“माँ, दादी कहाँ है? दिख नहीं रही है। पूजा कर रही है क्या?” रूही ने चारों तरफ नजरें दौड़ाते हुए अपनी माँ से पूछा।
पुणे में एमबीए की पढ़ाई कर रही रुही अचानक हुए लॉकडाउन के कारण हॉस्टल में ही फंस गई थी और कल देर रात ही महीने भर बाद स्पेशल ट्रेन से घर वापस लौट पाई थी।
“नहीं, पूजा नहीं कर रही। सो रही है तेरी दादी।”
“अभी तक सो रही है।सुबह के 9:00 बज रहे हैं।अब तक तो दादी के मंदिर जाकर लौटने का समय हो जाता है। रूही ने आश्चर्य से कहा।
“हो जाता है नहीं बेटा, हो जाता था। अब तो कोरोना के कारण मंदिर, बाजार सब बंद है। ना कहीं जाना ना कहीं आना। ना किसी से मिलना ना जुलना इस मूए कोरोना के कारण तो समय काटना ही मुश्किल हो गया है। इसलिए सो कर ही समय बिता रही हूँ।” कमरे से बाहर आते हुए दादी ने मायूसी से कहा।
“पर दादी आप घर पर भी तो भजन कर सकती हो।पाठ कर सकती हैं।योगा कर सकती हो।”
“हाँ, बेटा कर तो सकती हूँ। करती भी हूँ। पर जो मजा सभी सहेलियों के साथ भजन-सत्संग का था वह अकेले में कहाँ? मंदिर जाने के लिए समय पर उठना होता था। एक रूटीन थी मेरी भी।सुबह-शाम मंदिर जाना, सहेलियों से बोलना-बतलाना सब छूट गया।” बोलते-बोलते दादी की आँखों में आँसू आ गए।
“रूही जल्दी करो।तुम्हारी ऑनलाइन क्लास का टाइम हो गया है।”
“हाँ, माँ ज्वाइन कर रही हूँ।”
“जा बेटा, मुझे बुढ़िया के चक्कर में अपनी क्लास का हर्जा मत कर। मैं तो सारा दिन खाली बैठी हूँ। बाद में बातें कर लेंगे।”
क्लास के बाद रूही ने अपनी माँ से कहा “माँ,दादी कितनी बुझी-बुझी सी हो गई है।हाँ बेटा, इस कोरोना के कारण मंदिर जाना बंद होने के कारण तेरी दादी एकदम बुझ सी गई है। मंदिर जाने के बहाने अपनी सहेलियों से मिलकर उनके साथ भजन कर गपशप कर माँजी एकदम तरोताजा हो जाती थी। वास्तव में वह तेरी दादी का मी-टाइम था जिसे वह अब बहुत मिस करती है।”
“लेकिन माँ, इस तरह तो दादी बीमार पड़ जाएगी। यह लॉकडाउन तो ना जाने कितना लंबा चलेगा। हमें कुछ ऐसा करना चाहिए जिससे दादी पहले की तरह हँसने-खिलखिलाने लगे।”
“लेकिन कैसे?”
“दादी को उनका मी-टाइम,उनकी सहेलियाँ लौटा कर।”
“लेकिन यह कैसे संभव है रुही? मंदिर बंद है और कोरोना के कारण हम माँजी को बाहर भी नहीं भेज सकते। यह सेफ नहीं है।”
“संभव है माँ।जैसे मेरी ऑनलाइन क्लासेस होती है। आपकी और पापा की ऑनलाइन मीटिंग होती है। वैसे ही दादी अपने फ्रेंड्स के साथ ऑनलाइन मिल सकती है। सुबह-शाम भजन कर सकती है। गप्पे मार सकती हैं। बस हमें थोड़ी सी मेहनत करनी होगी सबको इकट्ठा करने में।”
“अरे वाह! यह तो मैंने सोचा ही नहीं।”
उसके बाद तो रूही और उसकी मम्मी लग गई दादी को उनका खोया हुआ मी टाइम लौटाने में। उन्होंने दादी की सहेलियों के घर फोन कर जब उनके घर वालों से यह आईडिया शेयर किया तो सभी ने उनका साथ दिया और फिर कुछ दिनों बाद सभी ने मिलकर दादियों की एक ऑनलाइन मीटिंग ऑर्गेनाइज की।
“दादी, कल सुबह 7:00 बजे तक रेडी हो जाना।आपको कुछ दिखाना है।”
इतनी सुबह क्या करुँगी तैयार होकर? मुझे कौन सा किसी से मिलना है?”
“प्लीज दादी, मेरे लिए।”
“अच्छा-अच्छा, ठीक है हो जाऊँगी तैयार।”
अगली सुबह जब दादी तैयार होकर आई तो रूही ने उन्हें लैपटॉप के सामने बैठा दिया।
“दादी ये बटन दबाइए।”
“मुझे यह सब नहीं आता बेटा।ये खराब हो जाएगा।”
“कुछ नहीं होगा दादी।दबाइये ना प्लीज।”
डरते-डरते जैसे ही दादी ने बटन दबाया। सामने उनकी सारी सहेलियां नजर आने लगी।
“अरे रूही,मेरी आँखें खराब हो गई है बेटा! यहाँ मुझे कमला,विमला और सरिता भी नजर आ रही है।”
“ओह, मेरी भोली दादी,आपकी आँखों को कुछ नहीं हुआ है। सामने आपकी ही सहेलियाँ हैं। आप उनके साथ ऑनलाइन मीटिंग में हैं। अब से रोज सुबह 7:00 और शाम को 5:00 बजे आप इसी तरह अपनी सहेलियों से ऑनलाइन मिलेंगी जिस तरह मंदिर में मिलती थी। अब आप सब जमकर गप्पें मारिए,भजन कीजिए और हाँ कानों पर यह हेडफोन लगा लीजिए ताकि आपका मी टाइम आपका ही रहे हम ना सुन पाए।” चुहल करती हुई रूही ने दादी के कानों पर हेडफोन लगाते हुए कहा।
धीरे-धीरे रूही ने दादी को ऑनलाइन मीटिंग ज्वाइन करने और होस्ट करने के सारे तरीके सिखा दिए और दादी को उनका खोया हुआ मी टाइम वापस मिल गया।
धन्यवाद
लेखिका- श्वेता अग्रवाल,
धनबाद, झारखंड
शीर्षक-दादी का मी टाइम
कैटिगरी- लेखक /लेखिका बोनस प्रोग्राम
कैटिगरी- लेखक /लेखिका बोनस प्रोग्राम