सिद्धि अपने बेटे विवान के साथ छुट्टियों में अपनी बड़ी बहन रिद्धि के यहाँ आने वाली थी। रिद्धि के दोनों बच्चे निवि और रवि उनके आने की खबर सुनकर बहुत एक्साइटेड थे। पिछली बार जब मौसी औऱ विवान आये थे तो उन्होंने बहुत मस्ती की थी, जमकर धमाचौकड़ी मचाई थी। इस बार भी उन्होंने ढेरों प्लानिंग कर रखी थी। कई नए-नए गेम्स सोच रखे थे विवान के साथ खेलने के लिए।
तय समय पर सिद्धि और विवान रिद्धि के घर पहुँचे, लेकिन इस बार सात वर्षीय विवान के रंग-ढंग बदले-बदले से थे। मौसी और निवि, रवि से औपचारिक हाय-हैलो के बाद वह सिद्धि से मोबाइल ले उसमें बिजी हो गया। नाश्ता भी उसने मोबाइल पर कार्टून देखते-देखते ही किया। निवि औऱ रवि की जिद पर कुछ देर जबर्दस्ती उनके साथ खेला, फिर मोबाइल में गेम्स खेलने लगा। उसे घंटों मोबाइल में लगा देख रिद्धि हैरान रह गई। “सिद्धि इतने छोटे बच्चे के हाथ में मोबाइल, ये सही नहीं है।”
“दीदी, आप कौन सी दुनिया में जी रही हैं? आजकल तो सभी बच्चे मोबाइल यूज़ करते हैं। मैं तो कहती हूँ, ये मोबाइल नहीं जादू की डिबिया है जिसे बच्चों के सामने रखते ही सारे काम फटाफट हो जाते हैं। नहीं तो पहले ये जनाब खाना खाने में, पढ़ने में नाक में दम कर देता था और अब देखो इसके लालच में सारे काम अपने आप ही कर लेता है” सिद्धि ने हंसते हुए कहा।
“नहीं, सिद्धि तुम्हारी सोच सही नहीं है। विवान को इतनी छोटी उम्र में मोबाइल देना गलत है। बचपन खेलने-कूदने के लिए होता है, मोबाइल के लिए नहीं। वह तुम्हें परेशान ना करें, तुम्हारी सारी बातें मान लें, तुम फ्री रहो, सिर्फ इसलिए उसे मोबाइल का आदि बनाकर तुम सही नहीं कर रही हो। इस तरह घंटों मोबाइल में लगा रहना उसकी हेल्थ के लिए भी ठीक नहीं है।”
“छोड़ो न दीदी, आप बेकार ही चिंता कर रही हैं| ऐसा कुछ नहीं है बल्कि मोबाइल तो बच्चों को स्मार्ट बना रहा है| विवान को तो इतनी छोटी उम्र में ही मोबाइल के ऐसे-ऐसे फीचर्स यूज़ करने आते हैं कि मैं भी नहीं जानती| मैं तो कहती हूँ कि आप भी निवि और रवि को मोबाइल देना शुरू कर दीजिये| मोबाइल स्क्रीन पर तेजी से दौड़ती विवान की उँगलियों को देख सिद्धि ने गर्व से कहा|
उसकी ऐसी बातें सुनकर रिद्धि शांत रह गयी| कुछ दिन रहकर सिद्धि और विवान लौट गए| जितने भी दिन विवान रिद्धि के यहाँ रहा न निवि औऱ रवि के साथ खेला-कूदा, न बोला-बतलाया| बस सारे दिन कमरे में बंद मोबाइल से ही चिपका रहा था|
“दीदी विवान ने अपना हाथ काट लिया है” एकदिन सिद्धि ने फ़ोन पर रिद्धि को बताया| वह बेतहाशा रोये जा रही थी|
“क्या! पर क्यों? मुझे पूरी बात बता और पहले तो तू ये रोना बंद कर|”
“दीदी, आपके वहाँ से आने के कुछ समय बाद से ही विवान के सिर और आँख में तेज दर्द रहने लग गया था| जब डॉक्टर को दिखाया तो पता चला कि उसकी पास और दूर दोनों नज़र कमजोर हो गयी हैं और यदि उसकी मोबाइल की हैबिट नहीं छुड़ाई गयी तो आँखों को परमानेंट डैमेज हो जायेगा| इसीलिए मैंने उसे मोबाइल देना बंद कर दिया, लेकिन उसे मोबाइल की ऐसी हैबिट हो चुकी है कि वो रो-धोकर जिद करके घर में किसी न किसी का मोबाइल ले ही लेता है|
ऐसे ही एक दिन अपनी दादी के मोबाइल पर काफी देर से गेम खेल रहा था| जब मैंने उससे मोबाइल बंद करने को कहा तो वह जमीन लोटने लगा| जिद करने लगा, मजबूरन मुझे उससे फ़ोन छीनना पड़ा जिसके बाद उसने गुस्से में पास पड़े चाकू से अपना हाथ काट लिया| इस घटना के बाद घर में भी सब मुझसे बहुत नाराज़ हैं, मुझे समझ ही नहीं आ रहा कि मैं क्या करुँ?
“देख सिद्धि, इसमें सारी गलती तेरी ही है| पहले तो तूने अपने आपको फ्री रखने के लिए उसे मोबाइल की हैबिट लगा दी| फिर जब वो मोबाइल की इमेजिनरी दुनिया में रच-बस गया है तो तू उसे वहाँ से जबरदस्ती खींचकर बाहर निकल रही है, तो वह विद्रोह तो करेगा ही|” रिद्धि ने उसे समझाते हुए कहा|
“तो अब मैं क्या करुँ? कैसे उसे मोबाइल के इस मकड़जाल से बाहर निकालूँ?” सिद्धि ने परेशान होते हुए कहा|
“अपना समय देकर| तुम्हें विवान को ज्यादा से ज्यादा वक्त देना होगा ताकि उसका ध्यान मोबाइल से हटे| उससे उसकी पढाई की, दोस्तों की, स्कूल की बातें करो| जितना समय वह घर पर रहे उसके साथ किसी न किसी एक्टिविटी में लगी रहो| उसके साथ खेलो, मस्ती करो| उसे घर के छोटे-छोटे कामों जैसे गार्डन में पेड़-पौधों को पानी देना, टेबल पर डिनर या ब्रेकफास्ट लगवाना आदि में इन्वॉल्व करो| उसे अकेला बिल्कुल मत छोड़ो| जब तुम बिजी हो तब विवान के दादा-दादी उसे कहानी सुना सकते हैं, पार्क में घुमाने ले जा सकते हैं, खेल सकते हैं| ऐसा करने से वह परिवार से जुड़ेगा और उसे सबके साथ समय बिताना अच्छा लगेगा|”
“विवान को म्यूजिक का कितना शौक है, तुम चाहो तो उसे कोई म्यूजिक क्लास जॉइन करा दो| इससे वह मोबाइल छोड़ म्यूजिक से जुड़ेगा|”
“सबसे जरूरी बात, तुम सब भी मोबाइल का यूज़ कम से कम करो, खासकर विवान के सामने| यदि तुम सब उसके सामने मोबाइल से चिपके रहोगे तो वह कभी भी मोबाइल की हैबिट नहीं छोड़ पाएगा| थोड़ा मुश्किल है पर नामुमकिन नहीं| धैर्य और संयम से ट्राई करोगी तो उसकी ये हैबिट जरूर छूट जाएगी|”
रिद्धि की बात मान सिद्धि और परिवार के बाकी सदस्यों ने भी विवान के सामने मोबाइल यूज़ करना बिल्कुल कम कर दिया| वे सब उसके साथ ज्यादा से ज्यादा समय बिताने लगे| सिद्धि ने उसे गिटार क्लास भी जॉइन करा दी| कोई भी उसे अकेला नहीं छोड़ता था| धीरे-धीरे विवान को सबके साथ समय बिताकर मज़ा आने लगा| रात को दादी से रामायण, महाभारत की कहानियाँ सुने बिना अब उसे नींद नहीं आती थी| मम्मी के साथ गार्डन में पौधों को पानी देना, दादाजी के साथ चेस, पापा के साथ बैडमिंटन अब मोबाइल की जगह ये सब चीज़ें विवान की जिंदगी बनती जा रही थी| मोबाइल की स्क्रीन पर दौड़ने वाली उसकी उँगलियाँ अब गिटार के तारों पर दौड़ने लगी थी| अब वह अपने सवालों के जवाब के लिए गूगल को नहीं घर वालों को ढूंढ़ता था|
सभी विवान में एक पॉजिटिव बदलाव महसूस कर रहे थे| घंटों कमरे में बंद, मोबाइल से चिपके रहने वाले विवान की जगह अब उछल-कूद करने वाले हँसते-खेलते चंचल विवान ने ले ली थी|
अगली छुट्टियों में जब सिद्धि विवान के साथ दीदी के यहाँ गयी तो वहाँ विवान ने भी सबके साथ ढेरों मस्ती की| निवि, रवि के साथ खूब खेला| विवान को मोबाइल छोड़ फिर से सबके साथ हँसते-खेलते देख रिद्धि बहुत खुश हुई क्यूँकि अब वो मोबाइल की इमेजिनरी दुनिया से निकल वापस अपने बचपन में लौट आया था|
लेखिका- श्वेता अग्रवाल
धनबाद,झारखंड
शीर्षक – ‘मोबाइल है, बच्चों का खिलौना नहीं’
कैटिगरी- लेखक/लेखिका बोनस प्रोग्राम