड़ी हो, तुम्हें तो करना ही है। अभी वह नई है, उसे क्या पता यहां के कामों के बारे में। अभी तक अकेले करने में तुम्हें कोई परेशानी नहीं थी, लेकिन प्रिया के आते ही तुम्हें भी तकलीफ होने लगी।”
“मां, आप मेरी बात समझ नहीं रही हैं। आपने शुरुआत से उसे आराम दिया है और अब वह जान-बूझकर आगे नहीं बढ़ती। मेरी किसी भी काम में मदद नहीं करती। मैं भी अकेले कहां तक काम करूं?”
“तुम चुप रहो तन्वी, जो एक बार कह दिया तो कह दिया, ज्यादा बहसबाजी मुझे पसंद नहीं। जब तक हम जिंदा हैं, न काम का बंटवारा होगा, न किसी सामान का। दोनों लोगों को साथ मिलकर ही काम करना पड़ेगा, समझ गई तुम?” — जानकी देवी ने अपने स्वभाव के अनुरूप बड़ी बहू तनवीर को डांटकर चुप करवा दिया।
जानकी देवी भी दोनों बहुओं का स्वभाव बहुत अच्छी तरह समझ रही थीं। जहां बड़ी बहू तनवीर अकेले ही सारा काम संभाल लेती थी, वहीं छोटी बहू प्रिया हर काम से जी चुराती रहती। कभी किसी काम में आगे नहीं बढ़ती। घर में भी सबको यही लगता — तनवीर हर काम जल्दी और सही से करती है और प्रिया घर का मुंह बनाकर करती है, तो सब तनवीर से ही काम कहते। प्रिय से कोई किसी काम के लिए कहता ही नहीं। वह आराम से सज-संवर कर अपना कमरा, कपड़े, अलमारी संभालती रहती या मोबाइल चलाती रहती। उसका पति पंकज घर पर होता तो उसके साथ-साथ बैठी रहती, उसके आगे-पीछे नाचती रहती।
तनवीर को घर के सारे काम अकेले ही करने पड़ते और उसके दो छोटे-छोटे बच्चे — 6 साल का रवि और 3 साल की रिया — उन पर वह बिल्कुल ध्यान ही नहीं दे पाती। दोनों स्कूल जाते थे, यहां तक कि सुबह के समय बच्चों को स्कूल के लिए तैयार करना होता और घर में भी सबको चाय-नाश्ता देना रहता। पति पंकज और देवर अलग-अलग समय पर तैयार होकर आते और तनवीर बच्चों को लाकर खड़ा करती। तब तक चाय के लिए सास-ससुर तैयार हो जाते, तो बच्चों को ड्रेस पहनने को कहकर जल्दी से चाय-नाश्ता तैयार करने लगती। तब तक प्रिया नहा-धोकर तैयार भी नहीं होती और न ही बच्चों को स्कूल के लिए तैयार होने में कोई मदद करती।
जानकी देवी की आंखें सब कुछ देखते हुए भी अनजान बनी रहती थीं। उन्हें लगता कि कहीं उन्होंने तनवीर को शह दे दी तो उनके घर में कलह-क्लेश बढ़ जाएगा, और घर के काम कौन संभालेगा? वह भी सिर्फ अपना ही स्वास्थ्य देख रही थीं। मीना (सास) तनवीर की परेशानी को नहीं समझ रही थी और ऐसा करके वह प्रिया की हरकतों को बढ़ावा दे रही थी।
तनवीर ने जब यह कहकर आवाज उठाई कि “काम बांट दीजिए या सुबह-शाम का बंटवारा कर लीजिए, जिससे मुझे भी अपने बच्चों के लिए थोड़ा समय मिले। बच्चे बड़े हो रहे हैं, आप ट्यूशन भी लगाने नहीं दे रही हैं, और मुझे जॉब घर के होंस (काम) से ही फुर्सत नहीं मिलेगी, तो मैं बच्चों को कब पढ़ा पाऊंगी?” — जानकी जी उसे यह कहकर चुप करवा देतीं — “तुम बड़ी हो, पहले आई हो, इस घर के हर काम से वाकिफ हो। तुम्हें जल्दी-जल्दी सब काम करने की आदत पड़ चुकी है। वह अभी आई है, उसे समझने में समय लगेगा, इसलिए तुम्हें तो काम करना ही पड़ेगा।”
अपनी जिद की बलि वह तनवीर को चढ़ाती रहीं।
एक दिन शाम को 8 बजे तनवीर अपने दोनों बच्चों को लेकर पढ़ाने बैठ गई। ससुर जी साढ़े आठ बजे खाना खाते थे। उसने सासू मां से कहा, “मैंने पूरा खाना बनाकर रख दिया है, बस बाबूजी को गर्म रोटियां सेककर दे दीजिए। अब प्रिय से कह दीजिएगा, वह चेक कर खिला देगी। बच्चों के कल से एग्जाम हैं, मैं थोड़ी देर और यह पढ़ा दूं।”
कहकर तनवीर वहीं बच्चों को पढ़ाने बैठ गई। प्रिया ने ससुर जी को खाना दिया। एक रोटी लेकर वह मोबाइल चलाने लगी और सब्जी को रोटी के साथ देना ही भूल गई।
तनवीर अपनी मां और बच्चों को पढ़ाते हुए भी ससुर जी के खाने में लगी थी। उसने जब प्रिया की लापरवाही देखी तो सासू मां से कहा, तो फिर से उनका वही जवाब — “तुम ही देखोगी सब, उससे नहीं होगा।”
यह सुनकर तनवीर की सहनशक्ति जवाब दे गई और वह बोल पड़ी —
“यह भला क्या बात हुई? मुझे तो हर काम के लिए आप यह कहती रहती थीं कि करोगी नहीं तो सीखो कैसे, और हर काम करने के बावजूद हर समय नाक में दम कर रखा था। अब आपको क्या हो गया? अपनी छोटी बहू की कोई गलती आपको नहीं दिखती? आप घर की बड़ी होकर यह पक्षपात क्यों कर रही हैं? मैं आपसे अलग करने के लिए तो कह नहीं रही हूं, सिर्फ काम बांटने के लिए कह रही हूं। लेकिन आप अपने स्वार्थ में अंधी होकर कोई फैसला ले ही नहीं रही हैं। इस तरह तो आप पक्षपात करके हमारे दिलों में एक-दूसरे के लिए प्यार खत्म कर देंगी, क्योंकि इस तरह से तो दिलों में गांठ पड़ना स्वाभाविक है।”
“मुझसे हर समय काम करवाएंगी, और प्रिया को यह कहकर बचाएंगी कि वह अभी आई है, उसे घर के कामों की जानकारी नहीं है। मैं भी एक दिन इस घर में नई आई थी, तब तो आपने कभी नहीं कहा, बल्कि पहले दिन से ही हर काम की जिम्मेदारी मेरे ऊपर डाल दी। चलिए, कोई बात नहीं, इसी बहाने मैंने जिम्मेदारी निभाना और उठाना सीख लिया। लेकिन अब देवरानी जी के आने के बाद आपको जिम्मेदारियां तो बांटनी ही पड़ेंगी। अब मैं घर के कामों में अकेली नहीं थकूंगी। मेरे बच्चों और पति के लिए भी मेरी कुछ जिम्मेदारियां बनती हैं। आप काम बांटिए, वरना मैं खुद ही एक कदम उठा लूंगी।” — कहते-कहते तनवीर रोने लगी।
उस दिन जानकी देवी को पहली बार अपनी बड़ी बहू की बात सही लगी। उन्होंने उसके दर्द को महसूस किया। अकेले रहते हुए उसने सब कुछ संभाला है। अगर देवरानी के आने के बाद तनवीर काम को बांटना चाहती है, तो इसमें गलत क्या है? उन्होंने उसी दिन दोनों बहुओं के बीच घर के कामों का बंटवारा कर दिया और खुशी-खुशी दोनों अपने-अपने काम करने लगीं।